Thursday 23 July 2020

विजय मोहन की फुटकर रचनाएँ

 फुटकर रचनाएँ 

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1
# हास्य लघु कहानी#
हमारे पड़ोसी अपनी पत्नी के साथ बालकनी में खड़े थे। उन्होंने हमसे कहा मेरे अकाउंट में 15 सो रुपए आ गया है बैंक जाकर पता लगाना है कहां से आया।
कुछ देर के बाद उनकी पत्नी  बोली यह पैसा मैंने आपके अकाउंट में डाले हैं क्योंकि कामवाली नहीं आ रही है आप काम कर रहे हैं तो आपको तनख्वाह चाहिए ना।
पड़ोसी बोले अरे भाई काम वाली को ३०००/-देती हो तुम मुझे १५००/- क्यो।
उनकी पत्नी का जवाब सुनिए। :-
कामवाली को 3000 देते हैं खाना पीना नहीं देते तुम खाना खाते हो इसलिए 15 सौ मिलेगा मंजूर हो तो बोलो नहीं तो पुलिस को फोन करेंगे की 5 दिन से खांस  रहे हैं तब आपको हॉस्पिटल जाना होगा १५ दिनो के लिए।
पतिदेव बोले 1500 पर मंजूर है ।
"यह नारी शक्ति है" ।

2
एक किराना दुकान में यह पोस्टर लगा हुआ था। एक महिला विनम्र स्वभाव से बोली- भैया आप होम डिलीवरी कराते हो किराना वाला बोला हॉ बहनजी आप लिखा दो हम जल्दी ही भेज देंगे।
बहन जी बोली, हमें सामान नहीं चाहिए हमें होम डिलीवरी चाहिए,
आप आ जाओ या आपका कोई टीम भेज दो चूँकि अभी कोरोना का समय चल रहा है हम कोई नर्सिंग होम में जा नहीं सकते है।
इसलिए भैया तुम आ जाओ या तुम्हारा टीम आ जाए। किराना वाला बहुत मुश्किल में पड़ा और किसी नर्सिंग होम से संपर्क करके उनका टीम बहन जी के घर भेज दिया।
तत्काल उस पोस्टर को हटाया और हिंदी में लिखा की मेरे यहॉ से कच्चा खाद्य पदार्थ आपके घर के द्वार तक पहुंचाया जाएगा।
पोस्टर्स लगाकर शांति से काउंटर पर बैठा।
होम डिलीवरी लिखना बहुत खतरनाक हुआ।

3
Every Covid check
Important message.
रोजाना शाम को 7:00 बजे बोतल खोलो,
खुशबू लो।
अगर आपको खुशबू आ रही है,
मतलब आपकी नाक सही है,
और आप 50% ठीक हैं।
फिर उसको ग्लास में डालो,
और टेस्ट का पता चल रहा है,
मतलब आपकी स्वाद ग्रंथियां सही
काम कर रही है और आप 100%
सुरक्षित है।आप घर पे रहे।

4
#जीवनसाथी#
सच्चे जीवन साथी एक-दूसरे की खुशी के लिए जीते हैं, समर्पण और प्यार के बीच अंह की कोई जगह नहीं होती। सच्चे जीवन साथी एक-दूसरे के आदर करते हैं। मेरे हमसफर दिल्ली से लौटते समय बोली थी अब हम लोग दिल्ली नहीं आएंगे। वह अपना बच्चन निभाई।
पर मैं पोता पोती औलाद के कहने पर उनके साथ दिल्ली चले गए। क्या करता, मैं अकेला हो गया था।
जीवनसाथी के कोने पर:- मैं कौन हूं पापा और अंकल? मैंने तो यह कभी नहीं चाहा था। क्यों मैं अकेला हूं........। मेरे सारे सपने टूट गए?
जिसे मैं ज्यादा चाहा वही मुझे अकेला छोड़ कर....
...चली गई। जैसे बिना पतवार के नैया नदी की धारा में ड्यूटी पर उतरती जा रही है। मैं विजय हर जगह विजय के पताका लहराता है। लेकिन अपनी जिंदगी में आ गये। धन दौलत औलाद नाम सब पा गये । लेकिन अपने मंजिल खो गए। कभी-कभी अपने को बहुत टूटा हुआ और हारा वह महसूस करता हूं। कारण अकेलापन।
जिंदगी यूं ही गुजरने लगी। लोग को समझाने लगे "मेरा घर मेरा ही होता है।" कुछ समय के बाद लोग बोलना छोड़ कर सहयोग करने लगे।
धीरे धीरे कुछ लिखने की ओर मुड़ा और कुछ लिखना  शुरू दिया। और उसमें जैमिनी अकादमी से अटल रत्न से  सम्मानित भी हुआ। लेखनी अच्छी होने पर समाज से प्रशंसा भी मिल रही है। जिससे शहर में अपनत्व होने लगा है।

