Sunday 28 July 2019

अनगिनित यादों के झरोखे में कलाम (पूण्यातिथि पर विशेष:) / कवयित्री - मंजु गुप्ता

शिक्षाविद , दार्शनिक , वैज्ञानिक , आध्यात्मिक , संगीतज्ञ , राजनीतिज्ञ , कवि - लेखक और चिंतक भारत रत्न महामहिम राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम को नमन ! (जन्म: 15 अक्तूबर 1931, रामेश्वरम शहर मृ त्यु: 27 जुलाई 2015, शिलांग  मेरी उन्हें समर्पित कोटी कोटी श्रद्धांजलि!

अनगिनित यादों के झरोखे में कलाम

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चित्र - इंटरनेट से साभार 

''बने धरती कैसे खुशहाल"
उस पल हुई सांसें बेहाल 
कह न पाई अपनी बात 
विदा हो गईं ले के कलाम।

गमगीन आँखें दें विदाई 
देता देश, विश्व सलामी 
देश को समर्पित जिंदगानी 
दे श्रद्धांजलि हर भारतवासी।

अभावों, मुश्किलों भरी जिंदगी 
परिश्रम , सच्चाई करे वन्दगी 
मन तरंगे हालातों से खूब लड़ी 
छुई उड़ाने परमाणु की कामयाबी की।

विशाल सोच, चिंतन के ध्यानी 
थे शिक्षक, आध्यात्मिक ज्ञानी 
आदर्शों  अंतस प्रज्ञा के धनी 
"विंगस ऑफ फायर" लोकप्रिय बड़ी।

मानवीय पूंजी थी बड़ी भारी 
बैंक पूंजी में खाता था खाली 
रसीला फलदार वृक्ष सरीखा 
विनम्र प्रतिमूर्ति योगदानों वाली।

बढ़ाया विश्व में 'अग्नि' 'पृथ्वी' से मान 
मिला "मिसाइल मैन", "भारत रत्न" खिताब 
लक्ष्य  "बीस हजार बीस" तक का सपना 
करना था देश को विकसित अपना।

चढ़ी रहती अथक कामों की धुन 
सफलता की समृद्धि सपनों से बुन 
किया मेल अध्यात्म, विज्ञान का 
जिया जीवन गीता, कुरान  सा

वे राष्ट्रपति बाल,  युवा में बेमिसाल 
नई सोच विज्ञान, चिकत्सा की बनी मिसाल 
सभी परम्परा - संस्कृतियों में गए थे घुल 
रूढ़ियों, कुरीतियों की तोड़ी अमिट दीवार।

जर्रे-जर्रे को कर गए खुशहाल 
"न करना मेरे मरने पे अवकाश 
करना देशवासियों दुगना काम" 
करेंगी 'मंजु' पीढ़ियां उन्हें याद
... 
कवयित्री - मंजु गुप्ता
पता - वाशी , नवी मुंबई
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

Thursday 25 July 2019

अज़ीज़ों से अधिक यारी, जुदाई भी नहीं अच्छी / बाबा बैद्यनाथ झा की दो रचनाएँ

  1

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अज़ीज़ों  से  अधिक यारी, जुदाई भी नहीं अच्छी 
सदाकत  के  बिना  कोई  कमाई भी नहीं अच्छी

कमाई  से  मिली  रोटी  भले  आधी, वही अच्छी 
कभी  हैवान  के  घर  की मलाई  भी नहीं अच्छी  

जहाँ  हो  स्वार्थ का रिश्ता  वहाँ परहेज है अच्छा 
अगर हो  बात   छोटी सी  लड़ाई भी नहीं अच्छी

रहे जो  आदमी  लोभी  नहीं  संतोष  है   उसको 
कभी  खुदगर्ज  की ज्यादे भलाई भी नहीं अच्छी

जहाँ  संगत  बुरी  होगी   वहाँ  बच्चे  बिगड़ते  हैं 
वहाँ  शासन  जरूरी  है  ढिलाई  भी  नहीं अच्छी

लगी  हो  ढेर रूई की वहाँ बस  ध्यान यह रखना 
वहाँ  दें  हाथ  बच्चों  के  सलाई भी  नहीं अच्छी 

हमेशा  ग्रीष्म  का  मौसम  हमें काफ़ी सताता है  
तपिश वह जून की हो या जुलाई भी नहीं अच्छी 

शहीदों  के  घरों  में  तो  मदद हैं लाख सरकारी  
मगर जब देखता  सूनी कलाई  भी नहीं अच्छी.
...

