Monday 16 November 2020

भाई दूज पर कविता / कवयित्री- मंजु गुप्ता

 कविता


स्नेह, प्रेम, निर्भय, सुरक्षा का भाईदूज महापर्व पर  सभी भाइयों को शुभकामनाएँ !  सभी  भाइयों को लौकिक सुख के साथ अलौकिक सुख मिले।

उन्हें उपहार स्वरूप ये मुक्तक प्रस्तुत हैं-

शैशव का पर्व  संग चलता 

रोली तिलक में प्रेम पलता

दीर्घायु रहे भैया मेरे 

दुआओं का दीप है जलता।1


भाई मेरा तुलसी दल है,

भैयादूज का ये प्रेम-पल है,

तुझ को बहना शीश नवाती ,

संकट में तू ऊर्जा, बल है ।2


संसार के सभी भाइयों को भैयादूज मुबारक


रीति , रिवाजों पे टिके, जगजीवन संसार  ।

मातु सिखाए जन्म से, भातृ-बहन त्यौहार ।।


बचपन हमने संग में,  भैया ! जीया खूब ।

खुशियों की दुनिया मिली, भर मस्ती में डूब।। 


आजा भाई मैं  तिलक, करती तुम को आज ।

पावन रिश्ता प्रेम का,  करता तुझ पर  नाज।।


सदियों से यह रस्म ही, लाती मंगल आस ।

 बहना, भाई  प्रेम की, ताकत अरु विश्वास।। 


मैके जाने के समय, भाई स्वागत  द्वार ।

भाई जैसा है  नहीं, दूजा इस संसार ।।


चक्र खुशी का घूमता , कहते  मंजू ख्बाव 

जीए मेरे भ्रात सब , लाखों बरस जनाब ।

.........


कवयित्री - डॉ मंजु गुप्ता 

पता - वाशी, नवी मुंबई

Monday 2 November 2020

ऑनलाइन कक्षाएँ/ कवयित्री - सुमन यादव

 कविता 

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



वह मुस्कराहट वह हँसी 
वह  धीमी बातों की फुसफुसाहट 
अब ना सुनाई देती है 
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह डस्टर वह चॉक 
वह पुस्तकें वह कापियाँ 
वह पुस्तकालय वह प्रयोगाशाला 
अब ना नजर आते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |

वह खेल का मैदान 
वह घंटी की आव़ाज 
वह आधी छुट्टी, वह कैंटिन के पकवान 
वह कोलाहल, वह शोरगुल 
अब ना उत्पन्न होते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |

वह संगीत,वह नृत्य 
वह हस्तकला का कालांश 
वह चित्रकला, वह मानचित्र 
अब अदृश्य से लगते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह विद्यालय का परिवेश 
वह चंचलता, वह नटखट पन 
वह मीठे मधुर स्वर 
वह निश्चल सा प्रेम 
अब ना महसूस होते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |

अब तो नजर आते है 
विद्यार्थीयों के छोटे-छोटे छायाचित्र 
एक चौखट में मानो प्रतिबिंब स्वरुप 
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |

वह तमाम तकनीकी यंत्र 
जिनके प्रयोग पर कभी टोका करती थी 
आज उसी के समक्ष उपस्थिति पर जोर देती हूँ |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |

वह असावधान से,नटखट बच्चे 
कैमरे के समक्ष, सावधान नज़र आते है |
अभिभावक एवं शिक्षक के बीच 
लाचार नजर आते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह तमाम पीपीटी एवं वीडियो 
अनेकानेक शिक्षण विधा ,भाषिक खेल 
कुछ नाकाम नजर आते है | 
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |

वह जिज्ञासु बच्चे 
कुछ शांत नजर आते है 
निगाहें नीचे किए 
व्हाट्स अप वेब के आसार नज़र आते है | 
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |

प्रश्न पूछने पर क्या कहा ,
सॉरी, नॉट एबल टू हियर ,मे बी सम नेटवर्क प्राब्लम ,
और कभी-कभी लॉगआउट हो जाते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |

विचलित हो, विवश हो 
अपने आप को ही समझाती हूँ 
शिक्षा के क्रम को आगे बढाती हूँ 
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
......
कवयित्री - सुमन यादव 
कवयित्री का ईमेल आईडी - sumankyadav6@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Saturday 31 October 2020

यह वक़्त बड़ा बेमानी सा है / कवि - चन्देल साहिब

कविता 

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



यह वक़्त बड़ा बेमानी-सा है

फ़िक्र न कर गुज़र जाएगा।

जैसा बीज है तुमने बोया

वैसा ही तू फल  पाएगा।

मत कर भविष्य की चिंता

पल पल यह तुझे सताएगा।

यह वक़्त बड़ा बेमानी-सा है

फ़िक्र न कर गुज़र जाएगा।


मत कर गुनाह मन बावरे

कल तू भी फिर पछताएगा।

ईश्वर में श्रद्धा व विश्वास रख

ख़ुशियों का दिन भी आएगा।

तू दीपक की तरह जलता रह

ग़म का तिमिर ख़ुद मिट जाएगा।

यह वक़्त बड़ा बेमानी-सा है

फ़िक्र न कर गुज़र जाएगा।

.....

