बड़े अरमान से
बड़े अरमान से मिलते हैं दिल अक्सर
क्यों उदासियाँ घेर लेतीं हैं मुझको अक्सर
देखी हैं कई बार हमने नसीब की लकीरें
उम्मीद को अंगड़ाई लेते देखा उनमें अक्सर
चेहरे पे उनके जब भी देखता हूं 'रौनक'
दुआओं में शुक्र मनाता हूं रब का अक्सर
इश्क के सफर में कभी मिल के चले थे
गुजरा वो हसीन मंज़र, याद आता है अक्सर
वक्त मुझसे रूठ गया 'त्रिलोचन' तो क्या
ये क्या कम है उस पे फिदा मिलता है अक्सर।
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कवि- त्रिलोचन सिंह 'अरोरा'
कवि का ईमेल - trilochansingharora07@gmail.com
पता - नई मुंबई
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