साक्षरता दिवस पर विशेष आलेख
विश्व संग भारत आज 8 अगस्त 2019 को 54 वें साक्षरता दिवस मना रहा है । साक्षरता के लिए भारतवर्ष में सभी प्रयास करने वाले व्यक्त्यों और संस्थाओं को नमन एवं शुभकामनाएं ।
साक्षरता लिखना , पढ़ना , अक्षरों , अंकों को सीखने के साथ हमें अपने परिवार, समाज, देश, विश्व का विकास
करना है । जिससे अब कोई अनपढ़, गंवार न रह सकें । सभी शिक्षा की धारा से जुड़ें । विद्या और ज्ञान को कोई भी व्यक्ति नहीं चुरा सकता है ।
शिक्षा की अहमियत के कारण हमारे देश भारत में 80 प्रतिशत जनसंख्या शिक्षित हैं। गांधी जी ने कहा, " निरक्षता हमारे लिए कलंक है" अभी 20 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं । देश की तरक्की, प्रगति, विकास साक्षरता पर ही टिका है। वर्तमान समय में देश में गरीबी, जनसंख्या की वृद्धि सबसे बड़ी समस्या है। जिन अल्पसंख्यकों, कमजोर वर्ग, आर्थिक रूप से नीचे के तबके के घरो में माता-पिता निरक्षर है । उनके बच्चे पढ़ना नहीं चाहते हैं।
उन्हीं घरों में साक्षरता की जड़ों को मजबूत करना होगा । हर शिक्षित व्यक्ति की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि समाज में शिक्षा के प्रचार प्रसार में प्रयासरत रहे। हमारे घर में साफ सफाई करनेवाली, बर्तन माँजने वाली पिछड़े वर्ग के लोग काम करने आते हैं । उन्हें हमें शिक्षित करना होगा । जिससे वे भी साक्षर हो । निरक्षरता समाज के लिए अभिशाप है ।
भारत की आजादी के बाद पूरे देश में सरकार ने 'सर्व शिक्षा अभियान ' की शुरुवात की है । साक्षरता दर हमारे सारे राज्यों में अलग -अलग है। हिंदी भाषी राज्यों में जैसी साक्षरता होनी चाहिए वैसी नहीं है जैसी केरल राज्य में साक्षरता सबसे ज्यादा है।
शिक्षा को सीखना एक कठिन प्रक्रिया, तरीका जरूर है । अभी भी लोग अँगूठा लगाते हैं । मेरे अनुसार-
"न कोई हो अंगूठछाप
बने, बनाएं साक्षर आप ।"
इस प्रसंग में पंचतंत्र की कहानियाँ इस संदर्भ में सटीक है । एक राजा के बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता था । फिर राजा ने ऐसा विद्वान विष्णुदत्त को ढूंढ निकाला जिसने कहानियों को द्वारा बच्चों को साक्षर बना के प्रबुद्ध, ज्ञानी बनाया ।
आज भी भारतीय समाज में बेटे को पढ़ाया जाता है। बेटियों को दूसरे घर जाना है । उसे पढ़ा कर क्या करेंगे ? बेटा तो माता - पिता का मूलधन माना जाता है। जो उनके जीवन- यापन का सहारा होता है। अब हमें यह विचारधारा बदलनी होगी। बेटी को हमें पढ़ना होगा। समाज को जागरूक करना होगा। क्योंकि बेटियाँ पढ़ लिख के सक्षम सबल बनके अपने पैरों पर खड़ी है। समाज, परिवार, देश का कुशल नेतृत्व कर रही है और शादी के बाद वही साक्षर बेटी ससुराल में भी अपने पैरों पर खड़ी हो के आर्थिक सहयोग करती है ।
हम अपने बेटा - बेटी के पढ़ाने में भेदभाव न करें । बच्चों के पढ़ने से जन्मदर कम होगा । स्वास्थ्य की बढ़ोतरी होगी । स्वास्थ्यमय परिवार, समाज देश का निर्माण होगा। अंधविश्वास , कुपोषण , नशा , बेरोजगार जैसी समस्याओं को समाधान मिलेगा। साक्षरता से समाजिक, आर्थिक, पारिवारिक उन्नति होगी। देश का भविष्य, विकास सुधरेगा।
सरकार, संस्थाएँ इस दिशा में बेहतर काम कर रही है। शिक्षा ही समाज को आगे बढ़ाती है। कबीर अनपढ़ थे लेकिन उनके ज्ञान के आगे सभी नतमस्तक होते हैं। साक्षरता के लिए हम को सरल, सहज तरीका अपनाने होंगे। भावी पीढ़ी पढ़ने में रुचि ले इसके लिए हमें कहानी , कविता , नाटक , संवाद , प्रश्नोत्तर विधियों को सहारा लेना होगा । कार्टून , बालफिल्मो , श्रव्य , दृश्य साधनों को सहारा लेने होंगे।
बच्चों के स्तर पर शिक्षक को समझाना होगा। बच्चों के परिवेश के अनुसार उस कौशल को, कहानियों क्षमता से समझाना होगा। शिक्षकों को भी इस तरह का प्रशिक्षण सीखना होगा तभी आज की पीढ़ी को उस उच्च शिखर को छूने की क्षमता को ताकत देगी। अंत में मेरे अनुसार -
"देश की तभी होगी विश्व में पहचान
पढ़े, लिखे हर बाल, बेटी, वृद्ध इंसान।"
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आलेख - डॉ . मंजु गुप्ता
पता - वाशी , नवी मुंबई