Monday 27 July 2020

कविवर कैलाश झा किंकर को काव्यांजलि / कवि - सुधीर कुमार प्रोग्रामर

कविता 

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अंगिका के सिहारतै कौने
 कौशिकी के सुधारतै कौने

एक मंचों पे सबके लानी के
बारी बारी पुकारतै कौने।
(अंगिका भाषा में)


शारदे में समाया किंकर


कौन सा गीत तू मैया को सुनाया किंकर
जो अचानक ही शारदे में समाया किंकर।

बीस वर्षों की मित्रता थी सहोदर जैसी 
एक झटके में उस पारस को गमाया किंकर।

मान सम्मान में वो स्वर्ण-रजत देने को
सोलवां साल चुनिन्दों को बुलाया किंकर।

भेज दिल्ली के "ग़ज़ल-कुंभ" का न्योता हमको
आज कैलाश पे धूनी क्यों रमाया किंकर?

कार्यशाला में विधाकार बताते मिलकर
"कौशिकी" घर को अचानक ही रुलाया किंकर।

अंगिका के महासचिव खगड़िया वाले
तू तो संध्या के सपूतों को भुलाया किंकर।
...

कवि - सुधीर कुमार प्रोग्रामर
परिचय - प्रदेश महासचिव,  अखिल भारतीय आगे का साहित्य कला मंच (बिहार)
चलाभाष- 9334922674 / 9128152258




Sunday 26 July 2020

सम्पूर्ण अस्तित्व / कवयित्री - श्रेयसी दत्त

कविता 

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मैं पैदा हुई थीं? या हुआ था?
इस प्रश्न का उत्तर
दाय माँ पिता जी की खुशी-भरी
नज़रो को दे न सकी
अब ये प्रश्न यहां केवल
जीवन या जीवनयापन का नहीं था।
यह प्रश्न अब अस्तित्व का था
मेरे जन्म से जुड़े कलंक का था।

मेरे जन्म पे तालियाँ बजाने कोई घर नहीं  आया।
आता भी कैसे ?
अब ताली बजाने वाला खुद ही उनके घर आ गया था।

तालियों से स्वागत नहीं, तालियों की 'सोहबत' मिली मुझे।
दायरे में सामाजिक रिश्ते नहीं थे मेरे
अब न कोई माँ-पिता ना ही कोई भाई-बहन
समाज ने केवल मुझे छक के जीने को 'छक्के' की ज़िंदगी दी है।

यहाँ रौशनी के लिए 'दीये' नही ट्रैफिक लाइट मिली हमें
यहाँ संगीत तो मिला लेकिन कला नही कमाई के रूप में।

आज समाज के बहुमत से कहना है
समझाना है, जताना है,
कुछ अपनी जुबानी बताना है।
हम सब ने वह वजूद अपनाया जो हमें जन्म से मिला
फर्क सिर्फ इतना है; तुमने उससे अपना गुरूर बड़ाया
तो उसे हमने अपनी ताकत बनाई है।
हाँ, हमने साहस दिखाया है।
पुरुष के शरीर में स्त्री को अपनाया है।
स्त्री के शरीर में पुरुष को सहज बनाया है।

हमने अपने एहसास को अपनाया है,
हमने अपने विभिन्न अस्तित्व को 'सम्पूर्ण' बनाया हैं।
हाँ! हमने यह वजूद स्वयं बनाया हैं।
......
कवयित्री - श्रेयसी दत्ता 
ग्राम - रांटी (मधुबनी)
माँ का ईमेल आईडी - duttachandana01@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Thursday 23 July 2020

विजय मोहन की फुटकर रचनाएँ

 फुटकर रचनाएँ 

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1
# हास्य लघु कहानी#
हमारे पड़ोसी अपनी पत्नी के साथ बालकनी में खड़े थे। उन्होंने हमसे कहा मेरे अकाउंट में 15 सो रुपए आ गया है बैंक जाकर पता लगाना है कहां से आया।
कुछ देर के बाद उनकी पत्नी  बोली यह पैसा मैंने आपके अकाउंट में डाले हैं क्योंकि कामवाली नहीं आ रही है आप काम कर रहे हैं तो आपको तनख्वाह चाहिए ना।
पड़ोसी बोले अरे भाई काम वाली को ३०००/-देती हो तुम मुझे १५००/- क्यो।
उनकी पत्नी का जवाब सुनिए। :-
कामवाली को 3000 देते हैं खाना पीना नहीं देते तुम खाना खाते हो इसलिए 15 सौ मिलेगा मंजूर हो तो बोलो नहीं तो पुलिस को फोन करेंगे की 5 दिन से खांस  रहे हैं तब आपको हॉस्पिटल जाना होगा १५ दिनो के लिए।
पतिदेव बोले 1500 पर मंजूर है ।
"यह नारी शक्ति है" ।

