Tuesday 30 June 2020

मेरे पास सिर्फ ग़ज़ल रही थी / डॉ. किशोर कुमार मीणा की रचनाएँ

1. मेरे पास सिर्फ ग़ज़ल रही थी

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रात ख्वाबों में वो मचल रही थी 
सितारों की बस्ती में चांदनी पल रही थी l 
फिर क्यों जीवन में अंधेरा लगा
पास में चिरागों की महफिल जल रही थी l
बार-बार ख्याल उस पर जाता
शायद ख्वाबों की ताबीर हमें छल रही थी 
मासूम दिल को छलनी करके
वो हमसे बेखबर रह रही थी l
खामोश चेहरा सूखे फूल की तरह था
, हंसी चेहरे से कोसों दूर ढल रही थीl
मोहब्बत की किताबे धुआं हुई
अश्कों की बारिश में गल रही थी l
जमी हुई दिल की हसरतें
ग़म की धूप से न जाने कब से पिघल रही थी l
हाथ में कलम, ख्वाब में वो, अश्क कागज पर गिरे
कलम तो बिना रुके चल रही थी l
चुपचाप, गुमसुम, उदास बैठा रहा था मैं
उस रात मेरे पास सिर्फ ग़ज़ल रही थी l
...

2. गैर

दर्द कुछ ऐसा दिया,
खुलकर भी रोया न गया l
जख्म ही कुछ ऐसे थे,
फूलों पर सोया न गया l
आग देखी, लपट देखी,
धुआं देखा जलते खतों का
दिल जलता रहा इस तरफ,
वो ख्वाब संजोते रहे l
तमन्ना टूटी, दिल टूटा
खंडहर हो गई अपनी दुनिया
सब कुछ लुट गया इस तरह 
वो चैन से सोते रहे l
ऐसी भी क्या साजिश हुई
मेरा घर मिट्टी का था 
उस पर क्यों बारिश हुई l
वो मेरे होकर भी मेरे ना हो सके 
'हिक' समझता रहा उन्हें अपना
वो गैर होते रहेl
...

कवि - डॉ. किशोर कुमार मीणा
परिचय - कवि, लेखक, व्यंगचित्रकार
कवि का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
कवि का पता - निरकारी कॉलोनी, नई दिल्ली -110009
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Sunday 21 June 2020

पितृ दिवस पर रचनाएँ / सिद्धेश्वर, संतोष के चौबे, चंदना दत्त, अर्जुन प्रभात

कविताएँ 

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कविता-१ / सिद्धेश्वर 


पिता का घर में, रहता है इंतजार
पिता है तो घर में, छलकता है प्यार! 

पिता के बिना, हर रास्ता अधुरा
पिता है तो हर सपना, होता है पूरा!

जीवन की जीवंत अभिव्यक्ति है पिता!
मजबूत रिश्तों की, असीम शक्ति है पिता!!

स्कूल का बस्ता, कांपी, किताब है पिता!
सुख-दुःख के गणित का, हिसाब है पिता?

मां का स्नेह,परिवार का अनुशासन है पिता
सलीके का जीवन देनेवाला,प्रशासन है पिता

पिता के बिना, हर रास्ता है अधूरा
पिता है तो हर सपना होता है पूरा!

मां की बिंदी, सिंदूर, सुहाग है पिता!
संघर्ष की राह पर, दहकता आग है पिता!

जमीं है "मां', तो आसमान. है पिता
रोटी, कपड़ा और मकान है. पिता!

पिता संरक्षा, संयम, सुरक्षा का हाथ है
पिता नहीं तो,' मां'लहते भी, बच्चे अनाथ है।
....


कविता-२/  संतोष के चौबे 

सदगुणों की खान मेरी जान मेरे पापा थे,
शायद सबके भाग्य से अंजान मेरे पापा थे,
सदा सींचा अपने मेहनत के पसीने से हमें,
देवता तुल्य पूजनीय इंसान मेरे पापा थे।

बचपन में लगा मुझे मेरे समान मेरे पापा थे,
थोड़ा बढा तो पाया मेरे सम्मान मेरे पापा थे,
जिम्मेदारियां निभाने की हदें इतनी लाँघी कि,
यदि इमारत है तो उसके निर्माण मेरे पापा थे।

मेरे लिए तो बहुत बड़े इम्तिहान मेरे पापा थे,
जहाँ हर कानून बनते वो विधान मेरे पापा थे,
भले शिक्षित कम रह गए हो लेकिन ज्ञान ऐसा,
कि कई ज्ञानियों से अधिक विद्वान् मेरे पापा थे।

क्षुब्ध हो तो अँधेरे से भी वीरान मेरे पापा थे,
अपने विरोधियों के लिए मशान मेरे पापा थे,
पर जो भी चला उनके बताये रास्ते पर समझो,
धर्म के मार्ग पर बुलाये वो अजान मेरे पापा थे।

हम सबके परेशानियों से परेशान मेरे पापा थे,
फिर भी जिंदगी पर एक एहसान मेरे पापा थे,
जब निराशाओं के बादल से क्षितिज पर निखरा,
बाद मुद्दत देखा खुश और हैरान मेरे पापा थे।
....

