Monday 15 June 2020

मनु कहिन - लाॅक डाउन और हम

विमर्श 

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 लाॅक डाऊन ५.० की शुरुआत साथ ही साथ अनलाॅक १.० का आगाज़! थोड़ा अजीब सा लग रहा है ! आखिर दोनों एक साथ क्यों आ गए ? पर, यह मुद्दा आपके सोचने का तो है ही नही! क्या फर्क पड़ता है अगर ये दोनों साथ-साथ एक मंच पर आ ही गए ! जहां संभावनाएं हों वहां बहुत सारा दिमाग क्यों खर्च करना भला ??? मौका मिले तो बहुत कुछ साथ साथ हो सकता है!

खैर ! अभी सोचने का वक्त है आखिर इस लाॅक डाऊन ने हमें कितने आयामों से हमारा परिचय कराया।जब लाॅक डाऊन की शुरुआत हुई एकबारगी ऐसा लगा कि मानो २१ दिनों के लिए सब कुछ ठप्प हो गया। जो जहां था वहीं थम सा गया। वाकई ऐसा ही हुआ था। आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर बाकी सभी चीजें रूक सी गई थी। अभूतपूर्व स्थिति थी। किसी ने सोचा भी नही था कि ऐसा भी हो सकता है ! हालांकि, बाकी देशों की स्थिति देखकर थोड़े बहुत कयास लग रहे थे । पर, लोगों के पास अपने अपने तर्क थे और उन तर्कों के आधार पर वे मानने को तैयार नही थे कि ऐसा भी हो सकता है। पर, हो गया ! शुरुआत मे तो ऐसा लगा कि चलो किसी तरह २१ दिन निकाल लिया जाए फिर तो सब कुछ सामान्य हो ही जाएगा। किसे मालूम था कि लाॅक डाऊन ४.० और फिर ५.० साथ ही साथ फेज़्ड  मैनर मे यूं लाॅक डाऊन का थोड़े प्रतिबंध के साथ जारी रहना ! हालांकि, अभी भी पूरे विश्वास के साथ कुछ कहा नही जा सकता है! अंतिम रूप से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। आनेवाले कुछ दिन बड़े ही धैर्य, संयम और अनुशासन के साथ गुजारने होंगे!

अब ये तो बात हो गई । हम लोगों ने लाॅकडाउन के दिनों को गुजारा और आज भी कुछ छूट के साथ कर रहे हैं। पर, क्या कभी हमने यह सोचने की कोशिश की , कि इस लाॅक डाऊन ने हमे क्या दिया और क्या लिया। जब भी कुछ समस्याओं के साथ हम घिरते हैं तो कुछ अच्छी चीजें भी हमारे हाथ लगती है। समुद्र मंथन के दौरान विष और अमृत दोनों ही मिले थे। 

दुर्भाग्य के काले बादलों में आशा की सुनहरी दामिनी भी छिपी रहती है. (Every cloud has a silver lining.)

सबसे अहम बात ! लाॅक डाउन ने हमें विपरीत परिस्थितियों मे जीना सिखाया! अगर हम यह कहते हैं तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नही! परिवार के लोगों का चरित्र, समाज के लोगों का चरित्र यहां तक कि राजनीति का चरित्र और उन सबों की प्रतिक्रियाएं भी सबके सामने बिल्कुल शीशे की तरह पारदर्शी रहीं । वैश्विक संकट था? फिलहाल है भी !

अभूतपूर्व स्थिति थी! लोगों ने इसकी कल्पना तक नही की थी! शुरुआत मे तो समझ ही नही पाए कि ये क्या हो गया! चारों ओर नाकेबंदी का आलम था। शुरू शुरू मे प्रशासनिक अमला भी बड़ा ही उत्साहित था! पुलिस वालों के कहने ही क्या थे! अपने अपने अंदाज मे सभी अपनी अपनी ड्यूटी निभा रहे थे! रोजाना एक से बढ़कर एक कारनामे नज़र आ रहे थे ! जैसे जैसे लाॅक डाऊन बढ़ाया जाने लगा सभी को यह बात समझ मे आने लगी! इतना आसान नही है यह कोरोना जितना हमने समझ रखा था! धीरे धीरे सभी पस्त पड़ रहे थे! अब ड्यूटी निभाई जाने लगी! उत्साह कहीं आराम फरमा रहा था ! अपराधियों को पकड़ना ज्यादा आसान था! 
" ये कोरोना नही आसान इतना समझ लिजै
एक ढीठ प्राणी है, अगर नही सम्हले तो दम ले कर ही निकलेगा!

डाक्टरों की टीम 24x7 लगी हुई थी आज भी है ऐसा नही है कि हम इस मुसीबत से बाहर आ गए हैं  अब तो , कुछ भी कहना मुनासिब नही है! मरीजों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है! पर, सुखद बात यह है कि ठीक होने वाले मरीजों की प्रतिशत लगातार बढ़ती जा रही है  उम्मीद की जा सकती है कि शायद यह अपने अंतिम, जाती हुई अवस्था मे हो! भगवान ऐसा ही करें

एक बात जो बहुत ही महत्वपूर्ण है, इस को रोना नेहमे बहुत कुछ सिखा दिया । जो काम सरकारें नियम और कानून के सहारे नही कर पायी वो इसने कर दिखाया! प्रदूषण बिल्कुल अपने न्यूनतम  स्तर पर आ गया था जालंधर और बिहार के कुछ भागों से न्यूज़ आ रही थी कि वहां से हिमालय की चोटियां साफ दिखाई पड़ रही हैं ! न्यूजपेपर ने भी चित्र साझा किया था!  अकल्पनीय थीं पर, सच थी 

हम लोगों ने लोगों को परस्पर एक-दूसरे का केयर करते हुए देखा संवेदनाओं का सैलाब देखा। हमने देखा किस तरह से लोग व्यक्तिगत तौर पर जरूरतमंदों की मदद को आगे आए 

स्वच्छता का एक नया पाठ इसने पढ़ाया! सफाई के मामले मे अब हम सभी शायद 'कैजुअल' न रहें सोशल डिस्टेन्सिगं ने भी हमें  अनुशासित करने मे कोई कसर नही छोड़ी! अब हमे इन चीजों को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लेना चाहिए! इस संदर्भ मे ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक किया जाना होगा आज कोरोना है, कल कोई और होगा। सिर्फ सरकारी प्रयासों से कुछ नही होने वाला! हमारी भी जिम्मेदारी बनती है
कुछ तकलीफदेह बातें भी हुई! एक जगह से दूसरी जगह पर मजदूरों का पलायन ! बहुत बड़ी संख्या मे हुआ उन्हें रोका जाना चाहिए था! ऐसा नही था कि कोरोना किसी एक जगह तक ही सीमित था! परिस्थितियां बदलीं तो स्थितियां भिन्न हो गई! समझने की जरूरत थी\
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लेखक - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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