कवि - चंदेल साहिब
पता - हिमाचल प्रदेश 
कवि का ईमेल आईडी - vikkychandel90@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com


Monday 26 October 2020

प्रसिद्ध लघुकथाकार डॉ.सतीशराज पुष्करणा का विदाई समारोह दि. 18.10.2020 को सम्पन्न

जो आपको गम्भीरता से नहीं लेता उससे किनारा कीजिए

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )




8 अक्टूबर 2020 की दोपहर लेख्य मंजुषा के सदस्यों के लिए एक ऐसा पल था जिसमें वे सभी अत्यंत प्रसन्न भी थे और दिल से उदास भी। ये प्रसन्न और उदास शब्द एक साथ विरोधाभास प्रकट कर रहे  हैं, पर वो क्षण ऐसा ही कुछ था, लेख्य मंजुषा के सभी सदस्यों के लिए। 

अपने अभिवावक से मिल कर कोई खुश कैसे न हो पर जब वो क्षण उनके बिदाई में बदल जाए तो उदासी स्वतः घेर लेगी । 

लघुकथा के पितामह आदरणीय 'सतीशराज पुष्करणा' जो लेख्य मंजुषा के अभिवावक भी हैं अपना समय वर्षों पटना और यहाँ के साहित्यकार को समर्पित कर अपने छोटे परिवार पत्नी और बच्चों के पास अपनी जीवन संध्या में जाने का निर्णय लिए। साहित्य को समर्पित अपने जीवन में वे सदैव साहित्यकारों के साथ घिरे रहे अतः वे अकेले थे कहना उचित नहीं पर वास्तविकता को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता। उम्र के इस पड़ाव पर वे पत्नी और बच्चों के साथ समय गुजरेंगे ये हम सभी को खुशी दे रहा था पर अब हर पल जब कोई विचार-विमर्श करनी हो तो हम उनके समक्ष झट नहीं पहुँच पाएँगे ये भावना हमें अंदर से कमजोर कर रही थी। यही कारण था कि सभी के  मन उदास थे पर कोई अपनी आँखों को नम करना नहीं चाह रहा था क्योंकि हम सभी का ये मानना था कि हम उन्हें विदा नहीं कर रहे। ये मात्र उनके आवास का स्थान परिवर्तन है।

इस सुखद वेला में  वरिष्ठ कवि आदरणीय 'भगवती प्रसाद द्विवेदी, वरिष्ठ कवि आदरणीय मधुरेश शरण, आदरणीय ध्रुव कुमार, आदरणीय मृणाल आशुतोष,आदरणीया अनिता राकेश उपस्थित थीं।

सबसे आत्मीय पल तो वो था जब आदरणीय सतीशराज पुष्करणा के मधुर और आत्मीय व्यवहार से सभी उनके परिवार के सदस्य बन गए थे। कोई उन्हें बाबा,कोई बाउजी, कोई भैया कह संबोधित कर रहा था। आज उन्होंने बातों ही बातों में अपने कार्य की प्रक्रिया पर थोड़ा प्रकाश डाला। उनकी कार्य शैली को सुन हमें बहुत प्रेरणा मिली। अपने अति व्यस्त जीवन में भी उन्होंने कभी किसी को किसी कार्य के लिए ना नहीं कहा। उन्होंने कहा कि यदि कोई आपकी मदद की गुहार  सुन कह देता है कि अभी बहुत व्यस्त हैं तो समझ लीजिए आपकी बात को वो गम्भीरता से नहीं ले रहा। कम शब्दों में उन्होंने जीवन-दर्शन पर भी प्रकाश डाल दिया। 

इस तरह की छोटी-छोटी अनेक शिक्षाप्रद बातें बताते रहे। सभी उनकी ओजस्वी वाणी को सुन ऐसे भाव विभोर हुए की किसी को समय का ख्याल ही नहीं रहा। सभी उनके साथ अपने हृदय के उदगार को व्यक्त करते चले गए। तभी किसी की नजर घड़ी पर गई और सभी को एहसास हुआ कि आज पितामह पर सिर्फ मेरा अधिकार नहीं, उन्हें और भी कई हमारे जैसे परिवार से मिलना है। फिर विदाई की औपचारिक प्रक्रिया पूरी कर हम उनके साथ होटल के परिसर में आए। सभी तब-तक खड़े रह गए जब-तक उनकी कार विदा न हुई।

इस पूरे कार्यक्रम में लेख्य मंजुषा की अध्यक्ष आदरणीय 'विभा रानी श्रीवास्तव' कैलिफोर्निया से हमारे बीच जुड़ी रही। भारत में दिन के 12 से 3 का समय कैलिफोर्निया की अर्धरात्रि। अर्धरात्रि में भी विभा दीदी लगातार जुड़ी रही जैसे वो हमारे साथ पटना में ही हों। उनके साथ-साथ कुछ और सदस्य थे जो ऑन लाइन जुड़े हुए थे जैसे आदरणीय राजेन्द्र पुरोहित, आदरणीय कल्पना भट्ट, आदरणीय संगीता गोविल, आदरणीय पूनम देवा आदि।

..................

