कविता
वह मुस्कराहट वह हँसी
वह धीमी बातों की फुसफुसाहट
अब ना सुनाई देती है
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह डस्टर वह चॉक
वह पुस्तकें वह कापियाँ
वह पुस्तकालय वह प्रयोगाशाला
अब ना नजर आते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह खेल का मैदान
वह घंटी की आव़ाज
वह आधी छुट्टी, वह कैंटिन के पकवान
वह कोलाहल, वह शोरगुल
अब ना उत्पन्न होते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह संगीत,वह नृत्य
वह हस्तकला का कालांश
वह चित्रकला, वह मानचित्र
अब अदृश्य से लगते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह विद्यालय का परिवेश
वह चंचलता, वह नटखट पन
वह मीठे मधुर स्वर
वह निश्चल सा प्रेम
अब ना महसूस होते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
अब तो नजर आते है
विद्यार्थीयों के छोटे-छोटे छायाचित्र
एक चौखट में मानो प्रतिबिंब स्वरुप
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह तमाम तकनीकी यंत्र
जिनके प्रयोग पर कभी टोका करती थी
आज उसी के समक्ष उपस्थिति पर जोर देती हूँ |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह असावधान से,नटखट बच्चे
कैमरे के समक्ष, सावधान नज़र आते है |
अभिभावक एवं शिक्षक के बीच
लाचार नजर आते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह तमाम पीपीटी एवं वीडियो
अनेकानेक शिक्षण विधा ,भाषिक खेल
कुछ नाकाम नजर आते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
वह जिज्ञासु बच्चे
कुछ शांत नजर आते है
निगाहें नीचे किए
व्हाट्स अप वेब के आसार नज़र आते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
प्रश्न पूछने पर क्या कहा ,
सॉरी, नॉट एबल टू हियर ,मे बी सम नेटवर्क प्राब्लम ,
और कभी-कभी लॉगआउट हो जाते है |
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
विचलित हो, विवश हो
अपने आप को ही समझाती हूँ
शिक्षा के क्रम को आगे बढाती हूँ
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं |
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कवयित्री - सुमन यादव
कवयित्री का ईमेल आईडी - sumankyadav6@gmail.com
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