कविता
(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12 घंटे पर देखिए - FB+ Bejod )
मुझे बुला ले
फिर से अपनी
बगिया में
क्रंदन करने को
फिर से आंगन
की मिट्टी में
छम-छम कर
पायल बजने को
मेरे बाबा
की गलियों में
फिर से
धूम मचाना चाहूँ
मन की हिरणी
दौड़ लगाए
बीत गया जो
पाना चाहूँ
कितने आगे
कितनी दूर।
भागा ये
जीवन काफूर
बढ़ते बढ़ते
राहों में
सुख दुख
कई बटोरे मैंने
पर जो खोकर
आई हूँ।
उसे भुला ना
पाई हूँ।
काश जो कोई
जतन कर पाती
फिर उस पल में
लौट मैं जाती।
हीरे, मोती
दुनियाँ, खुशियाँ
सब झूठी लगती हैं
सखियाँ
मेरा बचपन
छूट गया जो
उसे
भुला ना पाऊँगी
बेटी हूँ
घर छूटा है
पर
मन से
छूट ना पाऊँगी।
...
कवयित्री - कंचन झा
कवयित्री का ईमेल आईडी - kjha057@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com