Wednesday 29 April 2020

मनु कहिन (26) - "वी आर बोर्न तो रूल"

विमर्श 

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कभी कभी लोगों की मानसिकता पर तरस आता है। कैसी सोच है उनकी। अगर थोड़ा बढ़कर बोलें तो कह सकते हैं बड़ा ही अमानवीय दृष्टिकोण है। एक अलग ही नजरिया है लोगों को देखने का ! आपको लगता है कि आप इस सोच , इस नजरिए के साथ आगे बढ़ सकते हैं ! जीवन मे तरक्की के साथ ही साथ बहुत कुछ पा सकते हैं !पर, यह भूल है आपकी ! इस तरह की मानसिकता और सोच कभी भी आपको एक तय मुकाम से आगे बढ़ने ही नही देगी। जहां पूर्ण विराम लगना चाहिए था, उससे बहुत पहले ही लग गया। आपको लगेगा कि आपने बहुत कुछ हासिल कर लिया है पर शायद आप दृष्टि-दोष के शिकार हैं। आपने क्या खोया या कहें खो दिया, आप नही देख पा रहे हैं। इतिहास गवाह है जीवन मे आगे, बहुत आगे बढ़ने के लिए आपको अपनी सोच और मानसिकता मे परिवर्तन लाना ही होगा।

किसी ने मुझे एक वाकया सुनाया। नाम नही लेना चाहिए मुझे उस व्यक्ति का।  क्या जरूरत है नाम लेने की।  खैर ! वो व्यक्ति एक प्राइवेट कंपनी मे एक अच्छे ओहदे पर नौकरी किया करता था। अच्छी तनख्वाह थी। काम का दवाब था पर, एक अच्छी तनख्वाह आपके बहुत सारे दुखों को काफी हद तक दूर कर देती है। परिवार - बच्चों का सुकून आपकी प्राथमिकता बन जाती है।बदले मे आप काफी कुछ छोड़ जाते हैं । बहुत कुछ आपसे ले लिया जाता है !जिसका पता शायद ताजिंदगी नही चल पाता है। क्योंकि आपने कभी अपने बारे मे नही सोचा। कभी जगह नही दी अपने आप को। 

खैर , चलिए मुद्दे पर आते हैं। जिस कंपनी मे वो व्यक्ति काम किया करता था, उसी कंपनी का एक पुराना मुलाजिम, एक ड्राइवर वेलू हुआ करता था। उम्र करीब पचपन से साठ के बीच की रही होगी। वेलु ने बतौर ड्राइवर अपनी सेवाएं कंपनी के तत्कालीन मालिक को तो दी ही,आज के मालिक की सेवा मे भी वह व्यक्ति लगा हुआ  था। कंपनी के तमाम स्टाफ उसके उम्र और व्यवहार को देखते हुए बड़ी इज्जत किया करते थे। एक दिन की बात है। कंपनी की राजमाता -- जी हां, उन्हें राजमाता संबोधित करना ही उचित होगा। भाई, आज के कंपनी के मालिक की मां जो ठहरीं। किसी प्रसंगवश कंपनी के मालिक के लड़के ने जिसकी उम्र लगभग छः या सात वर्ष की होगी, राजमाता की उपस्थिति में वेलु को  वेलु अंकल कह कर संबोधित  कर दिया। वेलु अंकल, उस बच्चे ने बिल्कुल सही संबोधन किया। ज्यादा उचित तो वेलु बाबा होता। खैर! अब आप राजमाता की त्वरित प्रतिक्रिया सुनें जो उन्होंने सार्वजनिक रूप से सबके सामने अपनी भौंहें तरेरते हुए दिया ------ " वेलु अंकल नही ! वेलु कहो! 

सच है - "वी अरे बोर्न तो रूल!"  क्या कहेंगे एसी मानसिकता को आप ! आपको नही लगता है कि ऐसी सोच रखने वाले लोग मानसिक विकृति के शिकार हैं!

