Friday 1 May 2020

धर्म और अध्यात्म / डॉ. सुधा सिन्हा

विमर्श 

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धर्म और अध्यात्म दोनों दो चीजें हैं। पूजा पाठ धर्म है ।

धर्म के तरीके अलग हो सकते हैं। इसलिए धर्म के नाम पर झगड़े होते हैं पर अध्यात्म के नाम पर नही। सबों से प्यार करना अध्यात्म है।एक लाइन में अपने रुप का‌ सर्वत्र दर्शन अध्यात्म है। दूसरो के दुख दर्द
को महसूस करना अध्यात्म है।

विश्वबंधुत्व की भावना रखना अध्यात्म है।

आज पारंपरिक पूजा की आवश्यकता नहीं। विवेकानंद ने कहा सेवा ही धर्म है। सभी समसामयिक दार्शनिकों ने इसी बात पर बल दिया है। ईश्वर हर किसी में आत्मा के रूप में अवस्थित है। सबों से प्यार करना ईश्वर के करीब‌ जाने का आसान रास्ता है।सुकरात ने कहा था know thyself अर्थात अपने-आप को जानो। प्रत्येक व्यक्ति के परिवार समाज एवं राष्ट्र के प्रति अलग अलग अधिकार और कर्तव्य होते हैं।उन अधिकारों एवं कर्तव्यों की पकड ही अपने आप को जानना‌ है।अगर प्रत्येक आदमी अपने अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सहज हो जाते तो उसका जीवन सहज हो जाय।

आज अध्यात्म नये रंग रुप में हमारे समक्ष है।अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों को पकड़ कर उनके अनुसार जीवन मापित करना ही आध्यात्म है। आधुनिक दार्शनिकों ने कर्म पर ज्यादा बल दिया है। जो जिस क्षेत्र में है अगर अपना कर्म कर रहा है तो वह अध्यात्म की जिंदगी जी रहा है। कर्म अनासक्त होकर करना है। इसे ही गीता में अनासक्त कर्म कहा गया।

एक पंक्ति में सही ढंग से जीना ही अध्यात्म है।
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कवयित्री - डॉ. सुधा सिन्हा 
कवयित्री का ईमेल - sinhasudha017@gmail.com
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