कविता
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इस दीपावली के दीप कुछ ऐसे हों
जैसे फिजाओं में बहार हो
खुशियों का उन्माद हो
पूरे जहाँ में प्रकाश हो
इस दीपावली के दीप कुछ ऐसे हों
जैसे जगमगाती रात हो
दीपों की बारात हो
अपनों का साथ हो
इस दीपावली के दीप कुछ ऐसे हों
जैसे जन-जन में प्यार हो
भाईचारे की मिठास हो
मानवता का पाठ हो
इस दीपावली के दीप कुछ ऐसे हों
जैसे दीन के घर पकवान हो
दरिद्रता का नाश हो
समृद्धि का वास हो
इस दीपावली के दीप कुछ ऐसे हों
जैसे मन में विश्वास हो
उल्लास-उमंग की बौछार हो
शूरता की धाक हो
इस दीपावली के दीप ऐसे हों
जैसे कोई ना निराश हो
पूरी सबकी आस हो
मुस्कुराहट बेशुमार हो.
...
कवयित्री - सुमन यादव
पता - मीरा रोड, मुम्बई
व्यवसाय - शिक्षिका