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Tuesday, 29 September 2020
कोलकाता डायरी - तीरेती बाजार (चाइना बाजार), कोलकाता / मनीश वर्मा
मजदूर / कवयित्री - चंदना दत्त
Sunday, 20 September 2020
दि ब्लेड रनर / लेखिका - कंचन कंठ
Tuesday, 15 September 2020
हिंदी कैसी हो ? / विजय बाबू
कविता
(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12 घंटे पर देखिए - FB+ Bejod )
विविधता से पूर्ण हिंदी हो,
विशालकाय देश की समृद्धि हो।
विरोधाभास से परे हिंदी हो,
विषमताओं के समंजन में वृद्धि हो॥
भाषा-विवाद का समाधान हिंदी हो,
भाषाओं का अभिमान क्षेत्रीय हो।
प्रभावों में बुनियाद हिंदी हो,
अभावों में फ़रियाद क्षेत्रीय हो॥
विनम्रता की मानक हिंदी हो,
विशिष्टतापूर्ण हो भावपूर्ण हो।
विरोधाभास से परे भाषा हिंदी हो,
विलुप्तता से दूर सामंजस्यपूर्ण हो॥
पूरे हिंद की भाषा हिंदी हो,
मानक रूप में बूँद बूँद सर्व भाषा हो।
भाषाएँ सर्वत्र सर्वजन की हो,
परिधि में छोटी-बड़ी चाहे क्यों न हो॥
विनम्रता की भाषा हिंदी हो,
विशुद्ध रूप में भाषायें मन की हो।
विघटनकारी से कोसों दूर हो,
विभिन्नता में एक अभिन्न हिंदी हो॥
क्षेत्रीय के बाद हिंदी हो,
राष्ट्र की बात में भाषा तो हिंदी हो॥
विवशता से आगे हिंदी हो,
विफलताओं की भाषा हिंदी न हो।
विकटता से मीलों वह ओर हो,
विशुद्धरूप में उत्कट तो हिंदी न हो॥
हिंदी हैं हम वतन के वीर हैं,
भाषाएँ भरसक भरपूर हो सर्वत्र हो।
प्रयोग में सम्पूर्ण विश्व की हो,
हिंदी एक भाषा हिन्दोस्ताँ जहाँ की हो॥
...
कवि का ईमेल आईडी - vijaykumar.scorpio@gmail.com
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Friday, 4 September 2020
अंधेरा मिट जाएगा और अन्य कविताएँ / कवि - लाला आशुतोष शरण
दिन को रात मान सोयी हुई सी है।
दिन का सूरज वैसा ही प्रखर है लेकिन
अजीब सा अंधेरे का पसरा है सन्नाटा
जैसे जिंदों की नहीं मुर्दों की बस्ती हो।
डर हावी है इस क़दर, निर्जीव कोविड का
जिंदों ने तब्दील कर ली है ख़ुद को मुर्दों में।
झेली हैं अनेकों महामारियां, अतीत साक्षी है
डर से निकल किया था डटकर मुकाबला
जीवित बचे रह गए थे, जनसंख्या गवाह है।
तब चिकित्सा विज्ञान शैशव में था आज प्रौढ़ है
तब उपचार-ज्ञान अभाव में था आज परिपूर्ण है।
वो सब कुछ है, जो चाहिए हथियार जूझने को
गिरते हैं साहसी ही मैदान-ए-जंग में
बरत हर सावधानी, निकल स्व-कैद से
जगाओ कर्मवीरों सुसुप्त अर्थ-व्यवस्था को।
सम्भालो कराहती लघु बाजार की अवस्था को
सहारा दो उन्हें जो रोज़ कुआं खोद पानी पीते हैं।
धीरे-धीरे जिंदगी आएगी पटरी पर
शैनै-शैने अंधेरा सिमट जाएगा
शैने-शैने सवेरा उजाला फैलाएगा।
कहां है
ख़ुदा तूने दुनिया अजीब गढ़ी है
जूही है गुलाब है ख़ुशबू कहां है
वेद है क़ुरान है इबादत कहां है
पंडित हैं मुल्ला हैं ईमान कहां है
शैतान है हैवान है इंसान कहां है
मीर हैं पीर हैं अमन कहां है
शान है इमरान है आन नहीं है।
( मीर=नेता, धार्मिक आचार्य : पीर=सिद्ध पुरुष,मार्गदर्इमरान=मजबूत आबादी, समृद्धि जनसंख्या )
अंतिम कहानी
जीवन भर की मशक़्क़त की अंतिम कहानी
चेहरे पे बिखरी सिलवटें, यादों की दिवानगी
ज़िन्दगी से बढ़ती बेरुखी, नज़रों में बेनूरी
अंजामे मुस्तकबिल का ख़ौफ़, मन की बेचारगी
दोस्तों को ढ़ूढ़ती उदास आंखों में वीरानी
एकाकीपन की इंतहा सपनों से भी दुश्मनी।
(मशक़्क़त=मेहनत : मुस्तकबिल=भविष्य : इंतहा=चरम सीमा)
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मायने / मनीश वर्मा
विचार
(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12 घंटे पर देखिए - FB+ Bejod )
एक वक्त था, जब प्यार मे लोग जीने मरने की कसमें खाते थे! और एक वक्त ऐसा आया, अब प्यार मे लोग मरने - मारने पर उतारू हैं.
