Tuesday 7 July 2020

कोरोना चुटकुले और कविता / विजयेन्द्र मोहन

चुटकुले 

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1.

आप इतनाबुजुर्ग हैं, इसके बाद भी आपने घर से चोरों को कैसे भगाया?
मैं ने हंसते हुए कहा-
ऐसा हुआ कि मैं नीचे हॉल में सोया था। चोर खिड़की से घर में घुसे। उन्होंने मुझे लात मारकर उठाया।
मैं उठा, लेकिन हड़बड़ाया नहीं।
चोरों ने पूछा - "माल कहां रखा है? तिजोरी किधर है? घर के बाकी मेंबर कहां सोएं हैं?"
मैंने बिना देर किए तुरंत कहा - "सभी पैसा, जेवर लेकर खेत में बने फॉर्म हाउस में रहने गए हैं बेटा।
मैं घर में अकेला हूं।"
"...और हां, जाते समय साबुन से हाथ धोकर जाना। कोरोना होने के कारण मुझे यहां क्वारंटाइन किया गया है।"
........

2.

अभी अभी सब्जी ले कर आया हूँ।  कमाल हो गया।
आज बाजार में एक महिला ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा : "अजी सुनते हो, भिंडी ले लूं ? बना लोगे ?"*
जब मैंने चेहरे से मास्क हटाया
तो वो शर्माकर बोली -
*'हाई दय्या हमारे वो किधर गए? उन्होंने भी ऐसा वाला मास्क ही पहन रखा था !!
इसीलिए कहता हूं -
"खतरा अभी टला नही है, घर पर रहें, सुरक्षित रहें...।"
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3.

नाक और सिर की  तकरार
सदियो से दोनो मे तगड़ा  मनमुटाव चल रहा था।
नाक कहती है:- इंसान को मुझ से इज्ज़त मिलती है या जाती है। तो मेरे पास पगडी क्यो नहीं ?
नाक का कहना है:- सभी मुहाबरे मे मेरा ही जि्क्र होता है। जैसे:- नाक कटना।
नाक के नीचे होना।
नाको चने चवाना।
नाक के बाल खिचना वगैरह-वगैरह। जब मुझ से इंसान की इज्जत बनती है या बिगड़ती है तो मेरे ऊपर पगड़ी क्यों नहीं?
ईश्वर ने कहा - "नाकूजी, तुम्हारा भी समय आएगा।  चिंता करने की कोई बात नहीं है। समय आएगा तो पूरी दुनिया के इंसान तुम्हें ढकेगी वह दिन आ गया।
ईश्वर की महिमा और उनका वरदान आज के युग में नाक के टोपी सर्वोपरि है। पूरे संसार के लोग समझ गए हैं इसके बिना खतरे में जाना है। अब देखो तरह-तरह के आवरण (मास्क) तेरे है। पगड़ी टोपी छोड़कर नाक बचाने को केवल नाक ढके घूम रहा इंसान।
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4. आंखों का खेल

आंखें बंद करके जो प्रेम करें वह प्रेमिका है।
आंखें खोल कर जो प्रेम करें वो दोस्त है।
आंखें दिखा कर जो प्रेम करें पत्नी है।
आंख में आंख मिलाकर जो प्रेम करें वो भाई बहन है।
अपनी आंखें बंद होने तक जो प्रेम करे वो मां है।
परंतु आंखों में प्रेम ना जताते वे जो प्रेम करें वो पिता है।
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5. विकट अवस्था (कविता) 

यारों, किशोर वर्ष से विकट अवस्था, देख न हँसना।
परवाह नहीं की जीवन पथ पर कितने धक्के खाए।
फिर भी जीरो से सौ तक,
चढ़ने की लालसा  नहीं छोड़े।
यह कठिन श्रम साध्य रहा,
गिरना, उठना फिर चल देना
यह नियति बनी,
इसे स्वीकार किया।

एक समय आया,
जोश देने वाली संगिनी आई,
तब,सपनों में पंख लगने का
अनुभव होने लगा।
परवाह नहीं की जीवनपथ पर कितने धक्के खाए।

जीवन सदा गतिमान रखा,
स्थिर कभी नहीं हुआ जीवन 
सरल, सीधा, सपाट, सु खद 
कभी नहीं रहता 
फिर भ ,
जीवन गतिमान रहा,
स्थिर नहीं होने दिया।

वृद्धावस्था में संगिनी छूट जाने पे दुख के चादर ओढ़ हुए,
जीवन को गतिमान रखा 
सधे कदम बढ़ाए।
सार्थक, प्रगति, उन्नति देख
मेरे मित्रगण उत्साह भरते रहे,
वृद्धावस्था में भी जीवन जीने की कला को पहचाने।
परवाह नहीं किए जीवन,पथ पर कितने धक्के खाए।।
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लेखक /कवि - विजयेंद्र मोहन
रचनाकार का ईमेल आईडी - mohan.vijayendra@gmail.com
रचनाकार का पता - जे ई - 6, वास्तु विहार चिराचास बोकारो JE-6 Rd-2 Vastu-Vihar,Chirachas. BOKARO
पिन- 827015. ( झारखण्ड)
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