Monday 13 April 2020

किन्नर समाज पर एक आवश्यक चिंतन / राज मोहन

किन्नर समाज को मिले पूरा सम्मान 
सर्वोच्च न्यायालय ने 14 अप्रील, 2014 को किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में दी थी मान्यता

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 किन्नर समुदाय को देश में तृतीय लिंग के रूप में संवैधानिक मान्यता मिले हुए भले ही 5 वर्ष बीत गया हों  , अब भी उनका एक बडा हिस्सा मतदाता सूची तथा अन्य सुविधाओं से बाहर है । अब भी समाज में किन्नरों की दशा में कोई खास सुधार नहीं आया है । इस संबंध में शायद कोई  अतिशयोक्ति नहीं कि - किन्नर समुदाय आर्थिक , सामाजिक , सांस्कृतिक तथा राजनीतिक स्तर पर पिछडा हुआ है । इन्हें समाज में अभी भी हीन और तिरस्कर की  दृष्टि से देखा जाता है ।

तृतीय लिंग भी हमारे ही समाज का हिस्सा है । इनकी स्थिति कुछ ऐसी है , कि आधुनिक समाज में सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता । समाज में इस वर्ग को उपहास पूर्वक मॉगा , बीच वाला , मामू , गुउ नपुंसक ,छका , किन्नर आदि नामों से पुकारा जाता है । सभी को दुआ , बधाई और शुभ आशीष देने वाले यह हाथ अपनी मूलभूत सुविधो के साथ पहचान - अधिकार और सम्मान से वंचित हैं साथ ही,  सामाजिक बहिष्करण , लिंग भेदभाव एवं मानसिक उत्पीड़न के शिकार हैं ।

झारखंड प्रदेश की  स्थापना के 20 वर्ष पूरे होने चले लेकिन अभी तक तृतीय लिंग की निश्चित संख्या पता नहीं । पिछले कुछ सालों में इनकी मतदाताओं की संख्या में 34% इजाफा आया है । 30 जनवरी 2019 तक कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 2.19 करोड़ है , जिसमें तृतीय लिंग मतदाताओं की संख्या 307 है , जबकि 2013 ई  में इनकी कुल पंजीकृत संख्या 09 थी । 2014 ई में 16 , 2015 ई में 30  , 2016 ई में 29 , 2017 ई में 123 , 2018 ई में 290 तथा 2019 ई  में 307 किन्नरों की पंजीकृत जनसंख्या थी । निर्वाचन आयोग द्वारा 01 जनवरी 2019 को जारी अंतिम सूची में तृतीय लिंग मतदाताओं की संख्या 307 थी । लेकिन मतदाता पुनरीक्षण में कई किन्नरों के नाम हटा दिए गए । अब इनकी पंजीकृत संख्या मात्र 212 रह गई है ।

झारखंड में सबसे अधिक 53 किन्नर वोटर पूर्वी सिंहभूम जिले में है जो कुल झारखंडी किन्नर मतदाताओं का 25% है । रांची में 43 , साहिबगंज में 06 , दुमका में 04  ,गोडा में 06 , कोडरमा में 03 , हजारीबाग में 10 , रामगढ़ में 01,  सरायकेला -खरसावां में 08 ,खूंटी में 01,  गुमला में 06 , लोहरदगा में 05 और लातेहार में 04 किन्नर मतदाता हैं । झारखंड के 6 जिले ( पाकुड़ ,जामताड़ा , देवघर ,सिमडेगा ,पलामू और गढ़वा ) में किन्नर पंजीकृत वोटर नहीं है । 

भारतीय जनगणना ने कभी भी वर्षों के लिए जनगणना के आंकड़े को इकट्ठा करते हुए तीसरे लिंग यानी ट्रांस को मान्यता नहीं दी है । लेकिन 2011 ई में ट्रांस के डाटा को उनके रोजगार  ,साक्षरता और जाति से संबंधित विवरण एकत्र किया गया था । भारत में 2011 ई की जनसंख्या के अनुसार ट्रांस की कुल आबादी लगभग 4.88 लाख है । जनसंख्या विभाग द्वारा जारी प्राथमिक आंकड़ों में ' नर ' के अंदर ट्रांसजेंडर के डाटा को काट दिया गया है  । शैक्षणिक उद्देश्य के लिए ट्रांस के अलग-अलग आंकड़ों को इसमें अलग किया गया है । जिसमें झारखंड में 13,463 ट्रांसजेंडर हैं । बच्चे ( 0-06 वर्ष ) 1,593 , अनुसूचित जाति के ट्रांसजेंडर 1,499 और अनुसूचित जनजाति से 3,735 ट्रांसजेंडर हैं । जिन का साक्षरता दर 47.58% है  ।

