Tuesday 25 February 2020

मनु कहिन (19) / भूलते भागते क्षण

बैचमेट्स मीट की दास्तान 

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कुछ पल अविस्मरणीय होते हैं। और जब बातें हो रही हों अपने बैचमेट्स के साथ बिताए हुए उन स्वर्णिम पलों की तो फिर क्या कहना! हमेशा इंतजार रहता है उन पलों को बार बार जीने का। एक ललक सी हमेशा बनी रहती है।

कुछ सहकर्मियों की पहल से ऐसे कुछ पल हर एक दो वर्षों के अंतराल पर मिल ही जाते हैं। हां, पर अब ये पल बड़ी ही मुश्किल से मिल पाते हैं। पलों को चुराना पड़ रहा है। कल तक जिम्मेदारियां  लगभग नही के बराबर थीं। पर, आज अपने पूरे शबाब पर है। एक निपटती है तो दूसरी मुंह बाए खड़ी हो जाती है। कभी खुद को छुट्टी नही मिलती है तो कभी बच्चों की वजह से समय निकाल पाना मुश्किल हो जाता है। खैर! हां, ना करते हुए वो दिन आ ही गया और हम सभी उस पल के इंतजार मे अंततोगत्वा किसी तरह समय चुराते हुए, पारिवारिक जिम्मेदारियों एवं कार्यालय की व्यस्तता  से कुछ पल  की मोहलत निकाल कर हमलोग गोवा पहुंच ही गए। 

हममें से जिसने भी बैचमेट्स मीट के लिए  पहल ली , हमारे ठहरने के लिए होटल में कमरों का बंदोबस्त किया  हमारे आगमन से प्रस्थान तक की जिम्मेदारियां उठाई वाकई काबिले तारीफ है। किसी भी इवेंट को आयोजित करना इतना आसान नही होता है। उन मित्रों के लिए आभार के दो शब्द तो बनते ही हैं। 

गोवा मे दिन कैसे गुजरे पता ही नही चला। बातों का सिलसिला एक बार जो शुरू हुआ रूकने का नाम ही नही ले रहा था। कब रात हुई और कब सुबह किसी को इस बारे मे सोचने तक का वक्त नही था। पुरानी , संजोई हुई यादों से धूल साफ की जा रही थी। वर्तमान यादें यथासंभव सहेजने की कोशिश में सारे लगे हुए थे।  बच्चे बन गए थे हम सभी। उन्हीं की तरह व्यवहार कर रहे थे । एक साथ खाना खान, एक साथ घूमना । वक्त मानो ठहर -सा गया था। ऐसा कभी लगा ही नही कि हम सभी सहयोगी/ कलीग्स हैं। हम सारे मित्रों की तरह व्यवहार कर रहे थे। ऑफिसियल वर्ड - 'कलीग' कहीं किसी कोने मे पड़ा था। आखिर बैचमेट्स तो बैचमेटस ही होते हैं। सभी बातों से परे। न कोई जाति न कोई धर्म। कोई बड़ा न छोटा! जिसने इस दुनिया को नही देखा, इसे जाना नही। उसने जिंदगी मे बहुत कुछ मिस किया।

खैर! धीरे धीरे सबके जाने का समय आ गया। सबका एक दूसरे से गले मिलकर अपने अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करने का सिलसिला शुरू हुआ। बिछुडना हमेशा दुखदाई होता है। पर जिंदगी इसी का नाम है। हम लोगों ने नम आंखों से एक दूसरे से गले मिल, अगली बार पुनः  जल्द ही मिलने का वादा कर चल पड़े अपने अपने गंतव्य की ओर ।

चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना ! 
कभी अलविदा ना कहना!
........

