Monday 30 September 2019

दुर्गा पूजा के शुभ अवसर पर भक्ति भावांजलि

 ऊँ श्री दुर्गायै नमः!

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)



    1."दोहा छन्द" - बाबा बैद्यनाथ झा


मातु    शैलपुत्री   प्रथम, आयी   मेरे   द्वार।
दुख विपदा का हरण कर, करती जो उद्धार।।

हाथी   पर  माँ  आ  रही, वर्षा का  है  योग।
माता  का  पूजन  करें, पाएँ  इच्छित  भोग।।

ब्रह्मचारिणी   नाम से, माता  हैं  विख्यात।
दुख हरती माँ पुत्र के, ज्ञात सहित अज्ञात।।

इनके  पूजन  से सतत, होता है कल्याण।
भक्त रहे जब कष्ट में, मिल जाता है त्राण।।

चन्द्रघण्टिका   माँ   मुझे, दो   ऐसा  वरदान।
स्वस्थ रहूँ फिर कर सकूँ, सदा तुम्हारा ध्यान।।

भक्तों   के   हर   कष्ट  को, तू  कर देती दूर। 
मैं हूँ तेरी शरण में, है श्रद्धा भरपूर ।।   

हे   कूष्माण्डा   माँ  जपूं, प्रतिपल तेरा  नाम।
होती  जब   तेरी  कृपा,  बनते  बिगड़े  काम।।

मैं  करता  लेखन-क्रिया,  यद्यपि हूँ मतिमन्द।
अब मुझको सद्ज्ञान दो, लिखूँ श्रेष्ठतम छन्द।।

माता तुम तो स्कन्द की, रखती सबका ध्यान।
जो  भी   तुमको  पूजता,  पा  लेता  वरदान।।

विस्मृत  कर अपराध को, करो क्षमा का दान।
होता   पुत्र  कुपुत्र  भी, माता   एक   समान।
               
हे  माता  कात्यायनी,  मैं  हूँ  बिल्कुल  अज्ञ।
छन्द सिखा  दो  अब मुझे, बन जाऊँ मैं प्रज्ञ।।

बालक एक अबोध पर, माँ अब करो विचार।
युक्ति  लगा  दो  हो  सके,  मेरा  भी  उद्धार।।

कालरात्रि   के  नाम  से,  दुष्ट   रहे  भयभीत।
पर माता निज भक्त से, करती अतिशय प्रीत।।

दनुज वृत्ति  का  माँ  सदा,  कर  देती संहार।
जो   माँ  को    है  पूजता,  पा  लेता  उद्धार

महागौरि  अब  दे  मुझे, तू   अक्षय  वरदान।
रहूँ  स्वस्थ सीखूं सदा, अनुपम  छन्द विधान।।

तेरे सुमिरन मात्र से, सबको मिलता त्राण।
 इच्छित वर  देकर  करो, माँ  मेरा  कल्याण ।। 
                   
दुर्गा  पूजा  हो  गयी, मत  कह बंधु  समाप्त।
यह देवी माँ भगवती, कण-कण में हैं व्याप्त।।
                       
श्रेष्ठ पर्व 'नवरात्रि' अब, पूर्ण  हुआ  इस वर्ष।
देते  रहना  माँ  सदा,   भक्तों को अति हर्ष।।
                       
हुआ विसर्जन माँ गयी,  लगती है वह क्रूर।
है साहस तो कर दिखा,  मुझे हृदय से दूर? 
.......


2.  "मैया शेरा वाली" - अलका पाण्डेय

मंदिर तेरा सजाया माँ शेरा वाली
आ कर विराजो माँ पहाणा वाली
तेरा पूजन करे माँ खप्परवाली
हलवे का भोग लगाये माँ लाटा वाली
तेरे दर्शन को लोग आये मेहरावाली
मैया तेरे रूप अनेक, नई  नई छबि दिखाये 
सोलह करें श्रृंगार नौ दिन में नौ रूप बनाये 
कई नामों से पहचान कराये
प्रथम दिन घट स्थापना, शैलपुत्री कहलाये 
दूजे दिन ब्रह्मचारिणी मैया, तेरी जय जय गाये
तीजे दिन मैया, बहुत लुभाती हो चंद्रघंटा बन छाती हो
चौथ दिन मैया कुष्माण्डा नाम धराया, बच्चो को बहुत भाया
पाँचवा दिन है स्कंदमाता तुझ को जो ध्याता भव पार उतर जाता
छठी कात्यायिनी विख्याता बैजनाथ है धाम तुम्हारा 

मोह माया से छुड़ाने वाली सब पर कृपा बरसानेवाली 
7वें दिन कालरात्रि का कहलाये मन से करे जगराता काल पर विजय पाये 
अष्टमी है महागौरी मैया कन्या को पूजे जो  सारी मुरादें पूरी हों
नौ दिन का करे जो व्रत सिद्धिदात्री मैया हो जाये प्रसन्न
संकट सारे दूर करे , खुशीयो से दामन भर जाये 
जगराता शेरा वाली का 
जयकारा खप्परवाली का
शैलपुत्री, मेहरावाली, लाटावाली का
जयकारा पहाणावाली का 
ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा स्कंदमाता का
जयकारा कात्यायनी, कालरात्रि
सिद्धिदात्री, शेरा वाली का
जय माता की बोलो
 अपने पाप धो लो
 घर में खुशहाली पाओ
संकट को दूर भगाओ
जयकारा जोर से लगाओ मैया को अपने घर बुलाओ
गरबा कर मैया को रिझाओ
घर के भंडारे भर लो 
बोलो जय माता की.
.....
कवि, कवयित्री - बाबा बैद्यनाथ झा, अलका पाण्डेय
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Thursday 26 September 2019

