Thursday 27 June 2019

मनु कहिन (2) - बच्चों की किशोरावस्था और माँ-बाप

..  तो बच्चे कभी आपसे अलग नही होंगे

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आजकल आमतौर पर यह बात देखने को मिल रही है, मां बाप अपने बच्चों खासतौर पर वैसे बच्चे जो किशोरावस्था की उम्र में हैं, को लेकर काफी परेशान रह रहे हैं। उनकी आदतें, उनका व्यवहार मां - बाप की परेशानियों का शबब बनता जा रहा है। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ हर मां बाप अपने को लाचार महसूस कर रहा है। क्या करें, किससे कहे  वह इसी उधेड़बुन मे है। जो दिक्कतें बच्चों के साथ आ रही हैं, उनमें मुख्यत:  बच्चों का एकाकी होना, व्यवहार मे आक्रामकता, लगातार मोबाइल फोन में चिपके रहना , व्यवहार मे निरंतरता का अभाव आदि है। 

जब आप ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि जो कारण ऊपर बताए गए हैं वह सभी एक दूसरे से संबंधित है। आप इसे यूँ कह सकते हैं कि एक के बाद दूसरा होता है. साथ ही एक दूसरे के पूरक हैं सभी।

पर, एक बात मैं व्यक्तिगत तौर पर मां- बाप से ही पूछना चाहता हूँ क्या उन्होंने कभी ध्यान से इस बात पर गौर किया है कि इसका कारण क्या है? बच्चों के इस व्यवहार के पीछे आखिर वजह क्या है? जब आप ध्यान देंगें तो पाएंगे कि इसकी वजह कोई बाहरी तत्त्व नही बल्कि हम खुद हैं। लगभग 90% मामलों में हम दोषी है। हमारा व्यवहार उनके प्रति वह किसी कारणवश नही हो पाया जिसके वो हकदार थे। पर, मां बाप या बतौर अभिभावक हमारा अहं इस बात को मानने को बिल्कुल तैयार ही नही है। मैं  यहां पर एक उदाहरण देना चाहता हूँ। जब हमारे बच्चे छोटे थे। काम में , नौकरी की वजह से हमारी व्यस्तता थी। जब बच्चों को हमारा साथ चाहिए होता था, व्यस्तता की वजह से हम उन्हें  टीवी के सामने बैठा दिया करते थे। अब आप बताएं कि उस वक्त उस उम्र मे बच्चों को कितनी समझ थी। बच्च टीवी मे रंगीन हलचल देख चुप रहते थे। बाद के दिनों में टीवी का स्थान मोबाइल ने ले लिया। पर, बच्चों का बचपन छिन गया। दोषी कौन?? क्या हम आप नही ?

 बच्चों को एकाकीपन की आदत लग गई। किसने लगाया ? कौन दोषी है ? नि:संदेह हम ! मजबूरी कहें , जरूरत कहें ,आप जो भी कह लें , गलती अगर परवरिश में हुई है तो हमें माननी होगी।  टीवी या सोशल मीडिया मे हमनें अपने आप को इतना मशगूल कर लिया है कि परिवार और बच्चों के लिए हमारे पास वक्त ही नही रहा। अरे, बच्चों का चरित्र तो पानी की तरह है। बिल्कुल पाक साफ। जिस तरह पानी अपना रास्ता ढूंढ़ लेती है , बच्चों ने भी ढूंढ लिया। फिर तकलीफ क्यों ? आज जब वे बडे हो गए तो एकाकीपन, मोबाइल में लिप्त रहना, वयवहार मे आक्रामकता एवं निरंतरता का अभाव उनके व्यवहार का अभिन्न अंग बन गया है। यह एक  प्रकार का मनोवैज्ञानिक विकार है। आप इसके लिए मनोचिकित्सक के पास जाना चाहते हैं। जाना चाहिए भी। पर, ध्यान रखें यह कोई बीमारी नही है कि दवा लिया और बीमारी छूमंतर। आपके बच्चे मनोरोगी नही है। उनका इलाज मनोचिकित्सक के पास भी नही है। उसने जो पढा है एवं विभिन्न मनोवैज्ञानिक के द्वारा किए गए प्रयोगों के आधार पर आपको राह बता सकता है। पर, चलना तो आपको ही है। अब भी वक्त नही गुजरा है। बच्चों को समय दें, 

