Wednesday 25 September 2019

मनु कहिन (11) - साहब और उनकी साहबी (व्यंग्य)

अभिवादन स्वीकार करने का ग़ज़ब अंदाज

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साहब! बड़े साहब! कभी साहब का अभिवादन करें। उन्हें प्रणाम करें। आप पाएंगे , कुछ तो अलग बात है इनमें, तभी तो साहब हैं! अभिवादन स्वीकार करने का अंदाज बड़ा ही निराला। अगर, अभिवादन करते वक्त आपने उनसे नज़रें न मिलाई तो कसम से आपको पता ही नही चलेगा कि साहब ने आपका अभिवादन स्वीकार किया या नही। आपको यहां भी तत्पर रहना होगा। 

आप क्या चाहते हैं साहब? 
आपके अभिवादन/ प्रणाम का जवाब उसी तरह से दें? 
क्या बात करते हैं आप ? आपने उन्हें कोई  सेल्यूट थोड़े ही न किया है कि वो बाध्य हैं आपको सेल्यूट करने के लिए। जरा समय, ओहदा सभी का ख्याल करें। आखिर यही दो चार बातें ही तो उन्हें आम आदमी से अलग बनाती है! 

जानिए, इस बात पर गौर फरमाइये। साहब जब साहब होता है न, तो उसका एक दायरा होता है।  साहब का सब कुछ एक दायरे में ही होता है। साहब की चाल की नफ़ासत और नज़ाकत उसी दायरे की देन हैं।

जनाब, साहब और उनकी साहबी तो गंगा- यमुना- हुगली तमाम तहज़ीबों  के साथ ही साथ चलती है। कोई फर्क नही पड़ता है। जब तक हम हैं, साहब और उनकी साहबी  रहेंगी। हम दोनों एक दूसरे के पूरक जो ठहरे। अगर, ऐसा नही तो,  "अधिकारियों के लिए" नही होता! "कर्मचारियों के लिए" नही होता!

वैसे, सारे बाबुओं की वेतन वृद्धि तो साल में दो बार ही होती है।
अब तो आपको कोई संशय नही होना चाहिए, अपने साहब और उनकी साहबी के प्रति।
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आलेख - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
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