आप जो भी करते हैं। जैसा भी व्यवहार करते हैं। सार्वजनिक तौर पर आपका रहन सहन। आपके काम करने का तरीका। आपके बात करने का तरीका! यह आपका अपना मनोविज्ञान है।हर व्यक्ति अपने मनोविज्ञान से ही बंधा होता है। और मनोविज्ञान का एक चरित्र के रूप मे विकसित होना एक दिन की बात नही।
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लेखक - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

Monday 27 April 2020

तुम्हें मैं प्यार करती हूँ तेरे बिन जीना मुश्किल है / डॉ. सुधा सिन्हा

ग़ज़ल

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तुम्हें मैं प्यार करती हूं तेरे बिन जीना मुश्किल है
कभी ख्वाबों में आ जाओ इसे सम्भालना मुश्किल है

देखो सन्नाटा पसरा है बगिया में फूल नहीं खिलता
दिल की महफिल भी है सूनी, यहां गुल खिलना मुशकिल है।

कोई महताब नहीं इसके बिना सब में सितम ही हैं
किसी के पास आने से दरवाजा खुलना मुश्किल है ।

मेरे दिल पर तुमहारा ही सदा अख्तियार रहता है
बहुत समझाती हूं तुमको मगर समझाना मुश्किल है

धड़कता दिल जो मेरा है सुधा कहती तुम्हारा है
किसी के लाख कहने पर इसे धडकाना मुश्किल है।
.......
कवयित्री - डॉ. सुधा सिन्हा 
कवयित्री का ईमेल - sinhasudha017@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

Thursday 23 April 2020

"हाँ मैं स्त्री हूँ" और "कितना सुंदर मेरा बिहार" (कविताएँ)

कविताएँ

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हाँ मैं स्त्री हूं
 *मूल- सविता झा 'सोनी' (मैथिली)* /  अनुवाद - मानस दत्ता

 हाँ मैं स्त्री हूं
 तभी तो हर बात पर
 रोते-रोते भी
 मुस्कुरा देती हूं
  हाँ मैं स्त्री हूं।

 मेरे स्वभाव केअनेक
 रूप देखिए
 सबमें शक्कर जैसे
 मिल कर मिठास लाती हूं
 मुझे पत्थर समझो या
 फिर मोम का पुतला
 मैं खुद ही अपने
 दु:ख से स्नान कर लेती हूं
 हाँ मैं स्त्री हूं।
 तभी तो हर बात पर
 रोते-रोते भी मुस्कुरा देती हूं

 परिणय वेदी के
 उन 'सातों वचन' को मान
 आपके कदमों से कदम
 मिला देती हूं
 अगर थोड़ा सा भी
 आप डगमगाते हो
 मैं तुरन्त
 सिहर जाती हूं

 हाँ मैं स्त्री हूं !
 तभी तो हर बात पर
 रोते-रोते भी मुस्कुरा देती हूं
 हाँ मैं स्त्री हूं ।
.......
           


 कितना सुन्दर मेरा बिहार
कवयित्री - चंदना दत्त

 रत्नजडित मेरा बिहार
 मिला बुद्ध को ज्ञान जहां
 पीपल बरगद आम जहां
 चहुंदिस धान के खेत जहां
 कर्मठ लोग से भेंट जहां
  कितना सुन्दर मेरा बिहार
 रत्नजडित मेरा बिहार

 उच्चैठ भगवती का धाम जहां
 हो गये कलिया कालीदास जहां
 कोयल की कूक गुन्जार जहां
 सुरभित पुष्पित उद्यान जहां
 कितना सुन्दर मेरा बिहार
 रत्नजडित मेरा बिहार ।

 पनिभरनी की बोली संस्कृत जहां
 शंकराचार्य हुए पराजित जहां
 भारती मंडन गांव के गांव जहां
 कपिल कणाद का भान जहां
 कितना सुन्दर मेरा बिहार
 रत्नजडित मेरा बिहार ।