आँचल और घूँघट / युवा कवि - विजय कुमार

आँचल - कल आज और कल

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)



आँचल के साये में मन जब हर्षित होता
उसके कोर से नम हर नयन नोर पोंछता
कंकर पत्थर जेठ की तपन व पूस की ठंडक
सहारा हर पल जब माँ का ही आँचल बनता।

आँचल शिकन को दूर कर एक सुकून देने को
आँचल नारी शक्ति का, नारी सम्मान  के लिए
सभ्यता की मझधार में, संस्कृति के मान में
निज प्रतिष्ठा का अरमान जब आँचल बनता 

आँचल जो साये में नन्हे पैरों की थकन
कम करता, हमारे बचपनों को निभाता
बाहें फैलाता आँचल आज भी यदा-कदा
माँ का वो आँचल, आज भी क्या खूब भाता
.....

घूँघट - एक नारी शक्ति

ज़िंदगी के पहिये भी धुरी पर
नारी की बदौलत सफर हो पूरी मगर
घूँघट एक पहचान नारी की
देना है सदा सम्मान हर डगर।

आँगन से दलान की दूरी पर
ग़ाँव की ज़िन्दगी चली जब
घूँघट एक अरमान नारी का
रहा है सम्मान हमरा भी तब 

ग़ाँव से शहर में पलायन पर
बदस्तूर है आज भी वो स्तम्भ
घूँघट मजबूत गहना नारी का
जाये कुछ भी रूप चाहे बदल।

कल से आज और फिर कल
भारतीय नारी का उन्मुक्त धर
घूँघट एक शक्ति हर नारी की
रहेगा मान सदा बढ़े जो क़दम
.......


कवि - विजय कुमार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Wednesday 25 September 2019

मनु कहिन (11) - साहब और उनकी साहबी (व्यंग्य)

अभिवादन स्वीकार करने का ग़ज़ब अंदाज

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)



साहब! बड़े साहब! कभी साहब का अभिवादन करें। उन्हें प्रणाम करें। आप पाएंगे , कुछ तो अलग बात है इनमें, तभी तो साहब हैं! अभिवादन स्वीकार करने का अंदाज बड़ा ही निराला। अगर, अभिवादन करते वक्त आपने उनसे नज़रें न मिलाई तो कसम से आपको पता ही नही चलेगा कि साहब ने आपका अभिवादन स्वीकार किया या नही। आपको यहां भी तत्पर रहना होगा। 

आप क्या चाहते हैं साहब? 
आपके अभिवादन/ प्रणाम का जवाब उसी तरह से दें? 
क्या बात करते हैं आप ? आपने उन्हें कोई  सेल्यूट थोड़े ही न किया है कि वो बाध्य हैं आपको सेल्यूट करने के लिए। जरा समय, ओहदा सभी का ख्याल करें। आखिर यही दो चार बातें ही तो उन्हें आम आदमी से अलग बनाती है! 

जानिए, इस बात पर गौर फरमाइये। साहब जब साहब होता है न, तो उसका एक दायरा होता है।  साहब का सब कुछ एक दायरे में ही होता है। साहब की चाल की नफ़ासत और नज़ाकत उसी दायरे की देन हैं।

जनाब, साहब और उनकी साहबी तो गंगा- यमुना- हुगली तमाम तहज़ीबों  के साथ ही साथ चलती है। कोई फर्क नही पड़ता है। जब तक हम हैं, साहब और उनकी साहबी  रहेंगी। हम दोनों एक दूसरे के पूरक जो ठहरे। अगर, ऐसा नही तो,  "अधिकारियों के लिए" नही होता! "कर्मचारियों के लिए" नही होता!

वैसे, सारे बाबुओं की वेतन वृद्धि तो साल में दो बार ही होती है।
अब तो आपको कोई संशय नही होना चाहिए, अपने साहब और उनकी साहबी के प्रति।
.......

आलेख - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Sunday 15 September 2019

हिंदी को गले लगाये / कवयित्री - अलका पाण्डेय

हिंदी में सागर समाया

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)



हिंदी में सागर समाया
हिंदी है सम्पर्क की भाषा
हिंदी में है अपना पन समाया

हिंदी में पिता की छाँव है पाई
हिंदी में माँ की ममता समाई
हिंदी ने विश्व में जगह बनाई

हिंदी है जनमानस की भाषा
मत अपनाओ विदेशी भाषा
 भावप्रधान यह न्यारी भाषा

हिंदी का विदेशो में मान बढ़ाओ
हिंदी को प्यार से गले लगाओ
हिंदी बोलने में तुम मत शर्माओ

हिंदी सिखाये समरसता का भाव
हिंदी देती है संस्कारों की छांव
इसमें भरे है परोपकार का भाव

हिंदी का सब मिलकर मान कराओ
हिंदी का प्रसार प्रचार कराओं
हिंद का तिरंगा सदा ऊँचा उठाओ.
.....
कवयित्री - अलका पाण्डेय 
कवयित्री का ईमेल -  alkapandey74@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल कीजिए - editorbejodindia@yahoo.com

मनु कहिन (10) - हिन्दी और हम

कम से कम प्राथमिक स्तर पर तो यह अनिवार्य होनी चाहिए

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)


