Sunday 30 August 2020

अभिलाषा / लाला आशुतोष शरण की कविताएँ

अभिलाषा 

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तेरे अरमान मेरे सपने,
पुनः मिल जाएं तो कैसा हो !
तेरे आंसू मेरी तड़पन,
एक हों जाएं तो कैसा हो !
न ग़म होंगे न तूफां,
न शिकवा होगी न शिकायत,
जीवन पटरी पर लौटेगा ।
यह ख़्वाब कल भी आया था।
लिए थे सात फेरे,
सात जन्मों तक संग का।
दिए थे सात वचन,
जीवनभर साथ निभाने का।
माना विवाह गठबंधन है,
दिलों के अरमानों का ।
पर सभी होते नहीं पूरे,
सच्चाई है संसार का।
लहरों संग ऊपर-नीचे नैया पार लगती है
खाबड़ जीवन-राहें, साथी संग कट जाती है।
सब भूलकर बिना झांकें दिलों में,
तोड़ दिया हम ने रिश्तों का बंधन ।
क्यों न, जो हुआ उसे भूल कर
नये प्रभात का सूरज उगाएं।
अरमानों को पंख दे, उड़ान भरें
सांसों की गर्मी, दिलों की धड़कन
कर साझा, बहारों को मुस्कुराने दें,
चमन में वसंत लौट आने दें.
.....


मानवता सुरक्षित है


बन्धु गंदी सीढ़ी पर बैठे हो
भूखे-प्यासे थके-हारे दिखते हो
भीतर आओ सोचो नहीं अपने हो
बैठो ख़ाली पेट पानी नहीं पीते
गुड़ और अंकुरित चना है खाओ
कौन हो तुम मुसाफ़िर लगते हो
खाते-पीते घर के चिराग़ लगते हो
भूल गया पहचान बताऊं क्या
फूल बनें कांटे आंसुओं ने जलाया है
वक्त ने मारा क़िस्मत ने रूलाया है
सपने दिखा नेताओं ने लूटा है
हो रहे क्यों निराशा के शिकार
हार को झुठला जीत मिलती है
मन के हारे हार है मन के जीते जीत
शुक्रिया आतिथेय हौसला अफ़जाई का
नमन ऐ मेरे फ़रिश्ते आप को
जा रहा हूं याद रखूंगा सदा अभी भी मानवता सुरक्षित है
रूको अजनबी शीघ्रता अच्छी नहीं
तुम्हारे चादर के भीतर से लकुटी गिरी है
ये पार्टी के झंडे की लकड़ी है

लाया गया था पार्टी की रैली में ले जा रहा लकड़ी
सहित झंडा
कभी शायद क़िस्मत जगा दे.
(हौसला-अफ़जाई= हौसला/हिम्मत बढ़ाने का)
.....

कवि - लाला आशुतोष कुमार शरण
कवि का ईमेल आईडी - lalaashutoshkumar@gmail.com
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मनु कहिन - 6 बॉलीगंज प्लेस

 कोलकाता डायरी (भाग-6)

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चलिए इस बार हम आपको ले चलते हैं, कोलकात्ता के सुप्रसिद्ध, प्रमाणिक बंगाली स्वाद और स्वादिष्ट भोजन के लिए मशहूर 6 बाॅलीगंज ! 6 बाॅलीगंज एक ऐसा नाम जो बंगाल के स्थानीय भोजन के स्वाद के लिए मशहूर है! भोजन की प्रमाणिकता, शुद्धता और सफाई का तो क्या कहना!  रेस्टोरेंट के बाहर सेनिटाइजर और थर्मल स्क्रीनिंग की व्यवस्था ! रेस्टोरेंट के अंदर आते ही जूते को कवर करवाया जाना ! साफ सुथरे कपड़े पहने, हाथों मे ग्लव्स और चेहरे पर मास्क पहने हुए कर्मचारी! बिल्कुल साफ सुथरी व्यवस्था ! पर हां वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर मे आपको यहां *हाइजीन चार्ज*  के नाम पर प्रति व्यक्ति ५०/- रुपए खर्च करने पड़ते हैं! 

दक्षिण कोलकाता के पाॅश बाॅलीगंज इलाके मे एक दो मंजिला, बॅंगलानुमा इमारत मे चलता हुआ , बंगाल के स्वाद को आगे बढ़ाता हुआ एक बेहतरीन स्पॉट! यहां पर आप बंगाली भोजन एवं कुछ चुनिंदा मिठाईयों का भरपूर आनंद और लुत्फ उठा सकते हैं !