आलेख - प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'
प्राप्ति माध्यम का ईमेल आईडी - lekhyamanjoosha@gmail.com
प्रतिक्रिया हेत इस ब्लॉग का ईमेल अअईडी - editorbejodindia@gmai.com






Wednesday 14 October 2020

आँगन / कवि - ज्योतिवर्द्धन

 कविता 

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



बचपन का वो आँगन अब पुराना हो गया है,

वहाँ रहता न कोई तो अब अनजाना हो गया है।

दरवाज़े का रंग कुछ उखड़ सा गया है अब,

घर की चकाचौंध पर थोड़ा दाग आ चुका है।

हम जाते है हर साल घर बस एक बार,

फिर पूछते है, ये कोना कहाँ से आ गया है?

नौकरी दूर में सही पर घर की महक बुलाती मुझ को

यह सुगंध आज के बच्चों को है क्या पता।

हम अब रुकते कहाँ एक जगह?

 शहर में भी घर है, पर छाँव कहाँ हैं?

बगीचे में बैठने का वो ठाँव कहाँ है?

रात सुकून की थी और नज़ारे थे जवां,

यहाँ तो सितारे भी रिश्वत पर मुस्कुराते हैं ।

आधुनिकता ने मेरे शहर को भी रौंदा है,

जहाँ थे खाली खेत वहां अब इमारतों का बसेरा है।

हमें बचपन में अलग ही आजादी थी

मुझसे पूछो कितने की एक पतंग आती थी।

अब वहां भी सबका घरों में हो गया है बसेरा

 मिलना खुलना अब शहर सा हो गया है।

पहले पड़ोसी दोस्त कहलाते थे

 सुख दुःख में साथ निभाते थे।

आज की पीढ़ी थोड़ी होशियार हो गयी है

अपनी बातें अपने तक ही सीमित रहती है

गांव में भी छा रहा है शहर का नशा

 पड़ोस में कौन आया किसको पता।

वो घास पर पटिया बिछा कर बैठना

अंतराक्षी और नयी पुरानी बातें करना

सबके दुःख सुख में संयोग 

और अतिथि सत्कार को आतुर।

 कहाँ गईं वो पुरानी रस्म

 जिसमें सम्मान बड़ों का गहना था

हम संस्कार उनसे ही सीखते

और तमीज़ को बातों में संजोते थे।

ऋतु अनेक आते हैं पर वो दिन कब आएगा

 जब पूरा परिवार साथ में समय बितायेगा।

...

कवि - ज्योतिवर्द्धन
कवि का ईमेल आईडी - jyotivardhan12@gmail.com
 प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Tuesday 13 October 2020

बेटियाँ / कवि - मनोज कुमार अम्बष्ठ

कविता

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



सबके लिए प्यारी होती हैं बेटियाँ,

लोगों की चाहतों में होती हैं बेटियाँ,

सम्मान के लायक होती हैं बेटियाँ,

सभी घर की लक्ष्मी होती हैं बेटियाँ।


खुशी में है बेटियाँ गम में भी बेटियाँ

हर वक़्त में साथ निभाती है बेटियाँ,

पिता का प्यार हो या माँ की ममता

हर बात बखूबी समझती हैं बेटियाँ।


कई रूप में अपना परिचय देती हैं बेटियाँ

खुद को कई बंधनों में बांधती हैं बेटियाँ

कभी बहन, कभी पत्नी, माँ बनकर

रिश्तों को कुशलता से निभाती हैं बेटियाँ।

....

कवि - मनोज कुमार अम्बष्ठ
छायाचित्र - हेमन्त दास 'हिम' की बेटी का पुराना चित्र
कवि का ईमेल आईडी - mkambastha@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Friday 9 October 2020

बेटी हूँ, घर छूटा है / कवयित्री - कंचन झा

कविता 

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



मुझे बुला ले

फिर से अपनी

बगिया में

क्रंदन करने को


फिर से आंगन

की मिट्टी में

छम-छम कर

पायल बजने को


मेरे बाबा

की गलियों में

फिर से 

धूम मचाना चाहूँ


मन की हिरणी

दौड़ लगाए

बीत गया जो

पाना चाहूँ


कितने आगे

कितनी दूर।

भागा ये

जीवन काफूर


बढ़ते बढ़ते

राहों में

सुख दुख

कई बटोरे मैंने


पर जो खोकर

आई हूँ।

उसे भुला ना

पाई हूँ।


काश जो कोई

जतन कर पाती

फिर उस पल में

लौट मैं जाती।


हीरे, मोती

दुनियाँ, खुशियाँ

सब झूठी लगती हैं 

सखियाँ


मेरा बचपन

छूट गया जो

उसे 

भुला ना पाऊँगी


बेटी हूँ

घर छूटा है

पर

मन से

छूट ना पाऊँगी।

...

