Saturday 28 December 2019

मनु कहिन (13) - प्रेमिका के इनकार पर आत्महत्या की सच्ची घटना पर प्रतिक्रिया

ज़िंदगी के थेपेड़े

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 पटना 28.12.2019. आज दोपहर की ही तो घटना  है। एक लड़के ने अपनी प्रेमिका के साथ हुई मामूली बहस के दौरान खुद को गोली मार अपनी जान ले ली।

क्यूं भाई, क्या हो गया है आजकल के लड़कों को? इतने इमोशनल क्यूं हो गए हो भाई! क्या मिला अपनी जान लेकर ! जिंदगी बड़ी ही अनमोल है! अगर, आप इतने मजबूत हो कि अपनी जान देने में थोड़ा सा भी वक्त नही लगाते हो, तो भाई फिर तो सोचने वाली बात है। इतनी कायराना हरकत क्यूं ? लड़की ने तुम्हारी बात नही मानी।बस इतनी सी तो बात थी। उसे लेकर इतना पोजेसिवनेस (अधिकार-भाव) क्यूं? क्या उसे यह अधिकार नही है कि वो अपने तरीके से, अपने दिमाग से सोच विचार कर निर्णय ले सके?

अपनी जान लेकर क्या मिला तुम्हें ! अपने परिजनों के लिए जिंदगी भर का दुख छोड़ गए। जब जब तुम्हारी याद आएगी, एक टीस सी उठेगी। एक हूक बनकर रह जाएगी तुम्हारी याद। फिर, जिसके लिए तुमने जान दिया, माना तुम उससे बेइंतहा प्यार करते थे! तभी तो ऐसा निर्णय लिया ! कभी एक पल के लिए भी सोचा, तुम्हारे इस तरह जान देने के बाद उसका क्या होगा? यह प्रेम लहरी पुलिसिया कार्रवाई मे उलझ कर रह जाएगी। किसी को कुछ नही मिला। नाहक जान दे दी। अरे, अभी तो जिंदगी शुरू हुई थी। बहुत आगे तक जानी थी। वैसे, तुम्हारा मरना ही शायद बेहतर था ! जिंदगी का सफर तो थपेड़ों के समान है। तुम कब तक बर्दाश्त कर पाते? जो जिंदगी का एक थपेड़ा बर्दाश्त नही कर पाया !

अब शायद, युवाओं के सोचने का वक्त आ गया है। अब भीड़ के पिछे चलने का नही वरन् नेतृत्व करने का समय है। अपने आप को , अपनी भावनाओं को संतुलित रखें। राह चलते यूं अचानक से अपनी जिंदगी कुर्बान न करें मेरे दोस्त! जब कभी ऐसी कोई समस्या आए, लोगों से बात करें। अपने आप से बात करें। हल जरूर निकलेगा। जिंदगी, यूं नही निकलेगी।
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आलेख - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
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Saturday 14 December 2019

बड़प्पन की रीत / लेखिका - कंचन कंठ

अजब नियम का गज़ब पालन 

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नीलिमा एक पढ़ी-लिखी सुंदर और समझदार लड़की थी।पढ़ने के साथ - साथ बातें करना,तरह तरह की जानकारियां हासिल करना,निश्छलता से सबके संग घुल-मिल जाना उसे बहुत पसंद था।किसी से मिलने जुलने में कोई संकोच नहीं था। माता-पिता भी बड़े खुले विचारों के थे, उन्होंने बच्चों में ना कोई अंतर माना या रखा,जबकि तीन बेटियों के बाद बेटा हुआ था। बड़े अफसर थे और बच्चों को भी अच्छी परवरिश दी थी।

अब नीलिमा पी जी कर रही थीं,तो स्वभाविक है घर में शादी की चर्चा शुरू हो गई थी।पापा को मनमुताबिक लड़का ही ना मिले। कुछ तो अपने मयार का हो ,कि बेटी को किसी भी गढ्ढे-खाई में ढकेल दें! खैर, खोजते - खोजते उन्हें आखिर एक लड़का पसंद आ ही गया।

हां, थोड़ा सांवला था और ज्यादा लंबा भी नहीं,पर पढ़ाई, नौकरी, परिवार सब एक से बढ़कर एक! पांच छह भाई बहनों के परिवार में दो बहन-बहनोई तो डाक्टर थे, वह खुद टाप क्लास जाब में थे,पिता भी कलक्टर थे। दोनों ही परिवार हर लिहाज से एक बराबर थे। नीलिमा की खुशी का तो ठिकाना नहीं रहा,बिना देखे ही अपने सांवरे की दीवानी हो गई।शादी के बाद जब ससुराल आई तो, घर की बड़ी बहू रानी थी और इस क्षेत्र में सास का एकाधिकार था, वह किसी की दखलअंदाजी पसंद नहीं करती थीं। पति ने भी मां की आज्ञा पर चलने की सलाह दी।सारे रीत रिवाज निभाने पड़े,कई सारी रस्में करने को थीं। उसने सब खुशी खुशी निभाए,सास बड़ी सुंदर थीं और लोगों में खुद को एडवांस भी दिखाया करतीं, याने "हाथी के दांत" वाला मामला था। 