                     
          2          
          
जो   नहीं   परहेज   करता  पाप  से 
कर  रहा  वह  दुश्मनी  खुद  आपसे 

है  हृदय  में  जब  कुटिलता ही भरी 
क्या  घटेगा  पाप  उसका  जाप  से 

खोजते   हैं   धूप   हम   हेमन्त   में 
ग्रीष्म  में  जलते  उसी क्यों ताप से 

भूलते   सब   जा   रहे   हैं  शिष्टता 
बात   भी  तनकर  करेगा  बाप  से 

भूल जिसने की नहीं हो  वह  भला 
क्यों डरेगा फिर किसी भी श्राप से 

आज  'बाबा' भी  दुखी है सोच में 
देख  जग की  त्रासदी  सन्ताप  से.
...

कवि-  बाबा वैद्यनाथ झा
कवि का ईमेल आईडी - jhababa55@yahoo.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

Tuesday 16 July 2019

मनु कहिन (5) - यथार्थ / नाम को नहीं नियमों को बदलो

नाम को नहीं नियमों को बदलो

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आज का शहर बैंगलुरू पर, आज तक दिल को नही समझा पाया। भाई यह अपना पुराना शहर बैंगलोर ही तो है। आज तक बंबई ही निकलता है मुंह से। क्या नाम बदल जाने से फितरत बदल जाती है ? चीजें कतई नहीं बदला करती हैं। बस कागजों पर नाम बदल जाते हैं। बड़ी मुश्किल होती है बैंगलोर को बैंगलुरू बोलने में। काश कोई यह समझ पाता। नाम में क्या रखा है? कभी शेक्सपियर साहब ने कहा था। काश ! आज वो होते तो शायद उन्हें इस बात का एहसास होता। 

नाम में ही तो सब कुछ रखा है। अगर नही तो मुगलसराय, दीन दयाल उपाध्याय नही होता। नही होता , गौतमबुद्ध नगर। न बनारस , वाराणसी होता और न ही मद्रास, चेन्नई होता।

भाई बदलना ही है तो आज के संदर्भ में पुराने जमाने के अप्रासंगिक हो चुके नियमों को बदलने की कोशिश करो। 
खैर! कहां से बात कहां चली गई। लोग सही ही तो कहते हैं - बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी....

शहर बैंगलोर, मैं तो यही कहूंगा। बहुत लोगों के आकांक्षाओ एवं अरमानों का शहर। बच्चों की पढ़ाई से लेकर उनके जीवन में सेटल होने तक का शहर। बुढ़ापे में अपने लिए भी अपने जड़ों को छोड़कर, अपनी मिट्टी से दूर एक ठिकाना ढूंढता एक शहर। 

बात सिर्फ बैंगलोर की नही है। अमूमन हर महानगरों की यही कहानी है। महानगरों की भीड़ में आमतौर पर आदमी खो-सा जाता है। वह एकाकी जीवन जीने लगता है। दुनिया मानो सिमट-सी जाती है। 

गलत तो नही है। मैं भी उनमें से एक हूं। हां, पर शायद अपनी मिट्टी, अपनी जड़ों को छोड़कर दूसरे शहर में ठिकाना बनाने का अहसास मुझे कुछ ऐसा ही लगता है जैसे किसी बच्चे को उसकी इच्छा के विरुद्ध होस्टल में डाल दिया गया हो। महानगर में रहने की कल्पना मात्र से ही सिहरन सी होने लगती है। भाई, आखिर इसी शहर के लिए तो मुझे अपने 'प्रोस्पेक्ट' के लगभग चार बेशकीमती साल छोड़ने पड़े। नियम भी पता नहीं क्या क्या होते हैं। अरे भाई, बदलना है तो कोई इसे बदलो। इतना मत बांटो कि आगे बंटने लायक़ कुछ बचे ही नही।

बहुत बदलाव आया है। हमारे देश ने बहुत तरक्की की है। हम हमेशा अपनी विरासत , अपने इतिहास को याद कर गौरवान्वित होते हैं। अब वक्त आ गया है उनसे ऊपर उठ कर सोचने का। इतिहास और विरासत से सीख लेकर आगे बढ़ने का। क्या ईमानदारी से अपने आप को समझा सकते हैं कि वाकई में हमारा विकास समावेशी विकास है?