कविता-३ / चंदना दत्त 


पापा 
पापा है तो  मान है 
पापा जिन्दगी की शान है 
पापा बिन हमारी जिंदगी गुमनाम है 
पापा से दिन की जान है 
पापा की बेटी जहान है 
पापा की बातें विज्ञान है 
पापा की बेटी में जान है
पापा के बिन हम बेजान है 
पापा के जानेसे हैरान है
पापा के बिन जीवन सुनसान है 
पापा जीवन के रस्ते की पहचान है 
पापा और मां हमारे भगवान है.
... 

कविता-4 /अर्जुन प्रभात 

         माँ धरती आकाश पिता है 
         मन का दृढ़ विश्वास पिता है।
         जीवन के तपते मरुथल में 
         मधुऋतु का आभास पिता है।

         पिता नेह की शीतल छाया 
          और प्रेम का पावन मधुवन
          जीवन के इस कुरुक्षेत्र में 
          नन्द यशोदा का वृन्दावन 
          त्याग तपस्या और साधना
          का पावन इतिहास पिता है।
          माँ धरती आकाश पिता है ।
         मन का दृढ़ विश्वास पिता है।।

         पिता मूल परिवार वृक्ष का 
         त्याग तपस्या की यह गाथा
         जहाँ पहुँच कर सहज भाव से
           देवों का झुकता है माथा
           मानव जीवन की कविता में
           सदगुण का अनुप्रास पिता है।
           माँ धरती आकाश पिता है ।
            मन का दृढ़ विश्वास पिता है।।

              झूठे चारों धाम धरा के
               झूठे जग के तीरथ सारे
              सच्ची मातु पिता की सेवा
              जीवन के ये सत्य सहारे 
              मानव की सुन्दर काया में
              सांसों का उच्छ्वास पिता है।
              माँ धरती आकाश पिता है ।
               मन का दृढ़ विश्वास पिता है।।
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रचनाकार - सिद्धेश्वर / संतोष के चौबे / चंदना दत्त / अर्जुन प्रभात 
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Thursday 18 June 2020

करके वादा अमन तू , आए नहीं मकान / कवि - ज्वाला सांध्यपुष्प

                                      दोहे                                     

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चित्रकार - नीभा श्रीवास्तव (दुबई)
          

करके वादा अमन तू , आए नहीं मकान।
तेरे बगै़र देख लो, गांव-गली सुनसान।।

गर्व बहुत इस लाल पर, किया बड़ा जो काम।
आहुति दे दी प्राण की, हुआ न कुल बदनाम।।

आंसू देकर आंख में, गए कहां तू लाल।
एक बार तू बोलते, रहता नहीं मलाल।।

लाज बचाकर देश की, तू हो गया शहीद।
पूत ऐसे मिले कहां, लें सब इसे खरीद।।

लोग सभी क्यों  रो रहे, भर आंखों में नीर।
अमन अभी मुस्का रहा, भले दिखे न शरीर।।

भारत मां के पूत थे, अमन सरीखे वीर।
आंधियों में भी अरि-से, अड़े रहे गंभीर।।

अपनी सूरत को जरा, दुष्ट चीन तू देख।
मार-मारकर अमन ने, लिक्खा ऐसा लेख.


लेखक - ज्वाला सान्ध्यपुष्प 
लेखक का ईमेल आईडी - 
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चित्रकार - नीभा श्रीवास्तव 
चित्रकार का ईमेल आईडी - niva.artist@gmail.com

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मनु कहिन - तुम्हारा जाना ! (सुशांत)

श्रद्धांजलि - लेख 

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चित्रकार - नीभा श्रीवास्तव  (दुबई)


सुशांत तुम चले गए. जाना और आना यह तो प्रकृति का शाश्वत नियम है. पर, इतनी भी क्या जल्दी थी! माना प्रारब्ध था यह! क्या मायने हैं इस प्रारब्ध के ! इस प्रारब्ध को दिल स्वीकार नही कर रहा ! तुम्हारा इस तरह चले जाना बहुत सारे सवाल खड़े कर रहा है. क्या जबाव दिया जाए! एक मजबूत व्यक्तित्व का स्वामी जिसने खुद अपना रास्ता बनाया . अपने सफलता के किस्से खुद गढ़े .जिसने बालीवुड मे अपना एक मुकाम बनाया. अपने सौम्य स्वभाव और मुस्कान से लोगों को अपना कायल बनाया . उसका यूं चले जाना दिल स्वीकार नही कर रहा. आखिर क्या वजह हो गई.क्यों "एक्सट्रीम स्टेप" उठाना पड़ा . आखिर,  क्यों ऐसा लगा कि बस अब यही एकमात्र विकल्प है .जिंदगी बड़ी ही अनमोल होती है मेरे दोस्त .उसका यूं चले जाना बहुत खलता है . हमेशा एक टीस बरकरार रहती है.

हम सभी कसूरवार हैं. कहीं न कहीं हम संबंधों को निभाने मे ईमानदार नही हैं. परिणाम तो अंततोगत्वा सब को भुगतना है . आज तुम्हारी, कल किसी और की , बारी बारी सबकी बारी आनी है . हम सभी नाकाम रहे. एक भाई का भाई के प्रति, एक दोस्त का दोस्त के प्रति क्या प्यार और भावनात्मक संबंध होता है हम भूल गए.. हम सभी व्यावसायिक संबंधों को ही सब कुछ समझ बैठे हैं. 