2
एक किराना दुकान में यह पोस्टर लगा हुआ था। एक महिला विनम्र स्वभाव से बोली- भैया आप होम डिलीवरी कराते हो किराना वाला बोला हॉ बहनजी आप लिखा दो हम जल्दी ही भेज देंगे।
बहन जी बोली, हमें सामान नहीं चाहिए हमें होम डिलीवरी चाहिए,
आप आ जाओ या आपका कोई टीम भेज दो चूँकि अभी कोरोना का समय चल रहा है हम कोई नर्सिंग होम में जा नहीं सकते है।
इसलिए भैया तुम आ जाओ या तुम्हारा टीम आ जाए। किराना वाला बहुत मुश्किल में पड़ा और किसी नर्सिंग होम से संपर्क करके उनका टीम बहन जी के घर भेज दिया।
तत्काल उस पोस्टर को हटाया और हिंदी में लिखा की मेरे यहॉ से कच्चा खाद्य पदार्थ आपके घर के द्वार तक पहुंचाया जाएगा।
पोस्टर्स लगाकर शांति से काउंटर पर बैठा।
होम डिलीवरी लिखना बहुत खतरनाक हुआ।

3
Every Covid check
Important message.
रोजाना शाम को 7:00 बजे बोतल खोलो,
खुशबू लो।
अगर आपको खुशबू आ रही है,
मतलब आपकी नाक सही है,
और आप 50% ठीक हैं।
फिर उसको ग्लास में डालो,
और टेस्ट का पता चल रहा है,
मतलब आपकी स्वाद ग्रंथियां सही
काम कर रही है और आप 100%
सुरक्षित है।आप घर पे रहे।

4
#जीवनसाथी#
सच्चे जीवन साथी एक-दूसरे की खुशी के लिए जीते हैं, समर्पण और प्यार के बीच अंह की कोई जगह नहीं होती। सच्चे जीवन साथी एक-दूसरे के आदर करते हैं। मेरे हमसफर दिल्ली से लौटते समय बोली थी अब हम लोग दिल्ली नहीं आएंगे। वह अपना बच्चन निभाई।
पर मैं पोता पोती औलाद के कहने पर उनके साथ दिल्ली चले गए। क्या करता, मैं अकेला हो गया था।
जीवनसाथी के कोने पर:- मैं कौन हूं पापा और अंकल? मैंने तो यह कभी नहीं चाहा था। क्यों मैं अकेला हूं........। मेरे सारे सपने टूट गए?
जिसे मैं ज्यादा चाहा वही मुझे अकेला छोड़ कर....
...चली गई। जैसे बिना पतवार के नैया नदी की धारा में ड्यूटी पर उतरती जा रही है। मैं विजय हर जगह विजय के पताका लहराता है। लेकिन अपनी जिंदगी में आ गये। धन दौलत औलाद नाम सब पा गये । लेकिन अपने मंजिल खो गए। कभी-कभी अपने को बहुत टूटा हुआ और हारा वह महसूस करता हूं। कारण अकेलापन।
जिंदगी यूं ही गुजरने लगी। लोग को समझाने लगे "मेरा घर मेरा ही होता है।" कुछ समय के बाद लोग बोलना छोड़ कर सहयोग करने लगे।
धीरे धीरे कुछ लिखने की ओर मुड़ा और कुछ लिखना  शुरू दिया। और उसमें जैमिनी अकादमी से अटल रत्न से  सम्मानित भी हुआ। लेखनी अच्छी होने पर समाज से प्रशंसा भी मिल रही है। जिससे शहर में अपनत्व होने लगा है।