उनके साथ समय बिताएं। उनके दोस्त बने। हमलोगों ने अपने बडों को अक्सर यह कहते सुना था कि जब बच्चों के पैर बडों के जूते मे समाने लगे या बच्चे आपके कंधे के करीब आने लगे तो उनके साथ आप दोस्ती कर लें। बच्चों के जब आप दोस्त बनेंगे तब आप उनके व्यवहार मे  फर्क महसूस करेंगे । मैं पुनः दुहरा रहा हूँ। आपके बच्चे मनोरोगी नही हैं। उन्हें न तो मनोचिकित्सक की जरूरत है न ही  मनोचिकित्सक की दवा की और न ही उन्हें जरूरत है मनोवैज्ञानिक की। उन्हें तो बस जरूरत है दोस्त रूपी मां-बाप की। उन्हें अपने बचपन को भरपूर जीने दें। आप बच्चों के लिए एक बेहतरीन दोस्त बने। बच्चे अपनी तमाम बातें यहां तक कि अपनी अंतरंगता भी आपसे शेयर करें।  क्यों मुसीबत के समय वो दूसरों का कंधा इस्तेमाल करें  जब आप मौजूद हैं। मदद करें एक दोस्त के रूप में।  आप पाएंगे आपके बच्चे कभी आपसे अलग नही होंगे। 
.......

आलेख - मनीश वर्मा
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Tuesday 25 June 2019

वेद प्रकाश तिवारी की तीन कविताएँ

सफेद कपड़े



सफेद कपड़े पर काला दाग़
दिखता है बहुत साफ
यदि दाग हो पुराना
तो दिखती है
उसकी धुँधली छवि
जो कहती है
ये कपड़ा कभी रहा है दागदार
सफेद कपड़े के भीतर
छुपा है अनेक संदेश
जो प्रतीक है शांति का
इसे पहनने से पहले 
गुजरना होता है गहरे चिंतन से
और बनना पड़ता है उसके अनुकूल
तब होता है सफल
उसका उद्देश्य
पर सफेद कपड़ा
उस समय हो जाता है विवश
जब कोई इसे पहनकर
उसमें लगा देता है कालिख
और देता है
जागृति का संदेश। 
......


यमुना का दर्द

आज असहाय यमुना
अपने तट से निहार रही है
दिल्ली को
कहती है वह---
मैंने तुम्हें बचपन से सींचा है
माँ की भाँति
अपने मीठे जल से
हर युग में तुम्हें किया है तृप्त
जब- जब तुम गुलाम हुई हो
तुम्हें देखकर मेरा पानी रोया है
फिर अपनी बहती धाराओं से
दिया है साहस तुम्हें आगे बढ़ने का
मेरा जल 
तुम्हें दिया है नव जीवन
मुझे याद है
कृष्ण ने सबके हित के लिए
किया था कालिया नाग को
अपने वस में
और मेरे जल को बचाया था
बिषाक्त होने से
आज उसी कृष्ण की धरती पर
अपने हित के लिए
मुझे पिलाकर हलाहल
तुमने मेरे स्वरूप को
बना दिया है विषैला
जब कि मैं जीना चाहती हूँ
तुम्हारे बीच रहना चाहती हूँ
आखिर मैं भी तो तुम्हारी माँ हूँ । 
.....