झारखंड सरकार की एक बड़ी जिम्मेवारी है कि तृतीय लिंग के निश्चित संख्या का पता लगाना तथा इनकी समस्याओं से अवगत होकर संभावित समाधान हेतु पहल करे । जिससे इस समुदाय की  सामाजिक , आर्थिक सांस्कृतिक एवं राजनीतिक उत्थान हो सके ।अन्य पड़ोसी राज्यों के तर्ज पर ' किन्नर कल्याण बोर्ड '  का गठन कर इन्हें समाज के मुख्यधारा में लाना , झारखंड में लैंगिक अध्ययनों के अंतर्गत किन्नरों से जुड़े हुए वाद-विवाद तथा विमर्श का आलोचनात्मक अध्ययन को बढ़ावा देना तथा शोध संस्थान बनाने चाहिए साथ में उक्त समुदाय के लिए बनाई गई सरकारी नीतियों और योजनाओं तथा इनकी संवेदनशीलता के अध्ययन को न सिर्फ बढ़ावा देना चाहिए बल्कि शोधार्थियों को विशेष आर्थिक प्रोत्साहन भी देना चाहिए । ताकि इनकी समस्याएं एवं सामाजिक समाधान से समाज की मुख्यधारा में आकर सम्मानजनक जीवन यापन कर सकें ।

जिन किन्नरों को देख कर सुन कर न केवल महिला , बल्कि पुरुष भी भय खाते हैं । उस समाज / समुदाय से करीबी का रिश्ता न तो समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र कराता है और ना ही हमारी शिक्षा हमारी स्कूल पाठ्यक्रमों  में भी किन्नर समुदाय पर मुकम्मल जानकारियां तक नहीं देती , आखिर नई पीढ़ी ( बच्चे ) को जानकारियां कहाँ से मिलती है ? वह जानकारियां घर- परिवार और समाज से ही हासिल होती हैं । ऐसे में नई पीढ़ी को जानकारियां कैसे मिलेगी ? इसलिए झारखंड सरकार को नए पाठ्यक्रमों में तमिलनाडु एवं केरल ( विजयराजा मल्लिका का जीवन ) जैसा किन्नरो से संबंधित पाठ शामिल करना चाहिए ।

झारखंड किन्नर समाज के प्रदेश अध्यक्ष छमछम देवी एक साक्षात्कार में कहीं कि-" हम भी इंसान हैं पर हमारे प्रति समाज का नजरिया दुख भरा है । कहीं जाते हैं तो लोग कहते हैं कि वह देखो - ' हिजड़ा जा रहे हैं  ' हम लोगों को ऐसे संबोधन पर कोफ्त होती है । दुनिया का पहला देश है भारत जहां सर्वोच्च न्यायालय ने तृतीय लिंग का दर्जा दिया है , साथ ही साथ इस समुदाय को सम्मान दिलाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है । तृतीय लिंग के लिए के समुदाय को अंकित कर इन्हें मूलभूत आवश्यकताएं ( भोजन ,वस्त्र, आवास, शिक्षा एवं चिकित्सा) उपलब्ध कराकर उनके हुनर को पहचानते हुए उन्हें विशेष प्रशिक्षित कर उन्हें रोजगार देकर आर्थिक एवं सामाजिक रूप से स्वालंबन बनाया जा सकता है। ताकि भिक्षावृति, बधाई देने तथा घृणित कार्य किए बगैर सम्मान पूर्वक आनंदित जीवन यापन कर सकें ।

14 अप्रैल 2014 में भारत के शीर्ष न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान दी है। नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (एनएलएसए) की अर्जी पर फैसला सुनाया था । इस फैसले के बदौलत सभी को जन्म प्रमाण पत्र , राशन कार्ड , पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिला । उन्हें एक दूसरे से शादी करने तथा तलाक देने का अधिकार भी प्राप्त है । वह बच्चे को गोद ले सकते हैं और उन्हें उत्तराधिकार कानून के वारिस होने एवं अन्य अधिकार मिला है । इतना ही नहीं विधेयक में दंडात्मक प्रावधान के अनुसार किन्नरों के उत्पीड़न या प्रताड़ित करने पर किसी व्यक्ति को 6 माह से लेकर कुछ वर्षों तक जेल की सजा का प्रावधान है , किंतु प्रश्न है कि कानूनी अधिकार ही काफी नहीं है सामाजिक अधिकार मिले तब तो !

झारखंड प्रदेश आदिवासी बहुल क्षेत्र है । जहां आदिवासी संस्कृति / समाजों में लिंग भेद कम देखने को मिलता , यहाँ कपड़े पहनने  , मित्र बनाने , शादी करने या नही करने या जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता होती है । इस कारण आदिवासी समाज में सामाजिक बहिष्करण नहीं देखने को मिलता है । जिससे ट्रांसजेंडर की पहचान करना कठिन हो जाता है, किंतु इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि झारखंड में बड़ी संख्या में ट्रांसजेंडर है , जिनका पहचान करना कठिन है । सरकार की किन्नरों के प्रति उदासीता त्यागने की जरूरत है ताकि वो खुलकर सामने आ सकें । सरकार को चाहिए कि एनएलएसए को कठोरता से पालन करते इनके पहचान ,अधिकार, सम्मान और उत्थान के लिए संकल्पित हो ताकि किन्नर समाज भी खुलकर आनंदपूर्वक जीवन जी सके ।

लेकक - राज मोहन 
लेखक का पेशा -  सहायक प्राध्यापक 
पता - समाजशास्त्र -विभाग, गुलाबचंद प्रसाद अग्रवाल कॉलेज 
सड़मा , छत्तरपुर (पलामू )
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