मनु कहिन -बिहार की विरासत : कोल्हुआ-वैशाली

 पर्यटन स्थान 

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नोट -   इस  लेख में कृपया विस्मयादिबोधक '!'  चिन्ह को 'पूर्ण विराम' (I या . ) मानकर पढ़ें."

बरसात का मौसम हो, और आप सफ़र पर निकले हों इससे अच्छी बात क्या हो सकती है! और हां, सफ़र कहां का ! फिर सफ़र अगर इतिहास के पन्ने पलट रहा हो तो फिर क्या कहना ! बचपन मे मुझे भी लगता था कि अगर कोई उबाऊ विषय है तो वह इतिहास है ! पर नही ! वह मेरी सोच परिपक्व नही थी ! हमने तो इतिहास के पन्ने या तो परीक्षा मे पास करने के लिए पलटे या फिर नौकरी पाने के लिए ! कभी सोचा ही नही कि ऐतिहासिक महत्व की चीजों को जरूरत है नजदीक जाकर देखने की ! जरूरत है एक एहसास, एक अनुभूति के साथ पन्ने पलटने की ! आप देखें आपकी विरासत कितनी समृद्ध थी ! जब आप नजदीक से अपनी विरासत को देखते हैं तो एक रोमांच पैदा होता है ! उस वक्त हमें अहसास होता है कहां हम आजकल अपने आप को छोटी-छोटी बातों मे उलझाए हुए हैं!विरासत को नजदीक से देखना, विरासत पर गर्व करने जैसा है ! चलिए, आज हम आपको ले चलते हैं एक ऐसे ही ऐतिहासिक सफ़र पर! 

 कोल्हुआ -  बिहार के वैशाली के पास एक छोटी सी जगह जहां पर एक स्थानीय वानर प्रमुख (वानर संभवतः एक आदिवासी जाति का नाम था)  ने भगवान बुद्ध को शहद अर्पित किया था ! इस घटना को बौद्ध साहित्य में बुद्ध के जीवन से जुड़ी आठ प्रमुख घटनाओं में से एक महत्वपूर्ण माना जाता है!  कोल्हुआ,  यह वह जगह है , जहां भगवान बुद्ध ने कई दिन वर्षा ऋतु के दौरान व्यतीत किए जिन्हें वर्षावास कहा जाता है ! यह वही जगह है,  जहां पर भिक्षुणियों को  संघ में प्रवेश करने की अनुमति दी गई ! यहां भगवान बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण की पूर्व घोषणा की ! बाद में वह कुशीनगर चले गए जहां पर तीन महीने के पश्चात उनका परिनिर्वाण हुआ ! 

कोल्हुआ,   जहां पर वैशाली की एक स्वाभिमानी, थोड़ी अभिमानी राजनर्तकी आम्रपाली को एक विनम्र भिक्षुणी के रूप में परिवर्तित किया गया!  

कोल्हुआ , यहां पर एक चमकदार बलुआ पत्थर से बना,  एकाशम स्तंभ है जो लगभग 11 मीटर ऊंचा है!  मौर्या काल मे इसे सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया था! स्थानीय लोगों के बीच यह भीमसेन की लाठी के नाम से मशहूर है!

भारत मे  संप्रति जो बीस स्तंभ बचे हुए हैं उनमें से यह एक प्रमुख स्तंभ है ! भारतीय इतिहास में चार प्रमुख स्तंभों का जिक्र आता है , इनमें वैशाली का कोल्हुआ स्थित अशोक स्तंभ सबसे पुराना है ! एक बात गौर करने की है और हां यह एक ऐतिहासिक तथ्य भी है कि अशोकाने जहां भी अपने स्तंभ बनाए वह सभी कहीं न कहीं बौद्ध विहार और इसके आसपास ही बनाए गए हैं ! 

अशोक स्तंभ के नज़दीक के स्तूप का निर्माण मौर्य काल मे किया गया था जिसे बाद में कुषाणों के समय थोड़ा बदलाव कर इसके चारों ओर प्रदक्षिणा पथ बनाया गया! स्तंभ के पास ही एक कुण्ड का निर्माण भगवान् बुद्ध के लिए वानरों ने कराया था ! अशोक स्तंभ के पास में ही भगवान बुद्ध का एक मुख्य स्तूप भी है! इसके साथ ही एक कुटागारशाला है जो संभवतः  भिक्षुओं के रहने के लिए एक प्रमुख स्थल है।

 कोल्हुआ , जहां पर भगवान बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण से पहले अपना अंतिम उपदेश दिया था ! ऐसा माना जाता है की भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात उनकी अस्थियों को 8 भागों में बांटा गया और उसे कुशीनगर के तब के शासक जो मल्ल वंश के थे और भगवान बुद्ध के रिश्तेदार भी थे , उन्होंने उसे आठ भिन्न-भिन्न दिशाओं में भेजा ! उन्हीं में से एक वैशाली के तब के शासक लिच्छिवियों के पास आया !

कोल्हुआ के पास ही कुंडलपुर गांव के वासोकुंड नामक स्थान पर भगवान् महावीर की जन्मस्थली है ! यह एक अद्भुत संयोग ही कहा जा सकता है कि जिन दो प्रमुख धर्मों ने विश्व को एक नई दिशा दी , उन्हें एक नया आयाम दिया, लोगों को एक नया रास्ता दिखाया , उसका संबंध बिहार खासकर वैशाली से हैं!

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लेखक - मनीश वर्मा 
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