प्यार के मायने बदल गए हैं. वो एक प्यार था, जब लोग यादों के सहारे पूरी जिंदगी काट दिया करते थे और आज! थोड़ी यादों मे कमी आई तो जिंदगी ले लेते हैं. मानो प्यार, प्यार न होकर कोई वस्तु हो! शायद, युग परिवर्तन का असर इसपर कुछ ज्यादा ही पड़ा है. प्यार में त्याग और समर्पण की जो भावना हुआ करती थी उसका स्थान 'ओबसेशन'(सनक) ने ले लिया है.क्या कहेंगे इसे आप? कहीं न कहीं सामाजिक स्तर पर बड़े बदलाव का द्योतक है यह. हम समझ नही पा रहे हैं. आज कहने को सोशल मीडिया की वजह से हम सभी का सामाजिक दायरा काफी बढ़ गया है पर, वास्तविकता है कि हम अपनों से, अपने समाज से कटते जा रहे हैं. हमारा आभासी (Virtual) दायरा बढ़ता जा रहा है और वास्तविक दायरा सिकुड़ता जा रहा है.
भावनात्मक क्षणों को हमलोगों ने गिनती के कुछ शब्दों मे समेट कर रख दिया है. कोई भी मौका हो, हम दो या तीन शब्दों या फिर सामने वाला अगर बहुत करीब का हुआ तो कुछ वाक्यों मे कुछ रटे रटाए, काॅपी पेस्ट शब्दों के सहारे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर हम अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं.
वाकई, समय की कमी हो गई है. शायद, कुछ अप्रत्याशित खगोलीय घटनाओं की वजह से दिन के 24 घंटे में कुछ कमी आ गई है !
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Thursday, 3 September 2020
चेष्टा बस ज्ञान-संवर्धन (शिक्षक दिवस - 5 सितम्बर पर विशेष) / कवयित्री - दीपा आलोक
कविता
(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12 घंटे पर देखिए - FB+ Bejod )
करूँ जिसके लिए मैं संचरण।
ज्ञान की पूजा करूँ
बन ज्ञान का मैं संचारी।
सीखने की चाह जिसमें
बनूँ मैं उसका उद्धारी।
चेष्टा है ज्ञान-संपोषण,
करूँ जिसके लिए मैं संचरण।
सर्वांगीण विकास घ्येय हो मेरा,
हर बालक बने सुजान।
ख्याति उसकी हो चहुँ दिश ,
कीर्ति का भी हो बखान।
चेष्टा है ज्ञान-समर्पण,
करूँ जिसके लिए मैं संचरण।
सम्पूर्ण जीवन दूँ मैं इसको,
करूँ मैं जग को यह अर्पण।
संजीवनी यह जिसे पीकर,
हो प्राप्त सबको संतुलन।
चेष्टा है ज्ञान-संरक्षण,
करूँ जिसके लिए मैं संचरण।
स्वयं से इतना कहूँ -
कर न तू बस ज्ञान-अर्जन,
कर तू इसका संस्करण।
ज्ञान की आभा मिले तो,
न कोई संत्रस्त हो फिर ,
हो जाए सस्मित वसुंधरा।
चेष्टा बस ज्ञान संवर्धन,
करूँ जिसके लिए मैं संचरण।