5
 # शरीफ जेबकतरा#
70 के दशक की बात बता रहा हूं। मैं रांची से बोकारो आ रहे थे मेरे पॉकेट में ₹90 और एक मां के नाम पोस्ट कार्ड उसमें लिखा हुआ था मेरी नौकरी छूट गई है ।अभी पैसा भेजने में असमर्थ हूं। लेकिन इसको पोस्ट नहीं कर रहे थे, हिम्मत नहीं हो रहा था।मेरी मां कैसे घर चलाएगी। मैं दूसरे नौकरी के प्रयास में रांची गए हुए थे। वहां लगभग तय हो गया था जॉइनिंग लेटर आता तब वहां ज्वाइन करते ।
बस में मेरे बगल में एक शरीफ जेबकतरा आ के बैठ गया। रास्ता में किस समय मेरा पॉकेट काट लिया पता नहीं चला। दोनों व्यक्ति बोकारो उतरे और एक चाय की दुकान पर चाय पीने के लिए चाय का आर्डर दिए।
उसके बाद जब हाथ पॉकेट में डालें तो कुछ देर मन सन्न हो गया। और चाय वाले को मना कर दिया। बह व्यक्ति बोला चलो भाई मैं पिला देता हूं। और हम लोग चाय पी कर अपना-अपना रास्ता पकड़ लिये। पॉकेट में ₹90 और एक मां के लिए पत्र था। उस जमाने में ₹90 अभी के 900 के बराबर है। किसी तरह  खाने-पीने का इंतजाम किए यह कहकर कि नौकरी लग गई है पैसा दे दूंगा।
10 दिन के बाद एक मां का पत्र आया तो उसको पढ़ने की इच्छा नहीं थी  यही हम सोचते थे  कि मां पैसा मांगी होगी,लेकिन जब पत्र पढ़ें उसमें लिखा हुआ था की तुम कितना अच्छा बेटा हो ₹1000 भेज दिया है बहुत-बहुत आशीर्वाद। हम चिंतित हो गए हमने ₹1000 तो भेजे नहीं कौन भेज दिया है।अपने मित्रों से पता लगाने लगे किसी नहीं बताया।
पांचवा दिन एक पत्र आया उसमें लिखा हुआ था ₹90 तुम्हारा ₹910 मेरी ओर से तुम्हारी मां को ₹1000 भेजे हैं । तेरी मां मेरी मां  मां मां ही होती है ।इसलिए तुम्हारा जेबकतरा मां को ₹1000 भेजे हैं ।
तुम्हारा जेबकतरा।
आगे पीछे कोई भी पता नहीं था। इसलिए हम उसे शरीफ जेबकतरा नाम दिए आज तक 50 वर्ष हो गए हैं और वह चेहरा दिखाई नहीं पड़ा। यह लेख भुक्तभोगी लिख रहे हैं। अभी भी इंसानों में दिल है। नेकी काम पर विश्वास करते हैं।
..

लेखक - विजयेन्द्र मोहन
लेखक का ईमेल आईडी - mohan.vijayendra@gmail.com
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Monday 20 July 2020

सावन पर कविताएँ - सरोज तिवारी और वेद प्रकाश तिवारी

दो कविताएँ

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कैसा सावन?
कवयित्री - सरोज तिवारी




ना कोई झूला ना हीं  कजरी
बस गिरता बरसात जहाँ।

ना लहराता आँचल और
ना हीं सखियों का साथ जहाँ।

ना बच्चों की छपक-छपाक
ना कागज की नाव जहाँ।

ना थिरकन ना धुमा चौकड़ी
ना मस्ती का भाव जहाँ।

ना छतरी ना छतरीवाला
बिजली चमके यहाँ-वहाँ।

हरा-भरा कैसा यह सावन
सिमटा है संसार जहाँ।

ना शिव भक्तों का रेला
ना कांवरियों की धूम जहाँ।

ना हरहर बमबम गूंजे
ना कोई उत्साह जहाँ।

कैसा भय घुटन यह कैसी
डूब गया संसार जहाँ।

हर्ष-विषाद एक हो गए
सावन का आनंद कहाँ
.....

       
अबकी बार 
वेद प्रकाश तिवारी




अबकी बार सावन में नहीं करेगी 
कोई बिरहन अपने परदेशी का इंतजार 
बागों में झूले, सावन के गीत 
हाथों में मेहंदी, हरी चूड़ियां 
सब हैं उदास, अबकी बार
सावन में अबकी बार
नहीं जायेगा कोई कांवरिया
शिव के धाम
कोरोना के कहर के बीच
बिगड़ा है प्रकृति का ऐसा मिजाज
चाहे आए सावन या जाए आषाढ़
हो रही है लगातार 
बिन मौसम बरसात
कभी रिमझिम तो कभी मुसलाधार
कहीं आकाशीय बिजली का कहर
कहीं भूकंप, कहीं बाढ़
जिंदगी और मौत के बीच
जी रहा है संसार
चेहरा छुपाये बेबस निगाहों से
दूर से ही देख रहे है सब
एक दूसरे को
भय के वातावरण में 
सोचने को अब हैं विवश
मानव जाति ने डाला है 
प्रकृति के शिवत्व और शाश्वत सौंदर्य पर
ऐसा नकारात्मक प्रभाव 
इसलिए हो रहा है
उसके अनिष्टकारी स्वरूप से
हमारा साक्षात्कार ।
अंतिम विकल्प बचा है यही
अब जीना होगा सभी को
प्रकृति के साथ। 
....
रचनाकार - सरोज तिवारी और वेद प्रकाश तिवारी
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Sunday 19 July 2020

