Saturday 9 May 2020

मनु कहिन (27) - मनोदशा

विमर्श 

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आपने अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना होगा! आज मौसम बड़ा सुहाना है। बड़ा ही प्यारा मौसम है आज ! मौसम बड़ा ही खुशगवार है ! फलां फलां फलां। पर, भला यह कैसे हो सकता है! यह एक सब्जेक्टिव चीज है।आप इसे वस्तुनिष्ठ कैसे बना सकते हैं। हम यह जरूर कहते हैं कि सूर्य अस्त हो चुका है या फिर सूर्य उदय हो चुका है। पर, वास्तविकता क्या है। सूर्य न तो अस्त होता है ना ही उदय होता है। दुनिया के एक भाग मे अगर सूर्य अस्त होता है तो कहीं दूसरे भाग मे उदय होता है।  उसी प्रकार अगर मौसम सुहाना है, अच्छा है या फिर खुशगवार है तो इसका मतलब यह नही कि यह सार्वभौम है। यह तो आपकी और  हमारी मनोदशा के अनुरूप सोचने का नजरिया है। हम किस प्रकार से सोचते हैं? हमारा सोच कितने आयामों से गुजरता है ! यह हमारी और आपकी मनोदशा ही तो है !

उस किसान से जाकर पूछें जिसने अभी अभी फसल काटकर काटी हुई फसलों को दालान मे रख दिया है या फिर खेतों मे फसल पककर तैयार खड़ी हो और तभी इस सुहाने मौसम की बैमौसम बरसात ने उसके सपनों को चूर चूर कर दिया जो उसने देख रखे थे ! अब वो सर पर हाथ रख कर गंभीर चिंता मे डुबा हुआ है। भाई किसानों के सोच का दायरा ही फसल और खेतों के बीच घूमता रहता है! उसकी आशा और निराशा सबके मूल मे खेत, खेती और फसल ही तो है।

उस  मेहनतकश मजदूर से पूछें जो अमूमन आपको गांव के बाज़ार मे या फिर शहरों के मुख्य चौराहों पर एक भीड़ के रूप मे मिल जाते हैं!  उन्हें आज कोई काम नही मिल पाया। क्या खाएंगे उनके बच्चे आज ! स व्यक्ति से पूछें जिसका कोई अपना अस्पताल मे जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा है!  उस व्यक्ति से पूछें जिसके घर आज किसी की मौत हो गई हो!  वाकई मौसम सुहाना है! अच्छा है! खुशगवार है! पर, निर्भर करता है परिप्रेक्ष्य पर! 

अगर अकाउंट्स की बात करें तो क्या डेबिट का मतलब सिर्फ और सिर्फ जाने से है ? या फिर क्रेडिट का मतलब सिर्फ और सिर्फ आने से है ! नहीं! बिल्कुल नहीं! किसी के लिए डेबिट है तो किसी और के लिए क्रेडिट है। 

कहने का मतलब हर चीज के दो पहलू होते हैं। आपको इन्हें समग्र रूप मे देखना होगा ! चीज़ें वस्तुनिष्ठ नही हो सकती हैं। हम इंसान हैं! पशुओं की तरह व्यवहार नही कर सकते। हमारे सोचने का दायरा विस्तृत है, व्यापक है, सब्जेक्टिव है! आपका वक्तव्य वास्तव मे यह बताता है कि आपकी 'मनोदशा/ क्या है। व्यक्ति 'मनोदशा' से इतर नही सोच सकता है।
किसी ने 'मनोदशा' के संदर्भ मे क्या खूब कहा है!
"चांदनी रात मे बरसात बुरी लगती है !
घर मे अर्थी हो तो बारात बुरी लगती है ! 
ऐ दोस्त मत छेड़ मेरे वीणा के तारों को 
 जब दिल मे दर्द हो तो हर बात बुरी लगती है !
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लेखक - मनीश वर्मा 
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