Friday 25 October 2019

दीप / कवि - विजय बाबू

कविता 

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जग में हलचल ला रहा हूँ
फिर से अमावस के सहारे
रात को रौशन करने फिर
इक नया दीप जला रहा हूँ 

इक नयी आस रख रहा हूँ
दिल से ख़ुशियाँ पाने को
संग नयी उमंग जगाने को
इक नया दीप जला रहा हूँ ।

बस पल की खुशी पा रहा हूँ
दिल से मेरे अपनो के बीच
शाम ढलने के बाद मिल के
इक अलग दीप जला रहा हूँ 

इक रात यूँ फिर बिता रहा हूँ
जलाने दीप की रौशनी घर घर
बुझते लौ की तेज़ जलाने दीप
इक नया दीप जला रहा हूँ ।

इक दीप फूल सा जला रहा हूँ
खिलती कलियों की सी परिधि में
ख़्वाब को हकीकत में बदलने
इक खिला दीप जला रहा हूँ

अपनो को सपनो में देख रहा हूँ
फिर से बार बार यूँ हीं मिलने
गाने वही एक राग फिर मिल के
इक नया दीप जला रहा हूँ
...
“आप सभी को मेरी ओर से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!”
कवि - विजय कुमार 
कवि का ईमेल - vijaykumar.scorpio@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

दीपावली का चित्र साभार - स्वरम उपाध्याय के वाल से