एकाकी जीवन जीने लगे हैं हम सभी! एकाकी होना कुछ समय के लिए तो सही है . यह लोगों को खुद का साक्षात्कार कराता है. पर, इस तरह के जीवन को आप बहुत लंबे समय तक नही जी सकते हैं . दुनिया बहुत बदल गई है! भाग दौड़ जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है. लोगों की महत्वाकांक्षाएं चरम पर पहुंच गई है .आदमी मशीन बनता जा रहा है . शिक्षा के मायने बदल गए हैं. विपरीत परिस्थिति मे कैसे जीना है, हम नही जानते हैं.  निजी जिंदगी और व्यावसायिक जिंदगी मे संतुलन खत्म होता जा रहा है. पुराने समय मे गुरूकुल प्रणाली  अच्छी थी. लोगों को कम से कम एक संतुलित व्यक्तित्व का स्वामी बनाती थी .

आज की इस भाग-दौड़ और गला काट 'कम्पीटीशन' के युग मे एकाकी जीवन जीना बहुत मुश्किल तो है ही एक आसन्न खतरे का द्योतक भी  है. लोगों को खासकर युवाओं को इन चीजों को समग्र रूप मे समझने की जरूरत है . देश के भविष्य हैं ये . हम इन्हें यूं नही खो सकते.

सुशांत, तुम चले गए. आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी . एक बार अपने आप से और अपनों से बात तो कर लिए होते..शायद...

एक मुसाफिर जो सपनों की नगरी मे सपने देखता हुआ खुद एक सपना बन गया..
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लेखक मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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चित्रकार - नीभा श्रीवास्तव 
चित्रकार का ईमेल आईडी - niva.artist@gmail.com


Monday 15 June 2020

मनु कहिन - लाॅक डाउन और हम

विमर्श 

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 लाॅक डाऊन ५.० की शुरुआत साथ ही साथ अनलाॅक १.० का आगाज़! थोड़ा अजीब सा लग रहा है ! आखिर दोनों एक साथ क्यों आ गए ? पर, यह मुद्दा आपके सोचने का तो है ही नही! क्या फर्क पड़ता है अगर ये दोनों साथ-साथ एक मंच पर आ ही गए ! जहां संभावनाएं हों वहां बहुत सारा दिमाग क्यों खर्च करना भला ??? मौका मिले तो बहुत कुछ साथ साथ हो सकता है!

खैर ! अभी सोचने का वक्त है आखिर इस लाॅक डाऊन ने हमें कितने आयामों से हमारा परिचय कराया।जब लाॅक डाऊन की शुरुआत हुई एकबारगी ऐसा लगा कि मानो २१ दिनों के लिए सब कुछ ठप्प हो गया। जो जहां था वहीं थम सा गया। वाकई ऐसा ही हुआ था। आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर बाकी सभी चीजें रूक सी गई थी। अभूतपूर्व स्थिति थी। किसी ने सोचा भी नही था कि ऐसा भी हो सकता है ! हालांकि, बाकी देशों की स्थिति देखकर थोड़े बहुत कयास लग रहे थे । पर, लोगों के पास अपने अपने तर्क थे और उन तर्कों के आधार पर वे मानने को तैयार नही थे कि ऐसा भी हो सकता है। पर, हो गया ! शुरुआत मे तो ऐसा लगा कि चलो किसी तरह २१ दिन निकाल लिया जाए फिर तो सब कुछ सामान्य हो ही जाएगा। किसे मालूम था कि लाॅक डाऊन ४.० और फिर ५.० साथ ही साथ फेज़्ड  मैनर मे यूं लाॅक डाऊन का थोड़े प्रतिबंध के साथ जारी रहना ! हालांकि, अभी भी पूरे विश्वास के साथ कुछ कहा नही जा सकता है! अंतिम रूप से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। आनेवाले कुछ दिन बड़े ही धैर्य, संयम और अनुशासन के साथ गुजारने होंगे!

अब ये तो बात हो गई । हम लोगों ने लाॅकडाउन के दिनों को गुजारा और आज भी कुछ छूट के साथ कर रहे हैं। पर, क्या कभी हमने यह सोचने की कोशिश की , कि इस लाॅक डाऊन ने हमे क्या दिया और क्या लिया। जब भी कुछ समस्याओं के साथ हम घिरते हैं तो कुछ अच्छी चीजें भी हमारे हाथ लगती है। समुद्र मंथन के दौरान विष और अमृत दोनों ही मिले थे। 

दुर्भाग्य के काले बादलों में आशा की सुनहरी दामिनी भी छिपी रहती है. (Every cloud has a silver lining.)

सबसे अहम बात ! लाॅक डाउन ने हमें विपरीत परिस्थितियों मे जीना सिखाया! अगर हम यह कहते हैं तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नही! परिवार के लोगों का चरित्र, समाज के लोगों का चरित्र यहां तक कि राजनीति का चरित्र और उन सबों की प्रतिक्रियाएं भी सबके सामने बिल्कुल शीशे की तरह पारदर्शी रहीं । वैश्विक संकट था? फिलहाल है भी !