निष्पक्ष बयान

यह सिर्फ भ्रांति है कि
कविता होती है
कवि की कल्पना मात्र
जिसे वो उतार देते हैं शब्दों में
पर कविता की वास्तविकता
जुड़ी है उस दर्द या पीड़ा से
जिसके अनुभव से गुजरा है कवि
चाहे वह अपनी हो या पराई
या हो शामिल संपूर्ण मानव समाज
या जुड़ा हो प्रकृति का कोई पहलू
इसी को अपनी लेखनी से
 कवि देता है मूर्त रूप
यदि पाठक निष्पक्ष भाव से
करे विचार
तो कविता बोल उठेगी
कि तुम भी हो कहीं न कहीं
मुझमें शामिल
कविता रखती है अपनी गरिमा
वह नहीं पसंद करती ओछापन
नहीं बँध सकती छन्दों में तब तक
जब तक कि वह न गुजरी हो
किसी गहरे अनुभव से
कविता समेटे रहती है अपने में
सुख- दुःख, उम्मीद, संवेदना, दर्द 
शक्ति,  और प्रोत्साहन जैसे
अनछुए पहलुओं को
तभी तो अत्यंत पुरानी कविता भी
हर युग में लगती है जीवंत। 
.....

कवि - वेद प्रकाश तिवारी 
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Monday 24 June 2019

इंदौर (म.प्र.) में साहित्यकार मंजु गुप्ता का 19.6.2019 को शुभ संकल्प संस्था द्वारा सम्मानित

साहित्यकार मंजु  गुप्ता का मालवा की मिट्टी में सम्मान 
सम्मानित लेखिका ने कहा - आज तेजी से मूल्यों का विघटन हो रहा है











इंदौर (म.प्र.) 19 जून 2019 को साहित्यिक  उपलब्धियों के लिए डॉ. मंजु बुप्ता को  19 जून 2019 को साहित्यिक  उपलब्धियों के लिए  सम्मानित किया और सम्मानित अतिथि के रूप में बुलाया था। इंदौर के मंगल रेजीडेंसी में सुबह 8 बजे से सरस्वती वंदना से कार्यक्रम शुरू हुआ । शाम 8 बजे तक समारोह सपन्न हुआ।

वाशी , नवी मुंबई की प्रसिद्ध सेवा निवृत्त शिक्षिका , मुख्याध्यापिका , सौम्य साहित्यकार , कवयित्री , शिक्षाविद डॉ . मंजु गुप्ता  जी को मध्यप्रदेश का दिल इंदौर की शुभसंकल्प संस्था की अध्यक्ष , आयोजक   डॉ सुनीता श्रीवास्तव (रिपोर्टर ,साहित्यकार) द्वारा अंर्तराष्ट्रीय हिंदी लिटरेचर की शील्ड, कन्वोकेशन परिधान , प्रमाणपत्र  से सम्मानित किया गया तथा  वहाँ पर मंजु गुप्ता  जी को सम्मानित अतिथि थीं। जहाँ पर देश - विदेश के साहित्यकार एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में आए थे।

मंजु गुप्ता  जी ने कहा अब इस तरह के सम्मेलन हर राज्यों की साहित्यिक संस्था को करने चाहिए।  आज तेजी से मूल्यों का विघटन हो रहा है। ऐसे कार्यक्रम का महत्व  है जो मानव को मानव से जोड़ता है। संवेदनाओं, मानवता को जाग्रत करता है। इस तरह के आयोजन से नयी पीढ़ी  का साहित्यिक रुझान बढ़ेगा । भारत की भाषाओं पर संकट मंडरा रहा है।  हम अपनी भाषा , बोली को बचा सकेंगे। इस लिटरेचर उत्सव में प्रदेश ,आंचलिक साहित्यकारों को सम्मानित कर काव्य रस का लुत्फ उठाया गया इंदौरी साहित्यिक पत्रकार मुख्य अतिथि अलका सिन्हा की उपस्थिति से हर्षित थे ।डॉ सुनीता श्रीवास्तव ने सबका आभार व्यक्त किया।
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सूचना स्रोत - डॉ. मंजु गुप्ता
छायाचित्र सौजन्य - डॉ. मंजु गुप्ता 
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Saturday 22 June 2019