ईश्वर से बड़ी माँ / कवि - दीपक कुमार 'निमेश'

कविता 

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दिन निकलते ही..
पहली नजर जो तुझ पर पड़ी माँ

मुरझाये चेहरे पर
बेइंतेहा खुशी बिखर पड़ी माँ

उठकर बिस्तर से
तेरे आगोश़ में आ गया मैं

तेरे छूने भर से
धड़कनें मेरे दिल की चल पड़ी माँ

कभी जो मेरा हो
कुछ नही था ऐसा मेरे पास में

तन्हा राहों में
मेरा सब कुछ तू ही बनकर खड़ी माँ

जब जब भी मैं
वक्त के हाथों हार गया कमजोर बनकर

हिम्मत बनी मेरी
और मेरे लिये तू वक्त से लड़ी माँ

छोड़ रहे सब
मुझे आज मेरे हालात देखकर 'दीपक'

मेरी आँखों से
बह निकली आंसुओं की एक झड़ी माँ

मैं तो मैं भी नही
तुझसे ही शुरू..और तू ही आख़री कड़ी माँ

किसे कहूं ईश्वर
क्योकि.. तू तो ईश्वर से भी बड़ी है माँ।
...

कवि - दीपक कुमार 'निमेश'
पता : ग्राम अबूपुर, मोदीनगर
जिला गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश-201206
व्यवसाय : अध्यापक (स्वतंत्र चित्रकार)


आश़िकी (व्यंग्य) भाग-१ / पथिक आनंद

कविता 

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आज बरबस ही कुछ, याद दिला गया कोई,
पन्ने अतीत के झरोखे से, निकलते गए कई।
छेड़े थे बस दिल के, धूमिल पड़े वो तार कोई,
धूल की परत दर परत, किस्से बयां कर गए कई।।

बात सुहानी बैंगलूरू के सरकते ट्रैफिक की है,
पड़ते ही पहली नजर दिल में बस गई थी वो,
कैसे जम सी गई थी उसपर मेरी पैनी वो नजर ,
जद्दोजहद मन और नयन की आज भी याद है।।

लौटकर अपने शहर भी नजरें वहीं टिकी थी,
सवाल अगणित, दिल तक हिलकोरे लगा रही थी।
साल मेरे फेसबुक के शुरूआती दौर का था वो,
तस्वीर उसकी जो मिली, वही सारे वालपेपर बने मेरे।।

वक़्त बीतता गया आश़िकी गहराती चली गई,
अपनाने की कोशिश उसको जब सार्थक हुई,
जिंदगी किसी और खालीपन की गिरफ्त में थी,
सूकून हर रात उस की गोद में बैठे सपनों की सैर में था।।

वो दौर तब भी था वो आलम आज भी है,
सज सँवर के जब हम साथ निकलते हैं,
निगाहें औरों की जम सी जाती है हमपर,
लौटकर वो भी शायद, गूगल किया करते हैं घर पर।।

ये दास्ताँ है पथिक की पहली आश़िकी की,
खूबसूरत इठलाती मेरे स्टाइलिश मोटरसाइकिल की।
दो पहियों पर सरपट दौड़ती ज़िन्दादिली की,
पेशे खिदमत, और इंतज़ार है आपकी खुलकर हंसी की ।।
....

कवि - पथिक आनंद 
कवि का ईमेल आईडी - eeanand@yahoo.com
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Thursday 16 July 2020

मनु कहिन - आत्महत्या

विमर्श

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 जिंदगी कुदरत की एक बड़ी ही  अनमोल और खूबसूरत देन है। एक खुशनुमा अहसास  है। पर, आप देखें, हमारे देश में   छोटी-छोटी बातों पर जान ली और दी जाती है। ऐसा लगता है इसका कोई मोल ही नही। शायद, इस बात का लोगों को अहसास ही नही कि जिंदगी कितनी अनमोल और खूबसूरत हो सकती है !

जब आप हिंदुस्तान में मौतों का सिलसिला देखते हैं तो आप  पाते हैं की हमारे देश मे छोटी छोटी बातों पर लोगों की जान चली जाती है। सोचने पर मजबूर होना पड़ता है। आखिर ऐसा क्यों है? 

