Sunday 26 July 2020

सम्पूर्ण अस्तित्व / कवयित्री - श्रेयसी दत्त

कविता 

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मैं पैदा हुई थीं? या हुआ था?
इस प्रश्न का उत्तर
दाय माँ पिता जी की खुशी-भरी
नज़रो को दे न सकी
अब ये प्रश्न यहां केवल
जीवन या जीवनयापन का नहीं था।
यह प्रश्न अब अस्तित्व का था
मेरे जन्म से जुड़े कलंक का था।

मेरे जन्म पे तालियाँ बजाने कोई घर नहीं  आया।
आता भी कैसे ?
अब ताली बजाने वाला खुद ही उनके घर आ गया था।

तालियों से स्वागत नहीं, तालियों की 'सोहबत' मिली मुझे।
दायरे में सामाजिक रिश्ते नहीं थे मेरे
अब न कोई माँ-पिता ना ही कोई भाई-बहन
समाज ने केवल मुझे छक के जीने को 'छक्के' की ज़िंदगी दी है।

यहाँ रौशनी के लिए 'दीये' नही ट्रैफिक लाइट मिली हमें
यहाँ संगीत तो मिला लेकिन कला नही कमाई के रूप में।

आज समाज के बहुमत से कहना है
समझाना है, जताना है,
कुछ अपनी जुबानी बताना है।
हम सब ने वह वजूद अपनाया जो हमें जन्म से मिला
फर्क सिर्फ इतना है; तुमने उससे अपना गुरूर बड़ाया
तो उसे हमने अपनी ताकत बनाई है।
हाँ, हमने साहस दिखाया है।
पुरुष के शरीर में स्त्री को अपनाया है।
स्त्री के शरीर में पुरुष को सहज बनाया है।

हमने अपने एहसास को अपनाया है,
हमने अपने विभिन्न अस्तित्व को 'सम्पूर्ण' बनाया हैं।
हाँ! हमने यह वजूद स्वयं बनाया हैं।
......
कवयित्री - श्रेयसी दत्ता 
ग्राम - रांटी (मधुबनी)
माँ का ईमेल आईडी - duttachandana01@gmail.com
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