आजकल  हम सभी हिंदी पखवाड़ा के साथ ही साथ हिन्दी दिवस मना रहे हैं।  लगभग हर सरकारी महकमों मे आप पाएंगे कि सितंबर माह मे कार्यालयों मे हिंदी दिवस एवं पखवाड़ा मनाए जाने की धूम मची रहती है। उस दौरान ऐसा लगता है मानो अब से, कार्यालयों मे सारा काम हिंदी मे ही होगा। अंग्रेजी तो बस, एक दो दिन की ही मेहमान है। अबकी बार तो मानो इसकी विदाई तय है। सभी बड़े जोश - खरोश के साथ हिन्दी को हमेशा के लिए स्थापित करने के लिए अपना पूरा जोर लगाए हुए हैं (वैसे बहुत पहले से ही हिन्दी हमारी राजभाषा है) । तमाम बड़े अधिकारी हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं विकास पर व्याख्यान देते हुए मिल जायेंगे। लगभग प्रत्येक सरकारी महकमों मे इस अवसर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है। पुरस्कार बांटे जाते हैं।

यहां पर प्रसंगवश, एक वाक्या का जिक्र करना चाहूंगा। उस वक्त मेरी पोस्टिंग अहमदाबाद मे थी। सितंबर का महीना चल रहा था। बड़े जोर शोर से हिन्दी दिवस एवं पखवाड़ा मनाया जा रहा था। अपने अन्य विभागीय साथियों के साथ मैंने भी हिन्दी लेख, लेखन प्रतियोगिता मे भाग लिया था। अब उस दिन देखिए क्या हुआ? प्रतियोगिता मे जाने से पहले किसी कारणवश जब मैं हिन्दी अधिकारी के कमरे मे गया तो मैंने क्या देखा! उनकी मेज पर शीशे के नीचे,   अंग्रेजी मे एक क़ोटेशन लिखा था। मेरे मन मे पता नही क्या आया, मैंने उसे याद कर लिया। प्रतियोगिता मे मैंने उसी क़ोटेशन के साथ अपनी शुरुआत की। लिखने को तो मैं लिख गया पर बाद में मुझे डर भी लगा । लगा, मुझे नही लिखना चाहिए था। पर, अब क्या होना था। पर, जब परिणाम आया तो वो मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य से कम नही था। मुझे पूरे प्रभार मे द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ था। अब आपके मन मे एक स्वाभाविक प्रश्न आ रहा होगा कि मैंने इस वाकये का जिक्र क्यों किया?

दो तीन वजहों की वजह से। देखिए मुझे किसी भी भाषा से परहेज़ नही है और ना ही उसे जानने और सिखने से कोई गुरेज। मेरा तो बस इतना मानना है कि आप जहां भी रहें, जिस पद पर रहें, एक "रोल मॉडल" की भूमिका मे रहें। आप अपने दायित्व एवं भूमिका को पहचानें। 

अब इस बात को हमलोग समझें, अपने नजरिए को बदलें। बच्चों को बखूबी अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों मे पढ़ाएं। पर, उन्हें हिन्दी भाषा से जोड़ें तभी वो भारत की संस्कृति से अपना जुड़ाव महसूस करेंगे। भारतवर्ष मे जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है,  बहुतों की मातृभाषा है , जहां बहुसंख्यक लोगों के द्वारा हिन्दी बोली जाती हो, वहां हमें हिंदी दिवस एवं पखवाड़ा मनाए जाने की आवश्कता क्यों?  

कम से कम प्राथमिक स्तर पर तो यह अनिवार्य होनी चाहिए। भाषाई एकरूपता तो किसी भी देश के सर्वांगीण एवं सांस्कृतिक विकास के लिए बहुत ही जरूरी है। विश्व मे शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां की राजभाषा को हमारी राजभाषा की तरह अपनी पहचान बनाए रखने के लिए मशक्कत करनी पड़ती हो। सफ़र मे कहीं आप हिन्दी उपन्यास या साहित्य पढ़ रहे हों और आपके सामने बैठा हुआ व्यक्ति अंग्रेजी साहित्य या उपन्यास कुछ भी पढ़ रहा हो, लोगों का उसके प्रति भाव, उनका नजरिया बहुत कुछ बयां कर देता है। बताने की जरूरत नही है।जरूरत है इस मानसिकता एवं नजरिए को बदलने की। जरूरत ही नही पड़ेगी आपको पखवाड़ा और दिवस मनाने की। भाई, राजभाषा है यह। मेरी, हमारी, हम सबकी, मातृभाषा है। सम्मान की हकदार तो है ही। पूरे देश को एक सूत्र मे पिरोती है ये। गर्व से, आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान के साथ इस्तेमाल करें।
......

आलेख - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल करें - editorbejodindia@yahoo.com

मुक्तकों में हिंदी / कवयित्री - मंजु गुप्ता

भारतवासी की भाषा हिंदी

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)



  गर्व से हिंदी में सिखाती  हूँ
  शान से हिंदी में पढ़ाती हूँ 
आजीविका   भी हिंदी से जुड़ी 
हिंदी को ओढ़ती - बिछाती  हूँ 

 सुरवाणी से  जन्मी है  हिंदी 
 है यह देश के भाल की बिंदी 
राष्ट्र संघ ने  भी महिमा जानी 
भारतवासी की भाषा हिंदी 

 है हिन्दी युगों  से महारानी 
 जन - मन  - गण के भावों की रानी 
वीणावादिनी की वंदना बन के   
गूँजे है  कवि-उर में पटरानी 

 यहाँ हर भाषा का  है  सम्मान 
विविधताओं से देश  है महान 
 विभिन्न  भाषा  ओ ' बोली  इसकी  
  बना हिंदी से  है हिन्दुस्तान 

