Monday 26 October 2020

प्रसिद्ध लघुकथाकार डॉ.सतीशराज पुष्करणा का विदाई समारोह दि. 18.10.2020 को सम्पन्न

जो आपको गम्भीरता से नहीं लेता उससे किनारा कीजिए

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8 अक्टूबर 2020 की दोपहर लेख्य मंजुषा के सदस्यों के लिए एक ऐसा पल था जिसमें वे सभी अत्यंत प्रसन्न भी थे और दिल से उदास भी। ये प्रसन्न और उदास शब्द एक साथ विरोधाभास प्रकट कर रहे  हैं, पर वो क्षण ऐसा ही कुछ था, लेख्य मंजुषा के सभी सदस्यों के लिए। 

अपने अभिवावक से मिल कर कोई खुश कैसे न हो पर जब वो क्षण उनके बिदाई में बदल जाए तो उदासी स्वतः घेर लेगी । 

लघुकथा के पितामह आदरणीय 'सतीशराज पुष्करणा' जो लेख्य मंजुषा के अभिवावक भी हैं अपना समय वर्षों पटना और यहाँ के साहित्यकार को समर्पित कर अपने छोटे परिवार पत्नी और बच्चों के पास अपनी जीवन संध्या में जाने का निर्णय लिए। साहित्य को समर्पित अपने जीवन में वे सदैव साहित्यकारों के साथ घिरे रहे अतः वे अकेले थे कहना उचित नहीं पर वास्तविकता को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता। उम्र के इस पड़ाव पर वे पत्नी और बच्चों के साथ समय गुजरेंगे ये हम सभी को खुशी दे रहा था पर अब हर पल जब कोई विचार-विमर्श करनी हो तो हम उनके समक्ष झट नहीं पहुँच पाएँगे ये भावना हमें अंदर से कमजोर कर रही थी। यही कारण था कि सभी के  मन उदास थे पर कोई अपनी आँखों को नम करना नहीं चाह रहा था क्योंकि हम सभी का ये मानना था कि हम उन्हें विदा नहीं कर रहे। ये मात्र उनके आवास का स्थान परिवर्तन है।

इस सुखद वेला में  वरिष्ठ कवि आदरणीय 'भगवती प्रसाद द्विवेदी, वरिष्ठ कवि आदरणीय मधुरेश शरण, आदरणीय ध्रुव कुमार, आदरणीय मृणाल आशुतोष,आदरणीया अनिता राकेश उपस्थित थीं।

सबसे आत्मीय पल तो वो था जब आदरणीय सतीशराज पुष्करणा के मधुर और आत्मीय व्यवहार से सभी उनके परिवार के सदस्य बन गए थे। कोई उन्हें बाबा,कोई बाउजी, कोई भैया कह संबोधित कर रहा था। आज उन्होंने बातों ही बातों में अपने कार्य की प्रक्रिया पर थोड़ा प्रकाश डाला। उनकी कार्य शैली को सुन हमें बहुत प्रेरणा मिली। अपने अति व्यस्त जीवन में भी उन्होंने कभी किसी को किसी कार्य के लिए ना नहीं कहा। उन्होंने कहा कि यदि कोई आपकी मदद की गुहार  सुन कह देता है कि अभी बहुत व्यस्त हैं तो समझ लीजिए आपकी बात को वो गम्भीरता से नहीं ले रहा। कम शब्दों में उन्होंने जीवन-दर्शन पर भी प्रकाश डाल दिया। 

इस तरह की छोटी-छोटी अनेक शिक्षाप्रद बातें बताते रहे। सभी उनकी ओजस्वी वाणी को सुन ऐसे भाव विभोर हुए की किसी को समय का ख्याल ही नहीं रहा। सभी उनके साथ अपने हृदय के उदगार को व्यक्त करते चले गए। तभी किसी की नजर घड़ी पर गई और सभी को एहसास हुआ कि आज पितामह पर सिर्फ मेरा अधिकार नहीं, उन्हें और भी कई हमारे जैसे परिवार से मिलना है। फिर विदाई की औपचारिक प्रक्रिया पूरी कर हम उनके साथ होटल के परिसर में आए। सभी तब-तक खड़े रह गए जब-तक उनकी कार विदा न हुई।

इस पूरे कार्यक्रम में लेख्य मंजुषा की अध्यक्ष आदरणीय 'विभा रानी श्रीवास्तव' कैलिफोर्निया से हमारे बीच जुड़ी रही। भारत में दिन के 12 से 3 का समय कैलिफोर्निया की अर्धरात्रि। अर्धरात्रि में भी विभा दीदी लगातार जुड़ी रही जैसे वो हमारे साथ पटना में ही हों। उनके साथ-साथ कुछ और सदस्य थे जो ऑन लाइन जुड़े हुए थे जैसे आदरणीय राजेन्द्र पुरोहित, आदरणीय कल्पना भट्ट, आदरणीय संगीता गोविल, आदरणीय पूनम देवा आदि।

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आलेख - प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'
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