अंधेरा मिट जाएगा
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भागमभाग की दुनिया में
ज़िन्दगी ठहरी हुई सी है
दिन को रात मान सोयी हुई सी है।
दिन का सूरज वैसा ही प्रखर है लेकिन
अजीब सा अंधेरे का पसरा है सन्नाटा
जैसे जिंदों की नहीं मुर्दों की बस्ती हो।
डर हावी है इस क़दर, निर्जीव कोविड का
जिंदों ने तब्दील कर ली है ख़ुद को मुर्दों में।
झेली हैं अनेकों महामारियां, अतीत साक्षी है
डर से निकल किया था डटकर मुकाबला
जीवित बचे रह गए थे, जनसंख्या गवाह है।
तब चिकित्सा विज्ञान शैशव में था आज प्रौढ़ है
तब उपचार-ज्ञान अभाव में था आज परिपूर्ण है।
वो सब कुछ है, जो चाहिए हथियार जूझने को
गिरते हैं साहसी ही मैदान-ए-जंग में
बरत हर सावधानी, निकल स्व-कैद से
जगाओ कर्मवीरों सुसुप्त अर्थ-व्यवस्था को।
पटरी पर लाओ दम तोड़ती शिक्षा-व्यवस्था को,
सम्भालो कराहती लघु बाजार की अवस्था को
सहारा दो उन्हें जो रोज़ कुआं खोद पानी पीते हैं।
धीरे-धीरे जिंदगी आएगी पटरी पर
शैनै-शैने अंधेरा सिमट जाएगा
शैने-शैने सवेरा उजाला फैलाएगा।
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कहां है
ख़ुदा तूने दुनिया अजीब गढ़ी है
जूही है गुलाब है ख़ुशबू कहां है
वेद है क़ुरान है इबादत कहां है
पंडित हैं मुल्ला हैं ईमान कहां है
शैतान है हैवान है इंसान कहां है
मीर हैं पीर हैं अमन कहां है
शान है इमरान है आन नहीं है।
( मीर=नेता, धार्मिक आचार्य : पीर=सिद्ध पुरुष,मार्गदर्इमरान=मजबूत आबादी, समृद्धि जनसंख्या )
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अंतिम कहानी
जीवन भर की मशक़्क़त की अंतिम कहानी
चेहरे पे बिखरी सिलवटें, यादों की दिवानगी
ज़िन्दगी से बढ़ती बेरुखी, नज़रों में बेनूरी
अंजामे मुस्तकबिल का ख़ौफ़, मन की बेचारगी
दोस्तों को ढ़ूढ़ती उदास आंखों में वीरानी
एकाकीपन की इंतहा सपनों से भी दुश्मनी।
(मशक़्क़त=मेहनत : मुस्तकबिल=भविष्य : इंतहा=चरम सीमा)
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कवि - डाॅ.लाला आशुतोष कुमार शरण
कवि का ईमेल आईडी -lalaashutoshkumar@gmail.com
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