कवयित्री - कंचन झा 
कवयित्री का ईमेल आईडी - kjha057@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Tuesday 29 September 2020

कोलकाता डायरी - तीरेती बाजार (चाइना बाजार), कोलकाता / मनीश वर्मा

यात्रा-वृतांत

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )




महानगरों की एक खासियत होती है - स्वीकार्यता! शहर कोलकात्ता, अपवाद नही है . आप किसी भी धर्म,  मजहब,  संप्रदाय और जाति विशेष  के हों, यह शहर दिल खोल कर आपका स्वागत करता है! हां, पर अपने खालिस बंगला संस्कृति को बचाए रखने के लिए कोई मुरव्वत भी नही करता है! यहां पर आप पहले बंगाली हैं , फिर कोई और ! बात चाहे भाषा की हो या फिर संस्कृति की!

कोलकाता डायरी के इस सफर में हमारा अगला पड़ाव है तीरेती  बाजार! पुलिस मुख्यालय, लाल बाग, पोद्दार कोर्ट  के पीछे का , मध्य कोलकात्ता का एरिया!

यहां  रिपब्लिक ऑफ चाइना के प्रथम राष्ट्रपति श्रीमान सुन-यात-सेन के नाम पर एक गली है ! इस गली को इस शहर के लोग चाइना बाजार या ब्रेकफास्ट गली के नाम से जानते हैं. हालांकि, आमतौर पर कोलकाता शहर के भद्र जनों के लिए सुबह थोड़ी देर से होती है! पर, यह मार्केट सुबह-सुबह के नाश्ते और अन्य घरेलू चाइनीज खाद्य पदार्थ के सामानों के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर आप विभिन्न प्रकार के चायनीज व्यंजन का आनंद उठा सकते हैं.

सुबह सुबह  विभिन्न प्रकार के चाइनीज नाश्ते की एक पूरी की पूरी श्रृंखला मौजूद होती है. विभिन्न किस्म के मोमोज से लेकर, तरह-तरह के सॉसेज और  चावल और तिल के बीज से बने मीठे तक. नाॅन वेज और वेजिटेबल आइटम्स की एक पुरी रेंज मौजूद है , शुद्ध और एकदम प्रमाणिक! यह एक ऐसा बाजार है जहां पर आप सिर्फ और सिर्फ चाइनीज लोगों के द्वारा ही बाजार लगा हुआ पाएंगे, पर वे भारतीय हैं. यह देश उनका भी है! यह शहर उनका है!  एक तरफ जहां हम चीन के बहिष्कार की बातें करते हैं. उनके सामानों के बहिष्कार की बातें करते हैं! पर, यहां यह देखना काफी सुखद होता है, इन लोगों के द्वारा अहले सुबह नाश्ते के लिए लगाया गया  बाजार. चीनियों के कोलकाता शहर में आने की शुरुआत 19 वीं शताब्दी के आसपास हुई थी. लगभग 1920 ई. में . कोलकात्ता शहर से कुछ दूरी पर बजबज नामक स्थान पर , वारेन हेस्टिंग्स के समय मे  टोंग अची ने सर्वप्रथम चीनी मिल की स्थापना की थी. आज भी वहां उनका एक पूजा स्थल है! बजबज मे आज भी चीनी समुदाय के लोग वहां आकर अपना नव वर्ष मनाते हैं.

अपने कोलकात्ता प्रवास के दौरान जब मैं यहां पहुंचा तो मैंने सोचा कहीं देर ना हो जाए, इसलिए मैं अहले सुबह 6:00 बजे ही वहां पहुंच गया. हालांकि, मुझे थोड़ी निराशा हुई. कोरोना की वजह से दुकानें पुरी तरह नही खुली थी   सब्जी मंडी सज ही रही थी.  एक तरफ चिकन तो दूसरी ओर विभिन्न किस्म की मछलियां बेची जा रही थी.  एक कोने पर मैंने सुअर को कटते हुए देखा. जो दुकानें लगी हुई थी उन्हीं लोगों मे से कुछ से मैंने बातें भी की. कुछ लोग बाहर से भी ग्रुप में आए हुए थे. लड़कों का एक ग्रुप.  ऐसा लग रहा था कि वह दूर से आए हैं . आजकल के युवाओं की पसंद बुलेट! जी हां , आठ- दस बुलेट बाइक पर सवार लगभग पंद्रह युवाओं की टोली वहां आई हुई थी. वे सभी इस बाजार मे विभिन्न किस्म के नाश्ते का लुत्फ उठाने कहीं दूर से आए हुए थे.  रविवार का दिन था . और जैसा हमे मालूम था , रविवार के दिन इस बाजार मे रौनक रहती है. पर, कोरोना ने यहां भी अपना खौफ बरकरार रखा था. दो प्रमुख दुकानें - Hop Hing और Pau Chong Store जिन्हें Pau Chong Brothers ने शुरू किया था  विभिन्न प्रकार के सॉसेज एवं राइस नूडल्स की दुकान. पर,वो बंद थी. थोड़ी निराशा हुई. पर, अगली मर्तबा आने का एक रास्ता भी रहा.
........

