Wednesday, 13 May 2020

माँ की बात निराली / कवयित्री - प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'

कविता 

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माँ की हर बात बड़ी निराली
भर देती जीवन में हरियाली।

जब कभी मैं होता विफल
माँ देती मुझको सम्बल।

जब कोई करता मुझको निर्बल
भर देती माँ मुझमें आत्मबल ।

मेरे हिस्से का गम भी पी लेती
हर कोशिश कर खुशियां देती।

पिता से भी मेरे लिए लड़ लेती 
हर दिन एक नया मन्नत करती ।

 भविष्य मेरा हो उज्ज्वल
हर दिन कुछ करती  नवल।

जब उसके प्यार में मैं हुआ वाचाल
मौन व्रत रख बंद किया बोलचाल।

उसकी मौन भाषा ने वो समझाया
जो अब तक था समझ न पाया।

माँ के मौन में होती बड़ी ताकत 
पछताता मन दूर होती आफत।

माँ के मौन में भी ताकत है बड़ी 
लगता खड़ी है हाथ में लिए छड़ी।

ऐसा नहीं कि खाया नहीं उससे डांट
गलती पर डांटी,खड़ी की मेरी खाट।

माँ का था ये प्यारा नुस्खा
आँखों से बरसे बन बरखा।

डांट कर उसकी आँखें हो जाती नम
फिर मैं सोचूँ दूर करूँ कैसे उसका गम।

फिर मैं पढ़ता हो जाता सफल
माँ खुश होती दुःख होता विफल।

माँ की खुशियाँ ही मेरा सम्बल
अब मैं भरता उसमें आत्मबल।
.....
कवयित्री - प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'
कवयित्री का ईमेल आईडी - kinshukiveerji@gmail.com
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