Tuesday 29 September 2020

मजदूर / कवयित्री - चंदना दत्त

 कविता 

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चेहरे पर धूल 
होठों पर शूल 
ये कर्मयोगी नही 
मजदूर है।

चले सपने लिए 
दिल में हजार 
छोड अपना प्यारा 
घर बार 
ये यात्री नहीँ  
मजदूर है ।

बनायें इमारतें 
बहुमंजिली 
चूता है छप्पर 
खाट की रस्सी ढीली 
ये अभियंता  नही 
मजदूर है ।

परोसता होटलों मे 
ये है छप्पन भोग 
पेट पाले है अपना 
सूखी रोटी दाल का योग 
ये योगी नही 
मजदूर है।

बांटता अखबार 
होकर सायकिल सवार 
लाखों  करोड़ों की लाटरी 
निकालता बेशुमार 
ये जादूगर नही 
मजबूर  है 
...
कवयित्री - चंदना दत्त 
पता - रान्टी, मधुबनी
कवयित्री का ईमेल आईडी - duttchandana01@gmail.com
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