डॉ0 राधाकृष्णन और शिक्षक दिवस की महिमा
शिक्षक , गुरु, अध्यापक, आचार्य आदि गुरु के पर्यायवाची शब्द हैं। अगर हम गुरु का शाब्दिक अर्थ करें गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है प्रकाश यानी जो इंसान हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की और ले जाए वहीं हमारा गुरु हुआ। जो शिक्षण के द्वारा हमारे जीवन का सच्चा हितेषी बन के मार्ग दर्शन करता है। गुरु जो लघु नहीं है और लघु को गुरु बनाता है। भारतीय संस्कृति पर दृष्टिपात करें तो शिक्षण दो प्रकार का होता है।
१ ) अंतःशिक्षण २ ) बाह्य शिक्षण
अंतःशिक्षण द्वारा बुद्धि, स्मृति, मेघा एवं प्रज्ञा के ज्ञान चक्षु खुलते हैं। बच्चा माँ के गर्भ से संस्कार सीखने लगता है और जन्म लेते ही माता-पिता की गतिविधियों, क्रियाकलापों के संस्कार उसमें पड़ने लगते हैं। बचपन में पड़े संस्कार जिंदगी भर साथ चलते हैं जो हमारी आत्मोन्नति मूलक होते हैं। ये हमारा चारित्रिक विकास करते हैं। इसलिए बच्चे की पहली पाठशाला और गुरु माँ होती है। माँ अहं से दूर रहकर अपनी संतान के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है।
बाह्य शिक्षण- संत, महापुरुषों की जीवनी पढ़कर, विद्यालयों में जाकर शिक्षा ग्रहण करना आदि। शिक्षा का उद्देश्य हमारा संस्कार करना है। विद्यार्थियों के पूर्ण विकास में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बचपन ही जीवन की आधारशिला होती है।उन्हें सीखने का अवसर स्कूल, घर, परिवेश से ही मिलता है। छात्रों की विविध प्रतिभाओं को निखारने, प्रोत्साहन देना काम गुरु ही करता है।
अतः अध्यापक बच्चों का भविष्य निर्माण कर राष्ट्र निर्माता बन जाता है क्योंकि राष्ट्र निर्माण में गुरु की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जिंदगी भर जो भी हमें सिखाए वे सब हमारे गुरु ही होते हैं। अध्यापक को यूँ भी परिभाषित कर सकते हैं मेरे अनुसार -
अ से अध्यापक है होता । सृजनाकार - सा स्वर-व्यंजन सिखाता
ध्या से ध्यान - साधना करवाता। धर्म - नैतिकता का पाठ पढ़ाता।
प से पूर्णता का प्रतीक बन के सही दिशा ज्ञान है सिखाता ।
क से कर्ता, कर्म, क्रिया, कारक बनके व्याकरण ज्ञान सिखलाता।
शब्द, व्याकरण के मेल से बनता वाक्य
सिखा के बौद्धिक ज्ञान संसार
करे भविष्य को साकार
अध्यापक की महिमा अपरम्पार
करती 'मंजु' कोटि-कोटि नमस्कार।
कबीर ज्ञान का उजाला देने वाले गुरु को कुम्हार की उपमा देते हुए कहते हैं -
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।
गुरु को ईश से बड़ा माना गया है, गुरु की महिमा, उपकारों को कबीर भी नहीं भुला पाते हैं वे कहते हैं -
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पाय?
