अभिलाषा
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कोलकाता डायरी (भाग-6)
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चलिए इस बार हम आपको ले चलते हैं, कोलकात्ता के सुप्रसिद्ध, प्रमाणिक बंगाली स्वाद और स्वादिष्ट भोजन के लिए मशहूर 6 बाॅलीगंज ! 6 बाॅलीगंज एक ऐसा नाम जो बंगाल के स्थानीय भोजन के स्वाद के लिए मशहूर है! भोजन की प्रमाणिकता, शुद्धता और सफाई का तो क्या कहना! रेस्टोरेंट के बाहर सेनिटाइजर और थर्मल स्क्रीनिंग की व्यवस्था ! रेस्टोरेंट के अंदर आते ही जूते को कवर करवाया जाना ! साफ सुथरे कपड़े पहने, हाथों मे ग्लव्स और चेहरे पर मास्क पहने हुए कर्मचारी! बिल्कुल साफ सुथरी व्यवस्था ! पर हां वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर मे आपको यहां *हाइजीन चार्ज* के नाम पर प्रति व्यक्ति ५०/- रुपए खर्च करने पड़ते हैं!
दक्षिण कोलकाता के पाॅश बाॅलीगंज इलाके मे एक दो मंजिला, बॅंगलानुमा इमारत मे चलता हुआ , बंगाल के स्वाद को आगे बढ़ाता हुआ एक बेहतरीन स्पॉट! यहां पर आप बंगाली भोजन एवं कुछ चुनिंदा मिठाईयों का भरपूर आनंद और लुत्फ उठा सकते हैं !
खाने की शुरुआत आप आमपोरार शर्बत, गोंधोराज घोल, नोटी विनोदिनी या फिर प्रोफ़ेसर शोंकू के साथ कर सकते हैं! सभी का स्वाद एक से बढ़कर एक!
स्टार्टर मे विभिन्न प्रकार के तली भुनी हुई मछलियों के साथ ही साथ गोंधोराज चिकन का भी लुत्फ उठाया जा सकता है! जब मेन कोर्स की बारी आती है तो फिर विभिन्न प्रकार की मछलियों के साथ ही साथ चिकन और मटन के बहुत सारे स्वादिष्ट व्यंजन उपलब्ध हैं! हां, शाकाहारी लोगों के लिए वेरायटी थोड़ी सीमित है पर, इतनी भी नही कि आपको ऐसा लगे कि शाकाहारियों के लिए यहां कुछ नही है!
व्यंजन के नाम तो ढेरों हैं , जिन्हें एक एक कर ले पाना मुश्किल है! पर, जो हमलोगों ने ट्राइ किया ...... अल्टीमेट....!
खाने की शुरुआत मे आमपोरार शर्बत ! स्टार्टर - प्रोन कटलेट, फिस फ्राई और मेन कोर्स मे डाब चिंगरी, रुई सोरसे और भेटकी पातुरी! सभी का स्वाद**आ..हा..हा ! लिखते हुए मुंह मे पानी आ रहा है!
डेजर्ट मे बेक्ड मिहिदाना साथ मे रबड़ी... अल्टीमेट कंबिनेशन ! नोलेनगुरेर आइसक्रीम का तो कहना ही क्या! सिम्पली लाजवाब!
यूं तो और भी यूनिट हैं कोलकाता मे इसके! मेरे एक अनुज ने मुझे सर्वप्रथम डलहौजी के पास बंगाल लाउंज मे जो 6 बाॅलीगंज की ही एक इकाई है वहां भोजन करवाया था जब मै कोलकात्ता पहली बार गया था! पर, 6 बाॅलीगंज की बात ही कुछ और है !
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संस्मरण
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बचपन में पढ़ा हुआ यह वाकया मेरे दिलो-दिमाग पर इस तरह बैठ गया कि आज भी मैं इस पर अमल करता हूं ।चाहे कितने भी परेशानी आए सच कहने में कभी हिचकता नहीं हूं ।जो सच है , जो सही है, वह मैं जरूर कहता और करता हूं। हां, सच का साथ देने पर और सच्चाई कहने पर कुछ देर के लिए मैं परेशान जरूर होता हूं क्योंकि सच थोड़ा कड़वा होता है! कुछ देर के लिए मैं अपने आप को अलग-थलग जरूर पाया हूं ! पर अंततः जीत सच्चाई की ही हुई है !