अभूतपूर्व स्थिति थी! लोगों ने इसकी कल्पना तक नही की थी! शुरुआत मे तो समझ ही नही पाए कि ये क्या हो गया! चारों ओर नाकेबंदी का आलम था। शुरू शुरू मे प्रशासनिक अमला भी बड़ा ही उत्साहित था! पुलिस वालों के कहने ही क्या थे! अपने अपने अंदाज मे सभी अपनी अपनी ड्यूटी निभा रहे थे! रोजाना एक से बढ़कर एक कारनामे नज़र आ रहे थे ! जैसे जैसे लाॅक डाऊन बढ़ाया जाने लगा सभी को यह बात समझ मे आने लगी! इतना आसान नही है यह कोरोना जितना हमने समझ रखा था! धीरे धीरे सभी पस्त पड़ रहे थे! अब ड्यूटी निभाई जाने लगी! उत्साह कहीं आराम फरमा रहा था ! अपराधियों को पकड़ना ज्यादा आसान था! 
" ये कोरोना नही आसान इतना समझ लिजै
एक ढीठ प्राणी है, अगर नही सम्हले तो दम ले कर ही निकलेगा!

डाक्टरों की टीम 24x7 लगी हुई थी आज भी है ऐसा नही है कि हम इस मुसीबत से बाहर आ गए हैं  अब तो , कुछ भी कहना मुनासिब नही है! मरीजों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है! पर, सुखद बात यह है कि ठीक होने वाले मरीजों की प्रतिशत लगातार बढ़ती जा रही है  उम्मीद की जा सकती है कि शायद यह अपने अंतिम, जाती हुई अवस्था मे हो! भगवान ऐसा ही करें

एक बात जो बहुत ही महत्वपूर्ण है, इस को रोना नेहमे बहुत कुछ सिखा दिया । जो काम सरकारें नियम और कानून के सहारे नही कर पायी वो इसने कर दिखाया! प्रदूषण बिल्कुल अपने न्यूनतम  स्तर पर आ गया था जालंधर और बिहार के कुछ भागों से न्यूज़ आ रही थी कि वहां से हिमालय की चोटियां साफ दिखाई पड़ रही हैं ! न्यूजपेपर ने भी चित्र साझा किया था!  अकल्पनीय थीं पर, सच थी 

हम लोगों ने लोगों को परस्पर एक-दूसरे का केयर करते हुए देखा संवेदनाओं का सैलाब देखा। हमने देखा किस तरह से लोग व्यक्तिगत तौर पर जरूरतमंदों की मदद को आगे आए 

स्वच्छता का एक नया पाठ इसने पढ़ाया! सफाई के मामले मे अब हम सभी शायद 'कैजुअल' न रहें सोशल डिस्टेन्सिगं ने भी हमें  अनुशासित करने मे कोई कसर नही छोड़ी! अब हमे इन चीजों को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लेना चाहिए! इस संदर्भ मे ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक किया जाना होगा आज कोरोना है, कल कोई और होगा। सिर्फ सरकारी प्रयासों से कुछ नही होने वाला! हमारी भी जिम्मेदारी बनती है
कुछ तकलीफदेह बातें भी हुई! एक जगह से दूसरी जगह पर मजदूरों का पलायन ! बहुत बड़ी संख्या मे हुआ उन्हें रोका जाना चाहिए था! ऐसा नही था कि कोरोना किसी एक जगह तक ही सीमित था! परिस्थितियां बदलीं तो स्थितियां भिन्न हो गई! समझने की जरूरत थी\
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लेखक - मनीश वर्मा 
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Saturday 13 June 2020

मनु कहिन- पासवर्ड की दुनिया

ललित निबंध 

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क्या समय आ गया है! हम सभी पुरी तरह से तकनीक के गुलाम हो गए हैं ग़ुलाम शब्द हालांकि बहुत माकूल नही कहा जा सकता हैथोड़ा अटपटा सा लग सकता है! पर, वास्तविकता है ये! लंबे समय तक आप सच्चाई से नजरें नही चुरा सकते हैं अब आप खुद देखिए! कार्यालय पहुंचते हैं  फाइल सिस्टम अब लगभग खत्म होने को है ! कुछ बचा हुआ है पर , नही कह सकते , कब तक  कंप्यूटर खोल कर कार्यालय का काम शुरू होना है अब देखिए पासवर्ड चाहिए! अगर पासवर्ड गलती से भूल गए तो समझिए एक अजीब से जद्दोजहद से आप गुजरने वाले हैं  अब आगे बढिए मोबाइल मे पासवर्ड ! कंप्यूटर पर कुछ महत्वपूर्ण काम किया हुआ है तो फिर वो पासवर्ड प्रोटेक्टेड है सरकारी दफ्तर हो या गैर सरकारी निगम हो या निकाय छुट्टी लेनी है या भविष्य निधि में आवेदन करना है चाहे साल भर का अपनी उपलब्धियों का बखान करना है एचआरएमएस, पीएफ़एम्एस  से लेकर स्पैरो  तमाम तरह की व्यवस्था है! पर, फिर पासवर्ड की दुनिया! पासवर्ड प्रोटेक्टेड है ये सारी व्यवस्थाएं 

आप सोशल मीडिया पर हैं। फेसबुक हो या मैसेंजर ! ई-मेल हो या ट्विटर  हर जगह पासवर्ड!