लेखक - मनीश वर्मा
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Saturday 22 February 2020

जिंदगी एक सुहाना सफर है / कवयित्री - सुमन यादव

कविता

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जिंदगी एक सुहाना सफर है

 अरमानों के ढेर में डूबा
हर एक पहर है

  मुश्किलों  से  भरी ज़िंदगी
जैसे भंवर है

 खुशी गम का सिलसिला ये
अद्भुत कहर है

 अंधेरे में लक्ष्य ढूँढता
श्रम का शरर है

 इफ़्तिख़ार की चाहत में
हर एक बशर है 

  बुलंदियों की ख्वाहिश में
हौसला ज़बर है

 मोहब्बत की इनायत से
कायनात तर-बतर है.
........
कवयित्री -   सुमन यादव
कवयित्री का ईमेल - sumankyadav6@gmail.com
परिचय - शिक्षिका, मुंबई
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com




Friday 21 February 2020

महाशिवरात्रि के अवसर पर

भोलेशंकर / पूनम (कतरियार)

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चित्र में - अभिनेता नीतेश कुमार, भगवान शंकर की भूमिका में 

जटाधारी-चंद्रधर,
लपेट गला विषधर.
भस्म से करतें श्रृंगार,
सोहे अंग बाघाम्बर.
कर में  त्रिशूल  थामें,
तीनों लोक हैं मुट्ठी में.
श्मशान में भी मिले आनंद
शिवशंकर अपने में मगन.
न छप्पन-भोग  चाहिए,
न महल-अटारी चाहिए .
हीरे-मोती रजकण सम,
न हाथी-घोड़ा  चाहिए.
भांग-धतूरे में पायें मौज,
हलाहल में है अलमस्त.
नंदी पर होकर सवार,
भूत-बैताल की ले बरात.
डम-डम डमरू बजाते ,
गौरा ब्याहन को जातें.
बड़े मासूम भोलेशंकर,
महायोगी है भोलेशंकर.
सीख देकर नश्वरता का,
जीवन को देतें नयें आयाम .
गंगा की शुचिता ले लो,
भस्म से निस्सारता ले लो.
आवेशित वाणी  का विष,
अपने कंठ में धारण कर लो.
तन की शोभा शक्ति हो,
गौरा, हिय को करें प्रेमिल.
क्लिष्ट होता कहां जीवन !
सरल रखो जो तुम मन को!
.......


कवयित्रि - पूनम (कतरियार)
कवयित्री का ईमेल - poonamkatriar@yahoo.com
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कवयित्री - पूनम 9कतरियार)


Thursday 20 February 2020

महाशिवरात्रि की महिमा / डॉ. अलका पाण्डेय

यौगिक परंपरा में शिव अन्य देवताओं की तरह नहीं बल्कि आदिगुरु हैं

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सत्य ही शिव हैं और शिव ही सुंदर है। तभी तो भगवान आशुतोष को सत्यम शिवम सुंदर कहा जाता है। भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने का ही महापर्व है...शिवरात्रि...जिसे त्रयोदशी तिथि, फाल्गुण मास, कृष्ण पक्ष की तिथि को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर्व की विशेषता है कि सनातन धर्म के सभी प्रेमी इस त्योहार को मनाते हैं।

महाशिवरात्रि के दिन भक्त जप, तप और व्रत रखते हैं और इस दिन भगवान के शिवलिंग रूप के दर्शन करते हैं। इस पवित्र दिन पर देश के हर हिस्सों में शिवालयों में बेलपत्र, धतूरा, दूध, दही, शर्करा आदि से शिव जी का अभिषेक किया जाता है। देश भर में महाशिवरात्रि को एक महोत्सव के रुप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन देवों के देव महादेव का विवाह हुआ था।

हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगत में रहते हुए मानव  का कल्याण करने वाला व्रत है महाशिवरात्रि। इस व्रत को रखने से साधक के सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है। शिव की साधना से धन-धान्य, सुख-सौभाग्य और समृद्धि की कमी कभी नहीं होती। भक्ति और भाव से स्वत: के लिए तो करना ही चाहिए सात ही जगत के कल्याण के लिए भगवान आशुतोष की आराधना करनी चाहिए। मनसा...वाचा...कर्मणा हमें शिव की आराधना करनी चाहिए। भगवान भोलेनाथ..नीलकण्ठ हैं, विश्वनाथ है।

हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रदोषकाल यानि सूर्यास्त होने के बाद रात्रि होने के मध्य की अवधि, मतलब सूर्यास्त होने के बाद के 2 घंटे 24 मिनट की अवधि प्रदोष काल कहलाती है। इसी समय भगवान आशुतोष प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते है। इसी समय सर्वजनप्रिय भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही वजह है, कि प्रदोषकाल में शिव पूजा या शिवरात्रि में औघड़दानी भगवान शिव का जागरण करना विशेष कल्याणकारी कहा गया है। हमारे सनातन धर्म में 12 ज्योतिर्लिंग का वर्णन है। कहा जाता है कि प्रदोष काल में महाशिवरात्रि तिथि में ही सभी ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।

महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।
भजन ...
डम डम डमरू वाला-

डम डम डमरु बजाये
भस्म अंग में लगाये ।
हिमालय पर विराजे
ध्यान विष्णु का लगाये ।
डम डम डमरू बजाये

मस्तक पर चंद्र विराजे
जटा में गंगा को समाये ।
नंदी बाबा की करते सवारी
पार्वती बाम अंग विराजे ।
डम डम डमरू बजाये।

सर्पों की पहने माला
रहता सदा मतवाला ।
भोले की महिमा भारी
देवों का देव है निराला ।
डम डम डमरू बजाये

आओ सब मिल गायें
ध्यान शम्भू का लगायें ।
अन्तर्यामी है बड़ा दानी है
मन की मुरादें पूरी हो जायें ।
दर से कोई ख़ाली न जायें
डम डम डमरू बजाये ।

बाघाम्बर धारी है
भोले त्रिपुरारी है ।
भांग, धतूरा चढ़ाते हैं
महिमा बहुत न्यारी है ।
डम डम डमरू बजाये ।

डम डम डमरू बजाये
भस्म अंग में लगाये ।
सब देवों का देव कहाये
गरल कंठ में समाये
नीलकंठ कहलाये ।
डम डम डमरूबजाये
(-डॉ. अलका पाण्डेय)
.........
लेखिका और कवयित्री - डॉ. अलका पाण्डेय
ईमेल - alkapandey74@gmail.com
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Tuesday 18 February 2020

मनु कहिन (18) / कोलकाता डायरी *भाग- 4*

 "भोजो हरि मन्ना"
*गतांक से आगे*  कोलकाता डायरी

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"भोजो हरि मन्ना" बंगला 'कूसीन' के लिए एक मानी हुई जगह ।  हम हिन्दी भाषियों के लिए "भज हरि मन" । वैसे नाम से बहुत फर्क नही पड़ता है। "भोजो हरि मन्ना" की एक श्रृंखला है कोलकाता शहर मे। शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही तरह के भोजन को पसंद करने वालों के लिए एक बेहतरीन जगह। साफ सुथरी जगह। साफ सुथरी रसोई। काली पैंट और  पीली टी-शर्ट मे "वेल मैंनड"  बेयरे। कुल मिलाकर एक अच्छा  खुशनुमा माहौल। परिवार और दोस्तों को लेकर आप आ सकते हैं यहां। खाने का मेनु अंग्रेजी और बंगला भाषा मे। नाना प्रकार के मछलियों से बना भोजन। बहुत सारी मछलियों का तो नाम भी नही पता। जैसे पावदा जंबो, भेटकी पातुरी, चिंगडी बार बी क्यूं , कच्चे नारियल के खोपडे मे बना हुआ किंग साइज चिंगडी मछली ऐसे बहुत सारे डिशेज के नाम हैं जिन्हें आमतौर पर  हमारे जैसे लोग बिना बेयरे की मदद के नही चुन सकते हैं। 

हां, इन सबके बीच आप नाना प्रकार के स्वादिष्ट शाकाहारी व्यंजनों को नही भूल सकते हैं। लंबे खुबसूरत बासमती चावल का भात, मूंग की दाल एवं सुखतो जो कि एक  ट्रेडिशनल एवं लोकप्रिय  बंगाली सब्जी है।अमूमन हर घर मे पर्व त्यौहार एवं खास अवसरों पर बनाई जाती है। 

आप इसकी तुलना मकरसंक्रांति के अवसर पर आम बिहारी के घरों मे बनाई जाने वाली मिक्स सब्जी से कर सकते हैं। हालांकि थोड़ा अलग है यह। गुजरातियों के घरों मे उतरायण के अवसर पर उंधियू इसी तरह की एक डिश है।  बैंगन का भाजा और आलू की बिल्कुल पतली कटी हुई भाजी इसमे चार चांद लगाते हैं।