खाने की शुरुआत आप आमपोरार शर्बत, गोंधोराज घोल, नोटी विनोदिनी या फिर प्रोफ़ेसर शोंकू के साथ कर सकते हैं! सभी का स्वाद एक से बढ़कर एक! 

स्टार्टर मे विभिन्न प्रकार के तली भुनी हुई मछलियों के साथ ही साथ गोंधोराज चिकन का भी लुत्फ उठाया जा सकता है! जब मेन कोर्स की बारी आती है तो फिर विभिन्न प्रकार की मछलियों के साथ ही साथ चिकन और मटन के बहुत सारे स्वादिष्ट व्यंजन उपलब्ध हैं! हां, शाकाहारी लोगों के लिए वेरायटी थोड़ी सीमित है पर, इतनी भी नही कि आपको ऐसा लगे कि शाकाहारियों के लिए यहां कुछ नही है! 

व्यंजन के नाम तो ढेरों हैं , जिन्हें एक एक कर ले पाना मुश्किल है! पर, जो हमलोगों ने ट्राइ किया ...... अल्टीमेट....!

खाने की शुरुआत मे आमपोरार शर्बत ! स्टार्टर - प्रोन कटलेट, फिस फ्राई और मेन कोर्स मे डाब चिंगरी, रुई सोरसे और भेटकी पातुरी! सभी का स्वाद**आ..हा..हा ! लिखते हुए मुंह मे पानी आ रहा है! 

डेजर्ट मे बेक्ड मिहिदाना साथ मे रबड़ी... अल्टीमेट कंबिनेशन ! नोलेनगुरेर आइसक्रीम का तो कहना ही क्या! सिम्पली लाजवाब!

 यूं तो और भी यूनिट हैं कोलकाता मे इसके! मेरे एक अनुज ने मुझे सर्वप्रथम डलहौजी के पास बंगाल लाउंज मे जो 6 बाॅलीगंज की ही एक इकाई है वहां भोजन करवाया था जब मै कोलकात्ता पहली बार गया था!  पर, 6 बाॅलीगंज की बात ही कुछ और है !

.......

लेखक - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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Monday 24 August 2020

मनु कहिन - भगवान का हाथ

संस्मरण 

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बचपन में अमेरिका के राष्ट्रपति श्री अब्राहम लिंकन के संदर्भ में एक कहानी मैंने पढ़ी थी। आप इसे कहानी न कह कर एक वाकया भी कह सकते हैं। चलिए , आज अपने इस मंच मनु कहिन के माध्यम से इसे आप सभी के साथ शेयर करता हूं!बात कुछ ऐसी थी कि एक बार अब्राहम लिंकन ने अपने बेटे के शिक्षक को कहा आप मेरे बेटे को पढ़ाते हैं , उसे अच्छी शिक्षा देते हैं ।  अच्छी बात है । मैं यहां आपको जो आप उसे शिक्षा देते हैं उस संदर्भ में कुछ बताने नहीं आया हूं। मैं सिर्फ आपसे यह निवेदन करना चाहता हूं कि आप उसे बताएं कि जीवन में चाहे जितनी भी समस्या आए , कभी भी सच्चाई का दामन मत छोड़ना । सच बात कहने में कभी हिचकना नही। कभी भी सच्चाई से मुंह ना मोड़ना। जब आप सच्चाई का साथ देते हैं, और जब आप सच्चाई के लिए किसी के साथ खड़े होते हैं भगवान आपकी मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। ऐसा नहीं कि भगवान  खुद आ जाते हैं लेकिन जब आप परेशान होते हैं तब एक हाथ  जरूर होता है जो आपको परेशानी से निकाल ले जाता है यही वह हाथ भगवान का है। आप मेरे बेटे को इतना जरूर बताएं !

बचपन में पढ़ा हुआ यह वाकया मेरे दिलो-दिमाग पर इस तरह बैठ गया कि आज भी मैं इस पर अमल करता हूं ।चाहे कितने भी परेशानी आए सच कहने में कभी हिचकता नहीं हूं ।जो सच है , जो सही है, वह मैं जरूर कहता और करता हूं। हां, सच का साथ देने पर और सच्चाई कहने पर कुछ देर के लिए मैं परेशान जरूर होता हूं क्योंकि सच थोड़ा कड़वा होता है! कुछ देर के लिए मैं अपने आप को अलग-थलग जरूर पाया हूं ! पर अंततः जीत सच्चाई की ही हुई है !