 लालदास की रामायण जहां
 महासुन्दरी बिमला सी बामा जहां
 राजनगर का नौलखा धाम जहां
 सीता ने लिया अवतार जहां ।
 कितना सुन्दर मेरा बिहार
 रत्नजडित मेरा बिहार।
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मूल रचनाकार - हाँ मैं स्त्री हूँ (सविता झा सोनी)
अनुवादक - मानस दत्ता
मूल रचनाकार - कितना सुंदर मेरा बिहार (चंदना दत्त)
*श्री मानस दत्ता, श्रीमती चंदना दत्त के पुत्र हैं.
चंदना दत्त का ईमेल -
चंदना दत्त का पता - रांटी, जिला - मधुबनी (बिहार)
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com


(विश्व पुस्तक दिवस - 23 अप्रील पर शुभकामनाओं के साथ) - *अपनों से बिछुड़े / लघुकथाकार - लेखिका- आभा दवे

लघुकथा

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 सुमेर आज सुबह से ही परेशान सा अपने घर में इधर-उधर घूम रहा था।  इतना बैन वो कभी न था जैसा आज नज़र आ रहा था।  घर वाले भी उसे इधर-उधर घूमते देख रहे थे पर सभी ख़ामोश और सहमे हुए से थे।

टीवी पर समाचार आ रहा था कि "देश में कोरोनावायरस से कई व्यक्तियों की जान चली गई है? लोग अपनों से बिछड़ने लगे हैं। सभी अपनी ज़िंदगी को बचाने के लिए अपने घरों में सुरक्षित रहें, कोई घर से बाहर न निकले"।  इस वीडियो को सुनने कर सभी सहम से गए थे और सुमेर अत्यधिक तन्हा हो रहा था।  उसकी पत्नी गर्भवती थी और उसका नौवां महीना चल रहा था।  बच्चे को जन्म देने की तिथि भी नजदीक आ रही थी।  उसके मन में अपनों से बिछड़ने का डर समाने लगा था।

 फोन की घंटी बजते ही सुमेर ने काँपते स्वर से "हलो" कहा।  "मैं डॉ। सतीश बोल रहा हूँ दूसरी तरफ से आवाज आई"।  मेरी डॉ पत्नी ही आप की पत्नी का हर महीने चेकअप कर रही थी।  इस समय वह शहर में मौजूद नहीं है।  लॉकडाउन की वजह से उसे हैदराबाद में ही रुक जाना पड़ा।  वह कुछ जरूरी काम से हैदराबाद गया था। "उन्होंने बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहा -" आज सुबह ही उसका फोन आया था।  आप बिल्कुल भी चिंता न करें।  मैं आप की पत्नी का पूरा ध्यान रखूँगा जब भी आप की पत्नी को प्रसव पीड़ा हो, आप मुझे तुरंत फ़ोन करिएगा मैंने यहाँ पर सभी सुविधाओं को उपलब्ध करा ली है।  आप निश्चिंत रहें ”।

 डॉ।  सतीश की बातों को सुनकर सुमेर खुश हो गया।  उन्होंने सभी घर के सदस्यों को बुला कर कहा- "बिछड़ते लोगों का समाचार सुनकर मैं तो घबरा ही गया था पर डॉ. सतीश ने मेरी सारी बेचैनी खत्म कर दी। वास्तव में डॉक्टर, भगवान का दूसरा रूप है। अब मुझे अपने लोगों के बारे में नहीं बताना चाहिए।  छोड़ देंगे ”।  सुमेर की बात सुनकर परिवार के लोगों में खुशियाँ लौट आईं।
.....

