कविता
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पथ़िक सलाम है आज उन भावनाओं को
ईश्वर ने नेमत प्रदान की है जिसे जननी होने की
न ही कोई तकनीकी न ही कोई तुक्के है लगाती
वो तो बस माँ है जो अपने बेटे की किसी भी उम्र में
आवाज खाली पेट वाली तुरत पहचान जाती।
अखबार लिए जब रिटायर बेटा 'माँ' पुकारता आता
पोटली के सबसे लाल अनार के दाने निकाल कहती
खाऽ ले, तेरी शक्ल लगती है आज खाली पेट वाली।
बहू व्यस्त होगी, बच्चे अपनी धुन में रमे होंगे
खाऽ ले बेटा कि तेरी है ये आवाज खाली पेट वाली।
कोई नौकरीपेशा हो, या कोई सरहद का जवान
घर और नौकरी संभालती बिटिया हो या हो गृहिणी
हो देश के किसी कोने में या और देश का मेहमान
हो राजा किसी मुल्क का भले या हो कैसा भी दरिद्र
थका हारा जब शाम को करे दो शब्द आदान प्रदान
हर इक दिन यही बात है सदा कानों में आनेवाली
खाया कुछ नहीं कि है आवाज खाली पेट वाली।
अब सोचो जरा जब दूर बैठी माँ की ये है गति
फिर परवरिश बचपन की कैसी रही होगी अति
खेलता कूदता शरारती हो या कीड़ा कोई किताबी
घुटनों के बल चलने वाला या हो दुधमुंहा नवजात
हर इक के गले से निकलते ही समझ वो है जाती
कि ये तो आवाज है बिलकुल खाली पेट वाली।
और तो और उनकी ममता हद है पार कर जाती
जब प्रसूति बहू हो या बेटी हमेशा यही है टोकती
अपना ना सही खयाल कर लो नन्ही सी जान की
कि आती होगी अंदर से आवाज खाली पेट वाली
आवाज वो खाली पेट वाली .....
आवाज वो खाली पेट वाली ।
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कवि - पथ़िक' आनंद
कवि का ईमेल आईडी - eeanand@yahoo.com
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