कुछ ऐसा ही वाकया , अभी हाल में ही मेरे पटना से कोलकाता यात्रा के दौरान हुआ। मैं और मेरे बच्चे अपनी गाड़ी से सड़क मार्ग से पटना से कोलकाता जा रहे थे ! हालांकि  पटना से कोलकाता का सफर सड़क मार्ग के द्वारा लगभग 600 किलोमीटर का है! पर, अमूमन इसे तय करने में मिलाजुला कर लगभग 11 से 12 घंटे का वक्त लग ही जाता है। कहीं पर थोड़ा रास्ता खराब है तो कहीं पर डायवर्जन , जिसकी वजह सेआप लगभग 11 से 12 घंटे में कोलकाता पहुंच पाते हैं ।उस दिन भी हम लोग लगभग उसी हिसाब से चल रहे थे। रास्ते मे धनबाद मे थोड़ा सड़क जाम था । इसे  देखते हुए 1 घंटे की देरी हो सकती थी। पर, अचानक से रास्ते में एक जगह वर्धमान में  एक से डेढ़ घंटे का सड़क जाम लग गया । प्रत्यक्षतः कोई कारण समझ मे नही आ रहा था । शायद जोरों की बारिश एक वजह हो सकती  थी। वर्धमान से निकलते ही शाम का धुंधलका छाने लगा था। एक डर सा भी मन मे आ रहा था। शाम का धुंधलका, बारिश का मौसम और जीटी रोड का सफर , और मैंने कभी रात मे हाइवे पर ड्राइव नही किया था। खैर! एक बार दिल से भगवान को याद कर बढ चले। और कोई चारा भी नही था। वर्धमान के बाद कोलकाता के रास्ते में बहुत सारे गड्ढे जो सड़क पर बन गए हैं। वो अंफान के बाद कुछ ज्यादा ही खतरनाक साबित हो रहे थे। अंधेरे मे उसे 'नेगोशिएट' करना काफी मुश्किल हो रहा था! ऐसा ही कुछ उस दिन हुआ ! रात की वजह से रास्ते में एक गड्ढे को न देख पाने की वजह से गाड़ी का बाई तरफ का अगला चक्का गड्ढे में जा गिरा ! एक जोर की आवाज हुई। खैर धड़कते दिल से गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ाया ।थोड़े आगे जाने के बाद उस जगह से आवाज आने लगी जब मैंने गाड़ी को रोका तो क्या पाया ! गाड़ी का बायीं तरफ का अगला टायर तो बिल्कुल बर्स्ट कर गया था और गाड़ी तो लगभग  रिम के सहारे ही चल रही थी। बरसात की अंधेरी रात , हाईवे का सफर,  साथ में बच्चे !  आस पास कुछ भी नहीं ! कोई रुकने को तैयार नहीं! बड़ी मुसीबत से किसी तरह हिम्मत जुटाकर हम और हमारे बच्चों ने टायर को बदलने की कोशिश की। पता नहीं नर्वस होने की वजह से या फिर कुछ और वजह थी हमलोग तमाम कोशिशों के बाद भी टायर नहीं बदल पाए ! अचानक ऐसा लगा ,अब क्या करें ? कुछ रास्ता नहीं सूझ रहा था ।आस पास कोई पेट्रोल पंप भी नहीं था । ना ही कोई छोटी सी दुकान या कोई व्यक्ति दिख रहा था , जिससे मदद की उम्मीद की जा सके। बस दिख रहा था तो हाईवे पर पसरा हुआ घुप्प अंधेरा , बारिश और हाइवे पर गुजरती हुई छोटी बड़ी गाड़ियां । रात गहराने लगी थी ! 