अब देखिए ना, आत्महत्या ! लोग आत्महत्या करते हैं ।वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे। बातें बहुत छोटी होती है। पर लोग अपनी जिंदगी से खेल जाते हैं। अब सोचिए जो जिंदगी कुदरत की खूबसूरत देन और एक खुशनुमा एहसास है,  बड़ी मुश्किल से जिंदगी आपको मिली है। और आप हैं कि इसे लेने पर आमादा हैं। क्या सोचते हैं आप ! आपके चले जाने से आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा। बिल्कुल नहीं ! समस्याएं आपकी वही की वही रह जाएंगी। आपके जाने के बाद आपकी वह समस्या नासूर बनकर आपके परिवार समाज और चाहने वालों को टीसती रहेगी।  लोग आखिर आत्महत्या क्यों कर रहे हैं   ऐसी क्या वजह है आखिर नौकरी नही मिली तो आत्महत्या नौकरी या व्यापार मे परेशानी आई तो आत्महत्या । किसी ने कुछ कह दिया या प्रेम मे बेवफाई मिली या फिर किसी के ताने से परेशान होकर आत्महत्या।  पति-पत्नी मे लड़ाई हो गई तो आत्महत्या कर ली। लगा ली फांसी, लटक गए फंदे से । और नही तो ट्रेन के आगे कूद पड़े । जहर खा लिया । ऐसा लगता है मानो आत्महत्या करना बड़े ही फख्र की बात है। न सोचा न समझा, बस कदम बढ़ा दिया । ऐसा लगता है आत्महत्या करना चूरन की गोली खाने के सामान है जब चाहा ले लिया। 

हमारे देश में आत्महत्या अपराध है। भारतीय कानून की   धारा 309 के तहत आपको अपराधी ठहराया जा सकता है। आप को सजा दी जा सकती है। हालांकि मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 जो जुलाई 2018 में आया इसमें यह कहा गया कि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा  नहीं चलाया जाएगा।  

पुराने समय की यदि हम बात करें । ऐतिहासिक संदर्भों की बात करें तो हम पाएंगे की एथेंस में बिना सरकार की अनुमति के सुसाइड अपराध माना जाता था। मृत शरीर को दफनाने से रोका जा सकता था। उनकी कब्र पर हेडस्टोन या मार्कर  लगाना मना था।

1670 ईस्वी में लुईस 14 वें के समय मे आत्महत्या किए हुए व्यक्ति के मृत शरीर को उसके सिर को नीचे रख खींचते हुए लाकर कूड़े के ढेर पर रख दिया जाता था। उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाती थी। पुराने समय में ईसाई चर्च के वे लोग जो आत्महत्या का प्रयास करते थे उन्हें  समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था , और वे जो मर जाते थे उनको निर्धारित कब्रिस्तान से बाहर दफनाया जाता था। 19वीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन में आत्महत्या के प्रयास को हत्या के प्रयास के बराबर माना जाता था और इसकी सजा फांसी भी हो सकती। अन्य देशों मे भी बड़े कठोर कानून बने हुए थे ।

अभी हमारे देश में हालिया घटना मशहूर सिने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या का है। किस वजह से उन्होंने आत्महत्या की अभी तक इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है। इस बात के भी कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं की इस आत्महत्या के पीछे की आखिर वजह क्या थी ! आखिर क्यों,  एक वैसा इंसान जिसने अपनी फिल्मों मे हमेशा एक मजबूत किरदार को जिया है  चाहे हम उनकी फिल्म 'धोनी' की बात करें या फिर 'छिछोरे'  की ! कहीं से भी  ऐसा नहीं लगा की सुशांत सिंह राजपूत जैसा व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है? वो इंसान ऐसा कर ही नही सकता था। पर, एक बात तो सच है कि सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली। अब वो हमारे बीच नही रहे। एक अच्छा भला करियर था उनका। आने वाले वक्त के सितारे थे वो। 

पर, क्यों किया उन्होंने आत्महत्या ।उन्हें यहां रहकर समस्याओं से संघर्ष करना चाहिए था। अपने लिए अपने साथ के लोगों के लिए एक लड़ाई लड़नी चाहिए थी पर, उन्होंने अपनी जिंदगी खुद से ही ले ली ? आखिर क्यों ? ऐसी परिस्थितियां क्यों बनी। आत्महत्या के पहले के क्षण काफी कशमकश भरे होते हैं। इतना आसान नहीं होता है आत्महत्या करने का निर्णय लेना । आप बहुत मजबूर होते हैं तभी आप इस तरह के कदम उठाते हैं। 

हमें सोचना होगा। पूरे समाज को समग्र रूप से सोचना होगा। क्यों हमारे बीच से कोई व्यक्ति इतना बड़ा कदम उठा लेता है और हम कुछ नहीं कर पाते हैं। यह कहीं ना कहीं  बच्चों के प्रति हमारी परवरिश की कमी बताती है। हमने उन्हें लाड़ प्यार तो बहुत दिया।  पढ़ाई में भी वो अव्वल रहे। अपने-अपने क्षेत्रों में अव्वल रहे हैं पर हम उन्हें यह सिखाने मे कहीं न कहीं  असफल रहे कि उन्हें बताया जाय कि विपरीत परिस्थितियों में कैसे जीना चाहिए। हमने उन्हें "इमोशनली बैलेंस" नहीं बनाया। हम सभी को बैठकर इस बारे मे सोचने की जरूरत है।
.....