सभी साहित्यक मित्रों को  विश्व पुस्तक दिवस (23 अप्रील) की हार्दिक शुभकामनाएँ
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सभी की कलम निरंतर यूँही चलती रहे
आप की बातें पुस्तकों में ढलती रहे
कलम बहुत कमाल दिखाती
दूसरों के साथ -साथ खुद को
अपने से मिलाती है
किताबों की दुनिया ही निराली है
उसमें इन्द्रधनुष की लाली है ।
मैंने अब तक केवल एक ही पुस्तक प्रकाशित करवाई है । बाक़ी 11साझा संकलन में रचनाएं प्रकाशित हुई है । दो गुजराती से हिन्दी अनुवादित पुस्तकें है ।
मेरा लेखन स्वांत:सुखाय है । इसलिए बहुत संतुष्टि देता है ।पर सभी साहित्यकारों को पढ़ना आनंद दे जाता है । किताबें एक सच्चे दोस्त की तरह होती हैं जो समय आने पर साथ देती हैं । एक बार पुनः सभी को पुस्तक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
खुद ही लिखती हूँ ,खुद ही गा लेती हूँ
अपने स्वरों में खुद को पा लेती हूँ ।
- आभा दवे
..................

रचनाकार - आभा दवे
रचनाकार का ईमेल - abhaminesh@gmail.com
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Sunday 19 April 2020

मनु कहिन (24) - जन्मदिन का केक

विमर्श

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उम्र बढ़ने के साथ ही साथ, जब आप अपने दोस्तों से बातें करते हैं तो आपकी  प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं। बातों का वो दौर जो स्कूल के दिनों मे था, जो विषयवस्तु  उस वक्त हुआ करती थी, वो काॅलेज के दिनों में नहीं थी ! प्राथमिकता बदल गई थी। बातों का दायरा बढ़ चुका था या यूं कहें बदल गया था। नौकरी मे हालांकि आपके 'कलीग्स' होते हैं, मित्रता के दायरे मे उन्हें शायद नही रखा जा सकता है। यहां भी प्राथमिकता कुछ और ही होती है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि आप बदलाव को स्वीकार करें। वैसे भी बदलाव तो प्रकृति का शाश्वत सत्य है। 

अब कल की ही बात है। मैं और एक दोस्त बातें कर रहे थे। अगर ईमानदारी से कहूं तो बिना सिर-पैर की बातें ही कर रहे थे। और ये सारी बातें वाकई आप अपने दोस्तों से और वो भी बचपन के मित्र से ही कर सकते हैं। वैसे भी, 'लाॅकडाउन' मे टाइमपास करने के अलावा और किया भी क्या जा सकता है। ज्यादा समाचार सुनेंगे तो मालूम पड़ेगा "कोरोनावायरस पोजीटिव" तो नही हुए पर, "डीप डिप्रेशन" मे जरूर चले जाएंगे। सारे चैनलों पर एक ही बात ! पक सा जाता है बेचारा आदमी! भाई, वही दुरदर्शन का दौर ठीक था। समाचार का इंतजार किया करते थे। समय तय कर रखते थे। समाचार के वक्त आखिर करना क्या है ? समाचार तो सुनना ही है।  बाद मे एक चैनल और आया। डीडी मैट्रो ! भाई साहब एंटेना सही करते करते ही कार्यक्रम खत्म हो जाया करता था। एक दौर था वो! एक दौर आज का है ! चैनल्स की बाढ़ सी आ गई है। पर, एक बात है - कल एंटेना के पीछे भागते थे, आज प्रमाणिकता के पीछे दौड़ रहें हैं ! हमारा दौड़ना नही रूका है ! दौड़ना ही नियति बन गई है हमारी! 

अब, देखिए ना , कहां से शुरू किए थे और भागते हुए कहां से कहां पहुंच गए ! 

