Sunday 30 August 2020

अभिलाषा / लाला आशुतोष शरण की कविताएँ

अभिलाषा 

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तेरे अरमान मेरे सपने,
पुनः मिल जाएं तो कैसा हो !
तेरे आंसू मेरी तड़पन,
एक हों जाएं तो कैसा हो !
न ग़म होंगे न तूफां,
न शिकवा होगी न शिकायत,
जीवन पटरी पर लौटेगा ।
यह ख़्वाब कल भी आया था।
लिए थे सात फेरे,
सात जन्मों तक संग का।
दिए थे सात वचन,
जीवनभर साथ निभाने का।
माना विवाह गठबंधन है,
दिलों के अरमानों का ।
पर सभी होते नहीं पूरे,
सच्चाई है संसार का।
लहरों संग ऊपर-नीचे नैया पार लगती है
खाबड़ जीवन-राहें, साथी संग कट जाती है।
सब भूलकर बिना झांकें दिलों में,
तोड़ दिया हम ने रिश्तों का बंधन ।
क्यों न, जो हुआ उसे भूल कर
नये प्रभात का सूरज उगाएं।
अरमानों को पंख दे, उड़ान भरें
सांसों की गर्मी, दिलों की धड़कन
कर साझा, बहारों को मुस्कुराने दें,
चमन में वसंत लौट आने दें.
.....


मानवता सुरक्षित है


बन्धु गंदी सीढ़ी पर बैठे हो
भूखे-प्यासे थके-हारे दिखते हो
भीतर आओ सोचो नहीं अपने हो
बैठो ख़ाली पेट पानी नहीं पीते
गुड़ और अंकुरित चना है खाओ
कौन हो तुम मुसाफ़िर लगते हो
खाते-पीते घर के चिराग़ लगते हो
भूल गया पहचान बताऊं क्या
फूल बनें कांटे आंसुओं ने जलाया है
वक्त ने मारा क़िस्मत ने रूलाया है
सपने दिखा नेताओं ने लूटा है
हो रहे क्यों निराशा के शिकार
हार को झुठला जीत मिलती है
मन के हारे हार है मन के जीते जीत
शुक्रिया आतिथेय हौसला अफ़जाई का
नमन ऐ मेरे फ़रिश्ते आप को
जा रहा हूं याद रखूंगा सदा अभी भी मानवता सुरक्षित है
रूको अजनबी शीघ्रता अच्छी नहीं
तुम्हारे चादर के भीतर से लकुटी गिरी है
ये पार्टी के झंडे की लकड़ी है

लाया गया था पार्टी की रैली में ले जा रहा लकड़ी
सहित झंडा
कभी शायद क़िस्मत जगा दे.
(हौसला-अफ़जाई= हौसला/हिम्मत बढ़ाने का)
.....

कवि - लाला आशुतोष कुमार शरण
कवि का ईमेल आईडी - lalaashutoshkumar@gmail.com
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