 आज के संदर्भ मे आप इन चीजों से अपने आपको अलग नही रख सकते हैं अपने आप को अनुरूप बनाना ही होगा ! पासवर्ड की महत्ता को स्वीकार करना ही होगा ! हालांकि, मेरे व्यक्तिगत विचार से पासवर्ड का मतलब कुछ छुपाना हो सकता है! पर, ज्योंहि हम अपने जीवन मे अपने आसपास चाहे एटीएम हो, क्रेडिट कार्ड हो, या फिर ऑनलाइन बैंकिंग हो बिना पासवर्ड के दुनिया ही बेकार है ! पर, हां मोबाइल मे भूल कर भी पासवर्ड न डालें ! जरूरत के समय मे जब आप पर कोई मुश्किल आएगी और आप मोबाइल संचालन की स्थिति मे नही होंगे तो फिर कोई भी इसे संचालित नही कर पाएगा तब किस काम का आपका मोबाइल और पासवर्ड 

वर्तमान समय मे  रोज़मर्रा की ज़िंदगी मे तकनीक के बढ़ते हुए क़दम साथ ही साथ बढ़ते हुए अपराध और जालसाजी को देखते हुए जरुरत आ पड़ी है कि आप अपने किए गए कार्यों को और अपने बैंकिंग सिस्टम को पासवर्ड के जरिए सुरक्षित रखें

अब थोड़ा अपने से आगे बढ़ें! राष्ट्रहित मे बातें करें बात वैज्ञानिक अनुसंधानों की हो, सेटेलाइट लांच की हो या फिर पोखरण जैसी स्थिति की हो बिना पासवर्ड के काम करने की कोशिश भी कहीं न कहीं राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता होगा

हालांकि, साहब पासवर्ड की दुनिया कोई आज की दुनिया की बात नही है काफी पहले से ही किसी न किसी रूप मे पासवर्ड का इस्तेमाल होता आया है अली बाबा और चालीस चोर की कहानी जिन्होंने भी पढ़ी होगी वे खुल जा सिम सिम शब्द से जरूर वाकिफ होंगे यह पासवर्ड नही था तो और क्या था  पाठकों को यह भी पता होगा कि पासवर्ड भूलने की स्थिति मे कहानी मे अचानक एक मोड़ आ गया था! कोषागार की सुरक्षा मे रात्रि पाली मे तैनात संतरी पासवर्ड के आधार पर ही दोस्त और दुश्मन की पहचान करता रहा है हां, यह बात जरूर है कि आज हम और आप सभी की पासवर्ड पर निर्भरता बढ गई है ! कुछ तो हमलोगों ने बिना जरूरत का शौक पाल रखा है जहां जरूरत नही भी है वहां पासवर्ड का इस्तेमाल कर लेते हैं! वैसे आज के संदर्भ मे जहां  फेसलेस ट्रांजेक्शन की बात हो या फिर  ऑनलाइन बैंकिंग या खरीद बिक्री का मामला हो पासवर्ड की महत्ता और उसकी सार्थकता को नकारना बड़ा ही मुश्किल है आपकी पुरी की पुरी जिंदगी ही वस्तुत: पासवर्ड के इर्द-गिर्द घूमती है! हमलोग पुरी की पुरी जिंदगी एक अदद पासवर्ड की तलाश मे रहते हैं जो हमे हमारे अंतर्मन से हमारा खुद का साक्षात्कार करवा सके
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लेखक - मनीश वर्मा 
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Friday 12 June 2020

आवाज वो खाली पेट वाली / कवि - पथिक आनंद

कविता 

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पथ़िक सलाम है आज उन भावनाओं को
ईश्वर ने नेमत प्रदान की है जिसे जननी होने की 
न ही कोई तकनीकी न ही कोई तुक्के है लगाती
वो तो बस माँ है जो अपने बेटे की किसी भी उम्र में 
आवाज खाली पेट वाली तुरत पहचान जाती।

अखबार लिए जब रिटायर बेटा 'माँ' पुकारता आता  
पोटली के सबसे लाल अनार के दाने निकाल कहती
खाऽ ले, तेरी शक्ल लगती है आज खाली पेट वाली।
बहू व्यस्त होगी, बच्चे अपनी धुन में रमे होंगे
खाऽ ले बेटा कि तेरी है ये आवाज खाली पेट वाली।

कोई नौकरीपेशा हो, या कोई सरहद का जवान
घर और नौकरी संभालती बिटिया हो या हो गृहिणी
हो देश के किसी कोने में या और देश का मेहमान
हो राजा किसी मुल्क का भले या हो कैसा भी दरिद्र 
थका हारा जब शाम को करे दो शब्द आदान प्रदान
हर इक दिन यही बात है सदा कानों में आनेवाली 
खाया  कुछ नहीं कि है आवाज खाली पेट वाली।
अब सोचो जरा जब दूर बैठी माँ की ये है गति
फिर परवरिश बचपन की कैसी रही होगी अति
खेलता कूदता शरारती हो या कीड़ा कोई किताबी
घुटनों के बल चलने वाला या हो दुधमुंहा नवजात
हर इक के गले से निकलते ही समझ वो है जाती
कि ये तो आवाज है बिलकुल खाली पेट वाली।

