Wednesday 29 April 2020

मनु कहिन (26) - "वी आर बोर्न तो रूल"

विमर्श 

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कभी कभी लोगों की मानसिकता पर तरस आता है। कैसी सोच है उनकी। अगर थोड़ा बढ़कर बोलें तो कह सकते हैं बड़ा ही अमानवीय दृष्टिकोण है। एक अलग ही नजरिया है लोगों को देखने का ! आपको लगता है कि आप इस सोच , इस नजरिए के साथ आगे बढ़ सकते हैं ! जीवन मे तरक्की के साथ ही साथ बहुत कुछ पा सकते हैं !पर, यह भूल है आपकी ! इस तरह की मानसिकता और सोच कभी भी आपको एक तय मुकाम से आगे बढ़ने ही नही देगी। जहां पूर्ण विराम लगना चाहिए था, उससे बहुत पहले ही लग गया। आपको लगेगा कि आपने बहुत कुछ हासिल कर लिया है पर शायद आप दृष्टि-दोष के शिकार हैं। आपने क्या खोया या कहें खो दिया, आप नही देख पा रहे हैं। इतिहास गवाह है जीवन मे आगे, बहुत आगे बढ़ने के लिए आपको अपनी सोच और मानसिकता मे परिवर्तन लाना ही होगा।

किसी ने मुझे एक वाकया सुनाया। नाम नही लेना चाहिए मुझे उस व्यक्ति का।  क्या जरूरत है नाम लेने की।  खैर ! वो व्यक्ति एक प्राइवेट कंपनी मे एक अच्छे ओहदे पर नौकरी किया करता था। अच्छी तनख्वाह थी। काम का दवाब था पर, एक अच्छी तनख्वाह आपके बहुत सारे दुखों को काफी हद तक दूर कर देती है। परिवार - बच्चों का सुकून आपकी प्राथमिकता बन जाती है।बदले मे आप काफी कुछ छोड़ जाते हैं । बहुत कुछ आपसे ले लिया जाता है !जिसका पता शायद ताजिंदगी नही चल पाता है। क्योंकि आपने कभी अपने बारे मे नही सोचा। कभी जगह नही दी अपने आप को। 

खैर , चलिए मुद्दे पर आते हैं। जिस कंपनी मे वो व्यक्ति काम किया करता था, उसी कंपनी का एक पुराना मुलाजिम, एक ड्राइवर वेलू हुआ करता था। उम्र करीब पचपन से साठ के बीच की रही होगी। वेलु ने बतौर ड्राइवर अपनी सेवाएं कंपनी के तत्कालीन मालिक को तो दी ही,आज के मालिक की सेवा मे भी वह व्यक्ति लगा हुआ  था। कंपनी के तमाम स्टाफ उसके उम्र और व्यवहार को देखते हुए बड़ी इज्जत किया करते थे। एक दिन की बात है। कंपनी की राजमाता -- जी हां, उन्हें राजमाता संबोधित करना ही उचित होगा। भाई, आज के कंपनी के मालिक की मां जो ठहरीं। किसी प्रसंगवश कंपनी के मालिक के लड़के ने जिसकी उम्र लगभग छः या सात वर्ष की होगी, राजमाता की उपस्थिति में वेलु को  वेलु अंकल कह कर संबोधित  कर दिया। वेलु अंकल, उस बच्चे ने बिल्कुल सही संबोधन किया। ज्यादा उचित तो वेलु बाबा होता। खैर! अब आप राजमाता की त्वरित प्रतिक्रिया सुनें जो उन्होंने सार्वजनिक रूप से सबके सामने अपनी भौंहें तरेरते हुए दिया ------ " वेलु अंकल नही ! वेलु कहो! 

सच है - "वी अरे बोर्न तो रूल!"  क्या कहेंगे एसी मानसिकता को आप ! आपको नही लगता है कि ऐसी सोच रखने वाले लोग मानसिक विकृति के शिकार हैं!

आप जो भी करते हैं। जैसा भी व्यवहार करते हैं। सार्वजनिक तौर पर आपका रहन सहन। आपके काम करने का तरीका। आपके बात करने का तरीका! यह आपका अपना मनोविज्ञान है।हर व्यक्ति अपने मनोविज्ञान से ही बंधा होता है। और मनोविज्ञान का एक चरित्र के रूप मे विकसित होना एक दिन की बात नही।
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लेखक - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
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