कुछ ऐसा ही वाकया , अभी हाल में ही मेरे पटना से कोलकाता यात्रा के दौरान हुआ। मैं और मेरे बच्चे अपनी गाड़ी से सड़क मार्ग से पटना से कोलकाता जा रहे थे ! हालांकि पटना से कोलकाता का सफर सड़क मार्ग के द्वारा लगभग 600 किलोमीटर का है! पर, अमूमन इसे तय करने में मिलाजुला कर लगभग 11 से 12 घंटे का वक्त लग ही जाता है। कहीं पर थोड़ा रास्ता खराब है तो कहीं पर डायवर्जन , जिसकी वजह सेआप लगभग 11 से 12 घंटे में कोलकाता पहुंच पाते हैं ।उस दिन भी हम लोग लगभग उसी हिसाब से चल रहे थे। रास्ते मे धनबाद मे थोड़ा सड़क जाम था । इसे देखते हुए 1 घंटे की देरी हो सकती थी। पर, अचानक से रास्ते में एक जगह वर्धमान में एक से डेढ़ घंटे का सड़क जाम लग गया । प्रत्यक्षतः कोई कारण समझ मे नही आ रहा था । शायद जोरों की बारिश एक वजह हो सकती थी। वर्धमान से निकलते ही शाम का धुंधलका छाने लगा था। एक डर सा भी मन मे आ रहा था। शाम का धुंधलका, बारिश का मौसम और जीटी रोड का सफर , और मैंने कभी रात मे हाइवे पर ड्राइव नही किया था। खैर! एक बार दिल से भगवान को याद कर बढ चले। और कोई चारा भी नही था। वर्धमान के बाद कोलकाता के रास्ते में बहुत सारे गड्ढे जो सड़क पर बन गए हैं। वो अंफान के बाद कुछ ज्यादा ही खतरनाक साबित हो रहे थे। अंधेरे मे उसे 'नेगोशिएट' करना काफी मुश्किल हो रहा था! ऐसा ही कुछ उस दिन हुआ ! रात की वजह से रास्ते में एक गड्ढे को न देख पाने की वजह से गाड़ी का बाई तरफ का अगला चक्का गड्ढे में जा गिरा ! एक जोर की आवाज हुई। खैर धड़कते दिल से गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ाया ।थोड़े आगे जाने के बाद उस जगह से आवाज आने लगी जब मैंने गाड़ी को रोका तो क्या पाया ! गाड़ी का बायीं तरफ का अगला टायर तो बिल्कुल बर्स्ट कर गया था और गाड़ी तो लगभग रिम के सहारे ही चल रही थी। बरसात की अंधेरी रात , हाईवे का सफर, साथ में बच्चे ! आस पास कुछ भी नहीं ! कोई रुकने को तैयार नहीं! बड़ी मुसीबत से किसी तरह हिम्मत जुटाकर हम और हमारे बच्चों ने टायर को बदलने की कोशिश की। पता नहीं नर्वस होने की वजह से या फिर कुछ और वजह थी हमलोग तमाम कोशिशों के बाद भी टायर नहीं बदल पाए ! अचानक ऐसा लगा ,अब क्या करें ? कुछ रास्ता नहीं सूझ रहा था ।आस पास कोई पेट्रोल पंप भी नहीं था । ना ही कोई छोटी सी दुकान या कोई व्यक्ति दिख रहा था , जिससे मदद की उम्मीद की जा सके। बस दिख रहा था तो हाईवे पर पसरा हुआ घुप्प अंधेरा , बारिश और हाइवे पर गुजरती हुई छोटी बड़ी गाड़ियां । रात गहराने लगी थी !