कोलकाता अभी भी लगभग ४० किलोमीटर दूर था! कुछ देर के लिए ऐसा लगा अब क्या करें । तभी वहां पर एक बाइक वाला आकर रुका। दो लोग बैठे थे उसपर ।  मैंने उससे कहा भाई थोड़ी मदद करो। हम स्टेपनी नही बदल पा रहे हैं। उसने कहा , आप चिंता बिल्कुल मत करें मैं हुंडई कंपनी का इंजीनियर आपको यहां इस अंधेरी रात मे देखकर मैंने गाड़ी रोक दिया है ।उसके मुख से ऐसा सुनकर लगा कि वास्तव में कोई न कोई हाथ ऐसा होता है जो शायद भगवान का ही होते हैं वह आता है और आपको मुसीबत से बचा कर ले जाता है।उसने स्टेपनी बदल दिया। मेरे पास उसे धन्यवाद देने को कोई शब्द नही था। या आप कह सकते हैं भावनाओं के अतिरेक मे मेरे मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे! मैंने सिर्फ उससे इतना ही कह पाया ,  भाई आपको देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है ! मैं आपको ढंग से धन्यवाद भी नहीं दे सकता हूं ! उसने कहा कोई बात नहीं ! मुझे अपने बचे हुए यात्रा के लिए शुभकामनाएं देते हुए वो चला गया! 

हम सभी मुसीबत मे भगवान् को याद करते हैं! क्या वाकई भगवान् अस्तित्व मे हैं ! अगर तर्क की कसौटी पर देखें तो यकीन नही होता है ! पर, विश्वास और आस्था इन सबसे परे है! आप विश्वास करें या न करें , अगर ईश्वर मे अपकी आस्था है, विश्वास है तो मुसीबत मे एक हाथ कटआएगा , जरूर आएगा और मुसीबत से आपको बचा कर ले जाएगा! 

वो भगवान का हाथ होगा ! 
...

लेखक - मनीश वर्मा 
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Sunday 23 August 2020

क्या मेरा प्यार.. प्यार नही / कवि- दीपक कुमार 'निमेश'

गीत 

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 सबकी खुशी में खुश हूं ना गम़ कोई मुझे मगर
जहां मिले मेरी खुशियां ऐसा कोई बाज़ार नही
झूठ के मोतियों ने सच का धागा छुपा दिया
पहनूं जिंदगी का लिब़ास ऐसा अब संसार नही
मैं भी इंसा हूं, क्या मेरा प्यार.. प्यार नही

कहते है सब, बसा लिया दिल में मुझको
मगर सच तो ये है कि मेरा कोई घर-बार नही
दिखा देते है सब मुझे आईना औक़ात का
क्योंकि मेरे पास बहते अश्कों का भंडार नही
मगर मैं भी इंसा हूं, क्या मेरा प्यार.. प्यार नही।

समेट लिया खुद में ही एहसास-ए-अरमां को
अब तोड़ेगा दिल को कोई हर बार नही
गालिब़, दाग़, फाज़ली, कैफ़ी और मीर क्या
मैं तो बस 'दीपक' हूं कोई गुलज़ार नही
मगर मैं भी इंसा हूं, क्या मेरा प्यार.. प्यार नही।
...
कवि - दीपक कुमार 'निमेश'
कवि का ईमेल आईडी - deepak.br55@gmail.com
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Friday 14 August 2020

स्वतंत्रता दिवस पर रचनाएं / रचनाकार - चंदना दत्त, सरोज तिवारी

कविताएँ

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वो देखो लहराया तिरंगा / चंदना दत्त

वो देखो लहराया तिरंगा

बड़े आन से फहराया तिरंगा

बडे़ जतन से रणबांकुरों ने

आजादी का स्वप्न था देखा

हंसते गाते चढ़े सूली पर

जान गंवा लहराया तिरंगा।


लक्ष्मी बाई चढ़ी अश्व पर

बांध शिशु को खेली आन पर

धर काली सा रूप विकराल

वारेन समक्ष बनी थी काल

प्राण गंवा लहराया तिरंगा।


रखें सदा भारत की शान

कभी न हो माँ का अपमान

देश की रक्षा अपना मान

वीर भगत की शहादत की आन

विश्व भर में लहराया तिरंगा.

...


वंदेमातरम / सरोज तिवारी


कहता है वंदे मातरम

सुनता है वंदे मातरम 

यहाँ राष्ट्र प्रेम के लहू में

बहता है वंदे मातरम

       है शांति वंदे मातरम

       है युद्ध वंदे मातरम

       शत्रु करे चीत्कार

       वो चीत्कार वंदे मातरम

पुरस्कार वंदे मातरम

आभार वंदे मातरम

जो आँखें गर्व से उठे

पुकार वंदे मातरम

      कहता है वंदे मातरम

      सुनता है वंदे मातरम

      यहाँ राष्ट्र प्रेम के लहू में

      बहता है वंदे मातरम

...