  अश्क - मुस्कान की भाषा हिन्दी 
जोड़े   है  सब प्रान्तों को   हिंदी 
भारत  की राजभाषा बनी पर 
 अभी न बनी राष्ट्र  भाषा हिंदी 

रुढ़ियाँ  तोड़े कबीर की हिन्दी 
तुलसी के मर्यादा की   हिंदी 
जिसको लिख -गाकर मीरा   नाची 
 है सूर  के गोपाल   की  हिंदी 

हिंदी विश्वबन्धुत्व की रोली 
  सीधी, सहज, सरल, भाषा  बोली 
  वैज्ञानिक कसौटी पर है  खरी  
वर्णमाला, लिपि, व्याकरण, बोली 

हिन्दी हिन्दुस्तान की  पहचान  
  है वैश्विक बाजारों  की  जान  
विज्ञापनों से  आगे निकल रही   
है भारतीय  संस्कृति   की  शान 

 है स्वतंत्रता  की संस्कृति ये 
चित्रपटों  की महानायिका  ये 
 संचार क्रान्ति के  गूगल युग में 
संप्रेषण  - वार्ता  की भाषा     ये 

१०
न मनाएं हर साल हिंदी दिवस
हर दिवस  को माने  हिंदी दिवस 
पूरा  करें गांधी का संकल्प 
तभी होगा सार्थक हिंदी दिवस  

११
कर ले   प्रतिज्ञा देशवासी आज 
करें हम  हिंदी में  सारे काज 
 डिजिटल युग में यह  फल-फूल रही 
जाने  हम इसकी शक्ति  का राज.
.....

नाम - मंजु गुप्ता 
पता - वाशी, नवी मुंबई . 
कवयित्री का ईमेल - writermanju@gmail. com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com



Thursday 12 September 2019

पिता की दास्ताँ / कवि - विजय कुमार

 पिता की दास्ताँ 

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)



१)
चले जब साँसे तो बहता है सागर
पिता के समर्पण भाव का
दौड़े रग में ख़ून तो कहती है ज़िंदगी
पिता के परम सार की कहानी
तन हो दो पर मन सदा रहे एक
फ़र्ज़ के पथ पर चल सकूँ बहुत थोड़ा भी
ख़ुद को ही खोज सकने की कोशिश में। 

२)
कोमल मन वही बस धड़ का रूपांतरण 
पिता के कर्मठ मन से
ख़ुद को गढ़ने चलूँ जैसे नवसृजित रूप
पिता की दृढ़ संकल्प का
उनके लब्ज को दिशानिर्देश मान
और पाने चल दूँ अंतिम लक्ष्य को
सम्मान करूँ सदा अतुल्य पद-चिन्ह को
चलूँ चंचल मन को सँवारते

३)
बढ़े जब सिलसिला पाने एक जीवंत रूप 
पिता के समर्थ भावों का
कहे स्पष्ट सुंदर मन देखते अकल्पित रूप
पिता से साक्षात हुए वार्तालाप का
अंधकार से उजाले में देखूँ जो पल-पल 
अद्वीतीय अनगिनत क़दमों को
ज़ंजीरों के मूल्यों में रखे ख़ुद को अटूट
बनाने हमें डगर डगर मज़बूत 

४)
रुक गयी धड़कने, रह गया मैं बस तड़पते
पिता का अदृश्य साथ
निभा लूँ कुछ और फ़र्ज़, उतारूँ क़र्ज़ बचाने
पिता की वही साख
रीति-सृष्टि कर्तव्य-निष्ठा की मधुर परीधि में
पिता से लिया संस्कार
मन से, मन के मन से, कर सकूँ फिर उन्हें याद 
वृतांत अब एक यादों के सहारे 
...
कवि - विजय कुमार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Saturday 7 September 2019

न कोई हो अंगूठछाप / बने, बनाएं साक्षर आप

 साक्षरता दिवस पर विशेष आलेख  

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)




विश्व संग  भारत आज 8 अगस्त 2019 को  54 वें साक्षरता दिवस मना रहा है ।  साक्षरता के लिए  भारतवर्ष में सभी प्रयास करने वाले व्यक्त्यों और संस्थाओं को नमन एवं शुभकामनाएं ।
साक्षरता लिखना , पढ़ना , अक्षरों , अंकों को सीखने के साथ हमें अपने परिवार, समाज, देश, विश्व का विकास
करना है । जिससे अब कोई अनपढ़, गंवार न रह सकें । सभी शिक्षा  की धारा से जुड़ें । विद्या और ज्ञान को कोई भी व्यक्ति नहीं चुरा सकता है ।

शिक्षा की अहमियत के कारण  हमारे देश भारत  में 80 प्रतिशत जनसंख्या शिक्षित हैं। गांधी जी  ने कहा, " निरक्षता हमारे लिए  कलंक है"  अभी 20 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं ।  देश की तरक्की, प्रगति, विकास साक्षरता  पर ही टिका है। वर्तमान समय में देश में गरीबी, जनसंख्या की वृद्धि सबसे बड़ी समस्या है। जिन  अल्पसंख्यकों,  कमजोर वर्ग,  आर्थिक रूप से नीचे के तबके के घरो  में माता-पिता निरक्षर है । उनके  बच्चे पढ़ना नहीं चाहते हैं

उन्हीं घरों में साक्षरता की जड़ों को मजबूत करना होगा । हर शिक्षित व्यक्ति की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि समाज में शिक्षा के प्रचार प्रसार में प्रयासरत रहे। हमारे घर में साफ सफाई करनेवाली, बर्तन माँजने वाली पिछड़े वर्ग के लोग काम करने आते हैं । उन्हें हमें शिक्षित करना होगा । जिससे वे भी साक्षर हो । निरक्षरता समाज के लिए अभिशाप है । 