खैर! बात दो दोस्तों के बीच की थी। बातचीत चल रही थी जन्मदिन की स्वर्ण जयंती मनाने की। मैंने कहा भाई मना लो अपने उम्र की स्वर्ण जयंती। कल को किसने देखा है! हम कहां रहेंगे? बच्चे कहां रहेंगे? आज के इस भौतिकता भरे दुनिया मे किसी का क्या भरोसा" ई-कॉमर्स का जमाना है। सब कुछ- मतलब सब कुछ  अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि आदि पर उपलब्ध है।  बच्चों के द्वारा बढ़िया-सा एक अदद केक और कुछ गिफ्ट अमेजन आदि आदि के द्वारा भेज दिया जाना है। 

यह आपका जन्मदिन हो या कोई और ऐसा दिन ! बहुत हुआ तो एक प्यारे-से ''एक्सक्यूज' के साथ विडियो चैट या स्काइप पर बातें हो जाएगी।  आपके और उनके शहरों में कहीं गोलार्ध का चक्कर रहा तो वह भी शायद मुश्किल हो! और हम अपने आप को और अपनी अर्धांगिनी को या यूं कहें एक दूसरे को बार बार यह समझने और समझाने की कोशिश करेंगे - देखा बच्चे हमारा कितना ख्याल रखते हैं ! हमारा जन्मदिन हो या फिर शादी की सालगिरह - मुबारकबाद देना कभी नही भूलते! देखो , कितना बढ़िया 'केक' भेजा है...............!  गिफ्ट भी बड़ा प्यारा है! हमारे पसंद का कितना ख्याल है उन्हें! समय मिलता तो जरूर आते। आखिर बच्चे हैं हमारे! जरूर कोई काम ऐसा आ गया होगा तभी तो नही आ सके !!

पर, हम दोनों पति-पत्नी वाकिफ हैं सच्चाई से। कैसे झुठला सकते हैं। बहुत मुश्किल है मन को समझाना।
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लेखक - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
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Monday 13 April 2020

किन्नर समाज पर एक आवश्यक चिंतन / राज मोहन

किन्नर समाज को मिले पूरा सम्मान 
सर्वोच्च न्यायालय ने 14 अप्रील, 2014 को किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में दी थी मान्यता

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 किन्नर समुदाय को देश में तृतीय लिंग के रूप में संवैधानिक मान्यता मिले हुए भले ही 5 वर्ष बीत गया हों  , अब भी उनका एक बडा हिस्सा मतदाता सूची तथा अन्य सुविधाओं से बाहर है । अब भी समाज में किन्नरों की दशा में कोई खास सुधार नहीं आया है । इस संबंध में शायद कोई  अतिशयोक्ति नहीं कि - किन्नर समुदाय आर्थिक , सामाजिक , सांस्कृतिक तथा राजनीतिक स्तर पर पिछडा हुआ है । इन्हें समाज में अभी भी हीन और तिरस्कर की  दृष्टि से देखा जाता है ।

तृतीय लिंग भी हमारे ही समाज का हिस्सा है । इनकी स्थिति कुछ ऐसी है , कि आधुनिक समाज में सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता । समाज में इस वर्ग को उपहास पूर्वक मॉगा , बीच वाला , मामू , गुउ नपुंसक ,छका , किन्नर आदि नामों से पुकारा जाता है । सभी को दुआ , बधाई और शुभ आशीष देने वाले यह हाथ अपनी मूलभूत सुविधो के साथ पहचान - अधिकार और सम्मान से वंचित हैं साथ ही,  सामाजिक बहिष्करण , लिंग भेदभाव एवं मानसिक उत्पीड़न के शिकार हैं ।

झारखंड प्रदेश की  स्थापना के 20 वर्ष पूरे होने चले लेकिन अभी तक तृतीय लिंग की निश्चित संख्या पता नहीं । पिछले कुछ सालों में इनकी मतदाताओं की संख्या में 34% इजाफा आया है । 30 जनवरी 2019 तक कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 2.19 करोड़ है , जिसमें तृतीय लिंग मतदाताओं की संख्या 307 है , जबकि 2013 ई  में इनकी कुल पंजीकृत संख्या 09 थी । 2014 ई में 16 , 2015 ई में 30  , 2016 ई में 29 , 2017 ई में 123 , 2018 ई में 290 तथा 2019 ई  में 307 किन्नरों की पंजीकृत जनसंख्या थी । निर्वाचन आयोग द्वारा 01 जनवरी 2019 को जारी अंतिम सूची में तृतीय लिंग मतदाताओं की संख्या 307 थी । लेकिन मतदाता पुनरीक्षण में कई किन्नरों के नाम हटा दिए गए । अब इनकी पंजीकृत संख्या मात्र 212 रह गई है ।

