Thursday 26 September 2019

आँचल और घूँघट / युवा कवि - विजय कुमार

आँचल - कल आज और कल

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आँचल के साये में मन जब हर्षित होता
उसके कोर से नम हर नयन नोर पोंछता
कंकर पत्थर जेठ की तपन व पूस की ठंडक
सहारा हर पल जब माँ का ही आँचल बनता।

आँचल शिकन को दूर कर एक सुकून देने को
आँचल नारी शक्ति का, नारी सम्मान  के लिए
सभ्यता की मझधार में, संस्कृति के मान में
निज प्रतिष्ठा का अरमान जब आँचल बनता 

आँचल जो साये में नन्हे पैरों की थकन
कम करता, हमारे बचपनों को निभाता
बाहें फैलाता आँचल आज भी यदा-कदा
माँ का वो आँचल, आज भी क्या खूब भाता
.....

घूँघट - एक नारी शक्ति

ज़िंदगी के पहिये भी धुरी पर
नारी की बदौलत सफर हो पूरी मगर
घूँघट एक पहचान नारी की
देना है सदा सम्मान हर डगर।

आँगन से दलान की दूरी पर
ग़ाँव की ज़िन्दगी चली जब
घूँघट एक अरमान नारी का
रहा है सम्मान हमरा भी तब 

ग़ाँव से शहर में पलायन पर
बदस्तूर है आज भी वो स्तम्भ
घूँघट मजबूत गहना नारी का
जाये कुछ भी रूप चाहे बदल।

कल से आज और फिर कल
भारतीय नारी का उन्मुक्त धर
घूँघट एक शक्ति हर नारी की
रहेगा मान सदा बढ़े जो क़दम
.......


कवि - विजय कुमार
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