सखी
ज़ख़्मी मन को
स्नेह सुधा से
नहला दे जो
सखी वही है
मित्र वही है.
दुख में डूबे हुए मन को
प्रेम अमृत पिला दे जो
सखी वही है
मित्र वही है.
जुदाई के वियोग में
व्याकुल चित्त को
फुसलाकर समझा दे जो
सखी वही है
मित्र वही है.
नीरस मन को
प्रेम सरोवर में
डूबकी लगवा दे जो
सखी वही है
मित्र वही है.
अपनो से आहत हृदय को
ममता का आँचल पकड़ा दे
सखी वही है
मित्र वही है.
नयनों की भाषा
पल में पढ़कर
काम बना दे जो
सखी वही है
मित्र वही है.
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कवयित्री - अलका पाण्डेय
कवयित्री का ईमेल - alkapandey74@gmail.com
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