मनु कहिन (1) - इंडियन कॉफी हाउस कलकत्ता

 कई धाराओं को समेटे हुए कॉफी हाउस
सत्यजीत राय और मन्ना डे जैसी शख्सीयतों का भी खूब जुड़ाव रहा है इससे



मेरे बचपन का कलकत्ता, आज का कोलकाता। मेरी जुबां से आज भी कलकत्ता ही निकलता है। भद्र जन,  मुझे माफ करें। जी हां, कोलकाता बुद्धिजीवियों का शहर कहना शायद अतिशयोक्ति नही होगी । कोलकाता की सडकों पर, वहां की गलियों में आप यायावर की तरह घूमें। आपको अहसास हो जाएगा। 

संस्कृति और सांस्कृतिक चीजें जहां विरासत में मिलती हों। अनुशासन, जिसका महानगर में अभाव पाया जाता है वो यहां आपको प्रचुर मात्रा में मिलेगा। क्या मजाल कि रात के "ऑड आवर्स" में भी कोई गाड़ी वाला सिग्नल तोड़ता हुआ आपको मिले। अपने आप पर जहां इतराने को बहुत कुछ हो, वो शहर है कोलकाता । 

कॉलेज स्ट्रीट का वो अल्बर्ट हॉल जो कालांतर में इंडियन काफी हाउस के नाम से विख्यात है । प्रेसीडेंसी कॉलेज के सामने एक बडी सी इमारत के प्रथम तल पर चलता हुआ। एक समय मे एक साथ कई धाराओं को समेटे हुए। बिना किसी टकराव के सभी धाराएं एक दूसरे के समानांतर चलती हुई।

पुरानी लकड़ी की बुनाई वाली या फिर प्लास्टिक की कुर्सियों पर किसी कोने में कोई परिवार के साथ बैठा है तो कोई  कॉलेज का छात्र अपनी/अपने दोस्तों के संग, मेज पर रखी अपनी पसंद की स्नैक्स और कॉफी चाय के साथ,  किसी विषय पर चर्चा में मशगूल है। कहीं दो चार बुजुर्गों की महफिल जमी है तो कहीं किसी कोने मे बौद्धिक और सांस्कृतिक बातें चल रही हैं। जब भी, रात के 9 बजे, बंद होने के समय तक किसी भी समय आपको हॉल की कुर्सियां खाली नही मिलेगीं। वहां के बैरे सफेद रंग के ड्रेस में कलगी वाली टोपी पहन हर आने-जाने वाले लोगों का ध्यान रखने की कोशिश करते हुए पाए जाएंगे। इतनी भीड़ के बावजूद "प्रदीप दा" एक सौम्य-सा व्यक्तित्व  ( देखिए मैं सिर्फ एक बार वहां गया हूं और मैं भी जान गया प्रदीप दा की अहमियत) सभी के स्वाद का ख्याल रखते हुए पाए जाते हैं। हर व्यक्ति वहां आपको प्रदीप दा को ही बुलाता नजर आएगा और वो किसी को निराश भी नही करते।

लोग कहते हैं , कई बार विभिन्न कारणों से कॉफी हाउस लगभग बंद होने के कगार पर पहुंच चुका था। पर इसकी लोकप्रियता ने लोगों को मजबूर किया आगे आने के लिए ताकि इसका अस्तित्व बचा रह सके। लोगों ने मिलकर बचाया है इसे।

आपको वहां पर बहुत से लोग मिलेंगे जो लगभग प्रतिदिन आते हैं। वे मिल जाएंगे अपनी पसंद की कॉफी / ब्लैक कॉफी साथ में कुछ स्नैक्स पर चर्चा करते हुए। पुराने समय में शहर के या यूं कहें देश के चर्चित नामों ने भी वहां अपनी शामें गुजारी हैं। पुराने लोग गवाह हैं इन बातों के।