झारखंड में सबसे अधिक 53 किन्नर वोटर पूर्वी सिंहभूम जिले में है जो कुल झारखंडी किन्नर मतदाताओं का 25% है । रांची में 43 , साहिबगंज में 06 , दुमका में 04  ,गोडा में 06 , कोडरमा में 03 , हजारीबाग में 10 , रामगढ़ में 01,  सरायकेला -खरसावां में 08 ,खूंटी में 01,  गुमला में 06 , लोहरदगा में 05 और लातेहार में 04 किन्नर मतदाता हैं । झारखंड के 6 जिले ( पाकुड़ ,जामताड़ा , देवघर ,सिमडेगा ,पलामू और गढ़वा ) में किन्नर पंजीकृत वोटर नहीं है । 

भारतीय जनगणना ने कभी भी वर्षों के लिए जनगणना के आंकड़े को इकट्ठा करते हुए तीसरे लिंग यानी ट्रांस को मान्यता नहीं दी है । लेकिन 2011 ई में ट्रांस के डाटा को उनके रोजगार  ,साक्षरता और जाति से संबंधित विवरण एकत्र किया गया था । भारत में 2011 ई की जनसंख्या के अनुसार ट्रांस की कुल आबादी लगभग 4.88 लाख है । जनसंख्या विभाग द्वारा जारी प्राथमिक आंकड़ों में ' नर ' के अंदर ट्रांसजेंडर के डाटा को काट दिया गया है  । शैक्षणिक उद्देश्य के लिए ट्रांस के अलग-अलग आंकड़ों को इसमें अलग किया गया है । जिसमें झारखंड में 13,463 ट्रांसजेंडर हैं । बच्चे ( 0-06 वर्ष ) 1,593 , अनुसूचित जाति के ट्रांसजेंडर 1,499 और अनुसूचित जनजाति से 3,735 ट्रांसजेंडर हैं । जिन का साक्षरता दर 47.58% है  ।

झारखंड सरकार की एक बड़ी जिम्मेवारी है कि तृतीय लिंग के निश्चित संख्या का पता लगाना तथा इनकी समस्याओं से अवगत होकर संभावित समाधान हेतु पहल करे । जिससे इस समुदाय की  सामाजिक , आर्थिक सांस्कृतिक एवं राजनीतिक उत्थान हो सके ।अन्य पड़ोसी राज्यों के तर्ज पर ' किन्नर कल्याण बोर्ड '  का गठन कर इन्हें समाज के मुख्यधारा में लाना , झारखंड में लैंगिक अध्ययनों के अंतर्गत किन्नरों से जुड़े हुए वाद-विवाद तथा विमर्श का आलोचनात्मक अध्ययन को बढ़ावा देना तथा शोध संस्थान बनाने चाहिए साथ में उक्त समुदाय के लिए बनाई गई सरकारी नीतियों और योजनाओं तथा इनकी संवेदनशीलता के अध्ययन को न सिर्फ बढ़ावा देना चाहिए बल्कि शोधार्थियों को विशेष आर्थिक प्रोत्साहन भी देना चाहिए । ताकि इनकी समस्याएं एवं सामाजिक समाधान से समाज की मुख्यधारा में आकर सम्मानजनक जीवन यापन कर सकें ।