जैसे ही आप खाने का आर्डर करते हैं सबसे पहले आपके टेबल पर टूथ पिक लगी हुई हरी मिर्च और कच्चे नींबू की लंबी फांकों से भरी हुई एक छोटी कटोरी आपके समक्ष रख दी जाती है। साथ मे धनिए पत्ते की स्वादिष्ट चटनी। रखने का अंदाज बेहद खूबसूरत। 

एक ख़ास बात जो मैंने देखी कि अब तक हमलोग जानते थे और बातचीत के दौरान कहते भी थे - बंगालियों के माछेर  झोल से प्रेम के संदर्भ मे। पर, कोलकाता मे रहने के दौरान मैंने यहां अपने मित्रों के यहां भी खाना खाया और होटलों एवं रेस्तरां मे भी अगर आप झोल वाली मछली मांगेंगे तो आपको मछली के साथ झोल तो मिलेगा पर वैसा नही जैसा आप और हम अपने यहां खाते हैं। ग्रेवी वाली मछली मे झोल की मात्रा काफी कम होती है। 

अगर आपने सरसों के झोल वाली डिश पसंद की है तो इस बात की गारंटी है कि खालिस सरसों की खुशबू उसमे रहेगी ही। पोस्ता दाना का झोल वाली मछली आपने अगर मंगाया है तो पोस्ता की खुशबू लाजिमी है।

एक बात और जो मैंने अनुभव किया। हो सकता है, शायद मैं गलत हूं। दो तरह की मछलियों के प्रति बंगालियों का प्रेम जग प्रसिद्ध है। चिंगडी यानी 'प्रॉअंस' और इलिस यानी हिल्सा। मेरे व्यक्तिगत अवलोकन के अनुसार चिंगडी मछली ज्यादा लोकप्रिय है  पुराने पश्चिम बंगाल के लोगों के बीच में जबकि इलिस अर्थात हिल्सा बंगलादेश से संप्रति आए हुए  भारतीय लोगों के बीच! यहां के लोगों से बातचीत के दौरान ही यह अंतर स्पष्ट हो जाता है।
(क्रमशः)
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लेखक - मनीश वर्मा
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Tuesday 11 February 2020

मनु कहिन (17) / कोलकाता डायरी *भाग-3*

शोभा बाजार की शोभा
 *गतांक से आगे* (कोलकाता डायरी)

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कोलकाता का शोभा बाजार ! कोलकाता शहर के उत्तर मे बसा हुआ एक भाग।

यह भाग सुतानूति के नाम से भी जाना जाता है। जब आप मेट्रो रेल से दमदम की ओर जाएंगे तब दमदम से दो-तीन स्टेशन पहले शोभा बाजार आता है। यूं तो बडा ही समृद्ध इतिहास रहा है इस क्षेत्र का। सेठ साहूकारों  और बसाकों का क्षेत्र रहा है। बसाक मूलतः बंगलादेश के रहने वाले थे। अंग्रेजों के आने से पहले बसाक और सेठ इस क्षेत्र के बड़े ही रसूखदार लोग थे। सूतानूती के कपड़े और धागों के व्यापार पर उनका एकाधिकार था। कालांतर मे  मारवाड़ियों ने उनका एकाधिकार समाप्त कर पुराने सुतानूती बाजार का नाम बदलकर बड़ाबाजार कर दिया। उन्हीं  बसाक मे से एक शोभाराम बसाक के नाम पर लगभग १८वीं सदी के आसपास इस क्षेत्र का नाम शोभा बाजार पडा। 

जब पलासी की लडाई के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने फोर्ट विलियम का निर्माण कार्य शुरू किया तो जहाँ आज फोर्ट विलियम है , वह इलाका गोविंदपुर के नाम से जाना जाता था। फोर्ट विलियम के निर्माण के दौरान अंग्रेजों ने वहाँ के लोगों को अन्य जगहों के अलावा शोभा बाजार मे भी बसाया। महाराज नवकृष्ण देव, जिन्हें आप इस क्षेत्र का निर्विवाद अघोषित राजा मान सकते हैं उन्होंने इस क्षेत्र मे काफी कुछ किया। शोभा बाजार स्थित रजवाड़ी उनकी ही देन है। शोभा बाजार रजवाडी मे १७५७ से शुरू हुआ दुर्गा पूजा उनका ही शुरू किया हुआ है।बडे बडे रइसों एवं अंग्रेज लाटसाहबों के पूजा मे आने की वजह से इसकी प्रसिद्धि काफी बढी।नाचने वाली लडकियां जो अमूमन मुस्लिम समुदाय से होती थीं, यहां की मुख्य आकर्षण हुआ करती थीं।

