भोलेशंकर / पूनम (कतरियार)
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जटाधारी-चंद्रधर,
लपेट गला विषधर.
भस्म से करतें श्रृंगार,
सोहे अंग बाघाम्बर.
कर में त्रिशूल थामें,
तीनों लोक हैं मुट्ठी में.
श्मशान में भी मिले आनंद
शिवशंकर अपने में मगन.
न छप्पन-भोग चाहिए,
न महल-अटारी चाहिए .
हीरे-मोती रजकण सम,
न हाथी-घोड़ा चाहिए.
भांग-धतूरे में पायें मौज,
हलाहल में है अलमस्त.
नंदी पर होकर सवार,
भूत-बैताल की ले बरात.
डम-डम डमरू बजाते ,
गौरा ब्याहन को जातें.
बड़े मासूम भोलेशंकर,
महायोगी है भोलेशंकर.
सीख देकर नश्वरता का,
जीवन को देतें नयें आयाम .
गंगा की शुचिता ले लो,
भस्म से निस्सारता ले लो.
आवेशित वाणी का विष,
अपने कंठ में धारण कर लो.
तन की शोभा शक्ति हो,
गौरा, हिय को करें प्रेमिल.
क्लिष्ट होता कहां जीवन !
सरल रखो जो तुम मन को!
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कवयित्रि - पूनम (कतरियार)
कवयित्री का ईमेल - poonamkatriar@yahoo.com
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