लेखक मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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Wednesday 15 July 2020

सिद्धेश्वरनामा- नवोदित कवयित्री सिंधु कुमारी

कवयित्री का साहित्यिक परिचय

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साहित्य के मैदान में कई लोग दांव खेलने आते हैं। कई लोग शौक को पूरा करने के लिए भी आते हैं। और कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपने आसपास के परिवेश से प्रभावित होकर अपने भीतर की सृजनात्मकता को खुली हवा देने का प्रयास करते हैं।

साहित्य जगत में सबका स्वागत होता है। सभी लोगों की सृजनात्मकता का मूल्यांकन भी होता है। किंतु इस दौर में अपनी मंजिल को छूने की दिशा में, एक लंबी दूरी वे लोग ही तय कर पाते हैं, जो मान- सम्मान, पुरस्कार - वैभव और धन- दौलत की भूख को अपने कांख में दबाकर, अपने भीतर की संवेदना को निरंतर जीवित रखते हैं , सोने नहीं देतेऔर खुद को घेरे से बाहर ढकेल कर, जीवन और समाज के बीच झोंक देते हैं।

सृजन की लंबी यात्रा की शुरुआत अक्सर साहित्य की काव्य विधा से होती है। अच्छे से अच्छे कथाकार, उपन्यासकार ने भी स्वीकारा है कि उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत कविता से की थी। मगर, आगे कुछ दूरी तय करने के बाद उन्होंने खुद को  कहानी लघुकथा विधा के लिए समर्पित कर दिया। इसलिए रचनाकारों को कवि, कहानीकार, उपन्यासकार के संबोधन से नवाजे जाने में थोड़ा संकोच करता हूं मैं। एक साहित्यकार की श्रेणी में भी हम उन्हें ही रख सकते हैं जो निरंतर साहित्य की तमाम विधाओं में लिखने सीखने की प्रक्रिया में गतिशील होते हैं और साहित्य की किसी खास विधा में विशेष रूप से रचनाकर्म करते हैं।

नवोदित लेखिका सिंधु कुमारी ने कितने दिनों से साहित्य के रास्ते पर अपना पांव आजमा रही हैं यह तो मैं नहीं जानता। किंतु उनकी रचनाधर्मिता और कविता के प्रति अप्रतिम लगाव इस बात का संकेत जरूर दे जाता है कि यदि सिंधु कुमारी अपनी अभिरुचि को साहित्य साधना में तब्दील कर देंगी और सृजनात्मकता की दिशा में सतत गतिशील रहेंगी तब वह एक न एक दिन प्रसिद्ध कवयित्री जरुर बन सकती हैं।

कविता का सृजन और कविता का गायन, दोनों दो स्तरों पर परिभाषित होने के बावजूद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं यदि आप सिक्के के दोनों पहलू में कामयाब हैं, तो आपको पत्र-पत्रिकाओं में स्थापित होने के साथ-साथ अतिरिक्त मंचीय कवि होने से भला कौन रोक सकता है?

नवोदित कवयित्री सिंधु कुमारी सिक्के के दो पहलू में अपनी पहचान बनाने की दिशा में सक्षम दिख रही हैं-
"झिलमिल - झिलमिल हरिया पतिया /
 सावन की याद आई!
रिमझिम- रिमझिम बरसे बुंदिया
 साजन की याद आई।
और -
""जादू- सा लगता है
प्राकृतिक रूप!
अद्भुत- अद्भुत
विस्तृत स्वरूप!"
प्रकृति और जीवन के बीच का सौंदर्यबोध और गीत की रागात्मक प्रवृत्ति सिंधु कुमारी को गीत की मौलिक चेतना से  जोड़ती है।" 
.....

