चिंतन
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जब आप अपनी उम्र के पचासवें वर्ष के आसपास होते हैं, तब आप थोड़ा सा वक्त निकाल पाते हैं , अपनी व्यस्तम जिंदगी से अपने आप के लिए। हालांकि , व्यस्तता की प्रकृति थोड़ी बदलती है । आप मुक्त नही हो पाते हैं। बच्चे अपनी पढ़ाई या करियर के सिलसिले मे व्यस्त होते हैं। पत्नी बच्चों और आपके बीच अपने आप को व्यस्त रखने की कोशिश करती हैं। एक सामंजस्य सा बिठाने की कोशिश करती है वो। तब आप अपने आप को देख पाते हैं या यूं कहें देखने की कोशिश करते हैं । कितना देख पाते हैं वो तो भगवान ही जानता है।
तब आप कोशिश करते हैं, अपनी जिंदगी की अब तक की फिल्म को , स्लाइड्स को रिवाइंड कर फिर से देखने की। जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती जाती है, आपकी जिंदगी की परतें, परत दर परत खुलती जाती हैं।
आप सोचने लगते हैं ! काश ! इस जगह पर ऐसा होता । काश! उस जगह पर वैसा होता! काश! मैं अपनी जिंदगी को पुनः एक शुरुआत दे पाता । आप बस सोचते ही जाते हैं। फिल्म आगे बढ़ती जाती है। बहुत सारे क्षण गुजरते जाते हैं। कुछ क्षणों को आप नही देखना चाहते हैं। कुछ क्षणों को आप रोकने की कोशिश करते हैं। उन्हें आप बार बार देखना चाहते हैं! आप चाहते हैं ऐसा हमेशा होता रहे। कुछ पलों को आप सुधारने की कोशिश करना चाहते हैं।आप तमाम अच्छे बुरे पलों के साथ वहीं पहुंच गए हैं। आपका ब्लड प्रेशर अब आपके काबू मे नही है। आप परेशान हैं।
काश! हम एक फिल्म की कहानी की तरह अपनी जिंदगी की कहानी को 'रिवाइंड' करते हुए एक अच्छे एडिटर की तरह कुछ एडिट कर पाते।उ से पुनः एक नया कलेवर दे पाते। एक नई शुरुआत कर पाते। पर, यह कैसे संभव है! यही तो आपका और हमारा प्रारब्ध है। हम और आप अपने प्रारब्ध को कैसे बदल सकते हैं। बस ,अगर हम और आप कुछ कर सकते हैं तो तो अपनी जिंदगी को पूरी तरह 'पोजिटिविटी' के साथ जिएं।
जिंदगी बड़ी ही अनमोल होती है। बहुत कुछ सिखा जाती है।
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लेखक - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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