बुनियादी सुविधाओं के लिए भी हमें अपना शहर, अपनी मिट्टी, अपनी जड़ों से दूर होना पड़ता है। इसका असर हमारी संस्कृति पर पड़ता है। आप इस संदर्भ में जरा सोचें तो शायद आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कहना चाह रहा हूं। आज हम शायद इसे नही समझ पा रहे हैं पर, हमें समझना होगा। हमारे समाज वैज्ञानिकों को इस पर नजर रखनी होगी। जीवन सिर्फ और सिर्फ दाल-रोटी तक ही सीमित न हो कर उसके परे भी है, बस इसे समझने की जरूरत है।
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आलेख - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com


गुरु-पूर्णिमा (16.7.2019) पर विशेष - बाबा बैद्यनाथ झा की कुंडलियाँ

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सबसे पहले गुरु नमन, जिनसे पाया ज्ञान।
जिनके  आशीर्वाद  से, आज बना  इंसान।।
आज बना इंसान, व्यर्थ था  मानव जीवन।
पाकर ही सद्ज्ञान,हुआ  है  सार्थक यौवन ।
कह 'बाबा' कविराय, नीति सीखी है जबसे।
पाकर गुरु आशीष, स्नेह मिलता है सबसे।।

        2       
  जिनसे सीखा है कभी, एक  वर्ण   का ज्ञान।
रह  कृतज्ञ  मैं मानता,उनको   ब्रह्म  समान।।
उनको  ब्रह्म  समान,समझ मैं  आदर करता।
पाकर अक्षर ब्रह्म, निडर  हो  नित्य  विचरता।
कह 'बाबा' कविराय, बहुत कुछ सीखा उनसे।
दिल  से  देता  मान बना हूँ साक्षर  जिनसे।।

             3              
गुरुवर सीखा आपसे, जो  कुछ  छंद विधान।
सदुपयोग मैं कर रहा, जितना  पाया ज्ञान।।
जितना पाया ज्ञान, उसी से कुछ लिख पाता।
मिलता  है  संतोष, मंच   पर   खूब  सुनाता।
कह 'बाबा' कविराय, श्रेष्ठ ज्यों वट है तरुवर।
सद्यः ब्रह्म   समान, हमारे  पूजित   गुरुवर।।
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कवि- बाबा वैद्यनाथ झा 
कवि का ईमेल आईडी - jhababa55@yahoo.com
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Monday 15 July 2019

अखिल भारतीय अनागत साहित्य संस्थान द्वारा शायर एवं गीतकार *अशवनी "उम्मीद" को लखनऊ में सम्मानित किया गया

लखनऊ के शायर अशवनी उम्मीद और कवि राहुल द्विवेदी सम्मानित

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नवाबों और साहित्यिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध लखनऊ में अखिल भारतीय अनागतसाहित्य संस्थान ने अशवनी 'उम्मीद' लखनवी को अपनी मासिक काव्य गोष्ठी में सम्मानित किया।

गोष्ठी विभिन्न विधाओं के प्रत्येक रस से समृद्ध  रहीं। वरिष्ठ रचनाकार एवं गोष्ठी के संस्थापक  डा. अजय प्रसून ने अशवनी 'उम्मीद' लखनवी को अपना गीत संग्रह "कालजयी हम प्यास लिए" भी उपहार स्वरूप प्रदान किया।

गोष्ठी की अध्यक्षता आचार्य ओम नीरव ने की। मुख्य अतिथि के पद पर  नरेन्द्र भूषण एवं विशिष्ट अतिथि डा. सुरेश प्रकाश शुक्ल बनाए गए।

गोष्ठी में विशेष रूप से मुंबई से आये लखनऊ के ही मशहूर शायर अशवनी 'उम्मीद' एवं लखनऊ के प्रसिद्ध कवि व संचालक राहुल द्विवेदी स्मित सम्मानित किये गए।

गोष्ठी में डा. हरि फैजाबादी, मिज़ाज लखनवी एवं अन्य कई शायरों व रचनाकारों ने हिस्सा लिया एवं काव्य पाठ भी किया।
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सूचना स्रोत - अशवनी 'उम्मीद'
श्री अशवनी उम्मीद का ईमेल आईडी - meharotraashwani@yahoo.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

Wednesday 10 July 2019

मनु कहिन (4) - मृगतृष्णा

सुखी जीवन का सार 


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आम आदमी बिचारा! 
कहां फुर्सत है उसे कि वो ज्यादा पंख फैलाए! अपने सपनों को साकार करे! 
पूरी जिंदगी तो बिचारे की बीत जाती है दाल रोटी की जुगाड में।  जिंदगी घिस-सी जाती है दुनियादारी निभाने में! 