लेखक - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

मजदूर / कवयित्री - चंदना दत्त

 कविता 

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



चेहरे पर धूल 
होठों पर शूल 
ये कर्मयोगी नही 
मजदूर है।

चले सपने लिए 
दिल में हजार 
छोड अपना प्यारा 
घर बार 
ये यात्री नहीँ  
मजदूर है ।

बनायें इमारतें 
बहुमंजिली 
चूता है छप्पर 
खाट की रस्सी ढीली 
ये अभियंता  नही 
मजदूर है ।

परोसता होटलों मे 
ये है छप्पन भोग 
पेट पाले है अपना 
सूखी रोटी दाल का योग 
ये योगी नही 
मजदूर है।

बांटता अखबार 
होकर सायकिल सवार 
लाखों  करोड़ों की लाटरी 
निकालता बेशुमार 
ये जादूगर नही 
मजबूर  है 
...
कवयित्री - चंदना दत्त 
पता - रान्टी, मधुबनी
कवयित्री का ईमेल आईडी - duttchandana01@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Sunday 20 September 2020

दि ब्लेड रनर / लेखिका - कंचन कंठ

प्रेरक कहानी 

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )




"कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है-फिर बीच-बीच में वो किधर जाता है!" "मैंने जान निकाल लेनी है तेरी-" रीमा जोर से अपने भाई सनी पर चीखी,जिसने उसके गाने की कोशिश पर टपककर उसका सत्यानाश कर दिया था।

वो था ही इतना चंचल, मुंहफट और रीमा से तो- उफ्फ ; भगवान बचाए, बिल्कुल छत्तीस का आंकड़ा था! दिन में कितनी बार तो दोनों में ये रस्साकशी चलती ही रहती थी। शैतानियां भाई से छुटती नहीं थीं और बहन से बर्दाश्त नहीं होती थीं।बचपन तो बचपन, अब तो दोनों कॉलेज में आ गए थे, पर ये कुत्ते बिल्ली का खेल चलता ही रहता था।

रीमा बड़ी मेहनती थी और अपने पढ़ाई और ग्रेड्स को लेकर चिंतित रहती थी, वहीं सनी झट से बोल देता ; "अरे भाई, तू मुझे चपरासी रख लेना, हम्म्म नहीं तो शोफर रख लेना अफसर बनकर! जब तू है तो क्या गम है !" फिर जीभ चिढ़ाकर भाग जाता। मम्मी-पापा किसी के समझाने का कोई असर नहीं। सब अक्सर उसके खिलंदड़पन से परेशान थे।

वैसे वो ठहरा स्पोर्ट्स में चैंपियन और उसी बलबूते उसके कई काम भी हो जाते! उसने स्टेट लेवल पर मैराथन में कई सारे गोल्ड लिए थे और अब नैशनल्स के लिए लखनऊ से दिल्ली जा रहा था। उस समय मुख्य अतिथि खेल मंत्री ने तो उसकी भूरि भूरि प्रशंसा की। उसे इस स्पर्धा में भारत का भविष्य बताया। यह स्पर्धा का पहला राउंड ही था, तो खिलाड़ियों को टिकट्स वगैरह खुद कराना था।

नियत समय पर "वैशाली एक्सप्रेस"रवाना हुई, सब बड़ा अच्छा लग रहा था। सनी भी पूरी मौज में था। उसने गाना शुरू किया, तो लोग एकदम से आकर्षित हो गए,आखिर मंझे गले का वरदान जो पाया था, मां सरस्वती से!
अच्छी कद-काठी और इस सुरीले गले से लोगों का तो दिल जीत लिया उसने! सब उसकी प्रशंसा करने लगे, कइयों ने सेल्फी लेनी शुरू कर दी और उसके सुनहरे भविष्य की मंगलकामना भी की।

यूं ही सफर हंसी-मजाक में कटता जा रहा था,अब रात गहराने लगी थी कि पता नहीं कहां से कुछ गुंडे ट्रेन में घुस आए और लगे महिलाओं और लड़कियों के गहने छीनने! साथ-साथ में भद्दी फब्तियां भी कसते जा रहे थे। पलभर में सारा माहौल बदल गया।लोग डर के मारे अपने में सिमट कर रह गए। सनी कभी इस तरह के हादसे से दो-चार नहीं हुआ था, ना उससे वो गंदी बातें बर्दाश्त हो रही थीं।

गुस्से में आकर उसने उन गुंडों को ललकार दिया। आखिर अच्छी-खासी बॉडी थी और गलत को चुपचाप सहना सीखा  था नहीं! वो गुंडे किसी के कानों की बालियां खींच रहे थे तो किसी के चेन। ऐसे ही जब उन्होंने अपने गंदे हाथ एक लड़की की तरफ भद्दे कमेंट करते बढ़ाए तो,सनी ने जोर का धक्का दिया, जिससे वो दूर जाकर गिरा। एकबारगी तो गुंडे अचकचा गए, पर फिर सबने सनी पर एकसाथ धावा बोल दिया।