भारत की आजादी के बाद पूरे देश में सरकार ने  'सर्व  शिक्षा  अभियान ' की शुरुवात की है । साक्षरता दर हमारे सारे राज्यों में अलग -अलग है। हिंदी भाषी राज्यों में जैसी साक्षरता होनी चाहिए वैसी नहीं है जैसी केरल राज्य में साक्षरता सबसे ज्यादा है।

शिक्षा को सीखना एक  कठिन प्रक्रिया,  तरीका जरूर  है । अभी भी लोग अँगूठा लगाते हैं । मेरे अनुसार-
"न कोई हो अंगूठछाप  
बने, बनाएं साक्षर आप ।" 

इस प्रसंग में पंचतंत्र की कहानियाँ इस संदर्भ में सटीक है । एक राजा के बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता था । फिर राजा ने ऐसा विद्वान विष्णुदत्त को  ढूंढ निकाला जिसने कहानियों को द्वारा बच्चों को साक्षर बना के प्रबुद्ध, ज्ञानी बनाया । 

आज भी भारतीय समाज में बेटे को पढ़ाया जाता है। बेटियों को दूसरे घर जाना है । उसे पढ़ा कर क्या करेंगे ? बेटा तो माता - पिता का मूलधन  माना जाता है। जो उनके जीवन- यापन का सहारा होता है। अब हमें यह विचारधारा बदलनी होगी। बेटी को हमें पढ़ना होगा। समाज को जागरूक करना होगा। क्योंकि बेटियाँ पढ़ लिख के सक्षम सबल बनके अपने पैरों पर खड़ी है। समाज, परिवार, देश का कुशल नेतृत्व कर रही है और  शादी के बाद वही साक्षर बेटी ससुराल में भी अपने पैरों पर खड़ी हो के  आर्थिक सहयोग करती है ।

हम अपने बेटा - बेटी के पढ़ाने में भेदभाव न करें ।  बच्चों के पढ़ने से जन्मदर कम होगा । स्वास्थ्य  की बढ़ोतरी होगी । स्वास्थ्यमय परिवार, समाज देश का निर्माण होगा। अंधविश्वास , कुपोषण , नशा , बेरोजगार जैसी समस्याओं को समाधान मिलेगा। साक्षरता से  समाजिक, आर्थिक,  पारिवारिक  उन्नति  होगी। देश का भविष्य, विकास  सुधरेगा 

सरकार, संस्थाएँ  इस दिशा में  बेहतर काम कर रही है।  शिक्षा  ही समाज को आगे बढ़ाती है।  कबीर अनपढ़ थे लेकिन उनके ज्ञान के आगे सभी नतमस्तक होते हैं। साक्षरता के लिए हम को सरल, सहज तरीका अपनाने होंगे।   भावी पीढ़ी पढ़ने में रुचि ले इसके लिए हमें कहानी , कविता , नाटक , संवाद , प्रश्नोत्तर  विधियों को सहारा लेना होगा । कार्टून  , बालफिल्मो , श्रव्य , दृश्य साधनों को सहारा लेने होंगे।

बच्चों के स्तर पर शिक्षक को समझाना होगा। बच्चों के परिवेश के अनुसार उस कौशल को, कहानियों क्षमता से  समझाना होगा। शिक्षकों को भी इस तरह का प्रशिक्षण सीखना होगा तभी आज की पीढ़ी को उस उच्च शिखर को छूने की क्षमता को  ताकत देगी। अंत में मेरे अनुसार -
"देश की तभी होगी विश्व में  पहचान
 पढ़े, लिखे हर  बाल, बेटी, वृद्ध इंसान।"
....

आलेख - डॉ . मंजु गुप्ता
पता - वाशी , नवी मुंबई
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com


दो कदम था तू दूर / कवयित्री - मंजु गुप्ता

चंद्रयान मिशन पर कविता 

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)



मचल -मचल कर 
पुलक - पुलक कर 
उत्साह उमंग भर 
चला चन्द्रयान है।

  ये विज्ञान का प्रकाश 
 इसरो, जग की आस
   गया  आकाश के  पास 
  चाँद  के जहान है।

 चंदा ! तू ईद का पर्व 
 कभी तू चौथ  का गर्व
  ले लक्ष्य - संकल्प सर्व
   ये शाने- हिंदुस्तान  है।

  दो कदम था तू  दूर  
टूटा विक्रम शरूर 
  रजनी  आयी  जरूर 
कल को विहान है।
...
कवयित्री - डॉ. मंजु गुप्ता 
पता - वाशी, नवी मुंबई 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com




Thursday 5 September 2019

मनु कहिन (9) - अवकाश प्राप्ति

जीवन की सुखद दूसरी पारी का राज

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)

बीते ३१ अगस्त को हमारे कुछ सहयोगी अवकाश प्राप्त कर गए। सभी लोगों ने अपने अपने ढंग से, रिश्तों की गहराई एवं मर्यादा के अनुसार औपचारिकताएं निभाईं। उनके सुखी एवं स्वस्थ जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं।हालांकि, कार्यालयों के वातावरण मे अमूमन आपस में अनौपचारिक रिश्ते नही पनपते । सारे रिश्ते एक ही शब्द 'कलीग' में समाहित हो जाते हैं।

खैर! नौकरी की शुरुआत अगर आपने की है तो यह दिन तो देखना ही पड़ेगा कुछ अपवादों को छोड़कर। यह एक ऐसा दिन है, जिसकी तिथि  आपके नौकरी मे आने के साथ ही मुकर्रर हो जाती है।