और तो और उनकी ममता हद है पार कर जाती
जब प्रसूति बहू हो या बेटी हमेशा यही है टोकती
अपना ना सही खयाल कर लो नन्ही सी जान की
कि आती होगी अंदर से आवाज खाली पेट वाली
आवाज वो खाली पेट वाली .....
आवाज वो खाली पेट वाली ।
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कवि -   पथ़िक' आनंद
कवि का ईमेल आईडी - eeanand@yahoo.com
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Tuesday 9 June 2020

मनु कहिन - सिद्धार्थ से बुद्ध तक

विमर्श 

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अक्सर मेरे मन मे एक विचार आता था। आखिर क्यों बुद्ध ने घर का परित्याग किया ! क्यों उन्हें सांसारिक जीवन से विरक्ति हुई ! राजकुमार थे वो! सुख, समृद्धि, वैभव से परिपूर्ण था उनका जीवन ! पत्नी थी बच्चा था ! फिर, आखिर क्या ऐसी परिस्थिति आ पड़ी कि उन्होंने संन्यास लेने का फैसला किया! 

आखिर क्यों, शादी के बाद नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को छोड़ पुरे विश्व को दुखों से मुक्ति दिलाने एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज मे मध्यरात्रि मे राजपाट का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए!

बहुत मंथन करने के बाद जो मैं समझ पाया और मुझे ऐसा लगता है कि शायद यह सही भी हो। राजकुमार सिद्धार्थ थे वो ! आनेवाले समय के भावी सम्राट! पर , कहीं न कहीं उन्हें लगता था **** कुछ नही है मेरे पास! जो कुछ भी है वो तो सिद्धार्थ के पास है! राजकुमार सिद्धार्थ के पास ! भावी सम्राट के पास! सब कुछ मिथ्या है! कुछ नही है मेरे पास! जीवन मरण सृष्टि का चक्र है! बस कहीं न कहीं यह सोच धीरे धीरे बलवती होती चली गई! परिणाम सबके सामने है! आज हम सभी उन्हें महात्मा बुद्ध के नाम से जानते हैं। मध्यम मार्ग की उनकी अवधारणा को आज विश्वव्यापी मान्यता है! उन्होंने पूरे विश्व को दुःख और उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया।

यह कहने की बात नही कि आज के जीवन संदर्भ मे बुद्ध का यह दर्शन कितना प्रासंगिक है।
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लेखक - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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Saturday 6 June 2020

भारतीय अग्निशिखा मंच के कवि सम्मेलन का 44वाँ दिवस 31.5.2020 को संपन्न

रुत सुनहरी हो गई है / प्रीत गहरी हो गई है 
श्रंगार रस को समर्पित था यह सम्मलेन 

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31.5.2020. भारतीय अग्निशिखा मॉच का ऑनलाइन कवि सम्मेलन काआज 44 दिवस श्रंगार रस पर आयोजित किया गया मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने बताया की लाकडाउन और कोरोना जैसी महामारी से बचाव और घर रहकर देश विदेश में बैठे साहित्यकारों को एक मंच पर लाना हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार नित्य नया सृजन और नव साहित्यकारों को मार्गदर्शन देना और साहित्यकारों को सम्मान देना इस कार्यक्रम का मुख्या उद्देश था 
अग्निशिखा के संग काव्य के विविध रंग में हर बार नया  विषय होता है । आज के कविसममेलन में मुख्य अतिथि- अभिलाष अवस्थी (वरिष्ठ पत्रकार) निर्णायक - डा. अंरविद श्रीवास्तव- असीम मंचcसंचालन - डॉ अलका पाण्डेय. ,डॉ. प्रतिभा कुमारी पराशर , जनार्दन शर्मा , सुरेन्द्र हेगड़े , चंदेल साहिब थे
माँ शारदे की वंदना की अंजली तिवारी ने आभार - मधुवैँष्णवी ने व्यक्त किया। सबने सरस्वती वंदना के बाद कोरोना योद्धाओं का सलामी दी व कार्यक्रम शुरु किया

कार्यक्रम में पढ़ी गई रचनाओं की एक झलकी नीचे प्रस्तुत है - 
अभिलाष अवस्थी- 
एक खंजर भी मेरी जद में है

अंकिता सिन्हा जमशेदपुर झारखंड -
रब की दुआएँ तुझे मिलती रहेंगी
मेरी प्यार वफा़एँ तुझे मिलती रहेगीं

डॉ प्रतिभा कुमारी परासर - बिहार
आजकल बहुत याद आते हो
रात भर नींद भी चुराते हो ।

“चंदेल साहिब - हिमाचल“ -
पीताम्बर मोर मुकुट धारण कर
चाँदनी रात में मोहन वृंदावन आओ
फ़िर ख़्वाब अग़र हो जाओ तो ग़म क्या.