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय।
अतः सदियों से संसार ने गुरु को पूजनीय माना है। शिक्षक ही बच्चों को यानी उन्हें डॉक्टर, वकील, शिक्षक, वैज्ञानिक आदि बनाककर उनका भविष्य दीर्घस्थायी बनाता है।
भारतीय शिक्षा, संस्कृति के संवाहक भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन महान दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, विचारक, शिक्षाविद, दर्शन के शिक्षक, राजनयिक, राष्ट्रपति थे। १९६२ में हमारे देश के राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन से तब कुछ छात्रों ने उनके जन्मदिवस ५ सितम्बर को' शिक्षक दिवस ' मनाने का प्रस्ताव रखा। तब उन्होंने अपने मनोभाव व्यक्त किए कि मेरे जन्मदिवस को मेरे अध्यापन, शिक्षण के प्रति समर्पण के रूप में सभी शिक्षकों के सम्मान के खातिर 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाए। तब से भारत में शिक्षा के प्रति जागरूकता, चेतना जगाने में गुरु की समाज में विशेष भूमिका होने के कारण इस दिन को मनाया जाता है। उन्होंने चालीस सालों तक शिक्षा, दर्शन की साधना, शैक्षिक कार्य किए। दर्शन शास्त्र के प्रख्यात ज्ञाता बन दर्शन शास्त्र के बीज भारत में बोए ।
उनका कथन है "केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है। स्वयं के साथ ईमानदारी, आध्यात्मिक अखण्डता की अनिवार्यता है ।"
भारत के सभी विद्यालयों, कॉलेज, विश्वविद्यालय में "शिक्षक दिवस" बड़े उत्साह- उमंग के साथ मनाते है। छात्र अपने शिक्षकों को ग्रीटिंग कार्ड, फूल, गुलदस्ते, बुके, उपहार दे कर शुभकामनाएं, बधाई देते हुए आभार, धन्यवाद देता है। विद्यालयों में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम के संग छात्र शिक्षक बनके बच्चों को पढ़ाने का आनंद लेते हैं और जगह -जगह सार्वजनिक कार्यक्रम भी होते हैं।
इसी दिन राज्य सरकार अपने- अपने राज्यों से चुने आदर्श शिक्षकों को पुरस्कारों से सम्मानित भी करती है। अब तो छात्र अपने गुरुओं को सोशल मीडिया की भूमिका होने के कारण फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप्प, वीडियो , ऑनलाइन बात करके आदि से शुभकामनाएं संदेश देकर कृतज्ञता प्रकट करते हैं ।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन विश्व को एक विद्यालय मानते थे। शिक्षा, संस्कारों से मानव मस्तिष्क को परिष्कृत, सुसंस्कृत और सदुपयोगी बना कर समाज का पुनरुत्थान कर सकते हैं। विश्व को एक परिवार मनाते हुए विश्व शांति को ध्येय मानते हुए ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में उनका वक्तव्य था - "मानव को एक होना चाहिए। मानव जाति का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति तभी सम्भव है जब देशों की नीतियों के आधार पूरे विश्व शान्ति की स्थापना का प्रयत्न हो।" वे अपने अध्यापन काल में छात्रों से नैतिक मूल्यों को अपनाने के लिए जोर देते थे। छोटा- बड़ा हर कोई भी इन मूल्यों से जुड़ सकता है।
गुरुओं को सम्मान देने के लिए विश्व के विभिन्न देशों में अलग - अलग तारीखों पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। "विश्व शिक्षक दिवस " ५ अक्टूबर १९६४ से मनाया जा रहा है।
गुरु की महत्ता दर्शाते हुए कबीर ने कहा है –
यह तन विष की बेल री, गुरु अमृत की खान
शीश दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान।
अंत में यह कहना ठीक रहेगा कि गुरु-शिष्य का रिश्ता सम्रुद्र की लहरों-सा है जो शिष्य को गंतव्य की ओर ले जाता है। कबीर ने भगवान से ज्यादा गुरु को महत्व दिया। गुरु ही वह सीढ़ी है जिसके द्वारा हम भगवान सए साक्षात्कार कर सकते हैं। छात्रों का गुरुओं द्वारा ही सर्वांगी, समग्र विकास होता है। शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को मेरा पुन: कोटि-कोटि नमन!
.......
आलेख - मंजु गुप्ता
पता - वाशी, नवी मुम्बई
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
यह तन विष की बेल री, गुरु अमृत की खान
शीश दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान।
अंत में यह कहना ठीक रहेगा कि गुरु-शिष्य का रिश्ता सम्रुद्र की लहरों-सा है जो शिष्य को गंतव्य की ओर ले जाता है। कबीर ने भगवान से ज्यादा गुरु को महत्व दिया। गुरु ही वह सीढ़ी है जिसके द्वारा हम भगवान सए साक्षात्कार कर सकते हैं। छात्रों का गुरुओं द्वारा ही सर्वांगी, समग्र विकास होता है। शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को मेरा पुन: कोटि-कोटि नमन!
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आलेख - मंजु गुप्ता
पता - वाशी, नवी मुम्बई
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com