अवकाश प्राप्ति के दिन आपके अपने कार्यालय मे एक छोटे से समारोह का आयोजन कर, आपको, आपके आनेवाले समय के लिए शुभकामनाएं देते हुए,  प्रचलित परंपरा के अनुसार, एक दुशाला ओढ़ाकर एक छोटे से ब्रीफकेस में गीता रख भले ही उसकी आपके जीवन में प्रासंगिकता रही हो अथवा नही, आपको विदाई दे दी जाती है।

आप अपने जीवन की दूसरी पारी खेलने के लिए स्वतंत्र होते हैं। पर, यह तब होता है, जब आपने पहली पारी में अपनी जिम्मेदारी अच्छे तरीके से निभाई है। बड़ा ही अजीब एहसास है - अवकाश-प्राप्ति। लोगों के ख्याल बदल जाते हैं आपके प्रति। आपका भी जीवन को लेकर नजरिया बदल जाता है। अचानक से ऐसा लगता है मानो किसी ने ब्रेक लगा दिया हो। आपको 'प्लैनिंग' करनी होती है।

पर भाई , इन सबसे परे है अवकाश प्राप्ति। आपने अपना सामाजिक दायरा कैसा बनाया है, किस तरह से अपने सामाजिक एवं पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन किया है, जीवन के प्रति क्या सोच रही है आपकी? बहुत कुछ पर निर्भर करता है यह। जीवन की दूसरी पारी में ऐश करते हैं, और बड़े ही आनंद और सुख के साथ खेलते हैं वे लोग जिन्होंने अपने जीवन  में नौकरी के साथ ही साथ अपना सामाजिक दायरा नौकरी से अलग बनाया है। सामाजिक और पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन एक संतुलन के साथ किया है।

दूसरी पारी वैसे लोगों के लिए कष्टप्रद है जिन्होंने घर, परिवार, समाज से अलग सिर्फ और सिर्फ ऑफिस को ही जिया है, ऑफिस के साथ ही जीवन बिताया है! आप ऐसा कह सकते हैं कि इन लोगों ने अपने आप को कभी भी औपचारिक माहौल से अलग देखा ही नही है, घर- परिवार, समाज तो क्या कभी अपने लिए भी ऑफिस से इतर जगह नही ढूंढी है, उनके लिए अवकाश प्राप्ति के बाद जीवन की दूसरी पारी से सामंजस्य स्थापित करना एक बड़ा ही मुश्किल काम है।

अब तो यह आपके उपर निर्भर करता है कि आप अवकाश प्राप्ति के बाद अपनी दूसरी पारी सुख-आनंद एवं स्वस्थ शरीर के साथ जीना चाहते हैं या फिर!!
....

आलेख -  मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

पटना के डाकबंगला चौराहे पर बारिश का विहंगम सृश्य


डॉ0 राधाकृष्णन और शिक्षक दिवस की महिमा / लेखिका - मंजु गुप्ता

डॉ0 राधाकृष्णन और शिक्षक दिवस की महिमा 

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)



शिक्षक , गुरु, अध्यापक, आचार्य आदि गुरु के पर्यायवाची शब्द  हैं। अगर  हम गुरु का शाब्दिक अर्थ करें गु का अर्थ है अंधकार  और रु का अर्थ है प्रकाश यानी जो इंसान हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की और ले जाए वहीं हमारा गुरु हुआ।  जो   शिक्षण के द्वारा हमारे जीवन का सच्चा हितेषी बन के मार्ग दर्शन करता है। गुरु जो लघु नहीं है और लघु को  गुरु बनाता है।   भारतीय संस्कृति  पर दृष्टिपात करें तो शिक्षण दो प्रकार का होता है। 

१ ) अंतःशिक्षण  २ )  बाह्य शिक्षण  

अंतःशिक्षण  द्वारा  बुद्धि, स्मृति, मेघा एवं प्रज्ञा के ज्ञान चक्षु खुलते हैं।  बच्चा माँ के गर्भ से संस्कार सीखने लगता है और जन्म लेते ही माता-पिता की गतिविधियों, क्रियाकलापों के संस्कार उसमें पड़ने लगते हैं।  बचपन में पड़े संस्कार जिंदगी भर साथ चलते हैं जो हमारी आत्मोन्नति मूलक होते हैं।  ये हमारा चारित्रिक विकास करते हैं।  इसलिए बच्चे की पहली पाठशाला और गुरु माँ होती है।  माँ अहं से दूर रहकर  अपनी संतान  के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है।  

बाह्य शिक्षण- संत, महापुरुषों की जीवनी  पढ़कर,  विद्यालयों में जाकर शिक्षा ग्रहण करना आदि।  शिक्षा का उद्देश्य हमारा  संस्कार करना है।  विद्यार्थियों  के पूर्ण विकास में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बचपन ही जीवन की  आधारशिला होती है।उन्हें   सीखने का अवसर स्कूल, घर, परिवेश  से ही मिलता है।  छात्रों की  विविध प्रतिभाओं को निखारने, प्रोत्साहन देना काम गुरु ही करता है।  

अतः अध्यापक बच्चों का भविष्य निर्माण कर राष्ट्र निर्माता बन जाता है क्योंकि राष्ट्र निर्माण में गुरु की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।    जिंदगी भर जो भी हमें सिखाए वे सब  हमारे गुरु  ही होते हैं।  अध्यापक को यूँ भी परिभाषित कर सकते हैं मेरे अनुसार - 

