मुक्तक
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परिजनों से नहीं
अपनों से अधिक
परेशान होता है ।
बुढ़ापा एक दिन
पायदान होता है ।
अपने दर्द की दवा
ढूँढ़ता है घर-बाहर
सब पर अधिक रखे
पर खुद पर कम ध्यान
एहसास में अपनेपन के
मान होता है ।
यौवन भूलकर
बचपन को ही
अब याद रखता है ।
वरिष्ठ नागरिक
होकर शहर में तो
गाँव याद करता है ।
मौसम बदलने से
कुछ बदलना
तो चाहिए ही
बरसात है तो
कागज की नाव
पानी में बहाने की
चाह करता है ।
व्याधि-विरोध-आतंक
कब रुकने वाले हैं ?
इलाज-सुरक्षा-हल
हों सबके लिए यहाँ
कि घर बचाने की नीयत
बुढ़ापा साथ रखता है ।
....
2. मेरा परिचय
कृषक पिता का पुत्र हूँ
मातृ गुरु का शिष्य ।
अभियांत्रिकी शिक्षा मेरी
लिखती रही भविष्य ।।
सेवानिवृत्ति अधिवर्षता
पद अभियंता मान ।
देव-तुल्य 'भाभा' मेरे
शोध-केन्द्र-अणु शान ।।
संग पत्नी की प्रेरणा
श्रीहरि कृपा के साथ ।
माँ वाणी की साधना
कागज कलम है हाथ ।।
कवि - विश्वम्भर दयाल तिवारी
कवि का ईमेल आईडी - tewarivd@gmail.com
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