सनी ने भी जमकर प्रतिरोध किया, लेकिन जिनकी सुरक्षा के लिए उसने ये कदम उठाया, वो सब मारे डर के दुबक गए। कोई भी हाथ सनी की मदद को न आया। काफी देर तक लड़ाई के बाद हथियारों से लैस गुंडों ने उस पर काबू पा ही लिया आखिर! बेचारे बेदम बच्चे को मार-पीट कर भी उनका दिल ना भरा तो उसे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया।

ना जाने रात के कितने बजे थे, जब ट्रेन की तेज सीटी से उसकी आंख खुली। ज्यों  ही उठने की कोशिश की, दर्द की तेज लहर पूरे शरीर को अधमरा कर गई।उसने खुद को दो पटरियों के बीच पाया। कुछ देर तो उसे समझ ही नहीं आया फिर जब उसे पिछली घटना का स्मरण हुआ तो धीरे-धीरे उसे याद आई सारी बातें। उसने अपने पैरों को समेटना चाहा पर जांघों के नीचे कुछ पता ही ना चला, दर्द की एक तेज लहर उसके शरीर को ज्यों चीरती हुई निकल गई। दर्द हर वक्त बढ़ता ही जा रहा था। जब जब कोई ट्रेन गुजरती तो रोशनी में उसने देखा कि पैरों से निरंतर खून बह रहा था और पटरियों पर बिलों में रहने वाले चूहे उसके पैरों को कुतर रहे थे।

वह तो वेदना के अथाह समंदर में डूबता चला जा रहा था। इस नीरव रात्रि में उसका रुदन सुननेवाला कोई नहीं! कभी चिल्लाता, तो कभी रोने लगता! पर ट्रेनों की आवाज में सब बेकार!

जिन लोगों के लिए उसने ये मुसीबत मोल ली थी ; वे ना तो तब उसकी मदद को आए और ना ही किसी ने भी किसी स्टेशन पर कोई रिपोर्टिंग ही की! सनी तो कब तलक उसी अवस्था में पड़ा रहा, उसे कुछ याद नहीं। उसने तो बचने की आशा ही छोड़ दी थी। उसकी पलकें मुंदने लगीं और वह बेहोशी के आलम में यूं कब हो, क्या हो- से बेखबर हो चला। जब आँख खुली तो उसने देखा कि किसी हास्पीटल के बेड पर पड़ा था। उसे होश में आया जान सभी डाक्टर, कंपाउंडर वगैरह लपक कर उसके पास आए । तब तक घटना की सूचना पुलिस को दे दी गई थी तो इंस्पेक्टर ने वहां से भीड़ को हटाया और उससे पुछताछ करने लगे।

उसे जानकर बड़ा आघात लगा, कि जिन लोगों के लिए उसने इतना सब झेला, उनमें से किसी ने भी न उसकी मदद की, ना ही कहीं घटना की रिपोर्ट की! वो तो गांव वाले थे जो पटरी पर से उसके क्षत-विक्षत शरीर को लेकर आए थे। वह फिर से बेहोश हो गया। डाक्टर पुनः उसके उपचार में जुट गए। तीन चार दिनों के अथक प्रयासों के बाद उसे फिर होश आया,तो उसने मम्मी पापा से मिलने की इच्छा व्यक्त की। पता चला वह भी टीवी पर इस घटना को देखकर पहुंचे हुए हैं। ज्यों ही उसने उठने की कोशिश की,तो एक भयानक सच उसके सामने था। इस दुर्घटना में उसके दोनों पैर चले गए!

 हां! हतभाग! जिन पैरों से उसने इतना नाम कमाया, जिनसे ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाना उसका ख्वाब था, अब वो पैर ही ना रहे। दौड़ना तो दूर अब तो खड़े होने के लिए भी सहारा चाहिए। उसके सारे सपने; मम्मी- पापा की सारी आशाएं चकनाचूर हो गई थीं। उसे बार बार बेहोशी के दौरे पड़ रहे थे। जीने की ना तो कोई वजह थी. ना, कोई ख्वाहिश बची थी। मां-बाप भी बेचारे बेटे की ये हालत देखकर अधमरे से हो गए थे।

 रीमा ने जब यह सुना तो झट हाॅस्टल से घर आ गई थी। उससे सबकी ये हालत देखी नहीं जा रही थी। इलाज तन का तो हो रहा था। पर मन साथ ना हो तो वह काफी नहीं था। यहां तो जैसे सब मस्तिष्क से सुन्न हो गए थे; कौन किसको देखे और किसको समझाए! पर जी कड़ा करके उसने स्थिति को संभालने का बीड़ा उठाया। छोटी थी तो क्या; सबसे पहले मम्मी पापा को समझाया कि भैया के संग बुरा हुआ, लेकिन यह तो सोचो कि वो हमारे साथ तो है, नहीं तो क्या करते हम सब! 

 रोज थोड़े -थोड़े बदलाव करती, कभी खाने में नये व्यंजन बनाती, कभी रुम अरेंजमेंट में बदलाव तो कभी दोस्तों को घर पर बुला लेती। पर कुछ भी करके सनी का डिप्रेशन दूर न होता! यूं लगता जैसे कि वो वहां है नहीं; किसी और ही दुनिया में गुम रहता!