 एक अलग ही अनोखापन था यहाँ होनेवाली दुर्गा पूजा का बंगाल के अन्य हिस्सों मे होनेवाली पूजाओं से। यहां की पूजा मे देवी दुर्गा को अन्न का भोग न लगाकर उन्हें घर की बनाई गई मिठाइयों का भोग लगाया जाता था। यही वजह है कि बंगाल के अन्य भाग खासकर बर्दमान से आए हुए हलवाइयों ने यहां अपनी जगह बनाई।
शोभा बाजार की पूजा में देवी दुर्गा को मुगलों और अवध के नवाबों के द्वारा डिजाइन की गई ज्वैलरी ही पहनाई जाती थी। 

यूं तो शोभा बाजार अपने आप मे ही एक खास पहचान समेटे हुए  है, पर शोभा बाजार की एक खासियत यहां की जात्रा मंडली भी है। इसका भी अपना एक अलग इतिहास है। एक लाइन से लगभग ५०-६० जात्रा मंडली वाले यहां अपनी दुकानें लगाए बैठे हैं। यह एक बड़े उद्योग की तरह है। बंगाल, असम, उड़ीसा, बंगलादेश लगभग वैसे तमाम क्षेत्रों मे आपको जात्रा मंडली वाले मिल जाएंगे जहां बंगला बोलने बाले लोग रहते हैं। वैसे तो जात्रा की शुरुआत तो भक्ति काल मे चैतन्य महाप्रभु के समय से ही हो गई थी। पर, शोभा बाजार मे इसे लाने का श्रेय भाग्य कूल राय जो बंगलादेश के भाग्य कूल नामक स्थान से आए थे , उन्हें जाता है। यह बंगाली थियेटर का ही एक  पारंपरिक रूप है और काफी लोकप्रिय है। समसामयिक विषयों पर भी जात्रा मंडली वाले जात्राएं करते रहते हैं।

जब चर्चा शोभा बाजार की हो रही हो और सोना गाछी का जिक्र न हो, ऐसा हो सकता है भला ? सोनागाछी- एक ऐसा नाम, जो लोग जानते हैं नाम से भी परहेज रखते हैं। पर, क्या आंख मूंद लेने से सच्चाई खत्म हो जाती है? नही, बिल्कुल नही। कल का सोनागाछी, आज का रविन्द्र सारणी  से लेकर चितपुर एवं उसके आसपास का इलाका।शोभा बाजार  मेट्रो से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर। लोग कहते हैं एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया। जहां शाम होते ही नज़ारा बदल जाता है। दुकानें सज जाती हैं। शुरुआत में कहने को रिहायशी इलाका। नही जानते हैं और गुजर गए तो शायद पता भी न चले। एक तरफ लाइन से  छोटी बड़ी तिजोरी बनाने वालों की लगभग बीस से पच्चीस कारखाने तो दूसरी ओर जात्रा मंडली वालों के दफ्तर खुले हुए । छोटे छोटे सोना चांदी की दुकानें, कुछ दुकानें ज्वैलरी बनाने के औजारों की भी । लोग कहते हैं इन्हीं सोना चांदी की दुकानों की वजह से इस एरिया का नाम सोनागाछी पड़ा।

इन सबके बीच सरेआम चलता हुआ एशिया की सबसे बड़ी जिस्म की मंडी। सब कुछ यंत्रवत चलता हुआ। यूं तो यह मंडी कभी बंद नही होती है पर शाम होते ही नज़ारा बिल्कुल बदल सा जाता है। एक तरफ सरकार अपनी चौकस नजरों के साथ खड़ी रहती है और और दूसरी तरफ सारी व्यवस्था चलती रहती है। कइयों के घर के चुल्हे जलते हैं यहां की कमाई से। फिर भी नाम लेने मे संकोच।

