Friday 7 August 2020

मनु कहिन - कोलकाता डायरी (भाग-5)

सन्देश और रसोगुल्ला की सबसे पुरानी दुकानें 

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कोलकाता  ' सिटी ऑफ जॉय ' आप कह सकते हैं ।  वाकई यह सिटी ऑफ जॉय है। खुशियों का शहर है यह। महानगर होने के साथ-साथ अपनी पुरानी सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण रखना आप कोलकाता वासियों से सीख सकते हैं । अन्य महानगरों की तरह यहां भी बाहर से बहुत लोग आए । कुछ काम की तलाश मे तो कुछ नौकरी और व्यवसाय करने । पर, वो जहां से भी आए यहां आकर वो कोलकाता वाले हो गए। यह खासियत है इस शहर की। आपको अपने आप मे समेट , अपना बना लेता है । आप यहां की सभ्यता और संस्कृति मे रच बस जाते हैं।
 
बात कोलकाता की हो और मिठाइयों का जिक्र न हो खासकर कोलकाता के फेमस संदेश का तो फिर बात कैसे बनेगी! संदेश की बात हो  तो आप गिरीशचंद्र डे और नाकुर चंद्र नंदी मिठाई की दुकान को कैसे भूल सकते हैं। 1844 में इस दुकान की स्थापना गिरीश चंद्र डे और नाकुर चंद्र नंदी ने कोलकाता शहर के गिरीश पार्क स्थित रामदुलाल सरकार स्ट्रीट मे  की थी। रिश्ते में ये दोनों ससुर और दामाद लगते थे। नाकुर चंद्र नंदी हुगली से कोलकाता आए थे। वो दामाद बनकर आए थे उस वक्त के फेमस मिठाई बनाने वाले श्री गिरीश चंद्र डे के घर।  इतनी प्रसिद्ध दुकान हो तो स्वाभाविक है, आपको लगता होगा की एक बड़ी सी दुकान होगी !  दुकान के बाहर एक बड़ा सा बोर्ड लगा होगा !  बाहर एक चमचमाता शीशे का दरवाजा होगा , जो आजकल अमूमन आपको हर बड़े स्टोर मे दिखता है । जिसे खोल कर अंदर जाना होगा । तमाम तरह की मिठाइयां सजी होंगी । हर काउंटर पर एक सजा संवरा सा यूनिफॉर्म पहने हुए सेल्समैन होगा । पर  नहीं ! कोलकाता शहर के पुराने एरिया मे  स्थित यह   दुकान कहीं से भी आपको ऐसा आभास नहीं दिलाता है। जब मैं वहां गया तो मैंने देखा एक पुरानी सी दुकान एक पुरानी सी बिल्डिंग जो वास्तव में आपको याद दिलाती है यह दुकान सन 1844  ईस्वी में खुली थी । हैरिटेज बिल्डिंग है ये।

सामने शीशे के पीछे में संदेश की वैरायटी लगी हुई है । पिस्ता संदेश , ब्लैक फारेस्ट संदेश , चॉकलेट संदेश मैंगो संदेश मौसम के अनुकूल मौसमी संदेश और भी बहुत सारी वैरायटी है ।  हरेक माल रु.20/= आप जो भी संदेश खाना चाहे या ले जाना चाहिए मात्र रु.20 है। अभी के माहौल में जहां कोरोनावायरस ने कहर मचा रखा है दुकान के बाहर एक स्पष्ट संदेश था  "नो  मास्क नो संदेश"।  दुकान के कर्मचारी भी मास्क लगाए हुए थे । दुकान के मालिक जो दुकान के अंदर बैठे थे वो थे डे और नंदी के विरासत की पांचवें जेनेरेशन के  पार्थो नंदी।  मेरी उनसे बात हुई। उन्होंने बहुत सारी बातें बताईं। मिठाई की गुणवत्ता के बारे मे पूछने पर उन्होंने बताया कि मिठाई बनाने के लिए वो बाहर से कोई सामग्री नही खरीदते हैं। सब उनका अपना इन-हाऊस ही होता है । उनके दुकान मे जो संदेश बनता है वो तो शाम होते-होते खत्म हो जाता है। 

बातचीत के क्रम में जब सफेद रसगुल्ला का जिक्र आया तो उन्होंने बताया कि अगर आपने चितरंजन का सफेद रसगुल्ला नहीं खाया तो फिर क्या खाया उससे बेहतर रसगुल्ला आपको पूरे बंगाल में नहीं मिलेगा । मैंने भी लगे हाथों पूछ ही लिया भाई बताइए यह चितरंजन कहां है ! मेरे जेहन में चितरंजन तो कोलकाता से बाहर का एक छोटा सा शहर है जो रेल इंजन बनाने के कारखाने के लिए प्रसिद्ध है । इस बात पर हंसते हुए उन्होंने बताया नहीं यहां से थोड़ी ही दूर पर शोभा बाजार के लाल मंदिर के पास एक  दुकान है उसका नाम चितरंजन है ।आप वहां जाएं और वहां के रसगुल्ला को खा कर देखें । उन्होंने मुझे उसका पता दिया। अब मैं उनसे विदा लेकर सफेद रसगुल्ला की खोज में चितरंजन की ओर बढ़ चला । वाकई जब मैं वहां पहुंचा एक छोटी सी दुकान थी वो। यह दुकान भी लगभग 100 वर्षों से ज्यादा पुरानी थी। मैंने वहां पहुंच कर उनसे रसगुल्ला मांगा। पहले तो दो खाया । वाकई ऐसा रसगुल्ला मैंने पहले नहीं खाया था।  अब मुझे अहसास हुआ आखिर क्यों, यह सफेद रसगुल्ला बंगाल और उड़ीसा के बीच विवाद का विषय था। भावनात्मक मुद्दा था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था।  मैंने वहां से कुछ रसगुल्ले पैक करवाए ,घर लाने के लिए ताकि इसका स्वाद सबकी जुबान पर चढ़ सके।
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लेखक -  मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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