पर , कितना निभा पाता है वो ? बिचारा आम आदमी! 

जिंदगी की शुरुआत होती है दाल रोटी की जद्दोजहद से। बीच की जिंदगी किसी प्रकार कटती है बाल बच्चों की जिम्मेदारी उठाते हुए, दुनियादारी निभाते हुए। जब जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर होता है तो पुनः प्रयास करता है कि जो जिम्मेदारियां बच गई हैं जिसे वह खुद की मानता है, उसे निभाने के बाद ही इस इहलोक की उसकी यात्रा पुरी हो। 

क्यों दूसरों के भरोसे छोड़कर जाए वो? आखिर कितनी मशक्कत के बाद, किसी पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों की वजह से, आखिरकार चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात उसे यह जिंदगी मिली है। 

जीवन के आखिरी पड़ाव पर भी वह कुछ न कुछ छूट जाने की बात करता है। किसी अपने को इस विश्वास के साथ उस बोझ को सुपुर्द करता है कि चलो अब वह शांति से दूसरे लोक की यात्रा पर जा सकेगा। 

क्या यह संभव है दोस्तों? 
अगर यह संभव हो पाता तो विश्व में गुरूओं की संख्या कम हो जाती। सारे गुरु जन कहीं न कहीं इन्हीं सब बातों से परेशान हैं। आज भले ही हमें वो रास्ता दिखाने का प्रयास करते हैं। पर, दिल पर हाथ रख कर बोलें सच्चाई क्या है? 

हम सभी एक भुलावे में जी रहे हैं। सच्चाई का सामना करने की हिम्मत नही है हम सभी में। 

हरवक्त एक अनजाने भय के आने की आशंका से ग्रसित रहते हैं। 

इन बातों से उपर उठें। सच्चाई नही है इनमें। मिथ्या है, यह सब। मृगतृष्णा है। 

मृगमरीचिका को देखकर आनंदित होते हैं हम सभी। 

जो निश्चित है वो होकर रहेगा। प्रारब्ध पर भरोसा करें। जीवन आनंदमय रहेगा और शायद यही सार भी है सुखी और आनंदमय जीवन का।
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आलेख - मनीश वर्मा
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Thursday 4 July 2019

मनु कहिन (3) - रिव्यू मिटिंग

हे पार्थ, तूफान के गुजरने का इंतजार कर!

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जब से पता चला है कि बिग बॉस ने रिव्यू मिटिंग बुलाई है, ब्लड प्रेसर का पारा अचानक से नीचे गिर पड़ा। रिव्यू मिटिंग की बात पता चली नही कि ऐसा लगता है आप बीमार दिखने लगे हो। 

आप एक साथ कई रोगों से अपने आप को घिरा हुआ महसूस करने लगते हैं। काश कुछ जुगत भिड जाए जो रिव्यू मिटिंग से मुक्ति मिल जाए। 

स्पॉन्डिलाइटिस अलग मुंह उठाए सिर पर सवार हो जाता है। डायबीटीज - आपका सुगर लेवल  अचानक से फ्लक्चूएट करने लगता है। दिल की धड़कन तेज हो जाती है। 

आप रिव्यू मिटिंग के लिए चाहे कितना भी तैयारी कर लें, कितना भी सिमुलेट कर लें, बॉस का एक बाउंसर जो धीमी गति का बाउंसर भी हो सकता है, आपकी लय बिगाड़ने के लिए पर्याप्त है। 

और कहीं बढियां लेंथ और लाइन वाली यॉर्कर का सामना करना पडा तो फिर तो भगवान मालिक ! कहीं आप बंगले झांकते हुए नजर न आने लगें। 

देखिए, अगर बडे साहब ने ठान लिया है कि आपका इम्तहान यॉर्कर एवं गुड लेंथ वाली बाउंसर से लिया जाए तो हे पार्थ, तूफान के गुजरने का इंतजार कर। घडी की ओर बार बार दृष्टि डाल। शायद समय जल्द गुजर जाए। पर, पता नही उस दिन - दिन बडा  क्यों हो जाता है! चाय की घूंट कड़वी सी क्यूं महसूस होने लगती है। समय मानो ठहर-सा जाता है। 