सब कुछ चल रहा होता है। सामाजिक समीकरणों के हिसाब से उपेक्षित, अछूत पर सामाजिक संतुलन के लिए जरूरी । इतिहास गवाह है। नाम बदलता रहा है पर काम नही। क्यूं नही इसे वैधानिक कर देते हो? कम से कम तमाम तरह के शोषण से तो इन्हें मुक्ति मिलेगी। चैन की जिंदगी जी पाएंगी। इनकी जिंदगी बेड़ियों मे जकड़ी हुई है। ज़मीं और आसमां तो मयस्सर है पर सांसों पर हर वक्त पहरा है। घुट घुट कर जीने को अभिशप्त। चेहरे पर हमेशा एक छद्म आवरण। आंखें कुछ ढूँढती हुई।पर, यहां भी पहरा है। लोग कहते हैं  दुर्गा पूजा के अवसर पर मां दुर्गा की मूर्ति जब बनाई जाती है तो पहली मिट्टी किसी वेश्या के पास से ही मंगवाई जाती है। वाह रे हमारा सामाजिक समीकरण ! उपेक्षितों को भी सम्मानित करने का अच्छा तरीका ढूंढा है! 
.........


आलेख - मनीश वर्मा 
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Monday 3 February 2020

वही साथी जो समझ ले / कवि - विश्वम्भर दयाल तिवारी

कविता

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इकरार में जब यार का
पथ-प्यार निर्मल मिल गया ।
इनकार के आघात का
उपहार निष्फल हिल गया ।

सहनशक्ति साथ में रख
साथी अपने साथ चलता ।
तब सराहे त्याग जीवन
वाणी गुण अनुराग फलता ।

देख लेना प्रेम से ही
नफरतें लाना नहीं ।
दिया है ईश्वर ने तन-मन
इसको भटकाना नहीं ।

प्यार की इक बूँद से ही
सम्बन्ध सरिता बहा देना ।
जहाँ तक सम्भव रहे
अनुबन्ध से ही नहा लेना ।

झूठे सहारे नहीं देना
स्वजनों को बस यहाँ पर ।
मान लेना हार भी कभी
जीती बाजी हारकर ।

मन के आँगन में सदा हो
नृत्य अपने प्यार का ।
थके ना मनमीत देखो
ध्यान रखना उपहार का ।

वही साथी जो समझ ले
बात इच्छा मीत की ।
रहे संग-संग संकटों में
ध्वनि भी भाए गीत की ।
.....
कवि - विश्वम्भर दयाल तिवारी
परिचय - सेवानिवृत न्युक्लीयर साइंटिस्ट, आईटीएम काव्योत्सव,  नवी मुम्बई के कार्यकारी संयोजक
पता - खारघर, मुम्बई
कवि का मोबाइल - 7506778090
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मिलन की लकीर नहीं बनाई / कवि - विजय भटनागर

कविता 

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मिला तो दिया रब ने पर मिलन की लकीर नहीं बनाई
यारों से कहा रास्ता बताओ तो तदबीर नही बताई।
बार बार पूछती है मेरी हमदम कब बजेगी शहनाई
मुझे कहना पड़ता है कि हमारे हिस्से वो नहीं आई।
रात मे जब तड़प कर मैं उठता हूं और कहता हूं
इश्क तो करा दिया मुकम्मल मुहब्बत नहीं कराई।
शायद मैं ही बदनसीब पैदा हुआ था इस जहां में
तूने तभी दो आशिकों के मिलन की तकदीर नही बनाई।
विजय को फख्र है फिर भी अपनी तकदीर पे दोस्तो
जग-सरिता में डाला तो चाहे मिलन की तीर नहीं बनाई।
.....
कवि - विजय भटनागर
परिचय - सेवानिवृत न्युक्लीयर साइंटिस्ट, आईटीएम काव्योत्सव,  नवी मुम्बई के मुख्य संयोजक
पता - खारघर, मुम्बई
कवि का मोबाइल - 9224464712
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नोट - अंतिम पंक्ति बदली गई है.
नोट- यह रचना व्याट्सप्प से प्राप्त सामग्री के आधार पर वयोवृद्ध रचनाकार श्रेणी" के अंतर्गत प्रकाशित की गई है. इसकी मौलिकता की जिम्मेवारी ब्लॉग की नहीं है.