“डॉ अलका पाण्डेय “
प्रियतम किधर गए
सखी प्रियतम किधर गए 
सूने मन में आग लगा कर
नैनों से बिरहा बरसा कर
अधरों को मेरे तरसा कर
सांसों को मेरी महका कर
प्रियतम किधर गए।

“डॉ अरविंद श्रीवास्तव- दतिया
रुत सुनहरी हो गई है
प्रीत गहरी हो गई है 
आपसे मिलने की खातिर
बांह सागर है पसारे
और तुम उड़ते  गगन में
कह रहे ये चांद तारे

“मधु वैष्णव - जोधपुर “
अमृत रस की बहती मखमली रसधार,
समर्पण नेह  का आंचल ओढ़े चांदनी खिली

“सीमा दुबे - “
ना श्वेत श्वेत ना श्याम श्याम -
वह सुंदरता की प्रतिमा है।

“गोवर्धन लाल बघेल "गुँजन ---
आखेटक मे प्रवीण कामनी
               दीयो कलेजा छेद।
नयन कटारी वार कब
              लगी ना जाना भेद।।

“इन्द्राणी साहू "साँची" -
मोहिनी छवि है प्यारी ,
मुरली की धुन न्यारी ,
सुध बुध खोए सब ,
छलिया की प्रीत में ।

“ओमप्रकाश पांडेय, मुम्बई “ -
माथे की तेरी छोटी सी बिंदिया
नयनों के तेरे तीखे काजल
कानों मे छूमता ये तेरा झुमका
जब दिखता मेरे आंगन में
फिर और क्या चाहिए मेरे जीवन को ..

“सुनीता चौहान हिमाचल प्रदेश -
बहुत सुन्दर रूप है मेरा,
ये वादियां गुनगुना रही हैं ।
कुदरत ने अद्भुत श्रृंगार किया है
बहती नदियां ये सुना रही हैं ।

“दिनेश मिश्रा - इंदौर “
रास्ता उदास था क्यों कि
आज वो घर से न निकली।
पैड़ पौधें भी मुरझा रहे थे,
क्यों कि आज वो घर से न निकली।

“डाः नेहा इलाहाबादी दिल्ली” -
जुबाँ पे मेरी गुल फ़िसानी रहेगी 
हमारी  तुम्हारी  कहानी  रहेगी  ।
अँगूठी का मुझको नगीना बना लो
यही उम्र भर की निशानी रहेगी ।

“शुभा शुक्ला निशा”-
नारी तुम सौंदर्य शालिनी हो सौम्य शील पथ गामिनी हो
जग की असहय भीषण तपिश में
सुरसरिता की प्रदायिनी हो

“सुनीता चौहान हिमाचल प्रदेश -
🌸प्रकृति का श्रृंगार 🌸
बहुत सुन्दर रूप है मेरा,
ये वादियां गुनगुना रही हैं।
कुदरत ने अद्भुत श्रृंगार किया है,
बहती नदियां ये सुना रही हैं।

“डॉक्टर लीला दीवान “ -
झरोखे में बैठे इंतजार करूं तुम आओ तो मैं सिंगार करूं🌷

“अनिता झा - रायपुर “
पिया मन इज़हार लिए आई हूँ
आँखों में सिंदूरी ललाट लाली बन छाई

“डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी”
शैलेश वाराणसी
"कस्तूरी केस तुम्हारे सुलझा सुलझा कर हारे
 लो बीत गई सारी रात 
हो सकी अभी ना पूरी बात
 मिलन तो शेष अभी है।"

“रागिनी मित्तल कटनी”
जबसे दिल मेरा तेरे दिल से मिला, हम भी सपने सजाने लगे।
चिट्ठियां तेरी पढ़ते गुसलखाने में,  अब हम बेवक्त नहाने लगे।

“पद्माक्षी शुक्ल, पुणे “ - 
श्रुंगार रससे, आंतर मन सजादे,
नयन बंध करके, ज्योति जगादे,
ढुंढ रही आज, मोहक मनमोहनको,
बंसी के सुरसे, स्पंदन जगादे,

“संजय कुमार मालवी आदर्श इंदौर - 
माँ आज तो क्या खूब सूरत लग रही हो,
रोज की तुलना मे आज ज्यादा सज रही हो ।

“मदन मोहन शर्मा कोटा”-
कपोलों पर
लज्जा की
भीनी सी
मुस्कान लिए
गर्म सांसों में

“आशा जाकड़”-
बागों में फूल खिले
फूलों से खुशबू मिलें
कलियाँ गुनगुना रही
आज सजना घर आ रहे

“वैष्णो खत्री  'वेदिका “'मध्यप्रदेश -
चल यूँ ही राजा वसन्त, बन जाएँ हम तुम।
अल्प समय में, सब सुख दे जाएँ हम तुम।

“डॉ पुष्पा गुप्ता बिहार”-
सांसों   में  बसते  हो  तुम                      
            तुमसे  ये  धड़कन चलती-

“रामेश्वर प्रशाद मुंबई”
आंखो का काजल,
मोतियों की माला।
चलती मदमस्त,
चितवन कातिलाना।।

“विजयकांत द्विवेदी” -
है खड़ी फूल परी
पूर्ण पराग भरी ।
चंचल है दोनों दृग
मुख है सलोना  ।

डॉ गुरिंदर गिल/ मलेशीया -
वसल की हर रात लिखती हूँ हिज्र का इज़हार लिखती हूँ
लिखती हूँ इश्क़ मोहबत, कलम से बस प्यार लिखती हूँ