पर, अगर मिटिंग के दौरान बास ने आपके काम की सराहना कर दी तो ऐसी फिलिंग होती है मानो कोई जंग जीत लिया हो। आप भीड़ से अलग दिखने लगते हैं। एक आध इंक्रीमेंट भी ऐसी फिलिंग नही दे पाती है।
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आलेख - मनीश वर्मा
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Monday 1 July 2019

नवी मुम्बई की लेखिका मंजु गुप्ता का आत्मवृत्त

लेखिका : मंजु गुप्ता 

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जन्म :  21 . 12 1953  
जन्मस्थान : ऋषिकेश ,  उत्तराखंड  , भारत 

शिक्षा : एम.ए     ( राजनीति शास्त्र ) , बी.एड

संप्रति : :सेवा निवृत  हिंदी शिक्षिका, जयपुरियार सीबीएससी हाईस्कूल, सानपाड़ा, नवी मुंबई 

कृतियाँ : प्रांतपर्वपयोधि (काव्य), दीपक ( नैतिक कहानियाँ), सृष्टि (खंडकाव्य), संगम (काव्य)   अलबम (नैतिक कहानियाँ) , भारत महान (बालगीत) सार (निबंध), परिवर्तन सामाजिक प्रेरणाप्रद कहानियाँ।

प्रेस में :  संकल्प (लघुकथा संग्रह ) , जज्बा ( देश भक्ति गीत )

रुचियाँ  : बागवानी , पेंटिंग, प्रौढ़ शिक्षा , नृत्य और सामाजिकता, मैत्री करना . 

प्रकाशन : देश - विदेश की विभिन्न समाचारपत्रों ,पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, जारी हैं । 

उपलब्धियां : समस्त भारत की विशेषताओं को प्रांतपर्व पयोधि में समेटनेवाली प्रथम महिला कवयित्री , मुंबई दूरदर्शन से सांप्रदायिक सद्भाव पर कवि सम्मेलन में सहभाग, गांधी जीवन शैली निबंध स्पर्धा में तुषार गांधी द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित, माडर्न कॉलेज वाशी द्वारा गुण गौरव सावित्री बाई फूले पुरस्कार से सम्मानित, भारतीय संस्कृति प्रतिष्ठान द्वारा प्रीत रंग में स्पर्धा में पुरस्कृत, आकाशवाणी मुंबई से कविताएँ , कहानियाँ, आलेख  प्रसारित, विभिन्न व्यंजन स्पर्धाओं में पुरस्कृत,  दूरदर्शन पर अखिल भारतीय कविसम्मेलन में सहभाग । भागलपुर विश्वविद्यालय  बिहार से विद्या वाचस्पति से सम्मानित । नवभारत में प्रकाशन, नवभारत टाइम्स में मेरे मत , बोध कथा आदि प्रकाशित. सम्मान : वार्ष्णेय सभा मुंबई , वार्ष्णेय चेरिटेबल ट्रस्ट नवी मुंबई , एकता वेलफेयर असोसिएन नवी मुंबई , मैत्री फाउंडेशन विरार , कन्नड़ समाज संघ , राष्ट्र भाषा महासंघ मुंबई ,  प्रेक्षा ध्यान केंद्र , नवचिंतन सावधान संस्था मुंबई कविरत्न से सम्मानित , हिन्द युग्म यूनि पाठक सम्मान , राष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंच दिल्ली द्वारा महिला शिरोमणी अवार्ड के लिए चयन , काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान , जैमनी अकादमी लघुकथा प्रथम पुरस्कार , अग्निशिखा काव्य मंच काव्य सम्मान, मगसम रचना रजत प्रतिभा सम्मान, आशीर्वाद २४ घंटे कवि सम्मेलन काव्य पाठ , के जे . सोमैया मुबई पुरस्कृत, गुरु ब्रह्मा सन्मान , सबरंग कवि रत्न अवार्ड , कोपरेटर नवी मुंबई साहित्यसम्मान, इपीक लीटरी कौंसिल सम्मान, विश्व हिंदी संस्थान कनाडा से विश्व हिन्दी कथा शिल्पी सम्मान और हिंदी उपन्यास रचना सहभागी सम्मान ओंकार प्रतिष्ठान सम्मान, हिन्दुस्तानी  प्रचार सभा मुम्बई, सेलिब्रेटिंग आईडिया जूरी पेनल सम्मान , नेपाल आकाशवाणी में मेरा साक्षात्कार, काव्य वाचन  आदि। मुंबई आकाशवाणी से कविता , कहानी, आलेख आदि प्रसारण जारी और मेरा साक्षात्कार भी प्रसारित  . 

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