Tuesday 25 February 2020

मनु कहिन (19) / भूलते भागते क्षण

बैचमेट्स मीट की दास्तान 

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कुछ पल अविस्मरणीय होते हैं। और जब बातें हो रही हों अपने बैचमेट्स के साथ बिताए हुए उन स्वर्णिम पलों की तो फिर क्या कहना! हमेशा इंतजार रहता है उन पलों को बार बार जीने का। एक ललक सी हमेशा बनी रहती है।

कुछ सहकर्मियों की पहल से ऐसे कुछ पल हर एक दो वर्षों के अंतराल पर मिल ही जाते हैं। हां, पर अब ये पल बड़ी ही मुश्किल से मिल पाते हैं। पलों को चुराना पड़ रहा है। कल तक जिम्मेदारियां  लगभग नही के बराबर थीं। पर, आज अपने पूरे शबाब पर है। एक निपटती है तो दूसरी मुंह बाए खड़ी हो जाती है। कभी खुद को छुट्टी नही मिलती है तो कभी बच्चों की वजह से समय निकाल पाना मुश्किल हो जाता है। खैर! हां, ना करते हुए वो दिन आ ही गया और हम सभी उस पल के इंतजार मे अंततोगत्वा किसी तरह समय चुराते हुए, पारिवारिक जिम्मेदारियों एवं कार्यालय की व्यस्तता  से कुछ पल  की मोहलत निकाल कर हमलोग गोवा पहुंच ही गए। 

हममें से जिसने भी बैचमेट्स मीट के लिए  पहल ली , हमारे ठहरने के लिए होटल में कमरों का बंदोबस्त किया  हमारे आगमन से प्रस्थान तक की जिम्मेदारियां उठाई वाकई काबिले तारीफ है। किसी भी इवेंट को आयोजित करना इतना आसान नही होता है। उन मित्रों के लिए आभार के दो शब्द तो बनते ही हैं। 

गोवा मे दिन कैसे गुजरे पता ही नही चला। बातों का सिलसिला एक बार जो शुरू हुआ रूकने का नाम ही नही ले रहा था। कब रात हुई और कब सुबह किसी को इस बारे मे सोचने तक का वक्त नही था। पुरानी , संजोई हुई यादों से धूल साफ की जा रही थी। वर्तमान यादें यथासंभव सहेजने की कोशिश में सारे लगे हुए थे।  बच्चे बन गए थे हम सभी। उन्हीं की तरह व्यवहार कर रहे थे । एक साथ खाना खान, एक साथ घूमना । वक्त मानो ठहर -सा गया था। ऐसा कभी लगा ही नही कि हम सभी सहयोगी/ कलीग्स हैं। हम सारे मित्रों की तरह व्यवहार कर रहे थे। ऑफिसियल वर्ड - 'कलीग' कहीं किसी कोने मे पड़ा था। आखिर बैचमेट्स तो बैचमेटस ही होते हैं। सभी बातों से परे। न कोई जाति न कोई धर्म। कोई बड़ा न छोटा! जिसने इस दुनिया को नही देखा, इसे जाना नही। उसने जिंदगी मे बहुत कुछ मिस किया।

खैर! धीरे धीरे सबके जाने का समय आ गया। सबका एक दूसरे से गले मिलकर अपने अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करने का सिलसिला शुरू हुआ। बिछुडना हमेशा दुखदाई होता है। पर जिंदगी इसी का नाम है। हम लोगों ने नम आंखों से एक दूसरे से गले मिल, अगली बार पुनः  जल्द ही मिलने का वादा कर चल पड़े अपने अपने गंतव्य की ओर ।

चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना ! 
कभी अलविदा ना कहना!
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लेखक - मनीश वर्मा
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