सभी सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाओं के दरवाजे खटखटाये लेकिन सभी ने इस दुर्घटना से उबरने का खर्च उठाने से इनकार कर दिया! रीमा को परिवार को वापस खड़ा करने के लिए दिन-रात मेहनत करनी पड़ रही थी; कई मोर्चों पर एक साथ! मां-बाप तो अब लगभग सामान्य हो चुके थे,पर अपने प्यारे दुलारे भाई की हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। पूरा एक साल गुजर गया ;उसने न दिन को दिन समझा ,न रात को रात!अपनी पढ़ाई,अपना कैरियर सब भूल-बिसरा कर केवल और केवल सनी की चिंता में लगी रहती ।

 एक दिन उसने "दीपा कामटकर" का साक्षात्कार देखा तो भाई को लेकर टीवी के आगे बिठा दिया और कहा कि "आप भी अपने आप को साबित कर सकते हो भैया, हम है आपके साथ! अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, आप कोशिश तो करो!"उस दिन सनी फफककर रो दिया और खूब रोया! साल भर का गुबार; दिल के छाले फूट-फूटकर आंखों से बह निकले।उसने अपनी हामी भरी और पक्के मन से इस स्थिति से बाहर आने का निर्णय लिया।

 फिर तो शुरू हुआ विभिन्न इलाकों के डाक्टरों से मिलना, उनकी राय लेना और सुझावों पर अमल करना। रीमा ने जयपुर फुट के बारे में जानकारी प्राप्त की। फिर भाई को कैसे, उसकी आवश्यकता के लिए उसमें किस प्रकार के बदलाव चाहिए, पहनने के बाद उसे क्या कठिनाई हुई और बेहतर कैसे बनाया जाए; सारा समय यही सब सोचते करते बीतता! अपने-आप को तो भुला ही दिया उसने!

 वो चार  सदियों से लंबे साल कैसे गुजरे; भाग दौड़ करते हुए, न तन की सुध ना मन की फ़िक्र; हमेशा भागम-भाग! पर अब अनिश्चितता की एक लंबी काली रात, सुहानी सुबह में तब्दील हो गई थी; जब सनी पैरालंपिक में नेशनल्स के लिए गोल्ड अपनी प्यारी छोटी बहना को समर्पित कर रहा था; सनी "द ब्लेड रनर" जिसका पूरा नाम था संजय दीक्षित!
.......

लेखिका - कंचन कंठ
लेखिका का ईमेल आईडी - kanchank1092@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Tuesday 15 September 2020

हिंदी कैसी हो ? / विजय बाबू

कविता 

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



विविधता से पूर्ण हिंदी हो,

विशालकाय देश की समृद्धि हो।

विरोधाभास से परे हिंदी हो,

विषमताओं के समंजन में वृद्धि हो॥

भाषा-विवाद का समाधान हिंदी हो,

भाषाओं का अभिमान क्षेत्रीय हो।

प्रभावों में बुनियाद हिंदी हो,

अभावों में फ़रियाद क्षेत्रीय हो

विनम्रता की मानक हिंदी हो,

विशिष्टतापूर्ण हो भावपूर्ण हो।

विरोधाभास से परे भाषा हिंदी हो,

विलुप्तता से दूर सामंजस्यपूर्ण हो

पूरे हिंद की भाषा हिंदी हो,

मानक रूप में बूँद बूँद सर्व भाषा हो।

भाषाएँ सर्वत्र सर्वजन की हो,

परिधि में छोटी-बड़ी चाहे क्यों न हो

विनम्रता की भाषा हिंदी हो,

विशुद्ध रूप में भाषायें मन की हो।

विघटनकारी से कोसों दूर हो,

विभिन्नता में एक अभिन्न हिंदी हो॥

क्षेत्रीय के बाद हिंदी हो,

राष्ट्र की बात में भाषा तो हिंदी हो॥

विवशता से आगे हिंदी हो,

विफलताओं की भाषा हिंदी न हो।

विकटता से मीलों वह ओर हो,

विशुद्धरूप में उत्कट तो हिंदी न हो॥

हिंदी हैं हम वतन के वीर हैं,

भाषाएँ भरसक भरपूर हो सर्वत्र हो।

प्रयोग में सम्पूर्ण विश्व की हो,

हिंदी एक भाषा हिन्दोस्ताँ जहाँ की हो॥

...