कोलकाता अभी भी लगभग ४० किलोमीटर दूर था! कुछ देर के लिए ऐसा लगा अब क्या करें । तभी वहां पर एक बाइक वाला आकर रुका। दो लोग बैठे थे उसपर । मैंने उससे कहा भाई थोड़ी मदद करो। हम स्टेपनी नही बदल पा रहे हैं। उसने कहा , आप चिंता बिल्कुल मत करें मैं हुंडई कंपनी का इंजीनियर आपको यहां इस अंधेरी रात मे देखकर मैंने गाड़ी रोक दिया है ।उसके मुख से ऐसा सुनकर लगा कि वास्तव में कोई न कोई हाथ ऐसा होता है जो शायद भगवान का ही होते हैं वह आता है और आपको मुसीबत से बचा कर ले जाता है।उसने स्टेपनी बदल दिया। मेरे पास उसे धन्यवाद देने को कोई शब्द नही था। या आप कह सकते हैं भावनाओं के अतिरेक मे मेरे मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे! मैंने सिर्फ उससे इतना ही कह पाया , भाई आपको देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है ! मैं आपको ढंग से धन्यवाद भी नहीं दे सकता हूं ! उसने कहा कोई बात नहीं ! मुझे अपने बचे हुए यात्रा के लिए शुभकामनाएं देते हुए वो चला गया!
हम सभी मुसीबत मे भगवान् को याद करते हैं! क्या वाकई भगवान् अस्तित्व मे हैं ! अगर तर्क की कसौटी पर देखें तो यकीन नही होता है ! पर, विश्वास और आस्था इन सबसे परे है! आप विश्वास करें या न करें , अगर ईश्वर मे अपकी आस्था है, विश्वास है तो मुसीबत मे एक हाथ कटआएगा , जरूर आएगा और मुसीबत से आपको बचा कर ले जाएगा!
गीत
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कविताएँ
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वो देखो लहराया तिरंगा
बड़े आन से फहराया तिरंगा
बडे़ जतन से रणबांकुरों ने
आजादी का स्वप्न था देखा
हंसते गाते चढ़े सूली पर
जान गंवा लहराया तिरंगा।
लक्ष्मी बाई चढ़ी अश्व पर
बांध शिशु को खेली आन पर
धर काली सा रूप विकराल
वारेन समक्ष बनी थी काल
प्राण गंवा लहराया तिरंगा।
रखें सदा भारत की शान
कभी न हो माँ का अपमान
देश की रक्षा अपना मान
वीर भगत की शहादत की आन
विश्व भर में लहराया तिरंगा.
...
वंदेमातरम / सरोज तिवारी
कहता है वंदे मातरम
सुनता है वंदे मातरम
यहाँ राष्ट्र प्रेम के लहू में
बहता है वंदे मातरम
है शांति वंदे मातरम
है युद्ध वंदे मातरम
शत्रु करे चीत्कार
वो चीत्कार वंदे मातरम
पुरस्कार वंदे मातरम
आभार वंदे मातरम
जो आँखें गर्व से उठे
पुकार वंदे मातरम
कहता है वंदे मातरम
सुनता है वंदे मातरम
यहाँ राष्ट्र प्रेम के लहू में
बहता है वंदे मातरम
...
रचनाकार - चंदना दत्त, सरोज तिवारी
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कवयित्री चंदना दत्त अपने पति के साथ |
कविता
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मेरे घर आए नन्दलाल बिरज से
ठुमक-ठुमक कर चलत हैं घर में
पांव की थपकी पैजनियाँ बजत हैं
गुस्सा में धरती पर नाक धरत हैं
मेरे नन्दलाल आपन बिरज में।
नाहि मिलत है माखन मिसरी
और ना ही दूध मलाई
अंगूठे को मुख में धर कर
खूब ऊ रस-पान करत हैं
मेरे नन्दलाल आपन बिरज में।
नाहि संग ग्वाल-बाल का
और ना ही दही की मटकी
प्याला फोड़ कर दूध चटत हैं
चॉकलेट, बिस्कुट मुख में धरत हैं
मेरे नन्दलाल आपन बिरज में।
बांसुरी का अब युग नाहि
अब तो सीटी बजत है
कलयुग के हैं मेरे नन्दलाल
निद्रा में भी कलम हाथ धर
युग महिमा बखान करत हैं।
......
कवयित्री - प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'
कवयित्री का ईमेल आईडी - kinshukiveerji@gmail.com
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कवयित्री - अलका पाण्डेय |