Tuesday 15 September 2020

हिंदी कैसी हो ? / विजय बाबू

कविता 

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod )



विविधता से पूर्ण हिंदी हो,

विशालकाय देश की समृद्धि हो।

विरोधाभास से परे हिंदी हो,

विषमताओं के समंजन में वृद्धि हो॥

भाषा-विवाद का समाधान हिंदी हो,

भाषाओं का अभिमान क्षेत्रीय हो।

प्रभावों में बुनियाद हिंदी हो,

अभावों में फ़रियाद क्षेत्रीय हो

विनम्रता की मानक हिंदी हो,

विशिष्टतापूर्ण हो भावपूर्ण हो।

विरोधाभास से परे भाषा हिंदी हो,

विलुप्तता से दूर सामंजस्यपूर्ण हो

पूरे हिंद की भाषा हिंदी हो,

मानक रूप में बूँद बूँद सर्व भाषा हो।

भाषाएँ सर्वत्र सर्वजन की हो,

परिधि में छोटी-बड़ी चाहे क्यों न हो

विनम्रता की भाषा हिंदी हो,

विशुद्ध रूप में भाषायें मन की हो।

विघटनकारी से कोसों दूर हो,

विभिन्नता में एक अभिन्न हिंदी हो॥

क्षेत्रीय के बाद हिंदी हो,

राष्ट्र की बात में भाषा तो हिंदी हो॥

विवशता से आगे हिंदी हो,

विफलताओं की भाषा हिंदी न हो।

विकटता से मीलों वह ओर हो,

विशुद्धरूप में उत्कट तो हिंदी न हो॥

हिंदी हैं हम वतन के वीर हैं,

भाषाएँ भरसक भरपूर हो सर्वत्र हो।

प्रयोग में सम्पूर्ण विश्व की हो,

हिंदी एक भाषा हिन्दोस्ताँ जहाँ की हो॥

...

कवि -  विजय बाबू
कवि का ईमेल आईडी - vijaykumar.scorpio@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com