कविता
इकरार में जब यार का
पथ-प्यार निर्मल मिल गया ।
इनकार के आघात का
उपहार निष्फल हिल गया ।
सहनशक्ति साथ में रख
साथी अपने साथ चलता ।
तब सराहे त्याग जीवन
वाणी गुण अनुराग फलता ।
देख लेना प्रेम से ही
नफरतें लाना नहीं ।
दिया है ईश्वर ने तन-मन
इसको भटकाना नहीं ।
प्यार की इक बूँद से ही
सम्बन्ध सरिता बहा देना ।
जहाँ तक सम्भव रहे
अनुबन्ध से ही नहा लेना ।
झूठे सहारे नहीं देना
स्वजनों को बस यहाँ पर ।
मान लेना हार भी कभी
जीती बाजी हारकर ।
मन के आँगन में सदा हो
नृत्य अपने प्यार का ।
थके ना मनमीत देखो
ध्यान रखना उपहार का ।
वही साथी जो समझ ले
बात इच्छा मीत की ।
रहे संग-संग संकटों में
ध्वनि भी भाए गीत की ।
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कवि - विश्वम्भर दयाल तिवारी
परिचय - सेवानिवृत न्युक्लीयर साइंटिस्ट, आईटीएम काव्योत्सव, नवी मुम्बई के कार्यकारी संयोजक
पता - खारघर, मुम्बई
कवि का मोबाइल - 7506778090
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट- यह रचना व्याट्सप्प से प्राप्त सामग्री के आधार परवयोवृद्ध रचनाकार श्रेणी" के अंतर्गत प्रकाशित की गई है. इसकी मौलिकता की जिम्मेवारी ब्लॉग की नहीं है.