सब कुछ तो नीलिमा निभा ले रही थी ,पर उसे एक बात समझ नहीं आती थी कि सब अगर एक साथ बैठे हैं, तो उसे नीचे बैठने को क्यों कहा जाता है,जबकि इत्ते बड़े से सोफे या पलंग पर जगह ख़ाली रहती थी! ये कौन सी मर्यादा थी कि बहू के साथ बैठने से भंग होती थीं, इसमें किसी का क्या अपमान होता था!अपनी उलझन किससे कहें! पतिदेव तो छुट्टी खत्म होते ही ,असम चले गए।ना मायका पास में ,ना यूं घड़ी - घड़ी फोन करने की सुविधा थी पहले! बड़ी परेशान रहती थी,उसे ये बड़ा खराब लगता कि सास चट से टोक दें,बहू इज्जत करना सीखो और उसे नीचे बैठना पड़ता था।अब बड़े घर की पढ़ी-लिखी लड़की थी ,जाहिलों की तरह लड़-भिड़ तो सकती नहीं थी।बड़ी परेशान थी मन-ही-मन!

संयोगवश,उसी शहर में उसके एक चाचा का तबादला हुआ, उन्होंने उसके पूरे परिवार को खाने पर बुलाया। नीलिमा को बड़ी खुशी हुई कि अरसे बाद मायके का कोई तो मिला!इस चाची से उसकी खूब घुटती भी थी।सब वहां गए, खाने-पीने के बाद चाची ने आग्रह करके उसे दो चार दिन रहने देने के लिए उसकी सास को मना लिया। 
ह ह ह, सांस में सांस आई जैसे,नीलु की बातें तो खत्म ही नहीं हो रही थीं।चाची ने फिर ससुराल के बारे में पूछा तो वो फूट पड़ी ।उसने इस रिवाज के बारे में बताया तो चाची हैरान रह गईं कि अब भी इतने पुराने और बेतुके रिवाज को कैसे ढो रहे हैं!सामने तो इतने प्रगतिशील बनते हैं।पर वो भी ठहरीं परम बुद्धिमान,समझा बुझा कर,  घुमा फिराकर,कुछ नई -नई रेसिपीज सीखाकर, दो चार दिन बाद देवर लेने आया तो बिटिया को भेज दिया।

कुछ दिनों बाद घर में कुछ ऐसे मेहमान के जो ससुर जी के आफ़िस से थे। दरअसल जिला मुख्यालय तो था ,पर तभी अपने यहाँ इतने अच्छे रेसिडेंशियल होटल कहां होते थे कि परिवार सहित ठहरा जाए,तिस पर साहब की पत्नी से सासूमां का भी दोस्ताना था। फ़िर नई बहू को भी देखने आई थीं, सो घर में ही ठहराए गए। नीलिमा ने भी अच्छी खातिरदारी की ,चाची की रेसिपीज बड़ी काम आईं।अब तीन - चार दिनों के लिए आए थे, आफ़िस का काम निबट गया तो तय हुआ कि अगली सुबह सब साथ में जनकपुर चलें, आउटिंग भी हो जाएगी और तीर्थाटन भी!

सब बड़े खुश जे, बहुत दिनों के बाद बाहर जाने का मौका हाथ आया था। तुरत अर्दलियों को इस सब की जानकारी दी गयी।आठ दस जने थे, तो दो गाड़ियों को तैयारी रखने की हिदायत दी गयी। एक में महिलाएं और दूसरी गाड़ी में पुरुष रहेंगे; जिनका अनुसरण करती महिलाओं की गाड़ी जाएगी।

सुबह - सुबह सब नियत समय पर निकले।सास,ननद और उनकी सहेली के बैठने के बाद,नीलिमा पायदान पर बैठ गई, सास चिल्लाईं, "क्या कर रही हो ,सीट पर बैठो?" "पर मांजी इस तरह तो आप सबका अपमान होगा और मैं बड़ों का अपमान कैसे करुं!" नीलिमा के इस जवाब से सास की सारी कलई खुल गई।उनकी तेज आवाज से ससुर तथा अन्य लोग भी आ पहुंचे‌।ससुर जी भी झेंप गेए और सास को ही डांट लगाई और बहू को इन बकवास नियमों का पालन ना करने को कहा। 
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लेखिका - कंचन कंठ
लेखिका का ईमेल - kanchank1092@gmail.com
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Wednesday 4 December 2019

खोज एक बचपन की / युवा कवि - विजय बाबू

खोज एक बचपन की

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बचपन - मन की नादानी
अरमान भरे पल रूहानी
यादें हुई न अभी पुरानी
बात आगे करें दिन में जो आना बाकी ।

बिंदु-सा बिन आकार की
रही अजूबा एक कहानी
रेखा-सी पतली डगर अपनी
बीत चुके कुछ पल और आगे है बाकी 

दादी नानी कहती कहानी
सुनते किस्से उसकी जुबानी
राजा दुलारा, दुलारी रानी
वक़्त वक़्त की बातें है अभी और बाकी ।

मासूमियत भी भोली सी
लिखते पढ़ते हूई सयानी
चंचल मन चले राह जवानी
जीवन कारोबार में वसूल अभी और बाकी 

बढ़ता कारवाँ दौलत का
बढ़ती कश्ती शोहरत की
मंज़िले जैसे बहता पानी
छूटते बनते रिश्ते हैं अभी और कुछ बाकी 

बुलंदी चाहे हो आसमानी
चहकती दुनिया सतह पर यहीं
पाकर मन करता मनमानी
जैसे कतार में अरमान है न और बाकी
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कवि - विजय बाबू
कवि का ईमेल - vijaykumar.scorpio@gmail.com
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