Wednesday 15 July 2020

सिद्धेश्वरनामा- नवोदित कवयित्री सिंधु कुमारी

कवयित्री का साहित्यिक परिचय

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साहित्य के मैदान में कई लोग दांव खेलने आते हैं। कई लोग शौक को पूरा करने के लिए भी आते हैं। और कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपने आसपास के परिवेश से प्रभावित होकर अपने भीतर की सृजनात्मकता को खुली हवा देने का प्रयास करते हैं।

साहित्य जगत में सबका स्वागत होता है। सभी लोगों की सृजनात्मकता का मूल्यांकन भी होता है। किंतु इस दौर में अपनी मंजिल को छूने की दिशा में, एक लंबी दूरी वे लोग ही तय कर पाते हैं, जो मान- सम्मान, पुरस्कार - वैभव और धन- दौलत की भूख को अपने कांख में दबाकर, अपने भीतर की संवेदना को निरंतर जीवित रखते हैं , सोने नहीं देतेऔर खुद को घेरे से बाहर ढकेल कर, जीवन और समाज के बीच झोंक देते हैं।

सृजन की लंबी यात्रा की शुरुआत अक्सर साहित्य की काव्य विधा से होती है। अच्छे से अच्छे कथाकार, उपन्यासकार ने भी स्वीकारा है कि उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत कविता से की थी। मगर, आगे कुछ दूरी तय करने के बाद उन्होंने खुद को  कहानी लघुकथा विधा के लिए समर्पित कर दिया। इसलिए रचनाकारों को कवि, कहानीकार, उपन्यासकार के संबोधन से नवाजे जाने में थोड़ा संकोच करता हूं मैं। एक साहित्यकार की श्रेणी में भी हम उन्हें ही रख सकते हैं जो निरंतर साहित्य की तमाम विधाओं में लिखने सीखने की प्रक्रिया में गतिशील होते हैं और साहित्य की किसी खास विधा में विशेष रूप से रचनाकर्म करते हैं।

नवोदित लेखिका सिंधु कुमारी ने कितने दिनों से साहित्य के रास्ते पर अपना पांव आजमा रही हैं यह तो मैं नहीं जानता। किंतु उनकी रचनाधर्मिता और कविता के प्रति अप्रतिम लगाव इस बात का संकेत जरूर दे जाता है कि यदि सिंधु कुमारी अपनी अभिरुचि को साहित्य साधना में तब्दील कर देंगी और सृजनात्मकता की दिशा में सतत गतिशील रहेंगी तब वह एक न एक दिन प्रसिद्ध कवयित्री जरुर बन सकती हैं।

कविता का सृजन और कविता का गायन, दोनों दो स्तरों पर परिभाषित होने के बावजूद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं यदि आप सिक्के के दोनों पहलू में कामयाब हैं, तो आपको पत्र-पत्रिकाओं में स्थापित होने के साथ-साथ अतिरिक्त मंचीय कवि होने से भला कौन रोक सकता है?

नवोदित कवयित्री सिंधु कुमारी सिक्के के दो पहलू में अपनी पहचान बनाने की दिशा में सक्षम दिख रही हैं-
"झिलमिल - झिलमिल हरिया पतिया /
 सावन की याद आई!
रिमझिम- रिमझिम बरसे बुंदिया
 साजन की याद आई।
और -
""जादू- सा लगता है
प्राकृतिक रूप!
अद्भुत- अद्भुत
विस्तृत स्वरूप!"
प्रकृति और जीवन के बीच का सौंदर्यबोध और गीत की रागात्मक प्रवृत्ति सिंधु कुमारी को गीत की मौलिक चेतना से  जोड़ती है।" 
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आलेख - सिद्धेश्वर 
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