Sunday 15 September 2019

मनु कहिन (10) - हिन्दी और हम

कम से कम प्राथमिक स्तर पर तो यह अनिवार्य होनी चाहिए

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आजकल  हम सभी हिंदी पखवाड़ा के साथ ही साथ हिन्दी दिवस मना रहे हैं।  लगभग हर सरकारी महकमों मे आप पाएंगे कि सितंबर माह मे कार्यालयों मे हिंदी दिवस एवं पखवाड़ा मनाए जाने की धूम मची रहती है। उस दौरान ऐसा लगता है मानो अब से, कार्यालयों मे सारा काम हिंदी मे ही होगा। अंग्रेजी तो बस, एक दो दिन की ही मेहमान है। अबकी बार तो मानो इसकी विदाई तय है। सभी बड़े जोश - खरोश के साथ हिन्दी को हमेशा के लिए स्थापित करने के लिए अपना पूरा जोर लगाए हुए हैं (वैसे बहुत पहले से ही हिन्दी हमारी राजभाषा है) । तमाम बड़े अधिकारी हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं विकास पर व्याख्यान देते हुए मिल जायेंगे। लगभग प्रत्येक सरकारी महकमों मे इस अवसर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है। पुरस्कार बांटे जाते हैं।

यहां पर प्रसंगवश, एक वाक्या का जिक्र करना चाहूंगा। उस वक्त मेरी पोस्टिंग अहमदाबाद मे थी। सितंबर का महीना चल रहा था। बड़े जोर शोर से हिन्दी दिवस एवं पखवाड़ा मनाया जा रहा था। अपने अन्य विभागीय साथियों के साथ मैंने भी हिन्दी लेख, लेखन प्रतियोगिता मे भाग लिया था। अब उस दिन देखिए क्या हुआ? प्रतियोगिता मे जाने से पहले किसी कारणवश जब मैं हिन्दी अधिकारी के कमरे मे गया तो मैंने क्या देखा! उनकी मेज पर शीशे के नीचे,   अंग्रेजी मे एक क़ोटेशन लिखा था। मेरे मन मे पता नही क्या आया, मैंने उसे याद कर लिया। प्रतियोगिता मे मैंने उसी क़ोटेशन के साथ अपनी शुरुआत की। लिखने को तो मैं लिख गया पर बाद में मुझे डर भी लगा । लगा, मुझे नही लिखना चाहिए था। पर, अब क्या होना था। पर, जब परिणाम आया तो वो मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य से कम नही था। मुझे पूरे प्रभार मे द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ था। अब आपके मन मे एक स्वाभाविक प्रश्न आ रहा होगा कि मैंने इस वाकये का जिक्र क्यों किया?

दो तीन वजहों की वजह से। देखिए मुझे किसी भी भाषा से परहेज़ नही है और ना ही उसे जानने और सिखने से कोई गुरेज। मेरा तो बस इतना मानना है कि आप जहां भी रहें, जिस पद पर रहें, एक "रोल मॉडल" की भूमिका मे रहें। आप अपने दायित्व एवं भूमिका को पहचानें। 

अब इस बात को हमलोग समझें, अपने नजरिए को बदलें। बच्चों को बखूबी अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों मे पढ़ाएं। पर, उन्हें हिन्दी भाषा से जोड़ें तभी वो भारत की संस्कृति से अपना जुड़ाव महसूस करेंगे। भारतवर्ष मे जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है,  बहुतों की मातृभाषा है , जहां बहुसंख्यक लोगों के द्वारा हिन्दी बोली जाती हो, वहां हमें हिंदी दिवस एवं पखवाड़ा मनाए जाने की आवश्कता क्यों?  

कम से कम प्राथमिक स्तर पर तो यह अनिवार्य होनी चाहिए। भाषाई एकरूपता तो किसी भी देश के सर्वांगीण एवं सांस्कृतिक विकास के लिए बहुत ही जरूरी है। विश्व मे शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां की राजभाषा को हमारी राजभाषा की तरह अपनी पहचान बनाए रखने के लिए मशक्कत करनी पड़ती हो। सफ़र मे कहीं आप हिन्दी उपन्यास या साहित्य पढ़ रहे हों और आपके सामने बैठा हुआ व्यक्ति अंग्रेजी साहित्य या उपन्यास कुछ भी पढ़ रहा हो, लोगों का उसके प्रति भाव, उनका नजरिया बहुत कुछ बयां कर देता है। बताने की जरूरत नही है।जरूरत है इस मानसिकता एवं नजरिए को बदलने की। जरूरत ही नही पड़ेगी आपको पखवाड़ा और दिवस मनाने की। भाई, राजभाषा है यह। मेरी, हमारी, हम सबकी, मातृभाषा है। सम्मान की हकदार तो है ही। पूरे देश को एक सूत्र मे पिरोती है ये। गर्व से, आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान के साथ इस्तेमाल करें।
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आलेख - मनीश वर्मा 
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