आलेख - सिद्धेश्वर 
लेखक का ईमेल आईडी - sidheshwarpoet.art@gmail.com
लेखक का चलभाष- 9234760365

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Sunday 12 July 2020

कुछ मुक्तक और परिचय / कवि - विश्वम्भर दयाल तिवारी

मुक्तक

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परिजनों से नहीं
अपनों से अधिक 
परेशान होता है ।
बुढ़ापा एक दिन
पायदान होता है ।

अपने दर्द की दवा
ढूँढ़ता है घर-बाहर
सब पर अधिक रखे
पर खुद पर कम ध्यान
एहसास में अपनेपन के
मान होता है ।

यौवन भूलकर
बचपन को ही
अब याद रखता है ।
वरिष्ठ नागरिक
होकर शहर में तो
गाँव याद करता है ।

मौसम बदलने से
कुछ बदलना
तो चाहिए ही
बरसात है तो
कागज की नाव
पानी में बहाने की
चाह करता है ।

व्याधि-विरोध-आतंक
कब रुकने वाले हैं ?
इलाज-सुरक्षा-हल 
हों सबके लिए यहाँ 
कि घर बचाने की नीयत
बुढ़ापा साथ रखता है ।
....

2. मेरा परिचय

कृषक पिता का पुत्र हूँ
मातृ गुरु का शिष्य ।
अभियांत्रिकी शिक्षा मेरी
लिखती रही भविष्य ।।

सेवानिवृत्ति अधिवर्षता
पद अभियंता मान ।
देव-तुल्य 'भाभा' मेरे
शोध-केन्द्र-अणु शान ।।

संग पत्नी की प्रेरणा
श्रीहरि कृपा के साथ ।
माँ वाणी की साधना
कागज कलम है हाथ ।।

कवि - विश्वम्भर दयाल तिवारी 
कवि का ईमेल आईडी - tewarivd@gmail.com
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Tuesday 7 July 2020

कोरोना चुटकुले और कविता / विजयेन्द्र मोहन

चुटकुले 

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1.

आप इतनाबुजुर्ग हैं, इसके बाद भी आपने घर से चोरों को कैसे भगाया?
मैं ने हंसते हुए कहा-
ऐसा हुआ कि मैं नीचे हॉल में सोया था। चोर खिड़की से घर में घुसे। उन्होंने मुझे लात मारकर उठाया।
मैं उठा, लेकिन हड़बड़ाया नहीं।
चोरों ने पूछा - "माल कहां रखा है? तिजोरी किधर है? घर के बाकी मेंबर कहां सोएं हैं?"
मैंने बिना देर किए तुरंत कहा - "सभी पैसा, जेवर लेकर खेत में बने फॉर्म हाउस में रहने गए हैं बेटा।
मैं घर में अकेला हूं।"
"...और हां, जाते समय साबुन से हाथ धोकर जाना। कोरोना होने के कारण मुझे यहां क्वारंटाइन किया गया है।"
........

2.

अभी अभी सब्जी ले कर आया हूँ।  कमाल हो गया।
आज बाजार में एक महिला ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा : "अजी सुनते हो, भिंडी ले लूं ? बना लोगे ?"*
जब मैंने चेहरे से मास्क हटाया
तो वो शर्माकर बोली -
*'हाई दय्या हमारे वो किधर गए? उन्होंने भी ऐसा वाला मास्क ही पहन रखा था !!
इसीलिए कहता हूं -
"खतरा अभी टला नही है, घर पर रहें, सुरक्षित रहें...।"
.....

3.

नाक और सिर की  तकरार
सदियो से दोनो मे तगड़ा  मनमुटाव चल रहा था।
नाक कहती है:- इंसान को मुझ से इज्ज़त मिलती है या जाती है। तो मेरे पास पगडी क्यो नहीं ?
नाक का कहना है:- सभी मुहाबरे मे मेरा ही जि्क्र होता है। जैसे:- नाक कटना।
नाक के नीचे होना।
नाको चने चवाना।
नाक के बाल खिचना वगैरह-वगैरह। जब मुझ से इंसान की इज्जत बनती है या बिगड़ती है तो मेरे ऊपर पगड़ी क्यों नहीं?
ईश्वर ने कहा - "नाकूजी, तुम्हारा भी समय आएगा।  चिंता करने की कोई बात नहीं है। समय आएगा तो पूरी दुनिया के इंसान तुम्हें ढकेगी वह दिन आ गया।
ईश्वर की महिमा और उनका वरदान आज के युग में नाक के टोपी सर्वोपरि है। पूरे संसार के लोग समझ गए हैं इसके बिना खतरे में जाना है। अब देखो तरह-तरह के आवरण (मास्क) तेरे है। पगड़ी टोपी छोड़कर नाक बचाने को केवल नाक ढके घूम रहा इंसान।
.........

