"हवा"
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शब्द ख़ामोश हैं
विचार कहीं अटके पड़े हैं
जेहन में ढेरों जज़्बातों की चिंगारियाँ सुलग रही हैं
न जाने किस हवा के इंतजार में हूँ
जो आए और इन्हें आग बना दे
विचार अटकाने वाली खूँटी को उखाड़ फेंके
हर्फ़ के एक-एक तह को खोल दे
कोने में पड़ी अलसाई
रचनात्मकता को स्फूर्ति दे
पर प्रश्न यह है कि मेरे लिए ये हवा देगा कौन
कोई नहीं...
जड़ हुई अभिव्यक्ति को मुखर करना होगा
कैद हुए स्वर को मुक्त करना होगा
परिस्थिति में जकड़ी हुई निजता को पुरजोर उठाना होगा
हमें अपने हिस्से की हवा को खुद अपने इशारों पर बहाना होगा
....
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शब्द ख़ामोश हैं
विचार कहीं अटके पड़े हैं
जेहन में ढेरों जज़्बातों की चिंगारियाँ सुलग रही हैं
न जाने किस हवा के इंतजार में हूँ
जो आए और इन्हें आग बना दे
विचार अटकाने वाली खूँटी को उखाड़ फेंके
हर्फ़ के एक-एक तह को खोल दे
कोने में पड़ी अलसाई
रचनात्मकता को स्फूर्ति दे
पर प्रश्न यह है कि मेरे लिए ये हवा देगा कौन
कोई नहीं...
जड़ हुई अभिव्यक्ति को मुखर करना होगा
कैद हुए स्वर को मुक्त करना होगा
परिस्थिति में जकड़ी हुई निजता को पुरजोर उठाना होगा
हमें अपने हिस्से की हवा को खुद अपने इशारों पर बहाना होगा
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कवयित्री - अंकिता साहू
शिक्षा - स्नातकोत्तर (हिंदी),इलाहाबाद विश्ववि.
यूजीसी-नेट उत्तीर्ण
आकाशवाणी से कविता-पाठ और अन्य कार्यक्रम