  से अध्यापक है  होता । सृजनाकार - सा स्वर-व्यंजन   सिखाता 
ध्या  से ध्यान -  साधना करवाता धर्म - नैतिकता का पाठ पढ़ाता।  
से पूर्णता का प्रतीक बन के  सही दिशा ज्ञान है सिखाता 
से  कर्ता, कर्म, क्रिया, कारक बनके व्याकरण ज्ञान सिखलाता। 

शब्द, व्याकरण के मेल से बनता  वाक्य 
सिखा के  बौद्धिक ज्ञान संसार 
करे  भविष्य को साकार 
अध्यापक की महिमा अपरम्पार 
करती  'मंजु' कोटि-कोटि नमस्कार।  

कबीर  ज्ञान का उजाला देने वाले गुरु को कुम्हार की उपमा देते हुए कहते हैं - 
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।  

गुरु को ईश से बड़ा माना गया है, गुरु  की महिमा, उपकारों  को कबीर भी नहीं भुला  पाते हैं वे कहते हैं - 
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पाय?
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय।

अतः सदियों से संसार ने गुरु को पूजनीय माना है। शिक्षक ही बच्चों को यानी उन्हें डॉक्टर, वकील, शिक्षक, वैज्ञानिक आदि बनाककर उनका भविष्य दीर्घस्थायी बनाता है।   

भारतीय शिक्षा, संस्कृति के संवाहक  भारत रत्न डॉक्टर  सर्वपल्ली राधाकृष्णन महान दार्शनिक, राजनीतिज्ञ,  विचारक, शिक्षाविद, दर्शन के शिक्षक, राजनयिक, राष्ट्रपति थे। १९६२ में हमारे देश के राष्ट्रपति  डॉ राधाकृष्णन से  तब  कुछ छात्रों ने उनके  जन्मदिवस ५ सितम्बर को'  शिक्षक दिवस ' मनाने का प्रस्ताव रखा।  तब उन्होंने  अपने मनोभाव व्यक्त किए कि मेरे जन्मदिवस को मेरे अध्यापन, शिक्षण के प्रति समर्पण के रूप में  सभी शिक्षकों के सम्मान के खातिर  'शिक्षक दिवस'  के रूप में   मनाया जाए। तब से भारत में शिक्षा के प्रति जागरूकता, चेतना जगाने में  गुरु की समाज में विशेष भूमिका  होने के कारण इस दिन को मनाया जाता है।  उन्होंने चालीस सालों तक शिक्षा, दर्शन की साधना, शैक्षिक कार्य किए। दर्शन शास्त्र के  प्रख्यात ज्ञाता बन दर्शन शास्त्र के बीज भारत में  बोए ।

उनका कथन है "केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है।  स्वयं के साथ ईमानदारी, आध्यात्मिक अखण्डता की अनिवार्यता है ।"

भारत के सभी विद्यालयों, कॉलेज, विश्वविद्यालय में  "शिक्षक दिवस" बड़े उत्साह- उमंग के साथ  मनाते है।  छात्र अपने शिक्षकों को ग्रीटिंग कार्ड, फूल, गुलदस्ते, बुके, उपहार दे कर  शुभकामनाएं, बधाई देते हुए आभार, धन्यवाद  देता है।  विद्यालयों में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम के संग छात्र शिक्षक बनके  बच्चों को पढ़ाने का आनंद लेते हैं और जगह -जगह    सार्वजनिक कार्यक्रम भी होते हैं।  

इसी दिन राज्य  सरकार अपने- अपने  राज्यों से चुने  आदर्श शिक्षकों  को पुरस्कारों से सम्मानित भी करती है।  अब तो छात्र अपने गुरुओं  को सोशल मीडिया की भूमिका होने के कारण फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप्प, वीडियो , ऑनलाइन   बात करके आदि से शुभकामनाएं संदेश  देकर कृतज्ञता प्रकट करते  हैं ।  

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन विश्व को एक विद्यालय मानते थे। शिक्षा, संस्कारों से मानव मस्तिष्क को परिष्कृत, सुसंस्कृत और सदुपयोगी बना कर समाज का पुनरुत्थान कर सकते हैं।  विश्व को एक परिवार मनाते हुए विश्व शांति को ध्येय मानते हुए ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में उनका वक्तव्य था - "मानव को एक होना चाहिए।  मानव जाति  का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति  की मुक्ति तभी सम्भव है जब देशों की नीतियों के आधार पूरे विश्व शान्ति की स्थापना का प्रयत्न हो।"  वे अपने अध्यापन काल  में  छात्रों से  नैतिक मूल्यों को अपनाने के लिए जोर देते थे।  छोटा- बड़ा हर कोई भी इन मूल्यों से  जुड़ सकता है।    

गुरुओं को सम्मान देने के लिए विश्व के विभिन्न देशों में अलग - अलग तारीखों पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। "विश्व शिक्षक दिवस "  ५ अक्टूबर १९६४ से मनाया जा रहा है।  

गुरु की महत्ता दर्शाते हुए कबीर ने कहा है –
यह तन विष की बेल री, गुरु अमृत की खान
शीश दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान।

अंत में यह कहना ठीक रहेगा कि गुरु-शिष्य का रिश्ता सम्रुद्र की लहरों-सा है जो शिष्य को गंतव्य की ओर ले जाता है। कबीर ने भगवान से ज्यादा गुरु को महत्व दिया। गुरु ही वह सीढ़ी है जिसके द्वारा हम भगवान सए साक्षात्कार कर सकते हैं। छात्रों का गुरुओं द्वारा ही सर्वांगी, समग्र विकास होता है। शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को मेरा पुन: कोटि-कोटि नमन!
.......