सत्यजीत राय उनमें से एक प्रसिद्ध नाम था। मन्ना डे ने इस कॉफी हाउस पर तो पूरा  का पूरा एक गीत ही गाया है।

हां, एक महत्वपूर्ण बात जो मेरे संज्ञान में आयी वो यह कि "नो स्मोकिंग" के स्पष्ट निर्देश के बावजूद धुएँ के गुबार का उठना। पर, कहीं न कहीं यही पहचान है। यही उसका हस्ताक्षर हो सकता है। 
अतः इसपर ध्यान न दिया जाए। मैंने कुछ लिखा नही, आपने कुछ पढ़ा नही।
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आलेख -  मनीश वर्मा
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चित्र साभार - विकीपीडिया 




Friday 21 June 2019

फैला लो अकल्पित फिर एक परिधि / कवि - विजय कुमार

कविता



वैसे तो दुनिया बहुत है बड़ी
पाने को कुछ है कहाँ कमी
चाहो तो पाओ कड़ी दर कड़ी
रख सको छोटी ही एक परिधि 

मन में छोटी सी दुनिया सबकी
मन से कभी छोटी न रह सकी
सोच तू चौहद्दी से दूर एक घर की
रच सको गर मुकम्मल एक परिधि 

सीढ़ियाँ एक-एक डगर आगे की
मुड़े जो दिशाएँ बिल्कुल उलटी सी
गर जिगर रहे इक राह तकने की
रख महफ़ूज़ पहिया सी एक परिधि ।

दूंढने चला हूँ फिर वही एक घर की
मिले जो ठहर सकूँ पल सुकून सी
राह मुझे दिखे और मुझे राह दिखाए
फैला लो अकल्पित फिर एक परिधि 
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कवि- विजय कुमार 
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Thursday 6 June 2019

हवाओं ने नभ में है मधुर संगीत छेड़ा / डॉ. चंदन अधिकारी की कविताएँ


 हवाओं की फितरत



हवाओं ने नभ में है मधुर  संगीत छेड़ा
कुदरत के करिश्मों को बोलों में जोड़ा
चिड़ियों की चहक को मुखड़े में मोड़ा
नदियों की कलकल से सरगम  को छेड़ा / १

नाना धुनें हैं और नाना हैं राग
कहीं पर यमन और कहीं है बिहाग
नाना हैं रस जैसे भक्ति और अनुराग
सुहागन रसवंती है और नभ है सुहाग / २

पुष्पों की सुगन्धि बन गयी सुगन्धिनी नार
नभ में करती है अल्हड  स्वछन्द विहार
मरुत के स्पर्श से है हलचल  अभिसार
विचलित है अनंग स्वर्ग के उस पार / ३

मेघों ने है  गीत गाया मेघ - मल्हार
पुष्पों की पंखुड़ियां खुलती करती बहार
परागों ने मिलकर बनाया तिलस्मी सिन्दूर
सुंगन्धिनी नार को रखे ये पिय से न दूर / ४
...

 जब कली से है  फूल खिलता

जब कली से है  फूल खिलता
मधुकर का मधुर संगीत सुनता
मधुवन के पर्व का अंग बनता
अनुपम छटा में है रंग रंगता
जब कली से है  फूल खिलता / १

संकुचन का जब विस्तार होता
कली से तब है फूल बनता
प्रकृति से मिलती है ममता
ममता में  अद्भुत  है समता
जब कली से है  फूल खिलता / २

सूरज की गर्मी से कुम्हलता
चंदा की किरणों से सम्हलता
पवन के बेगों से निपटता
जब तक है जां तब तक है खिलता
जब कली से है  फूल खिलता / ३

फूल खिलता, हम  सबसे कहता
सघनता से जन्मी विरलता
जीवन में पाए गर समरसता
छू मंतर हो जाये नीरसता
जब कली से है  फूल खिलता / ४
...