जिन किन्नरों को देख कर सुन कर न केवल महिला , बल्कि पुरुष भी भय खाते हैं । उस समाज / समुदाय से करीबी का रिश्ता न तो समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र कराता है और ना ही हमारी शिक्षा हमारी स्कूल पाठ्यक्रमों  में भी किन्नर समुदाय पर मुकम्मल जानकारियां तक नहीं देती , आखिर नई पीढ़ी ( बच्चे ) को जानकारियां कहाँ से मिलती है ? वह जानकारियां घर- परिवार और समाज से ही हासिल होती हैं । ऐसे में नई पीढ़ी को जानकारियां कैसे मिलेगी ? इसलिए झारखंड सरकार को नए पाठ्यक्रमों में तमिलनाडु एवं केरल ( विजयराजा मल्लिका का जीवन ) जैसा किन्नरो से संबंधित पाठ शामिल करना चाहिए ।

झारखंड किन्नर समाज के प्रदेश अध्यक्ष छमछम देवी एक साक्षात्कार में कहीं कि-" हम भी इंसान हैं पर हमारे प्रति समाज का नजरिया दुख भरा है । कहीं जाते हैं तो लोग कहते हैं कि वह देखो - ' हिजड़ा जा रहे हैं  ' हम लोगों को ऐसे संबोधन पर कोफ्त होती है । दुनिया का पहला देश है भारत जहां सर्वोच्च न्यायालय ने तृतीय लिंग का दर्जा दिया है , साथ ही साथ इस समुदाय को सम्मान दिलाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है । तृतीय लिंग के लिए के समुदाय को अंकित कर इन्हें मूलभूत आवश्यकताएं ( भोजन ,वस्त्र, आवास, शिक्षा एवं चिकित्सा) उपलब्ध कराकर उनके हुनर को पहचानते हुए उन्हें विशेष प्रशिक्षित कर उन्हें रोजगार देकर आर्थिक एवं सामाजिक रूप से स्वालंबन बनाया जा सकता है। ताकि भिक्षावृति, बधाई देने तथा घृणित कार्य किए बगैर सम्मान पूर्वक आनंदित जीवन यापन कर सकें ।

14 अप्रैल 2014 में भारत के शीर्ष न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान दी है। नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (एनएलएसए) की अर्जी पर फैसला सुनाया था । इस फैसले के बदौलत सभी को जन्म प्रमाण पत्र , राशन कार्ड , पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिला । उन्हें एक दूसरे से शादी करने तथा तलाक देने का अधिकार भी प्राप्त है । वह बच्चे को गोद ले सकते हैं और उन्हें उत्तराधिकार कानून के वारिस होने एवं अन्य अधिकार मिला है । इतना ही नहीं विधेयक में दंडात्मक प्रावधान के अनुसार किन्नरों के उत्पीड़न या प्रताड़ित करने पर किसी व्यक्ति को 6 माह से लेकर कुछ वर्षों तक जेल की सजा का प्रावधान है , किंतु प्रश्न है कि कानूनी अधिकार ही काफी नहीं है सामाजिक अधिकार मिले तब तो !

झारखंड प्रदेश आदिवासी बहुल क्षेत्र है । जहां आदिवासी संस्कृति / समाजों में लिंग भेद कम देखने को मिलता , यहाँ कपड़े पहनने  , मित्र बनाने , शादी करने या नही करने या जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता होती है । इस कारण आदिवासी समाज में सामाजिक बहिष्करण नहीं देखने को मिलता है । जिससे ट्रांसजेंडर की पहचान करना कठिन हो जाता है, किंतु इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि झारखंड में बड़ी संख्या में ट्रांसजेंडर है , जिनका पहचान करना कठिन है । सरकार की किन्नरों के प्रति उदासीता त्यागने की जरूरत है ताकि वो खुलकर सामने आ सकें । सरकार को चाहिए कि एनएलएसए को कठोरता से पालन करते इनके पहचान ,अधिकार, सम्मान और उत्थान के लिए संकल्पित हो ताकि किन्नर समाज भी खुलकर आनंदपूर्वक जीवन जी सके ।

लेकक - राज मोहन 
लेखक का पेशा -  सहायक प्राध्यापक 
पता - समाजशास्त्र -विभाग, गुलाबचंद प्रसाद अग्रवाल कॉलेज 
सड़मा , छत्तरपुर (पलामू )
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