5
 # शरीफ जेबकतरा#
70 के दशक की बात बता रहा हूं। मैं रांची से बोकारो आ रहे थे मेरे पॉकेट में ₹90 और एक मां के नाम पोस्ट कार्ड उसमें लिखा हुआ था मेरी नौकरी छूट गई है ।अभी पैसा भेजने में असमर्थ हूं। लेकिन इसको पोस्ट नहीं कर रहे थे, हिम्मत नहीं हो रहा था।मेरी मां कैसे घर चलाएगी। मैं दूसरे नौकरी के प्रयास में रांची गए हुए थे। वहां लगभग तय हो गया था जॉइनिंग लेटर आता तब वहां ज्वाइन करते ।
बस में मेरे बगल में एक शरीफ जेबकतरा आ के बैठ गया। रास्ता में किस समय मेरा पॉकेट काट लिया पता नहीं चला। दोनों व्यक्ति बोकारो उतरे और एक चाय की दुकान पर चाय पीने के लिए चाय का आर्डर दिए।
उसके बाद जब हाथ पॉकेट में डालें तो कुछ देर मन सन्न हो गया। और चाय वाले को मना कर दिया। बह व्यक्ति बोला चलो भाई मैं पिला देता हूं। और हम लोग चाय पी कर अपना-अपना रास्ता पकड़ लिये। पॉकेट में ₹90 और एक मां के लिए पत्र था। उस जमाने में ₹90 अभी के 900 के बराबर है। किसी तरह  खाने-पीने का इंतजाम किए यह कहकर कि नौकरी लग गई है पैसा दे दूंगा।
10 दिन के बाद एक मां का पत्र आया तो उसको पढ़ने की इच्छा नहीं थी  यही हम सोचते थे  कि मां पैसा मांगी होगी,लेकिन जब पत्र पढ़ें उसमें लिखा हुआ था की तुम कितना अच्छा बेटा हो ₹1000 भेज दिया है बहुत-बहुत आशीर्वाद। हम चिंतित हो गए हमने ₹1000 तो भेजे नहीं कौन भेज दिया है।अपने मित्रों से पता लगाने लगे किसी नहीं बताया।
पांचवा दिन एक पत्र आया उसमें लिखा हुआ था ₹90 तुम्हारा ₹910 मेरी ओर से तुम्हारी मां को ₹1000 भेजे हैं । तेरी मां मेरी मां  मां मां ही होती है ।इसलिए तुम्हारा जेबकतरा मां को ₹1000 भेजे हैं ।
तुम्हारा जेबकतरा।
आगे पीछे कोई भी पता नहीं था। इसलिए हम उसे शरीफ जेबकतरा नाम दिए आज तक 50 वर्ष हो गए हैं और वह चेहरा दिखाई नहीं पड़ा। यह लेख भुक्तभोगी लिख रहे हैं। अभी भी इंसानों में दिल है। नेकी काम पर विश्वास करते हैं।
..

लेखक - विजयेन्द्र मोहन
लेखक का ईमेल आईडी - mohan.vijayendra@gmail.com
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