आलेख - मंजु गुप्ता
पता - वाशी, नवी मुम्बई
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Tuesday 3 September 2019

महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का त्योहार / लेखिका - मंजु गुप्ता

सभी चेतन  ईश के अंश  हैं

(मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Watch)


वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ 

भारत में हर  त्योहार बड़े उत्साह- उमंग के साथ मनाते हैं  लेकिन गणेश चतुर्थी का त्योहार महाराष्ट्र में सार्वजनिक, सामूहिक, व्यक्तिगत रूप से गणेश मूर्ति स्थापित करके  लोग मनाते हैं । गणेश जी बुद्धि के देवता  हैं। भक्तों की मुसीबत आने से पहले ही दुख, संकट को दूर कर देते हैं। इन दिनों भगवान धरा पर निवास करते हैं। अगर विनायक प्रसन्न हो गए तो सारे क्लेश, कष्ट कट जाते हैं।  कोई बाधा हमें छू नहीं सकती है । 

मेरे पड़ोसी  के घर  बड़ी धूमधाम से गणपति महाराज सात दिनों  के लिए ईश अवतार  के रूप में  पधारते हैं . हम सब बहुत खुश होते हैं। ईश हमारे सामने और हम उनके सामने  हमारे करीब हैं। सच का प्रकाश  गणेशजी का  पूजन करके हम सब उस समय  गणेशमय हो जाते हैं। गणेश जी की पूजा पाठ का सारा काम  समयानुसार होता है ।  तरह, तरह भोग बनाने की प्रेरणा उन्हीं सर्वसत्ता  ईश से मिलती है । विघ्नहर्ता  घर, समाज, देश और संसार के विघ्नों को हर कर ले जाते हैं. आशीर्वादात्मक उपहार मैत्री, शान्ति, प्रेम और इंसानियत की ऋचाओं से साक्षात्कार कराते हैं. 

इकोफ्रेंडली प्रेरणामूर्ति गणपति का दरबार की साज, सज्जा  श्रृंगार  हम मिलकर  करते हैं। दरबार के पीछे का मंडप भाग लाल रंग ओढ़नी जो शक्ति और क्रांति  और सफेद रंग की ओढ़नी शांति की आड़ी- तिरछी  ऊर्ध्वगामी रेखाएं गतिमान और प्रगतिशीलता को दर्शाती हैं और उनसे निर्मित कोश  से हर घर, समाज, देश और संसार में विवेक की शक्ति से शांति  का साम्राज्य रहे 

चारों दिशाओं को अनवरत प्रज्ज्वलित, प्रकाशित  अखंड घी के दीये मानव को दुराचार, झूठ, अज्ञान, बलात्कार, भ्रष्टाचार   अमानवीयता के अँधेरे को भगा के  विवेक, सदबुद्धि का उजाला दे.  धर्म का मार्गदर्शन करती किताबें  जन- मन  को सही राह दिखाए. उष्णता को हरनेवाले  शीतल नीले रंग के सिंहासन पर विराजे हैं।  विभिन्न सुंदर  रंगीन फूलों से सजा परिवेश क्षणभंगुर संसार में अपने सुंदर  गुणों से घर, समाज को  महकाने का बोध दे रहें हैं हरे रंग  की बिछी चादर पर सुशोभित हैं नारियल, फल, रस युक्त जीवन काल में  हमें अलौकिक दर्शन से अनंत विघ्नों से लड़ने की सामर्थ्य दें 

 गणेश चर्तुथी के दिन मुम्बई, महाराष्ट्र की अधिकतर  सोसाइटी,  पांडालों, गलियों, सड़को, मंडल, घर- घर में गणपति लाते हैं, भक्ति भाव से सुबह- शाम  पूजा कर अनंत चतुर्दशी के दिन तालाब, समुन्द्र में विसर्जित कर देते हैं। साकार ईश  मूर्ति में हैं तो निराकार ईश सब जगह विराजमान हैं। सभी चेतना में ईश बसे हैं सभी चेतन  ईश के अंश  हैं। हम सब में जो रिश्ता जुडा है वह दैवी सम्बंध का इसलिए सारे विश्व हमारा  वसुधैव कुटुम्बकम है अंत में ग़णपति बप्पा  का विसर्जन की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है

विघ्नहर्ता के दर्शन करने लम्बी -लम्बी कतारों में  खड़े भक्त गण विविध भाषा, संस्कृति , वर्ण, लिंग, जाति, धर्म, संप्रदाय के होते हैं । जिनका लक्ष्य ईश की कृपा सुख, समृद्धि, प्रगति मनोवांछित फल  आदि  आशीषों के रूप में  सदा उन पर बरसती रहे। यह कृपा हमारे समाज, देश , विश्व में भी बरसे। यह पर्व  जन- मन को  एकता, प्रेम, सहयोग, भाईचारा, शांति के सूत्र में बाँधता है। सभी   कश्मीरवासियों  समेत सम्पूर्ण भारत और विश्व को  सुख , समृध्दि , सद्बुद्धि ,  खुशी दे। शुभ, संपन्नता का वरदान दें।  आतंक, डर फैलानेवालों को सद्बुद्धि दें जिस से समाज  को बंदूक की गोलियों और बम विस्फोटों  के दानवों से  मुक्ति मिले । 

यही मेरी   मंगल कामना है कि देश , विश्व में प्रेम , अमन , शांति , अहिंसा , मैत्री से जन- जन जुड़ जाए। 
....

आलेख - मंजु गुप्ता 
पता - वाशी , नवी मुंबई
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com