          

रचनाकार  - चंदना दत्त, सरोज तिवारी

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कवयित्री चंदना दत्त अपने पति के साथ


Wednesday 12 August 2020

कलयुग के नन्दलाल / कवयित्री - प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ'

कविता 

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यदि भगवान श्री कृष्ण उस युग मे होते तो उनकी छवि कैसी होती -

मेरे घर आए नन्दलाल बिरज से

ठुमक-ठुमक कर चलत हैं घर में

पांव की थपकी पैजनियाँ बजत हैं

गुस्सा में धरती पर नाक धरत हैं

मेरे नन्दलाल आपन बिरज में।


नाहि मिलत है माखन मिसरी

और    ना ही    दूध    मलाई

अंगूठे  को  मुख  में  धर कर

खूब ऊ  रस-पान   करत    हैं

मेरे नन्दलाल आपन बिरज में।


नाहि संग  ग्वाल-बाल  का

और ना ही  दही  की मटकी

प्याला फोड़ कर दूध चटत हैं

चॉकलेट, बिस्कुट  मुख में धरत  हैं

मेरे नन्दलाल आपन बिरज में।


बांसुरी  का अब  युग  नाहि

अब तो सीटी बजत है

कलयुग के हैं मेरे नन्दलाल

निद्रा में भी कलम हाथ धर

युग महिमा बखान करत हैं।

......

कवयित्री -   प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'

कवयित्री का ईमेल आईडी - kinshukiveerji@gmail.com

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Friday 7 August 2020

मनु कहिन - कोलकाता डायरी (भाग-5)

सन्देश और रसोगुल्ला की सबसे पुरानी दुकानें 

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कोलकाता  ' सिटी ऑफ जॉय ' आप कह सकते हैं ।  वाकई यह सिटी ऑफ जॉय है। खुशियों का शहर है यह। महानगर होने के साथ-साथ अपनी पुरानी सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण रखना आप कोलकाता वासियों से सीख सकते हैं । अन्य महानगरों की तरह यहां भी बाहर से बहुत लोग आए । कुछ काम की तलाश मे तो कुछ नौकरी और व्यवसाय करने । पर, वो जहां से भी आए यहां आकर वो कोलकाता वाले हो गए। यह खासियत है इस शहर की। आपको अपने आप मे समेट , अपना बना लेता है । आप यहां की सभ्यता और संस्कृति मे रच बस जाते हैं।
 
बात कोलकाता की हो और मिठाइयों का जिक्र न हो खासकर कोलकाता के फेमस संदेश का तो फिर बात कैसे बनेगी! संदेश की बात हो  तो आप गिरीशचंद्र डे और नाकुर चंद्र नंदी मिठाई की दुकान को कैसे भूल सकते हैं। 1844 में इस दुकान की स्थापना गिरीश चंद्र डे और नाकुर चंद्र नंदी ने कोलकाता शहर के गिरीश पार्क स्थित रामदुलाल सरकार स्ट्रीट मे  की थी। रिश्ते में ये दोनों ससुर और दामाद लगते थे। नाकुर चंद्र नंदी हुगली से कोलकाता आए थे। वो दामाद बनकर आए थे उस वक्त के फेमस मिठाई बनाने वाले श्री गिरीश चंद्र डे के घर।  इतनी प्रसिद्ध दुकान हो तो स्वाभाविक है, आपको लगता होगा की एक बड़ी सी दुकान होगी !  दुकान के बाहर एक बड़ा सा बोर्ड लगा होगा !  बाहर एक चमचमाता शीशे का दरवाजा होगा , जो आजकल अमूमन आपको हर बड़े स्टोर मे दिखता है । जिसे खोल कर अंदर जाना होगा । तमाम तरह की मिठाइयां सजी होंगी । हर काउंटर पर एक सजा संवरा सा यूनिफॉर्म पहने हुए सेल्समैन होगा । पर  नहीं ! कोलकाता शहर के पुराने एरिया मे  स्थित यह   दुकान कहीं से भी आपको ऐसा आभास नहीं दिलाता है। जब मैं वहां गया तो मैंने देखा एक पुरानी सी दुकान एक पुरानी सी बिल्डिंग जो वास्तव में आपको याद दिलाती है यह दुकान सन 1844  ईस्वी में खुली थी । हैरिटेज बिल्डिंग है ये।

