Thursday 10 January 2019

बेंगलुरु, कर्नाटक से विजय कुमार की एक कविता - वो हैं मेरे पूज्य पिता

वो हैं मेरे पूज्य पिता 




हो जिनकी एक युग कथा तो
लिखूं क्या मैं लघु कथा
स्मरण के भाव में विस्मरण  के काल में
यह मेरी व्यथा
पल पल जीवन संघर्ष रत रह  
धड़कनें समझने की
यत्र-तत्र-सर्वत्र महसूस करूँ जिन्हें
वो हैं मेरे पूज्य पिता |

संघर्षपूर्ण कंटीले पथ पर  
कदम सदा ईमान का  
जीवन इंसानी बस पर व्यक्तित्व 
सर्वप्रिय सर्वमान्य का 
इधर भी उनके रक्त की बूँदें जो समझें
हर एक उलझनों को 
हों न क्यों मागदर्शित हमेशा हम कि
वो मेरे पूज्य पिता 

चाहे हो वो मेरे जन्मदाता पर बातें उनकी
जैसे भाग्य विधाता,
करूँ याद जब जब उन्हें सुनूँ उनकी
बातें मैं यदा-कदा
स्वप्न पल के भाव से  जब बसी
एक छोटी सी दुनिया
जब सोचूँ पाऊँ देखूँ जो 
वो मेरे पूज्य पिता |

महक चाहे फूलों जैसी छूटे न
जिनकी कोई नजर 
आभास मिले कण कण में
अहसास रहे रग रग में
सलाम! एक सच्चे मित्र का नमन
एक शख्सियत का  
सदा रहे आशीर्वाद उनका जो हैं
वो मेरे पूज्य पिता.
...


कवि - विजय कुमार (विजय बाबू)
निवासी: कमलपुर, पंडौल | हनुमान बाग कॉलोनी, मधुबनी
सम्प्रति: बैंगलोर, कर्नाटक
श्री विजय कुमार बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के नियमित पाठक हैं और अपनी टिप्पणियों से ब्लॉग को सही मार्ग दिखाते रहते हैं. यह ब्लॉग उनकी ब्लॉग में अभिरूचि एवं बहुमूल्य सुझावों के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करता है.


कवि- विजय कुमार