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To:Editor Bihari Dhamaka
दौर
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वे भी क्या दिन थे!!
व्यक्ति के पहले
समष्टि की सोचते थे
चलो,हल करें
गंभीर मसलें
खेतों के, ग्वाल के
आम इंसान के
नहर पर,
रहट पर.
कुआं- ताल पर,
गांव के चौपाल पर।
हम मिल बैठेंगे
बैर को मिटायेंगे
आम जनजीवन में
खुशियां फैलायेंगे ।
दौर ऐसा आया है
सोचना भी बेमानी है
पूंजी के हाथ में
सत्ता बिक जाती है
महलों के सामने
झोपड़ियां रौंदी जाती है.
वातानुकूलित कमरे में
बनती योजनाएं हैं.
खेतों के मेड़ों पर
किसान मर जाते हैं.
कांकेटेल पार्टियों में
धड़कती जवानी है.
गाड़ियों की रफ्तार में
इंसानियत कुचलती है.
लाज भी पनाह मांगे
आंखों में न पानी है.
कहने को तो बेटियां
'दुर्गा' है,भवानी'है।
सरेआम लूटी जाती हैं
रोज़ की कहानी है.
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पूनम (कतरियार)
J.A. Apartment
Bailey road,
Patna-1