सामने शीशे के पीछे में संदेश की वैरायटी लगी हुई है । पिस्ता संदेश , ब्लैक फारेस्ट संदेश , चॉकलेट संदेश मैंगो संदेश मौसम के अनुकूल मौसमी संदेश और भी बहुत सारी वैरायटी है ।  हरेक माल रु.20/= आप जो भी संदेश खाना चाहे या ले जाना चाहिए मात्र रु.20 है। अभी के माहौल में जहां कोरोनावायरस ने कहर मचा रखा है दुकान के बाहर एक स्पष्ट संदेश था  "नो  मास्क नो संदेश"।  दुकान के कर्मचारी भी मास्क लगाए हुए थे । दुकान के मालिक जो दुकान के अंदर बैठे थे वो थे डे और नंदी के विरासत की पांचवें जेनेरेशन के  पार्थो नंदी।  मेरी उनसे बात हुई। उन्होंने बहुत सारी बातें बताईं। मिठाई की गुणवत्ता के बारे मे पूछने पर उन्होंने बताया कि मिठाई बनाने के लिए वो बाहर से कोई सामग्री नही खरीदते हैं। सब उनका अपना इन-हाऊस ही होता है । उनके दुकान मे जो संदेश बनता है वो तो शाम होते-होते खत्म हो जाता है। 

बातचीत के क्रम में जब सफेद रसगुल्ला का जिक्र आया तो उन्होंने बताया कि अगर आपने चितरंजन का सफेद रसगुल्ला नहीं खाया तो फिर क्या खाया उससे बेहतर रसगुल्ला आपको पूरे बंगाल में नहीं मिलेगा । मैंने भी लगे हाथों पूछ ही लिया भाई बताइए यह चितरंजन कहां है ! मेरे जेहन में चितरंजन तो कोलकाता से बाहर का एक छोटा सा शहर है जो रेल इंजन बनाने के कारखाने के लिए प्रसिद्ध है । इस बात पर हंसते हुए उन्होंने बताया नहीं यहां से थोड़ी ही दूर पर शोभा बाजार के लाल मंदिर के पास एक  दुकान है उसका नाम चितरंजन है ।आप वहां जाएं और वहां के रसगुल्ला को खा कर देखें । उन्होंने मुझे उसका पता दिया। अब मैं उनसे विदा लेकर सफेद रसगुल्ला की खोज में चितरंजन की ओर बढ़ चला । वाकई जब मैं वहां पहुंचा एक छोटी सी दुकान थी वो। यह दुकान भी लगभग 100 वर्षों से ज्यादा पुरानी थी। मैंने वहां पहुंच कर उनसे रसगुल्ला मांगा। पहले तो दो खाया । वाकई ऐसा रसगुल्ला मैंने पहले नहीं खाया था।  अब मुझे अहसास हुआ आखिर क्यों, यह सफेद रसगुल्ला बंगाल और उड़ीसा के बीच विवाद का विषय था। भावनात्मक मुद्दा था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था।  मैंने वहां से कुछ रसगुल्ले पैक करवाए ,घर लाने के लिए ताकि इसका स्वाद सबकी जुबान पर चढ़ सके।
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लेखक -  मनीश वर्मा 
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Monday 3 August 2020

आया आया झूम के सावन महीना (अंतिम सोमवारी के अवसर पर)

कविता

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आया आया झूम के सावन महीना
बहुत ही सुदंर, पवित्र,पावन महीना
भोले झुलाएँ, गौरा झूले झूलना
भोले शंकर को प्यारा सावन महीना 
आया आया झूम के सावन महीना

सावन मास शिवालय में, भक्तों की टोलियाँ 
ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर भक्त भरते  हैं झोलियाँ 
सावन के महीने में भोले का  लगता है भंडारा 
रुद्राभिषेक की देवालयों में  लगती है बोलियाँ 
आया आया झूम के सावन महीना

सावन सोमवार का महत्व बताते है 
सोमवार का व्रत करके स्वर्ग पाते है 
सावन मास व्रत करे, भोले देते वरदान 
शिव शिव जपने से, शम्भु की कृपा पाते है 
आया आया झूम के सावन महीना.
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कवयित्री - डॉ. अलका पाण्डेय
कवयित्री का ईमेल आईडी - alkapandey74@gmail.com
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कवयित्री - अलका पाण्डेय