“शकुन्तला पावनी - चंडीगढ़ -
लौकिक जगत में राधा कृष्ण का
प्रेम मानवी रूप में था
दोनो को इक्दुजे का साथ प्रिय

“कवि आनंद जैन,*अकेला,*-
कटनी मध्य प्रदेश
आम्र मंजरी फूली देखत, दुखिया दिल कुम्हलाये रै।
भंवरे कविता भले ही बांचें,
मन केसे मुस्काये रे।।

“डॉ मीना कुमारी परिहार” -
बड़ा संगीन  मसला है किसी से कह नहीं सकती
समझ लो सिर्फ इतना बिन तुम्हारे रह नहीं सकती

“मीना गोपाल त्रिपाठी अनुपपुर, कोतमा( मध्यप्रदेश -
घर मे नही है  दाना -पानी
न है पेट भर खाने को, हऔर
मधुशाला में भीड़ लगी है
अमृत का हाला पाने को !

“शेखर रामकृष्ण तिवारी अबुधाबी - 
हम सदा तैयार हैं, अभिव्यक्ति की वंदना से,
तुम डटे रहना सिपाही, द्वार पर अपनी वफा के।

“डा. साधना तोमर, बागपत, यू.पी. - 
प्रेम दीप  जला दो अब तो, हो ज्योतिर्मय ये संसार।
कहाँ  छुपे  हो मोहन मेरे, सुन  लो  करुण   पुकार।

“पदमा तिवारी दमोह “ -
मेरे पास नहीं कुछ मेरा जो भी है सब कुछ है तेरा
मैं तो हो गई तेरी श्याम पडू चरण में सिर धर के।।

 “द्रोपती साहू छत्तीसगढ़ - 
निर्झरिणी से मधुर सुर धारूँ,
सरिता सी बहती रहूँ स्वच्छंद।
कौन सा जतन मैं कर जाऊँ,
मेरे अंतर्मन में उठता अंतर्द्वंद्व।

“शरद  अजमेरा - भोपाल “ -
दिल की दुनिया आबाद तुमसे है ।
मिलने की फरियाद तुमसे है 
बस गए तुम मुझमें या खोगया हूूँ मैं तुममें ।बदल गई है दुनिया हमारी

“डॉक्टर धारा बल्लभ पांडेय 'आलोक', अल्मोड़ा, उत्तराखंड -
स्नेहमयी तू भावमयी तू,
तेरी अतुल कहानी।
शोभित षड् ऋतुओं की छवि से,
बहु भाषाअरु बानी।
बहु भाषा संस्कृति के जन-मन,
फिर भी एक ही प्रान।।....

“नीलम पांडेय गोरखपुर -
ऐसा नहीं कि मैं।
तुमसे प्यार नहीं करता।
हां यह सच है। कि मैं प्यार का
इजहार नहीं करता।
ऐसा नहीं कि मैं तुझसे
प्यार नहीं करता।

“मंजुला वर्मा जिला मंडी हिमाचल
सुषमा मोहन पांडेय, सीतापुर उत्तर प्रदेश”

“भावना सावलिया “
डॉ रश्मि शुक्ला प्रयागराज
मंजुला अस्थाना महंती
रानी नांरंग
अंजली तिवारी मिश्रा छ0ग0
सुषमा शुक्ला इंदौर
सुनीता अग्रवाल इंदौर मध्यप्रदेश
दीपा परिहार दीप्ति जोधपुर
डॉ संगीता पाल
शोभा रानी तिवारी - इंदौर
डा अँजुल कँसल"कनुप्रिया"इंदौर मध्यप्रदेश
डाॅ0 उषा पाण्डेय
कोलकाता
अर्चना पाठक निंरन्तर -
निहाल चन्द्र शिवहरे(झांसी)
अख्तर अली शाह "अनंत" नीमच(म.प्,)
उपेंद्र अजनबी गाजीपुर उ. प्र
हीरा सिंह कौशल मंडी
) मीरा भार्गव सुदर्शना कटनी
गीता पांडेय बेबी M.P
गीता शर्मा रायपुर
गणेश प्रसाद महाराष्ट्र
विष्णु असावा बदायूँ
वंदना रमेश चंद्र शर्मा देवास
रविशंकर कोलते नागपुर
जनार्दन शर्मा 
डॉ मेहताब अहमद आज़ाद
गणेश निकम महाराष्ट्र
डाॅ0 सुशील श्रीवास्तव सागर" सिद्धार्थनगर उ0प्र0
ज्योती जलज- हरदा
गरिमा - लखनऊ
शैलजा करोडे- मुंबई
प्रिया उदयन केरला
डॉ. गुलाब चंद पटेल
. डॉ. दविंदर कौर होरा - इंदौर
“मुन्नी गर्ग
“सुनील पांडे रायपुर”
“स्मिता धिरासरिया....बर बलराम सोनी विशिख- झाँसी “
सब लोगों ने रचनाऐ सुनाई ५/३० घंटे कार्यक्रम चला सबने बहुत आन्नद लिया
इस कार्यक्रम की विशेषता है की कोई छोटा बड़ा नही सब एक-दूसरे से से सीखने की इच्छा रखते हैं 7 / 6को “शहरीकरण प्रहार “विषय है
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रपट की लेखिका - डॉ अलका पाण्डेय
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