Monday 11 May 2020

युवा प्रतिभा: जगदीप सिंह मान / "माँ" और अन्य कविताएँ

कविताएँ

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1. माँ 

माँ तू स्नेह की सूरत है, तू ममता की मूरत है
तू पावन प्रीत निर्झरी है, मातृरूप अवतारी है
ये जग है ये कानन काँटों का
तू फुलवारी है, ओ माँ
माँ तू स्नेह की सूरत है,तू ममता की मूरत है।

मामूली नाम नहीं है माँ तू 
जीवन का सरताज है तू 
स्वर्ग सा बचपन मिला मुझे
इस वैभव की वरदानी है तू ,ओ माँ
माँ तू स्नेह की सूरत है, तू ममता की मूरत है।

मैं जब हंँसता हूंँ तू हंँसती है मांँ
मैं जब रोता हूंँ तू रोती है मांँ
मेरे कष्टों को अपने कष्टों पे वारी है
सब कुछ मेरे पे तू बलिहारी है, ओ माँ
माँ तू स्नेह की सूरत है, तू ममता की मूरत है।

माँ तू केवल प्यार नहीं है
मांँ तू बस श्रृंगार नहीं है
माँ तू जग की वो शक्ति है
जिसका पारावार नहीं है, ओ माँ
माँ तू स्नेह की सूरत है,तू ममता की मूरत है।

मांँ बिना प्यार कहांँ है ?
मांँ बिना सूना सारा जहाँ है
माँ ने कुदरत को रचा या कुदरत ने मात
धन्य वही है जो जान ले, दोनों के जज्बात,ओ मांँ
माँ तू स्नेह की सूरत है,तू ममता की मूरत है।


2 दीप का साहस

अंँधेरों का काम है, अड़चनें लगाना
है 'दीप' का काम जग में, रोशनी फैलाना
परीक्षा लेते हैं तूफान, तिमिर में दीप का
उसका काम है जलना, वजह भी यही होती है
है हवाओं को खबर, दीप की फतह ही होती है

दीप में देवताओं का तेज होता है
अंधकार को चीरने का वेग होता है
दीप के साहस का कोई जवाब नहीं है!

ढलते सूरज ने प्रश्न किया
सारे संसार को सन्न किया
मेरी ‌जगह कौन कार्य करेगा ?

तब एक कोने से दीपशिखा का सहारा लेकर
एक दीप निकलकर आता है
सूरज दादा! आप तो आप हैं,
सृष्टि के प्रारब्ध हैं, सृष्टि के तेज हैं,
जगत की आत्मा, अदिति के आदित्य हैं
मैं आपका स्थान नहीं ले पाऊंगा 
और न कोई ले पाएगा..

पर,
आपकी अनुपस्थिति में
 मैं कार्य करूंँगा
मैं दीप हूँ
रोशनी का मोहताज नहीं
जगमग सबको कर जाता है
तब तक दीपक जलता है
जब तक सूरज नहीं निकलता है।


कवि - गदीप सिंह मान "दीप"
परिचय- हिन्दी शिक्षक, राजकीय बाल वरिष्ठ उच्च माध्यमिक विद्यालय, लाडपुर, दिल्ली
शिक्षा निदेशालय, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, भारत।
ईमेल आईडी- jagdeepmaan1044@gmail.com
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