Thursday 18 June 2020

मनु कहिन - तुम्हारा जाना ! (सुशांत)

श्रद्धांजलि - लेख 

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चित्रकार - नीभा श्रीवास्तव  (दुबई)


सुशांत तुम चले गए. जाना और आना यह तो प्रकृति का शाश्वत नियम है. पर, इतनी भी क्या जल्दी थी! माना प्रारब्ध था यह! क्या मायने हैं इस प्रारब्ध के ! इस प्रारब्ध को दिल स्वीकार नही कर रहा ! तुम्हारा इस तरह चले जाना बहुत सारे सवाल खड़े कर रहा है. क्या जबाव दिया जाए! एक मजबूत व्यक्तित्व का स्वामी जिसने खुद अपना रास्ता बनाया . अपने सफलता के किस्से खुद गढ़े .जिसने बालीवुड मे अपना एक मुकाम बनाया. अपने सौम्य स्वभाव और मुस्कान से लोगों को अपना कायल बनाया . उसका यूं चले जाना दिल स्वीकार नही कर रहा. आखिर क्या वजह हो गई.क्यों "एक्सट्रीम स्टेप" उठाना पड़ा . आखिर,  क्यों ऐसा लगा कि बस अब यही एकमात्र विकल्प है .जिंदगी बड़ी ही अनमोल होती है मेरे दोस्त .उसका यूं चले जाना बहुत खलता है . हमेशा एक टीस बरकरार रहती है.

हम सभी कसूरवार हैं. कहीं न कहीं हम संबंधों को निभाने मे ईमानदार नही हैं. परिणाम तो अंततोगत्वा सब को भुगतना है . आज तुम्हारी, कल किसी और की , बारी बारी सबकी बारी आनी है . हम सभी नाकाम रहे. एक भाई का भाई के प्रति, एक दोस्त का दोस्त के प्रति क्या प्यार और भावनात्मक संबंध होता है हम भूल गए.. हम सभी व्यावसायिक संबंधों को ही सब कुछ समझ बैठे हैं. 

एकाकी जीवन जीने लगे हैं हम सभी! एकाकी होना कुछ समय के लिए तो सही है . यह लोगों को खुद का साक्षात्कार कराता है. पर, इस तरह के जीवन को आप बहुत लंबे समय तक नही जी सकते हैं . दुनिया बहुत बदल गई है! भाग दौड़ जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है. लोगों की महत्वाकांक्षाएं चरम पर पहुंच गई है .आदमी मशीन बनता जा रहा है . शिक्षा के मायने बदल गए हैं. विपरीत परिस्थिति मे कैसे जीना है, हम नही जानते हैं.  निजी जिंदगी और व्यावसायिक जिंदगी मे संतुलन खत्म होता जा रहा है. पुराने समय मे गुरूकुल प्रणाली  अच्छी थी. लोगों को कम से कम एक संतुलित व्यक्तित्व का स्वामी बनाती थी .

आज की इस भाग-दौड़ और गला काट 'कम्पीटीशन' के युग मे एकाकी जीवन जीना बहुत मुश्किल तो है ही एक आसन्न खतरे का द्योतक भी  है. लोगों को खासकर युवाओं को इन चीजों को समग्र रूप मे समझने की जरूरत है . देश के भविष्य हैं ये . हम इन्हें यूं नही खो सकते.

सुशांत, तुम चले गए. आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी . एक बार अपने आप से और अपनों से बात तो कर लिए होते..शायद...

एक मुसाफिर जो सपनों की नगरी मे सपने देखता हुआ खुद एक सपना बन गया..
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लेखक मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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चित्रकार - नीभा श्रीवास्तव 
चित्रकार का ईमेल आईडी - niva.artist@gmail.com