कालिंदी प्रणय

यमुना की लहरें उछलने लगी हैं
प्रीतम के चरण छूने के लिए
निज ध्यास निज नाद का न संज्ञान है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / १

युगांतर की प्रतीक्षा ख़तम हो गयी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
अँधेरी रात उजली लगने लगी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / २

समय से थमने की गुहार करने लगी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
निज भाग्य को सराहने लगी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / ३

बंदिश तीरों की अपनी कोई नहीं है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
काली रात की कालिंदी मिलने चली है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / ४

एकांत के प्रशांत को पाने चली है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
निनाद निज अपना भूल चुकी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / ५

वसुदेव से थम चल विनय करने लगी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
अपनी लहरों को चुप करने लगी है
चरणस्पर्श की मधुर चाप सुनने के लिए/ ६
....


 परिवर्तन

प्रातः घर की  प्राची की खिड़की से
जब मैं बैठे बैठे बाहर झांकता हूँ
मुझे दिखता ही काजू का पेड़
और उसके बड़े बड़े हरे पत्ते
शबनम की बूदों से लबालाब
तरुणाई से छकाछक 

मंद समीर उनकी तरुणायी को
और अधिक अल्हड बना देता  है
सूरज की मनभावन किरणें
उनको चार चाँद लगा देते  हैं
वे अपनी मस्ती में मस्त
क्रीड़ा विहार करते हैं 

एक से दो और दो से तीन
और तीन से चार का संयोग
अनुपम छटा की कहानी कहता है
और परिपूर्णता की महिमा गढ़ता हैं
खुदगर्ज़ी की क्षुद्रता और
समष्टि की महानता बताता है

कुछ घंटे बाद मैं पुनः पत्तों को देखता हूँ
वही हरे पत्ते समीर से लहराते
पर शबनम अब नदारद थी
वह अपना काम कर चुकी थी
संक्षिप्त जीवन, उद्देश्यपूर्ण जीवन
लुभावना, बालसुलभ जीवन

समयांतर सूरज चढ़ चुका था
मलय भी शांत हो चुका था
परिवर्तन, परिवर्तन, परिवर्तन
सृष्टि का अटल नियम है की
उद्घोषणा प्रकृति के कोने कोने से
शंखनाद कर हमें कुछ सिखा रही थी.
...


प्रेम का भाव

प्रेम का भाव ही, ईश का स्वभाव है
प्रेम का भाव है तो कहाँ अभाव है
प्रेम की बानगी ह्रदय की सादगी है
प्रेमाभिव्यक्ति वाणी की मिठास है / १

न कहीं खटास है हर जगह मिठास है
न कहीं उपहास है हर जगह उपहार है
हार में भी जीत है जीत में संगीत है
जीत हार में भला क्या कोई बिभेद है / २

प्रेम का व्यवहार ही ईश का व्यवहार है
प्रेम का व्यवहार है तो कहाँ विषाद है
प्रेम ही माधुर्य है प्रेम ही सायुज्य है
प्रेम ही पवित्र और प्रेम ही परमार्थ है /३

प्रेम पथ जो चले सफलता उसके हाथ है
वो अकेला नहीं जग सारा उसके साथ है
प्रेम पथ के पथिक को सर्वदा विश्रांति है
मैं मेरा और तू तेरा में न कोई भ्रान्ति है/ ४
...
कवि- डॉ. चंदन अधिकारी
कवि का ईमेल आईडी - csadhikari52@gmail.com 
कवि का परिचय- डॉ. चंदन अधिकारी आईटीएम, नवी मुम्बई नामक  प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान में 'डीन' के पद से सेवानिवृत हुए हैं और वर्तमान में एनएमआईएमएस नामक प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान में अनुबंधक प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हैं. इनकी ही पहल पर आईटीएम में प्रतिमाह काव्योत्सव होता है जिसके अंतर्गत अब 100वीं गोष्ठी होनेवाली है.
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com