कवि -  विजय बाबू
कवि का ईमेल आईडी - vijaykumar.scorpio@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com


Friday 4 September 2020

अंधेरा मिट जाएगा और अन्य कविताएँ / कवि - लाला आशुतोष शरण

अंधेरा मिट जाएगा

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



भागमभाग की दुनिया में

ज़िन्दगी ठहरी हुई सी है

दिन को रात मान सोयी हुई सी है।


दिन का सूरज वैसा ही प्रखर है लेकिन

अजीब सा अंधेरे का पसरा है सन्नाटा

जैसे जिंदों की नहीं मुर्दों की बस्ती हो।


डर हावी है इस क़दर, निर्जीव कोविड का

जिंदों ने तब्दील कर ली है ख़ुद को मुर्दों में।


झेली हैं अनेकों महामारियां, अतीत साक्षी है

डर से निकल किया था डटकर मुकाबला

जीवित बचे रह गए थे, जनसंख्या गवाह है।

तब चिकित्सा विज्ञान शैशव में था आज प्रौढ़ है

तब उपचार-ज्ञान अभाव में था आज परिपूर्ण है।


वो सब कुछ है, जो चाहिए हथियार जूझने को

गिरते हैं साहसी ही मैदान-ए-जंग में

बरत हर सावधानी, निकल स्व-कैद से

जगाओ कर्मवीरों सुसुप्त अर्थ-व्यवस्था को।

पटरी पर लाओ दम तोड़ती शिक्षा-व्यवस्था को,

सम्भालो कराहती लघु बाजार की अवस्था को

सहारा दो उन्हें जो रोज़ कुआं खोद पानी पीते हैं।

धीरे-धीरे जिंदगी आएगी पटरी पर

शैनै-शैने अंधेरा सिमट जाएगा

शैने-शैने सवेरा उजाला फैलाएगा।
....

                              कहां है

ख़ुदा तूने दुनिया अजीब गढ़ी है

जूही है गुलाब है ख़ुशबू कहां है

वेद है क़ुरान है इबादत कहां है

पंडित हैं मुल्ला हैं ईमान कहां है

शैतान है हैवान है इंसान कहां है

मीर हैं पीर हैं अमन कहां है

शान है इमरान है आन नहीं है।

( मीर=नेता, धार्मिक आचार्य : पीर=सिद्ध पुरुष,मार्गदर्इमरान=मजबूत आबादी, समृद्धि जनसंख्या )
......


                          अंतिम कहानी
                            
जीवन भर की मशक़्क़त की अंतिम कहानी

चेहरे पे बिखरी सिलवटें, यादों की दिवानगी

ज़िन्दगी से बढ़ती बेरुखी, नज़रों में बेनूरी

अंजामे मुस्तकबिल का ख़ौफ़, मन की बेचारगी

दोस्तों को ढ़ूढ़ती उदास आंखों में वीरानी

एकाकीपन की इंतहा सपनों से भी दुश्मनी।

(मशक़्क़त=मेहनत   : मुस्तकबिल=भविष्य : इंतहा=चरम सीमा)
....

कवि -  डाॅ.‌‌लाला‌‌ आशुतोष कुमार शरण
कवि का ईमेल आईडी -lalaashutoshkumar@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

मायने / मनीश वर्मा

विचार

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



एक वक्त था, जब प्यार मे लोग जीने मरने की कसमें खाते थे! और एक वक्त ऐसा आया, अब प्यार मे लोग मरने - मारने पर उतारू हैं. 

प्यार के मायने बदल गए हैं. वो एक प्यार था, जब लोग यादों के सहारे पूरी जिंदगी काट दिया करते थे और आज!  थोड़ी यादों मे कमी आई तो जिंदगी ले लेते हैं. मानो प्यार, प्यार न होकर कोई वस्तु हो! शायद, युग परिवर्तन का असर इसपर कुछ ज्यादा ही पड़ा है. प्यार में त्याग और समर्पण की जो भावना हुआ करती थी उसका स्थान 'ओबसेशन'(सनक) ने ले लिया है.क्या कहेंगे इसे आप? कहीं न कहीं सामाजिक स्तर पर बड़े बदलाव का द्योतक है यह. हम समझ नही पा रहे हैं. आज कहने को सोशल मीडिया की वजह से हम सभी का सामाजिक दायरा काफी बढ़ गया है पर, वास्तविकता है कि हम अपनों से, अपने समाज से कटते जा रहे हैं. हमारा आभासी  (Virtual) दायरा बढ़ता जा रहा है और वास्तविक दायरा सिकुड़ता जा रहा है. 

भावनात्मक क्षणों को हमलोगों ने गिनती के कुछ शब्दों मे समेट कर रख दिया है. कोई भी मौका हो, हम दो या तीन शब्दों या फिर सामने वाला अगर बहुत करीब का हुआ तो कुछ वाक्यों मे कुछ रटे रटाए, काॅपी पेस्ट शब्दों के सहारे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर हम अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं.

वाकई, समय की कमी हो गई है. शायद, कुछ अप्रत्याशित खगोलीय घटनाओं की वजह से दिन के 24 घंटे में कुछ कमी आ गई है !

भाई, अगर ऐसा कुछ नही हुआ है तो आखिर समय कहां चला गया ? थोड़ा आत्ममंथन करें ! अपने आप को जगह दें. अपने आप को, अपने परिवार को, समाज को जानने की कोशिश करें. अब भी वक्त है संभल जाएं. गुलामों की जिंदगी से बाहर निकलें. गुलामी न कल अच्छी थी न आज अच्छी है. फिर क्यों गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं? क्यों अपने आप को दायरे मे बांध कर अपनी दृष्टि, अपने विज़न का दायरा सीमित कर रहे हैं?
.......

लेखक - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com