4. आंखों का खेल

आंखें बंद करके जो प्रेम करें वह प्रेमिका है।
आंखें खोल कर जो प्रेम करें वो दोस्त है।
आंखें दिखा कर जो प्रेम करें पत्नी है।
आंख में आंख मिलाकर जो प्रेम करें वो भाई बहन है।
अपनी आंखें बंद होने तक जो प्रेम करे वो मां है।
परंतु आंखों में प्रेम ना जताते वे जो प्रेम करें वो पिता है।
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5. विकट अवस्था (कविता) 

यारों, किशोर वर्ष से विकट अवस्था, देख न हँसना।
परवाह नहीं की जीवन पथ पर कितने धक्के खाए।
फिर भी जीरो से सौ तक,
चढ़ने की लालसा  नहीं छोड़े।
यह कठिन श्रम साध्य रहा,
गिरना, उठना फिर चल देना
यह नियति बनी,
इसे स्वीकार किया।

एक समय आया,
जोश देने वाली संगिनी आई,
तब,सपनों में पंख लगने का
अनुभव होने लगा।
परवाह नहीं की जीवनपथ पर कितने धक्के खाए।

जीवन सदा गतिमान रखा,
स्थिर कभी नहीं हुआ जीवन 
सरल, सीधा, सपाट, सु खद 
कभी नहीं रहता 
फिर भ ,
जीवन गतिमान रहा,
स्थिर नहीं होने दिया।

वृद्धावस्था में संगिनी छूट जाने पे दुख के चादर ओढ़ हुए,
जीवन को गतिमान रखा 
सधे कदम बढ़ाए।
सार्थक, प्रगति, उन्नति देख
मेरे मित्रगण उत्साह भरते रहे,
वृद्धावस्था में भी जीवन जीने की कला को पहचाने।
परवाह नहीं किए जीवन,पथ पर कितने धक्के खाए।।
.......

लेखक /कवि - विजयेंद्र मोहन
रचनाकार का ईमेल आईडी - mohan.vijayendra@gmail.com
रचनाकार का पता - जे ई - 6, वास्तु विहार चिराचास बोकारो JE-6 Rd-2 Vastu-Vihar,Chirachas. BOKARO
पिन- 827015. ( झारखण्ड)
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Friday 3 July 2020

मनु कहिन - काश !

चिंतन 

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जब आप अपनी उम्र के पचासवें वर्ष के आसपास होते हैं, तब आप थोड़ा सा वक्त निकाल पाते हैं , अपनी व्यस्तम जिंदगी से अपने आप के लिए। हालांकि , व्यस्तता की प्रकृति थोड़ी बदलती है । आप मुक्त नही हो पाते हैं।  बच्चे अपनी पढ़ाई या करियर के सिलसिले मे व्यस्त होते हैं। पत्नी बच्चों और आपके बीच अपने आप को व्यस्त रखने की कोशिश करती हैं। एक सामंजस्य सा बिठाने की कोशिश करती है वो।  तब आप अपने आप को  देख पाते हैं या यूं कहें देखने की कोशिश करते हैं । कितना देख पाते हैं वो तो भगवान ही जानता है। 

तब आप कोशिश करते हैं, अपनी जिंदगी की अब तक की फिल्म को , स्लाइड्स को रिवाइंड कर फिर से देखने की। जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती जाती है, आपकी जिंदगी की परतें,  परत दर परत खुलती जाती हैं।

आप सोचने लगते हैं ! काश ! इस जगह पर ऐसा होता । काश! उस जगह पर वैसा होता! काश! मैं अपनी जिंदगी को पुनः एक शुरुआत दे पाता । आप बस सोचते ही जाते हैं। फिल्म आगे बढ़ती जाती है। बहुत सारे क्षण गुजरते जाते हैं। कुछ क्षणों को आप नही देखना चाहते हैं। कुछ क्षणों को आप रोकने की कोशिश करते हैं। उन्हें आप बार बार देखना चाहते हैं! आप चाहते हैं ऐसा हमेशा होता रहे। कुछ पलों को आप सुधारने की कोशिश करना चाहते हैं।आप तमाम अच्छे बुरे पलों के साथ वहीं पहुंच गए हैं। आपका ब्लड प्रेशर अब आपके काबू मे नही है। आप परेशान हैं। 

काश! हम एक फिल्म की कहानी की तरह अपनी जिंदगी की कहानी को 'रिवाइंड' करते हुए एक अच्छे एडिटर की तरह कुछ एडिट कर पाते।उ से पुनः एक नया कलेवर दे पाते। एक नई शुरुआत कर पाते। पर, यह कैसे संभव है! यही तो आपका और हमारा प्रारब्ध है। हम और आप अपने प्रारब्ध को कैसे बदल सकते हैं। बस ,अगर हम और आप कुछ कर सकते हैं तो तो अपनी जिंदगी को पूरी तरह 'पोजिटिविटी' के साथ जिएं।

जिंदगी बड़ी ही अनमोल होती है। बहुत कुछ सिखा जाती है।
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लेखक मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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